हिंदूवादी संगठनों को क्यों हर मस्जिद-दरगाह के नीचे दिख रहा भानुमति का पिटारा?

हाल के महीनों में प्रदेश की निचली अदालतों में उग्र हिंदू समूहों की ओर से मुस्लिम स्थलों और इबादतगाहों के खिलाफ याचिकाओं की बाढ़-सी आ गई है

संभल की शाही जामा मस्जिद में जमा लोग
संभल की शाही जामा मस्जिद में जमा लोग

संभल की शाही जामा मस्जिद को लेकर विवाद अभी खत्म नहीं हुआ है जहां पिछले नवंबर में पुलिस के साथ झड़प में चार लोग मारे गए थे. 10 जनवरी को इस मसले पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अगर साक्ष्यों से इस बात की पुष्टि हो जाती है कि इसे 16वीं सदी में हरिहर के कल्कि मंदिर के ढांचे पर बनाया गया था तो मुस्लिम समुदाय को 'सम्मानजनक ढंग से' और स्वेच्छा से इस जगह को हिंदुओं को सौंप देना चाहिए.

प्रयागराज में कुंभ से पहले आज तक समागम में योगी ने यह भी कहा कि किसी भी 'विवादित ढांचे' को मस्जिद नहीं कहा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "जिस दिन हम ऐसे स्थानों को मस्जिद बोलना बंद कर देंगे, लोग भी वहां जाना बंद कर देंगे. दूसरों की आस्था को ठेस पहुंचाकर किसी जगह पर इबादतगाह बनाना इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है."

योगी की यह टिप्पणी उस समय आई है जब सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए संभल नगरपालिका अधिकारियों की ओर से संभल जामा मस्जिद के पास स्थित एक कुएं में पूजा एवं पवित्र स्नान की अनुमति देने वाली नोटिस पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने इस मसले पर सरकार से स्थिति रिपोर्ट भी मांगी है. इससे पहले 8 जनवरी को इलाहाबाद हाइकोर्ट ने मस्जिद के संबंध में निचली अदालत की कार्यवाही पर 25 फरवरी तक रोक लगा दिया था. एक अधिवक्ता कमिशनर की ओर से मस्जिद स्थल के सर्वेक्षण के लिए 19 नवंबर के निर्देश को मस्जिद प्रबंधन समिति ने चुनौती दी थी.

राज्य के मीडिया नैरेटिव में फिलहाल पूरा ध्यान महाकुंभ पर है, मगर विशेषज्ञों का मानना है कि संभल सरीखे विवादित स्थलों को लेकर सांप्रदायिक तनाव आने वाले हफ्तों में फिर से उभर सकता है. उस मामले में हिंदू कार्यकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील हरि शंकर जैन ने इंडिया टुडे से कहा, "अदालत ने भले ही कार्यवाही पर रोक लगा दी है, मगर आंदोलन को रोका नहीं जा सकता. यह क्रांति एक सैलाब की तरह है जिसे बांधा नहीं जा सकता. अगर हिंदुओं को न्याय से वंचित किया गया या बाधित किया गया तो उसके खिलाफ क्रांति होगी. हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना उम्मीद से कहीं पहले साकार हो जाएगी." जैन के पास वर्तमान मामलों में वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की शाही ईदगाद मस्जिद, धार के भोजशाला-कमाल मौला परिसर और यहां तक कि आगरा में ताज महल और दिल्ली की कुतुब मीनार के खिलाफ भी याचिकाएं शामिल हैं.

हाल के महीनों में उत्तर प्रदेश की निचली अदालतों में उग्र हिंदू समूहों की ओर से मुस्लिम स्थलों और इबादतगाहों के खिलाफ याचिकाओं की बाढ़-सी आ गई है और सत्तारूढ़ भाजपा की राज्य सरकार की ओर से उनको लेकर विवादास्पद सर्वेक्षण और प्रशासनिक कार्रवाई की जा रही है.

इस उथल-पुथल के बीच 5 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में ताजा याचिकाएं डाली गई हैं. उनमें मांग की गई है कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 से संबंधित मामलों में सुनवाई और सर्वे आदि के आदेश के लिए निचली अदालतों पर शीर्ष कोर्ट ने जो रोक लगाई है उसे हटाया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए 12 दिसंबर को यह रोक लगाई थी.

यह अधिनियम सभी धार्मिक स्थलों की 15 अगस्त, 1947 की यथास्थिति बहाल रखने को कहता है. इस मामले में 17 फरवरी की अगली सुनवाई को देखते हुए खदबदाहट जारी है. सियासी रस्साकशी अपने चरम पर है. हर पक्ष कोर्ट के फैसले को अपने-अपने वैचारिक चश्मे से देख रहा है. इन कानूनी लड़ाइयों से भाजपा को अपने हिंदुत्व आधार को मजबूत करने का मौका मिलता है, जबकि विपक्ष को रक्षात्मक मुद्रा में आना पड़ता है. हालांकि पार्टी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी मस्जिद से जुड़ी याचिकाओं में पार्टी की भागीदारी से इनकार करते हैं. वे कहते हैं, "लोग अपने अधिकारों का प्रयोग कर रहे हैं और अदालतें इन मामलों की सुनवाई कर रही हैं. इन मामलों में राजनीति को शामिल करने की कोई जरूरत नहीं है."

समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव ने वैसे मस्जिद-मंदिर विवादों पर सीधे टिप्पणियां करने से काफी हद तक परहेज किया है. हालांकि उन्होंने अचानक पुरातात्विक सर्वक्षणों के आदेश देने के 'नए चलन' पर तंज जरूर कसा है. लखनऊ में पत्रकारों से बात करते हुए अखिलेश ने रूखे अंदाज में कहा, "मुख्यमंत्री के निवास के नीचे भी एक शिवलिंग है. उसकी भी खुदाई होनी चाहिए."

दूसरी तरफ, कांग्रेस ने अधिक जुझारू रुख अख्तियार किया है. राहुल और प्रियंका गांधी सरीखे पार्टी नेताओं ने पूजा स्थल अधिनियम को 'कमजोर' करने तथा सांप्रदायिक तनाव भड़काने के लिए भाजपा की आलोचना की है. पार्टी के अल्पसंख्यक विंग ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के वर्षगांठ सरीखे अहम मौकों पर अभियान भी चलाया. कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह कहते हैं, "भाजपा का खंडन पूरी तरह से तमाशा है. वे हताशा में इन मुद्दों को उठा रहे हैं और असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे हैं."

वैसे, इन मसलों पर विपक्ष का नजरिया बिखरा हुआ है. इससे भाजपा को इस नैरेटिव में हावी होने का मौका मिल गया है और सांप्रदायिक पूर्वग्रह के आरोपों का खारिज करते हुए वह खुद को हिंदू अधिकारों का रक्षक बताती है. जाहिर है, दांव काफी ऊंचे हैं. सपा की ताकत बढ़ रही है और पिछड़ी जातियों की गोलबंदी पर उसके ध्यान ने उसे 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों का मजबूत दावेदार बना दिया है. ऐसे में धार्मिक स्थलों को लेकर कानूनी लड़ाइयां अहम भूमिका निभा सकती हैं. भाजपा की रणनीति साफ है—ये विवाद उसके हिंदुत्व के आधार को मजबूत करने और विपक्षी चुनौतियों से निपटने के लिए माकूल हथियार हैं. दूसरी तरफ, यूपी सरीखे राज्य में, जहां चुनाव नतीजे अक्सर सांप्रदायिक और जातिगत कारकों से तय होते हैं, ये मुद्दे सपा और कांग्रेस की रणनीति एवं धैर्य तथा लचीलेपन का इम्तिहान हैं.

संभल मामले में कब क्या हुआ

सर्वेक्षण के दौरान संभल में हिंसा

19 नवंबर, 2024: एक याचिका में दावा किया गया कि मुगल काल की शाही जामा मस्जिद 16वीं सदी के मंदिर की जगह पर बनाई गई. इसके बाद सिविल जज ने उसके सर्वे का आदेश दिया. 

24 नवंबर: दूसरे सर्वेक्षण के दौरान हिंसा भड़क उठी. चार लोग मारे गए. ये सभी मुसलमान थे.

29 नवंबर: सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से कहा कि मामले की सुनवाई रोके, सर्वेक्षण रिपोर्ट को सील कर दिया और मस्जिद की समिति को सिविल कोर्ट के फैसले को चुनौती देने की मंजूरी दे दी. 

1 दिसंबर: उत्तर प्रदेश सरकार ने संभल में हिंसा की जांच के लिए तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया 

2 जनवरी, 2025: एडवोकेट कमिशनर ने मस्जिद सर्वेक्षण की 45 पन्ने की सील्ड रिपोर्ट चंदौसी, यूपी, की स्थानीय अदालत को सौंपी.

8 जनवरी: इलाहाबाद हाइकोर्ट ने 25 फरवरी तक ट्रायल कोर्ट की संभल मस्जिद मामले की सुनवाई पर रोक लगा दी.

10 जनवरी: सुप्रीम कोर्ट ने संभल के अधिकारियों की ओर से शाही जामा मस्जिद के पास कुएं पर पूजा/स्नान के जारी 'नोटिस' पर रोक लगा दी.

उत्तर प्रदेश में झगड़े की दूसरी जड़ें

अटाला मस्जिद, जौनपुर

ज्ञानवापी मस्जिद, वाराणसी
दावा: 2022 के सर्वेक्षण में वुजू के हौज में 'शिवलिंग' मिला.

शाही ईदगाह मस्जिद, मथुरा
दावा: भगवान कृष्ण की जन्मस्थली पर मस्जिद बनी है. 

अटाला मस्जिद, जौनपुर
दावा: अटाला देवी के लिए बने मंदिर के अवशेषों पर मस्जिद बनाई गई.

ताज महल, आगरा
दावा: यह आलीशान मजार मूलत: 'तेजो महालय' नाम का शिव मंदिर हुआ करता था.

शम्सी शाही मस्जिद, बदायूं
दावा: ग्यारहवीं सदी की यह मस्जिद नीलकंठ महादेव मंदिर के ऊपर बनाई गई.

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