मध्य प्रदेश: बैकडोर से अमूल को लाने की तैयारी! घरेलू ब्रांड 'सांची' कर पाएगा मुकाबला?
फ़िलहाल राज्य की सहकारी दुग्ध समितियों का वार्षिक कारोबार 2,200 करोड़ रुपए है, मगर अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि पिछले कुछ वर्षों में इसमें बहुत कम वृद्धि हुई है

गाय तो गाय, अब दूध भी मध्य प्रदेश में सियासी मुद्दा बनता जा रहा है. राज्य सरकार ने एमपी राज्य सहकारी डेयरी फेडरेशन (एमपीसीडीएफ) का नियंत्रण पांच साल के लिए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) को सौंपने का फैसला किया तो हंगामा मच गया. सहकारिता विभाग ने हस्तांतरण के प्रारूप को लगभग अंतिम रूप दे दिया है जिसके बाद दोनों संस्थाओं के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जाएंगे. कांग्रेस ने इसका विरोध करते हुए आरोप लगाया है कि यह राज्य के घरेलू ब्रांड 'सांची' के दबदबे को खत्म करके पिछले दरवाजे से अमूल के प्रवेश को आसान बनाने के लिए किया जा रहा है.
उत्तर प्रदेश और राजस्थान के बाद मध्य प्रदेश देश का तीसरा सबसे बड़ा दूध उत्पादक राज्य है और इस क्षेत्र में विकास की अपार संभावनाएं हैं. राज्य सरकार का तर्क है कि उसने सांची ब्रांड में नई जान फूंकने के लिए इसके प्रबंधन और परिचालन का नियंत्रण एनडीडीबी को सौंपने का निर्णय लिया. मगर अभी क्यों? खैर, वर्तमान में राज्य की सहकारी दुग्ध समितियों का वार्षिक कारोबार 2,200 करोड़ रुपए है, मगर अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि पिछले कुछ वर्षों में इसमें बहुत कम वृद्धि हुई है.
फिलहाल एमपी में सहकारी दुग्ध क्षेत्र के जरिए दूध एकत्र करने के लिए तीन स्तर की सहकारी संरचना है. ग्रामीण स्तर पर डेयरी सहकारी समितियां लगभग 11,000 गांवों से दूध एकत्र करती हैं, जबकि दूसरे स्तर पर भोपाल, इंदौर, उज्जैन, सागर, जबलपुर और ग्वालियर स्थित दुग्ध संघ खरीदे गए दूध का प्रसंस्करण करते हैं. तीसरे और शीर्ष स्तर पर एमपीसीडीएफ है. 1980 से यह अपने ब्रांड सांची के साथ दुग्ध संघों और प्राथमिक निकायों पर प्रशासनिक नियंत्रण रखता है. यह उत्पादों के विपणन में भी मदद करता है.
अगर दुग्ध संघों की बात करें तो भोपाल, इंदौर, उज्जैन और सागर काफी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और लगभग 20 करोड़ रुपए का मुनाफा कमा रहे हैं. मगर ग्वालियर दुग्ध संघ को करीब 40 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है, जबकि कुछ महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के फलीभूत नहीं होने के कारण जबलपुर दुग्ध संघ हाल ही में वित्तीय संकट में आ गया.
इस बीच, गुजरात के आणंद की केंद्रीय संस्था एनडीडीबी को खासकर इसके भौगोलिक लोकेशन की वजह से दिक्कत हो रही है. यह गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन फेडरेशन ब्रांड अमूल का मुख्यालय भी है. हकीकत यह है कि अमूल एमपी में बड़े पैमाने पर विस्तार कर रहा है मगर इससे उसकी राह आसान नहीं हो रही. जानकार अनौपचारिक बातचीत में बताते हैं कि एमपीसीडीएफ की बागडोर एनडीडीबी को सौंपने का निर्णय वास्तव में अमूल के सुधार में मदद करेगा, जिसने पिछले तीन वर्षों में मध्य प्रदेश में अपने दैनिक दूध संग्रह में कथित तौर पर छह गुना वृद्धि की है.
एमपी का डेयरी फेडरेशन कार्यबल की कमी से भी जूझ रहा है; इसने पिछले कई वर्षों से बड़ी भर्तियां नहीं की हैं. छह दुग्ध संघों में से केवल इंदौर में एक निर्वाचित निकाय है, जबकि शेष दुग्ध संघ और राज्य निकाय को नौकरशाह चला रहे हैं.
कार्यभार संभालने के बाद एनडीडीबी क्या करेगा? उम्मीद है कि यह रिक्त पदों को भरने के लिए मध्य स्तर से लेकर वरिष्ठ स्तर पर 50-60 अधिकारियों की भर्ती करेगा और उनके वेतन का भुगतान करेगा. एनडीडीबी अपनी सेवाओं के लिए आमतौर पर जो परामर्श शुल्क लेता है और परियोजना लागत का 4-6 फीसद पर्यवेक्षण शुल्क वसूला जाता है, उन्हें माफ कर दिया गया है.
राज्य दुग्ध सहकारी समितियों को मजबूत करने के इरादे से एनडीडीबी ने राजस्थान, झारखंड, असम, महाराष्ट्र और कर्नाटक में अधिग्रहण किया है. फिर विपक्ष को एमपी के अधिग्रहण से दिक्कत क्यों है? कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा कहते हैं, "एनडीडीबी अगर एक पर्यवेक्षक या सलाहकार की भूमिका निभाती है और वित्तपोषण करती है तो कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन उसे डेयरी फेडरेशन का प्रबंधन अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए."
मुख्यमंत्री मोहन यादव कहते हैं कि इस अधिग्रहण से डेयरी किसानों की आय बढ़ाने में मदद मिलेगी और एमपी ने अगले पांच साल में दूध उत्पादन दोगुना करने का लक्ष्य रखा है. सियासी विश्लेषक इसे ग्रामीण क्षेत्रों और अपने स्वजातीय यादव समुदाय पर सीएम की पकड़ मजबूत करने की कोशिश मान रहे हैं.
दूध पर रार
> मध्य प्रदेश पांच साल के लिए एमपी राज्य सहकारी डेयरी फेडरेशन का नियंत्रण राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड को सौंपना चाहता है
> विपक्षी कांग्रेस का कहना है कि इससे सहकारी संस्थानों के साथ-साथ सांची ब्रांड कमजोर होगा
> एमपी देश में तीसरा सबसे बड़ा दूध उत्पादक राज्य है, मगर बीते कुछ वर्षों से इस क्षेत्र की वृद्धि मंद पड़ गई है