राजस्थान में क्यों टाला जा रहा है नगर निकाय और पंचायत चुनाव?
परिसीमन और चुनाव से संबंधित तैयारियां पूरी नहीं होने के कारण 6,759 ग्राम पंचायतों, 21 जिला परिषदों और 200 से ज्यादा पंचायत समितियों के चुनाव समय पर नहीं कराए जा सके

राजस्थान में नगर निकायों और पंचायत चुनावों में देरी को लेकर सियासी पंचायत शुरू हो गई है. केंद्र के 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की तर्ज पर राजस्थान सरकार ने 'एक राज्य, एक चुनाव' की नीति अपनाते हुए पंचायत और निकाय चुनाव एक साथ कराने की घोषणा की थी.
सरकार ने इसका ऐलान तो कर दिया लेकिन परिसीमन और चुनाव से संबंधित तैयारियां पूरी नहीं होने के कारण 6,759 ग्राम पंचायतों, 21 जिला परिषदों और 200 से ज्यादा पंचायत समितियों के चुनाव और 110 नगर निकायों के चुनाव समय पर नहीं कराए जा सके.
इन पंचायतों और नगर निकायों का कार्यकाल समाप्त हुए दो से छह माह का समय बीत चुका है. राजस्थान हाइकोर्ट समेत प्रतिपक्षी कांग्रेस ने इसे लेकर कड़ा रुख अपनाया है. राजस्थान हाइकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस इंद्रजीत सिंह की खंडपीठ ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह पंचायत और निकाय चुनाव की समय सीमा जल्द से जल्द निर्धारित करे.
सरकार के 'एक राज्य, एक चुनाव' के कदम को प्रतिपक्ष ने संविधान के खिलाफ बताया है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का कहना है, ''संवैधानिक प्रावधानों के तहत निकाय और पंचायतों का कार्यकाल खत्म होने से पहले वहां चुनाव कराना आवश्यक है मगर झूठी वाहवाही पाने के लिए राजस्थान सरकार ने वन स्टेट, वन इलेक्शन का जुमला फेंक दिया है जो वास्तविक धरातल पर लागू होना संभव नहीं. एक साथ चुनाव होने से छोटे दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों को नुक्सान होगा क्योंकि उनके पास बड़ी पार्टियों की तरह संसाधन नहीं हैं.''
विपक्ष के दावों में इसलिए भी दम नजर आता है क्योंकि पिछले पांच साल में राजस्थान में करीब 400 पंचायतों और 30 से ज्यादा नगर निकायों में उप-चुनाव हुए हैं. ये चुनाव सरपंच, प्रधान और जिला प्रमुख के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने, पंचायत प्रतिनिधि के निधन या प्रतिनिधि को अयोग्य ठहराए जाने के कारण कराने पड़े हैं.
पंचायतीराज मामलों के जानकार विजय गोयल कहते हैं, ''लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हो सकते हैं क्योंकि वहां सांसद और विधायक के खिलाफ व्यक्तिगत तौर पर अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने का प्रावधान नहीं है मगर राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 की धारा 37 के तहत सरपंच, उप-सरपंच, प्रधान और जिला प्रमुख के खिलाफ चुनाव के दो साल बाद अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है. कुल सदस्यों का तीन-चौथाई बहुमत पंचायत प्रतिनिधि के खिलाफ होने पर उन्हें पद से हटाया जा सकता है. अगर अविश्वास प्रस्ताव सफल नहीं हो पाता तो इसके एक साल बाद दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है.''
राजस्थान के नगरीय विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा एक राज्य, एक चुनाव के फैसले को सरकार का क्रांतिकारी कदम बताते हैं. खर्रा का कहना है, ''राजस्थान में करीब दो साल का वक्त तो निकाय और पंचायत चुनाव में ही बीत जाता था जिसकी आचार संहिता के चलते दो साल तक पूरे राजस्थान में विकास कार्य ठप रहते थे. एक राज्य एक चुनाव के कारण आचार संहिता का समय घटेगा और विकास कार्यों में तेजी आएगी.''
राजस्थान की 11,283 ग्राम पंचायतें और 218 नगरीय निकाय हैं जिनमें से 6,759 ग्राम पंचायतों और 110 नगरीय निकायों में समय पर चुनाव न होने के कारण प्रशासक लगाए गए हैं. अगर सितंबर 2025 तक चुनाव नहीं हुए तो सभी ग्राम पंचायतों और निकायों में प्रशासक लगाने पड़ेंगे.''