सिक्किम में बाढ़ के जोखिम कम करने के लिए कैसे विकसित हो रहा घरेलू मॉडल?

अक्टूबर 2023 में साउथ लोनक लेक के ग्लेशियरों से आई बाढ़ ने सिक्किम में तबाही मचा दी थी

वैज्ञानिक और सिक्किम सरकार के अफसर लोनक वैली में पानी की दशा-दिशा की जांच करते हुए
वैज्ञानिक और सिक्किम सरकार के अफसर लोनक वैली में पानी की दशा-दिशा की जांच करते हुए

हिमालय की वादियों में बसा सिक्किम अपनी प्राकृतिक भव्यता और कई पहाड़ी झीलों की रमणीयता तथा खूबसूरती के लिए जाना जाता है. उत्तरपूर्व के इस राज्य को हाल में ऐसी मुसीबत झेलनी पड़ी जिससे जलवायु परिवर्तन से होने वाली प्राकृतिक आपदाओं के गहरे असर का पता चला. 4 अक्टूबर, 2023 को बादल फटने से लोनक घाटी में 17,000 फुट की ऊंचाई पर बनी दक्षिण लोनक झील के बांध टूट गए.

फिर क्या था! ऐसी विनाशकारी बाढ़ आई कि सुंदर वादियां बर्फीले पानी में डूब गईं. हजारों लोग बेदखल हुए. 18,000 करोड़ रुपए का नुक्सान आंका गया. राज्य के सबसे अहम निवेश यानी 1,200 मेगावॉट की सिक्किम ऊर्जा-तीस्ता परियोजना के तीसरे चरण को खासा धक्का लगा. पारिस्थितिकी तंत्र पर भी इतना ही खौफनाक असर पड़ा. करीब 1,819 हेक्टेयर में फैले जंगल बर्बाद हो गए. तीस्ता नदी मलबे से पट गई. नीचे की तरफ इसका तल आठ से 12 मीटर ऊपर आ गया, जिससे सिलसिलेवार बाढ़ आई.

मगर इस सारी उठापटक के बीच सिक्किम धुन और लगन की मशाल बनकर उभरा. विनाशकारी ठोकर से सबक लेकर राज्य ने ग्लैशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) यानी हिमनद झील के फटने से आई बाढ़ के जोखिम कम करने के लिए घरेलू मॉडल विकसित करने का अभियान छेड़ दिया. इसमें बहुत ज्यादा जोखिम वाली हिमनद झीलों की पहचान करने और संभावित खतरों का पता लगाने के लिए दूरदराज की ऊंची जगहों पर खोजीदल भेजना और फिर भावी आपदाओं से रक्षा के लिए ढांचागत उपायों की तजवीज करना शामिल था.

केंद्र सरकार अभी वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, पर्यावरणविदों और स्थानीय अधिकारियों के मिले-जुले सहयोग से की जा रही इस नई-नवेली कोशिश की समीक्षा कर रही है. इसे अपनाया गया तो सिक्किम का मॉडल समूचे इलाके में हिमनद झीलों के फटने से आई बाढ़ का जोखिम घटाने और लाखों लोगों की रक्षा करने का रास्ता दिखा सकता है. अभियान की अगुआई कर रहे सिक्किम विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के प्रिंसिपल डायरेक्टर धीरेंद्र श्रेष्ठ कहते हैं, "हमारा काम यह पक्का करना था कि हम ऐसी घटनाओं से लड़ने को तैयार रहें. यह आसान काम न था, पर हम काफी आगे बढ़े हैं."

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के साथ मिलकर राज्य ने अपनी 320 हिमनद झीलों का आकलन किया. एनडीएमए ने सभी हिमालयी राज्यों के अपने आकलन में ज्यादा जोखिम वाली 189 झीलों की पहचान की. उनमें से 40 सिक्किम में हैं, जो किसी भी राज्य में सबसे ज्यादा हैं. इनमें से 16 को 'बहुत ज्यादा जोखिम' या 'कैटेगरी ए' झीलों की श्रेणी में रखा गया.

फिर शोधकर्ताओं ने अध्ययन शुरू किए, जो बहुत-से विषयों से जुड़े थे. इनमें मौसम और झील के आपसी रिश्तों को समझने के लिए जलमौसम वैज्ञानिक अध्ययन, बहते हिमनदों के छोड़े गए मलबे का पता लगाने के लिए विद्युत प्रतिरोधकता टोमोग्राफी, झील की गहराई के आकलन के लिए बाथीमेट्रिक जांच (पानी के भीतर के लक्षणों का पता लगाना), निश्चित समय में झील से होकर गुजरने वाले पानी के जलवैज्ञानिक अध्ययन, भूवैज्ञानिक परीक्षण, और 3डी मॉडल बनाने के लिए यूएवी की मदद से भूभाग का नक्शा तैयार करना शामिल था.

दूरदराज से किए गए आकलन काफी न थे. लिहाजा खोजी दलों ने मौके पर सत्यापन के लिए ऊबड़खाबड़ भूभागों की जोखिम भरी यात्राएं कीं. सितंबर से दिसंबर 2024 के बीच वे दुर्गम पहाड़ चढ़कर नौ झीलों पर गए. हर खोजी दल में सिक्किम सरकार, केंद्रीय जल आयोग, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, एनडीएमए, सिक्किम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और सिक्किम विश्वविद्यालय के करीब 20 सदस्य थे. ये नौ खोजी अभियान 12 दिन चले, हरेक पर 15 लाख रुपए का खर्च आया, और ये अपनी तरह के पहले थे. बाकी सात झीलों तक सॢदयों में नहीं पहुंचा जा सकता. इनका अध्ययन अगली गर्मियों में किया जाएगा.

पूरे आकलन से मिली गहरी समझ से शमन की रणनीतियां निकलीं. सतत निगरानी की व्यवस्था, झील के जलस्तर पर नियंत्रण, घाटी में पानी को रोककर रखने के ढांचे, बाढ़ के पानी को रोकने वाली दीवारें, उन्नत भवन संहिता, जनजागरूकता और बीमा पहल इन योजनाओं की नींव के पत्थर हैं. विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के मंत्री पिंटसो नामग्याल लेप्चा कहते हैं, "अंतरविषयी अध्ययनों से भावी बाढ़ से राज्य की रक्षा के लिए हर स्थल के अलग और खास तकनीकी प्रस्ताव तैयार करने में मदद मिलेगी. खासकर विभाग में इंजीनियरों की तैनाती से इन ढांचागत उपायों को तैयार करने की विशेषज्ञता हासिल हुई."

विभाग के सचिव और दो खोजी अभियानों के अनुभवी संदीप तांबे कहते हैं, "सिक्किम ने हिमनद की बाढ़ के शमन के लिए चार चरणों का तरीका निकाला है. मानक संचालक प्रक्रिया स्थापित करके यह पथप्रदर्शक तरीका बन गया है." प्रस्ताव 23 दिसंबर को केंद्र सरकार को सौंपे गए.

टेनेसी टेक यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ अर्थ साइंसेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. गौरव भट्टाचार्य के मुताबिक, इन झीलों की पहचान और उनसे जुड़े अध्ययनों के लिए (उनकी) 'मैपिंग' पहला कदम है. वे कहते हैं, "स्वचालित आरंभिक चेतावनी प्रणालियों का होना भी जरूरी है ताकि हिमनदीय बांध टूटने पर धारा की दिशा में बसे लोगों को निकालने के प्रोटोकॉल शुरू किए जा सकें." वे भूतकनीकी इंजीनियरों के हाथों हिमालयी नदियों की धारा की दिशा में बसे पनबिजली संयंत्रों की नियमित जांच का सुझाव भी देते हैं.

अब जब सिक्किम अगले खोजी अभियानों की तैयारी कर रहा है, आगे का सफर चुनौतियों से भरा है. फिर भी राज्य के नए-नवेले तरीके से ज्यादा व्यापक संदेश मिलता है. वह यह कि परिस्थितियों के हिसाब से ढलकर और आगे की पूरी तैयारी रखकर आपदा को अवसर में बदला जा सकता है. अपने लोगों और पर्यावरण की हिफाजत करके सिक्किम न केवल विनाश से उबर रहा है बल्कि जलवायु सामर्थ के मामले में अपने को अगुआ भी घोषित कर रहा है.

एक नई राह

> हिमनदीय झीलों के फटने से आई बाढ़ के जोखिमों को कम करने का मॉडल विकसित करने के लिए एडीएमए के साथ एक अध्ययन ने इलाके में ज्यादा जोखिम वाली 180 झीलों की पहचान की. इनमें से 40 सिक्किम में हैं.

> वैज्ञानिकों, एनडीएमए और सिक्किम के सरकारी अधिकारियों के खोजी दल पहाड़ चढ़कर ऊंचाइयों पर बनी झीलों तक गए और तरह-तरह के परीक्षण किए.

> इसके बाद सिक्किम ने हिमनदीय बाढ़ के जोखिमों को कम करने के लिए चार चरणों का तरीका निकाला.

अर्कमय दत्ता मजूमदार

Read more!