'ऑपरेशन टाइगर' के जरिए दोबारा उद्धव की पार्टी तोड़ना चाहते हैं एकनाथ शिंदे?
शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे अपनी पार्टी में नए लोगों को संतुलन साधने के लिए शामिल करा रहे हैं ताकि वे अपनी सहयोगी भाजपा को जता सकें कि उन्हें नजरअंदाज करना ठीक न होगा.

शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) को ताजातरीन झटका 13 अप्रैल को उस वक्त लगा, जब कुछ ही दिन पहले पार्टी प्रवक्ता बनाई गईं संजना घाडी अपने पति और मुंबई के पूर्व पार्षद संजय घाडी के साथ एकनाथ शिंदे की अगुआई वाली प्रतिद्वंद्वी शिवसेना में शामिल हो गईं. मगर यह दलबदल के हालिया सिलसिले की एक और कड़ी भर था.
पाला बदलने वाले कुछ बड़े नाम हैं पूर्व विधायक राजन साल्वी, सुभाष बाने, संजय कदम, सुजीत मिंचेकर और पूर्व एमएलसी दुष्यंत चतुर्वेदी. मुंबई में रसूखदार पूर्व पार्षद राजुल पटेल और राजू पेडणेकर भी अब शिंदे के खेमे में हैं, तो छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद) के पूर्व मेयर नंदकुमार घोडेले ने भी पाला बदल लिया है.
शिंदे सेना अब निवर्तमान बृहन्मुंबई नगर निगम (जिसका कार्यकाल 2022 में खत्म हो गया) में शिवसेना के 97 पार्षदों में से आधे से ज्यादा की वफादारी का दावा कर रही है. इस बीच 'ऑपरेशन टाइगर' की चर्चाएं चल रही हैं जिसका मकसद शिवसेना यूबीटी के नौ लोकसभा सांसदों और 20 विधायकों में से कुछ को तोड़कर लाना है. नई दिल्ली में शिंदे समर्थकों की तरफ से आयोजित कार्यक्रमों में यूबीटी सेना के सांसदों की मौजूदगी ने इन अफवाहों को और हवा दे दी.
शिवसेना यूबीटी के एक चिंतित विधायक ने स्वीकार किया कि पार्टी नवंबर 2024 के विधानसभा चुनाव की हार से अभी उबर नहीं पाई है. वे कहते हैं, ''कार्यकर्ताओं और मझोले नेताओं पर अभी भी थकान का एहसास तारी है. जिन पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के कारोबारी हित सरकार से जुड़े हैं, उनके पास पाला बदलने के सिवा कोई चारा भी नहीं.'' मगर इस सबके पीछे शिंदे की रणनीति क्या है?
शिंदे के खेमे में दलबदल ऐसे वक्त हुआ जब तीन पार्टियों के महायुति गठबंधन में उपमुख्यमंत्री को लगातार 'दरकिनार' होते देखा जा रहा है. वह जमाना गया जब मुख्यमंत्री (2022-24) के तौर पर उनकी तूती बोलती थी. बताया जाता है कि इन्हीं मसलों पर चर्चा के लिए शिंदे ने 13 अप्रैल को महाराष्ट्र के दौरे पर आए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की. हालांकि सार्वजनिक तौर पर शिंदे और महायुति के अन्य भाजपा तथा एनसीपी से जुड़े नेता किसी भी अनबन से इनकार करते हैं.
मगर शिंदे ने हाल ही जिन लोगों को पार्टी में लिया, उनसे जाहिर है कि वे अपने विकल्प मजबूत कर रहे हैं. शिंदे ने पूर्व कांग्रेस विधायक (और पूर्व सैनिक) रवींद्र धांगेकर को पार्टी में लाने में निजी दिलचस्पी ली. धांगेकर ने 2022 में हुए उपचुनाव में पुणे के भगवा गढ़ माने जाने वाले कस्बा पेठ से भाजपा को करारी शिकस्त देकर चौंका दिया था.
तीन बार के विधायक राजन साल्वी को लेने से सेना के एक और नेता और उद्योग मंत्री उदय सामंत और उनके भाई 2024 में रत्नागिरि जिले के राजापुर से साल्वी को हराने वाले किरण उर्फ भैया के बढ़ते असर पर लगाम लगेगी. शिंदे की पार्टी में होने के बावजूद दोनों सामंत भाई भाजपा के साथ रिश्तों की पींगें बढ़ा रहे बताए जाते हैं.
शिंदे के पैरों के नीचे जमीन इसलिए भी डोल रही है क्योंकि नीलेश राणे, संजना जाधव और राजेंद्र गवाइत समेत उनके सात विधायक पूर्व भाजपाई हैं. सूत्रों का कहना है कि नए लोगों को भर्ती करके उपमुख्यमंत्री अपनी मोलभाव की ताकत बढ़ा रहे हैं और साथ ही वरिष्ठ सहयोगी भाजपा को यह संदेश भी दे रहे हैं कि उन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता.
शिंदे सेना के पास फिलहाल 57 विधायक और सात सांसद हैं. इसके बावजूद महाराष्ट्र में महायुति सरकार की स्थिरता उन पर टिकी नहीं है. इसके अलावा, बेहद अहम बीएमसी समेत स्थानीय निकायों के चुनाव भी होने वाले हैं, जो इसी साल होने चाहिए. बीएमसी के चुनाव में जीत महायुति गठबंधन के भीतर शिंदे सेना के बारे में किसी भी उलझन को खत्म कर देगी और इस सवाल का भी हमेशा के लिए निर्णायक जवाब दे देगी कि 'असली शिवसेना' कौन-सी है.
एकनाथ शिंदे अपनी पार्टी में नए लोगों को संतुलन साधने के लिए शामिल करा रहे हैं ताकि वे अपनी सहयोगी भाजपा को जता सकें कि उन्हें नजरअंदाज करना ठीक न होगा.