कश्मीर के किसानों के लिए 'सेब' क्यों बन गई है मुसीबतों की फसल?
कश्मीर भारत के सेब उत्पादन में 75 फीसद हिस्सेदारी रखता है. इस मजबूत सेक्टर को सुरक्षित रखने के लिए बेहतर जांच जरूरी है

यह साल 2021 की बात है. 48 वर्षीय गुलजार अहमद भट ने पुलवामा के चांदगाम गांव स्थित अपने पारंपरिक सेब के बगीचे को सघन पेड़ों वाले आधुनिक बगीचे में बदलने के लिए जिंदगी भर की कमाई लगा दी.
कुल 13.5 लाख रुपए का निवेश किया, 10 लाख रुपए न्यूजीलैंड मूल के 1,235 शिनो गाला बिरवों में, बाकी जमीन के विकास और ड्रिप सिंचाई में. शुरू में यह निवेश फायदेमंद लगा.
तीन दशकों से 5-6 लाख रुपए के आसपास ठहरी उनकी सालाना आमदनी दो साल के भीतर 16 लाख रुपए हो गई और उपज 1,200 डिब्बों तक पहुंच गई. मगर जुलाई 2024 में एक कीटनाशक के छिड़काव ने सब पर पानी फेर दिया. भट इंडिया टुडे को बताते हैं, ''यह कयामत थी. हमारी रोजी-रोटी का अकेला जरिया रातोरात खत्म हो गया.''
रजिस्टर्ड डीलर से खरीदे कीटनाशक ने आठ कनाल के उनके बाग को बंजर जमीन में तब्दील कर दिया. अब वे हर्जाने के लिए गुजरात की केमिकल फर्म, डीलर और जिला बागवानी दफ्तर के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. जम्मू और कश्मीर का बागवानी महकमा हर सीजन में शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के साथ सलाह-मशविरा करके सुझाए गए कृषि रसायन (एग्रोकेमिकल) बताता है. बाद में महकमे ने तस्दीक की कि भट के मामले में गैर-सिफारिशी रसायन ने तबाही मचाई.
वैसे, भट अकेले नहीं हैं जिनकी फसल बर्बाद हो गई. कश्मीर का सेब उद्योग जो 35 लाख परिवारों की आय का जरिया और भारत के सेब उत्पादन में 75 फीसद हिस्सेदारी रखता है. आज एक जहरीले, घटिया और नकली एग्रोकेमिकल की मार झेल रहा है. किसानों की चिंता बढ़ती जा रही है क्योंकि बेलगाम उत्पाद बागों और आजीविका पर कहर बरपा रहे हैं. यह मुद्दा इतना अहम है कि जम्मू और कश्मीर विधानसभा में भी उठा. इसे सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायकों हिलाल अकबर लोन और बशीर अहमद वीरी ने उठाया.
जवाब देते हुए 19 मार्च को कृषि मंत्री जाविद अहमद डार ने किसी भी गड़बड़ी से इनकार किया और कहा कि जांच-पड़ताल के भरपूर नियम-कायदे मौजूद हैं. फिर भी बगीचों में बढ़ती बीमारियों की वजह से कृषि रसायनों की मांग में तेज उछाल आया है. इन बीमारियों का वास्ता जलवायु परिवर्तन और घने बगीचों में आयातित विदेशी किस्में लगाने से है.
कश्मीर का बागवानी क्षेत्र जम्मू और कश्मीर के सकल राज्य घरेलू उत्पाद में करीब 7 फीसद का योगदान देता है. सघन बगीचों के लिए 2016 से सरकारी सब्सिडी दी जाने लगी, जिससे वे अब 3,000 हेक्टेयर में फैल गए हैं, जबकि पारंपरिक बगीचे अभी भी 1,70,000 हेक्टेयर में लगे हैं. वे सालाना कुल 20 लाख टन सेब उपजाते हैं, जिसमें से दसवां हिस्सा सघन बगीचों से आता है.
विदेशी किस्मों से जुड़े नियम-कायदों में भी ढील दे दी गई है. पहले आयातित बिरवे क्वारंटीन के फौरन बाद लगाने होते थे. अब उन्हें शीत सुविधाओं में रखा जा सकता है. किसानों का कहना है कि इससे रसायनों पर निर्भरता बढ़ गई और ज्यादा बीमारियों के लिए दरवाजे खुल गए. लीफ माइनर जैसे कीड़ों की संख्या बढ़ने से किसानों की नींद उड़ गई लेकिन केमिकल निर्माताओं और इससे बेईमान व्यापारियों के लिए बाजार खुल गया.
कृषि रसायनों की आपूर्ति और बिक्री की देखरेख कृषि महकमे के मातहत कानून प्रवर्तन निदेशालय करता है. जम्मू और कश्मीर में 2024 और 2025 के बीच जांचे गए कीटनाशकों के 2,564 नमूनों में से 910 गुणवत्ता जांच में नाकाम रहे. इसी तरह उर्वरकों के 1,037 नमूनों में से 138 घटिया पाए गए. फलते-फूलते बागवानी उद्योग के लिए मशहूर कश्मीर में ही 2022 से 2025 के बीच गड़बड़ियों से जुड़े 2,543 मामले सामने आए, लेकिन महज 235 में ही एफआइआर दर्ज हुईं.
दुकानों में एफआइएल, बीएएसएफ, इंडोफिल और बेयर सरीखे बड़े ब्रांडों की अब भी भरमार है, लेकिन वे भी जांच में खरे नहीं उतर पाए हैं. 2024 में एफआइएल और इंडोफिल के दो खास उत्पादों को गलत ब्रांड घोषित कर दिया गया. गुणवत्ता जांच में नाकाम होने के बाद फरवरी 2025 में इंडोफिल के एक और उत्पाद की भी यही गत हुई.
जमींदार एसोसिएशन शोपियां के सदर मुश्ताक अहमद मलिक कहते हैं, ''माफिया चुपचाप अपना काम कर रहा है. अनजान ब्रांड और नकली उत्पादों से बाजार पट गया है. ट्रेडर्स को मामूली जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाता है, उनके लाइसेंस भी रद्द नहीं होते. यहां अंकुश नाम की कोई चीज नहीं है.'' उन्होंने फसल बीमा को अति आवश्यक सुरक्षा कवच बताया.
जांच में देरी से मामला और पेचीदा हो जाता है. इस्तेमाल किए जा रहे 103 कीटनाशक रसायनों में से महज 49 की ही जांच श्रीनगर में की जा सकती है. बाकी को फरीदाबाद स्थित केंद्रीय कीटानाशक प्रयोगशाला में भेजा जाता है, जिससे प्रतिबंधित करने में देरी होती है और बगीचों को होने वाला नुक्सान और बढ़ जाता है. मगर कानून प्रवर्तन के डिप्टी डायरेक्टर मुज्तबा याह्या कहते हैं, ''किसान मसले को बढ़ा-चढ़ाकर बता रहे हैं...हमारे यहां चौबीसों घंटे जांच होती है.''
हालांकि वे मानते हैं कि ''हर जिले में आधुनिक प्रयोगशालाएं होने से हमारी कोशिशों को सहारा मिलेगा''. प्रवर्तन शाखा में संसाधनों की कमी है. न समर्पित निदेशालय है, न अलग बजट. महज नौ इंस्पेक्टर पूरी घाटी का काम देखते हैं.
कोशिश जारी है. कश्मीर के बागवानी महकमे के निदेशक जहूर अहमद भट कहते हैं, ''इस साल कुलगाम और बारामूला में दो नई कीटनाशक जांच प्रयोगशालाएं शुरू हुईं. हम बीमारियों पर लगाम कसने और किसानों की हिफाजत के लिए काम कर रहे हैं.'' लेकिन गुलजार अहमद भट जैसे उत्पादकों के लिए राहत दूर की कौड़ी लगती है.
जिस तरह कश्मीर का सेब उद्योग बढ़ते जोखिम और नियामकीय खामियों से जूझ रहा है उसमें केवल तेजी से किए गए सुधार ही सबसे बड़ी संजीवनी साबित हो सकते हैं. ऐसा करने से ही इलाके का सबसे बड़ा और मजबूत आजीविका का साधन बचेगा और बढ़ेगा. कश्मीर भारत के सेब उत्पादन में 75 फीसद हिस्सेदारी रखता है. इस मजबूत सेक्टर को सुरक्षित रखने के लिए बेहतर जांच जरूरी है
रासायनिक संकट
> नकली और घटिया ब्रांड वाले कृषि रसायन कश्मीर में सेब के बगीचों को तहस-नहस कर रहे हैं, इससे 35 लाख लोगों की आजीविका पर संकट है.
> कीड़ों के बढ़ते प्रकोप, जलवायु परिवर्तन और आयातित किस्म के पौधों की वजह से रसायनों पर निर्भरता बढ़ी है.
> रसायनों और कीटनाशकों के नमूनों की जांच में देर और जमीनी स्तर पर खराब प्रवर्तन व्यवस्था ने समस्या को और बढ़ा दिया है.
कलीम गीलानी