ओडिशा: सालों सत्तारूढ़ रहने के बाद अब विपक्षी नेता के रंग में ढले नवीन पटनायक

बीजू जनता दल सुप्रीमो अपने ही साये से बाहर निकलकर अब एक नए अवतार में सामने आए. अब वे अपने में ही खोए रहने वाले निस्संग राजनेता न रहकर एक आक्रामक विपक्षी ताकत के रूप में पार्टी में जान फूंकने के साथ जनाधार भी बढ़ा रहे

भुवनेश्वर में बीजेडी कार्यकर्ताओं की एक रैली को संबोधित करते हुए पटनायक
भुवनेश्वर में बीजेडी कार्यकर्ताओं की एक रैली को संबोधित करते हुए पटनायक

जीवन के 78वें वसंत में ज्यादातर राजनेता आमतौर पर नई पीढ़ी के लिए रास्ता बनाते हुए सार्वजनिक जीवन से धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं, लेकिन ओडिशा के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे और अब विपक्ष के नेता नवीन पटनायक ने नया ही रास्ता चुना. 2024 के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद ऐसा कहा जा रहा था कि उनके राजनैतिक जीवन का पटाक्षेप हो चुका है लेकिन जोश से भरपूर पटनायक ने कहानी को नाटकीय मोड़ दे दिया है. उन्होंने नई ऊर्जा के साथ वापसी की है और खुद को सक्रिय तथा प्रभावशाली राजनैतिक ताकत के रूप में पेश किया है.

मुख्यमंत्री के रूप में दो दशकों से ज्यादा के कार्यकाल में पटनायक की छवि एक शांत और अत्यंत विनम्र स्वभाव वाले प्रशासक की रही. लेकिन पटनायक का नया अवतार तेज-तर्रार, आक्रामक और जोशीला है, जो अपने राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों पर सीधा हमला बोलने में तनिक भी गुरेज नहीं करता. हाल में उन्होंने महंगाई के लिए मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी और केंद्र की भाजपा सरकार को आड़े हाथों लेते हुए इसे 'डबल इंजन, डबल झटका' सरकार करार दिया.

पटनायक ने ये शब्दबाण 5 जनवरी को करीब 20 वर्षों में हुई बीजू जनता दल (बीजेडी) की पहली बड़ी विरोध रैली के दौरान चलाए. विधानसभा के पास हुई रैली में हजारों समर्थक इकट्ठे हुए. पटनायक के मंच पर पहुंचने के साथ ही उनकी ऊर्जा स्पष्ट रूप से महसूस की गई. अपने शांत स्वभाव और विरोधियों के खिलाफ आक्रामक न होने के कारण मुख्यमंत्री के रूप में अपने अंतिम वर्षों में खासी आलोचना झेलने वाले पटनायक के लिए यह जड़ों की ओर जबरदस्त वापसी थी. साफ था कि वे राज्य की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने को लेकर गंभीर हैं. उसी कोशिश के तहत उन्होंने 8 जनवरी को भुवनेश्वर में आयोजित 18वें प्रवासी भारतीय दिवस से पहले मारे गए सफाई कर्मचारी सहदेव नायक की दो बेटियों की पढ़ाई का जिम्मा उठाने का संकल्प लिया.

पिछले साल चुनाव में हार बीजेडी के लिए एक बड़ा झटका साबित हुई. 2000 से ओडिशा की राजनीति में अपना एकछत्र दबदबा बनाकर रखने वाली पार्टी के लिए यह हार न केवल चौंकाने वाली बल्कि उसे जमीनी सचाई से रूबरू कराने वाली थी. पार्टी 147 विधानसभा सीटों में से केवल 51 जीत सकी और लोकसभा में खाता तक न खुला. इससे पार्टी के भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे. स्थिति और बिगड़ी जब कई नेता पार्टी छोड़ दूसरे दलों में जा मिले, जिससे राज्यसभा में बीजेडी की ताकत घटकर सिर्फ सात रह गई.

पार्टी में पटनायक की धरोहर को आगे बढ़ा सकने में सक्षम दूसरी लाइन का नेतृत्व भी नजर नहीं आता. राज्य में भाजपा का उभार बहुत तेज और आक्रामक था. सत्ता विरोधी लहर और पटनायक के करीबी सहयोगी और पूर्व नौकरशाह वी.के. पांडियन के व्यवहार के कारण नेताओं में पनपी नाराजगी ने उसके उभार के लिए खाद-पानी का काम किया. पिछले कार्यकाल में पटनायक ने सार्वजनिक जीवन से दूरी बना रखी थी जिससे स्थिति और बिगड़ी. वे सार्वजनिक रूप से बहुत कम नजर आते थे जिससे सत्ता पर उनकी घटती पकड़ की अफवाहें फैलने लगीं. यहां तक कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के लिए भी उनसे मिलना मुश्किल हो गया था और ऐसा लगता था कि सरकार पूरी तरह से पांडियन ही चला रहे हैं. उनकी सेहत को लेकर भी अटकलें लगाई जाती रही थीं.

कइयों का मानना था कि 2024 की हार के साथ पटनायक का सियासी सफर थम चुका है. पर वह नेता जिसने ओडिशा को आपदा प्रबंधन और विकास के मॉडल के रूप में खड़ा किया वह इतनी जल्दी हथियार डालने को तैयार न था. उनकी 'वापसी' चुनाव नतीजों के तुरंत बाद, पिछले साल जून से शुरू हो गई. भुवनेश्वर स्थित अपने घर नवीन निवास से बाहर आते हुए, उन्होंने पार्टी के हताश कार्यकर्ताओं के बड़े हुजूम को संबोधित किया. वे बोले, "हमंल शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं." जिसका कार्यकर्ताओं ने तालियां बजाकर समर्थन जताया. संदेश साफ था: लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है.

फिर जो हुआ, उससे उनके सहयोगी और विपक्षी दोनों हैरान थे. पटनायक का प्रभाव इतना प्रबल था कि यहां तक कि भाजपा के कदम भी उन्हीं के इर्द-गिर्द घूमते नजर आए. 28 दिसंबर को जैसे ही उन्होंने ऐलान किया कि वे गंजाम—अपने घरेलू क्षेत्र और राज्य के सबसे बड़े जिले—के संकटग्रस्त किसानों से मिलने जाएंगे, भाजपा हरकत में आ गई. उसी दिन फौरन एक सरकारी नोट जारी कर कहा गया कि मुख्यमंत्री माझी और कई प्रमुख भाजपा नेता अगले दिन गंजाम के दौरे पर जा रहे हैं. इससे पहले की माझी की प्रेस ब्रीफिंग में इस बात का कोई जिक्र तक न था. पटनायक ने पुरी, केंद्रापाड़ा और जगतसिंहपुर जिलों में भी किसानों से मुलाकात की, जहां जनसमूह ने उनका जमकर स्वागत किया.

इन यात्राओं के दौरान पटनायक के लिए दिखी गर्मजोशी ने ओडिशा के लोगों के साथ उनके गहरे जुड़ाव को रेखांकित किया. इससे पहले सितंबर और अक्तूबर में जब वे राज्य की राजधानी के गणेश पूजा और दुर्गा पूजा पंडालों में गए थे, तब भी ऐसा ही जनसैलाब उमड़ा था. लोग उनका स्वागत कर रहे थे, सेल्फी ले रहे थे, कुछ तो भावुक होकर आंसू बहा रहे थे.

राजनैतिक विश्लेषक केदार मिश्र कहते हैं, "भीड़ की प्रतिक्रिया बताती है कि पटनायक के लिए जनता में आकर्षण कितना गहरा है. जनता के बीच दोबारा पहुंचने के बाद तो उनकी लोकप्रियता पहले से कहीं अधिक प्रतीत होती है." मिश्र की राय में पटनायक की लोकप्रियता में आई गिरावट किसी नेता को लेकर 'संक्षिप्त ऊब' जैसी थी जो 24 साल तक लगातार सत्ता में होने के कारण पैदा हुई थी. लेकिन सक्रिय विपक्षी की उनकी भूमिका में लोगों को नयापन महसूस हुआ है और वे उन्हें लेकर फिर से भरपूर उत्साहित हैं. गौरतलब है कि चुनावी हार के बावजूद बीजेडी वोट शेयर (40.22 प्रतिशत) के मामले में अब भी भाजपा (40.07 प्रतिशत) से आगे है.

हालांकि, पटनायक की बढ़ती लोकप्रियता की खबरों को भाजपा एक गढ़ी गई कहानी भर मानती है. भाजपा प्रवक्ता अनिल बिस्वाल के शब्दों में, "बीजेडी अपनी कमजोर होती पार्टी को बचाए रखने के लिए इस गढ़े हुए कथ्य का इस्तेमाल कर रही है. नवीन बाबू ने इन जिलों का दौरा मुख्यमंत्री के रूप में नहीं किया था." फिर भी, पटनायक के चौतरफा असर से इनकार नहीं किया जा सकता, यहां तक कि बिस्वाल की पार्टी में भी उनके प्रशंसक हैं. हाल में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने सुझाया था कि पटनायक और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दोनों को उनके योगदान के लिए भारत रत्न मिलना चाहिए.

फिर से जान फूंकने की अपनी रणनीति के तहत बीजेडी कई स्तरों पर काम कर रही है. पटनायक पार्टी मुख्यालय शंख भवन नियमित आकर कार्यकर्ताओं, नेताओं से मिल रहे हैं. नवीन निवास में भी वे लोगों से मिलते हैं. जिन द्वारों पर पहले कोई कदम नहीं रख सकता था, वे अब पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों के लिए खुले हैं. वह खास लम्हा था जब एक बैठकी में पटनायक ने राज्यसभा सांसद सुलता देव के संसद में प्रदर्शन की सराहना की.

पार्टी में लगभग एक दशक से काम कर रहीं देव के लिए यह भावुक पल था. दूसरे पार्टी नेताओं ने भी अगस्त से पटनायक से नियमित रूप से मिलने के बाद उनके साथ एक नया जुड़ाव महसूस किया है. लंबे समय तक पटनायक के विश्वसनीय साथी रहे पूर्व सांसद और अब विपक्ष के उपनेता प्रसन्न आचार्य ईमानदारी से स्वीकारते हैं, "वे हाल के वर्षों में कई वजहों से कटे-कटे रहे. पर अब उतने ही सुलभ हैं जितने शुरुआती दिनों में हुआ करते थे."

चुनाव में हार के बाद पटनायक की रणनीति का अहम हिस्सा था एक 'शैडो कैबिनेट' की शुरुआत, जिसमें उन्होंने पार्टी के 51 विधायकों को खास विभागों की जिम्मेदारियां सौंपी. इससे यह पक्का हुआ कि हर विधायक सक्रिय और जुड़ा रहे. बीजेडी के एक पूर्व मंत्री के अनुसार, विधायक स्थायी समिति के माध्यम से विभागीय कार्यों की जानकारी जुटाते हैं और इसके आधार पर रणनीतियां तैयार करते हैं; यह काम सभी को एक नया मकसद देने वाला साबित हुआ है. 

वैसे, भाजपा भी शांत नहीं बैठी है. ओडिशा को पूरब में अपनी विस्तार रणनीति का एक अहम हिस्सा मानकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए यहां के लिए बहुत-सी घोषणाएं की हैं. भाजपा एक रणनीति के तहत बीजेडी को अतीत की पार्टी के रूप में पेश कर रही है जिसका अतीत सुंदर था पर वर्तमान सिफर और वह समकालीन चुनौतियों का सामना करने में सक्षम भी नहीं. ओडिशा को भाजपा का गढ़ बनाने की मोदी की महत्वाकांक्षा बिल्कुल वैसी ही नजर आती है जैसी गुजरात के लिए रही है.

दूसरी ओर, पटनायक को बीजेडी के आंतरिक असंतोष से भी निबटना है. पूर्व मंत्री अमर प्रसाद सत्पथी ने पटनायक के नेतृत्व की खुलकर आलोचना की और खराब प्रदर्शन के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया. पटनायक की उम्र और सेहत भी एक बड़ी चिंता है. फिर भी, फिलहाल बीजेडी के भीतर माहौल सकारात्मक है. चाहे वह बीजेडी का स्थापना दिवस समारोह हो, सदस्यता अभियान या रक्तदान शिविर, सभी मौकों पर पटनायक की मौजूदगी ने पार्टी के आधार को फिर से ऊर्जा दी है. स्थापना दिवस के मौके पर पटनायक का यह कहना कि बीजेडी 'अगली शताब्दी तक ओडिशा की सेवा करेगी' उनके आत्मविश्वास और दृष्टिकोण को दर्शाता है.

हालांकि, आलोचक सवाल उठाते रहे हैं कि पटनायक क्या यह उत्साह लंबे समय तक बनाए रख पाएंगे और इसे चुनावी सफलता में बदल पाएंगे? बीजेडी पुनरुत्थान के पथ पर कितने कदम रख पाई है यह 2027 के पंचायत चुनाव से पता चलेगा. तब तक इस अहम इम्तिहान के लिए पार्टी को खुद को तैयार करते रहना होगा.

कइयों का मानना था कि चुनावों में बीजेडी की हार के साथ ही पटनायक के सियासी सफर का भी अंत हो गया. लेकिन एक ऐसा शख्स जिसने ओडिशा को राख से उठाकर खड़ा किया और उसे विकास का मजबूत मॉडल बनाया, वह इतनी जल्द मैदान छोड़कर जाने के लिए तैयार न था.

साथियों से संवाद नवीन पटनायक अपनी पार्टी के सांसदों के साथ

नवीन का दूसरा अंक
> अपने आवास नवीन निवास के द्वार खोले. नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ दोस्ताना और विश्वास बढ़ाने के लिए पार्टी मुख्यालय पर उनसे नियमित मिल रहे.

> सभी 51 विधायकों को दायित्व बांटे और पक्का किया कि पार्टी में उनकी सक्रिय भागीदारी तथा जवाबदेही हो. 

> उत्सवों-आयोजनों में जनता से सीधा संवाद कायम किया और इस तरह से एक नया जुड़ाव बनाया.

> गंजाम, पुरी, केंद्रपाड़ा और जगतसिंहपुर जैसे अहम जिलों का दौरा किया, जहां भारी भीड़ देखने को मिली. उनके साथ वे घुले-मिले.

> बीस साल में पहली बार बीजेडी ने इतना बड़ा विरोध प्रदर्शन आयोजित किया, भाजपा सरकार को निशाने पर लिया और जोशीला भाषण देकर पार्टी के जनाधार में नई जान डाली.

अर्कमय दत्ता मजूमदार

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