राहुल गांधी के मुकाबले प्रियंका के लिए वायनाड जीतने की चुनौती बड़ी कैसे हो गई?

एलडीएफ और बीजेपी वायनाड से सांसद के तौर पर राहुल गांधी के योगदान पर सवाल खड़े कर उन्हें सैलानी सांसद बता रहे हैं

राहुल गांधी के साथ प्रियंका वाड्रा 23 अक्टूबर को कलपेट्टा में रोडशो के दौरान
राहुल गांधी के साथ प्रियंका वाड्रा 23 अक्टूबर को कलपेट्टा में रोडशो के दौरान

वायनाड ने 23 अक्टूबर को कांग्रेस प्रत्याशी प्रियंका गांधी वाड्रा का नृत्य-संगीत से जोरदार स्वागत किया, युवा और बुजुर्ग, उनके सभी मुरीद ढोल की थाप पर थिरकते नजर आए. मनोरम वायनाड के जिला मुख्यालय कलपेट्टा में हजारों कांग्रेस कार्यकर्ता गांधी खानदान की इस वंशज का अभिवादन करने के लिए जुटे.

प्रियंका अपने पति रॉबर्ट वाड्रा, बच्चों—रेहान और मिराया—और मां सोनिया गांधी के साथ 22 अक्टूबर की रात को ही मैसूरू से सड़क के रास्ते वायनाड के बथेरी पहुंच गई थीं. अभिनंदन के लिए हजारों लोग रात में सड़क किनारे उनका इंतजार कर रहे थे, लिहाजा उन्हें लोगों से रू-ब-रू होने के लिए कई जगह रुकना पड़ा.

एक जगह उन्हें अचानक स्थानीय निवासी करुमानकुलम थ्रेसिया पापाचन के घर जाना पड़ा क्योंकि उनके पूर्व सैनिक पुत्र बिनय ने कहा कि उनकी मां आपकी बड़ी फैन हैं लेकिन बीमारी के चलते बिस्तर पर ही रहती हैं. प्रियंका ने उस परिवार के साथ 20 मिनट बिताए लेकिन अगले दिन स्थानीय अखबारों के पहले पेज पर ऊपर की बड़ी खबर बनने के लिए इतना ही पर्याप्त था.

बहरहाल, नामांकन के दिन दोपहर में कलपेट्टा बस टर्मिनल से रोडशो शुरू हुआ. उस वक्त उनके साथ थे भाई राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारी. बाद में उन्होंने अपने भावुक भाषण में कहा, "आप मुझे सेवा का मौका देंगे तो कोई भी मसला हो मैं आपके साथ रहूंगी. मेरे भाई ने आपकी समस्याओं और संघर्षों के बारे मुझे जानकारी दी है. लेकिन मैं आपके घर आकर आपसे उन्हें समझना चाहती हूं. इस यात्रा में आप मेरे गाइड और शिक्षक हैं."

राहुल पिछले दो लोकसभा चुनाव यहां से जीत चुके हैं, वास्तव में यह उनके लिए 2019 में अमेठी में स्मृति ईरानी के जोशीले प्रचार के बाद आसन्न हार से बचने का रास्ता था. कोझिकोड, मलाप्पुरम और वायनाड जिलों से मिलकर बनी इस सीट में अल्पसंख्यकों (42 प्रतिशत मुस्लिम और 14 प्रतिशत ईसाई) की संख्या अधिक है और यह कांग्रेस के लिए सुरक्षित सीट रही है. राहुल ने यहां और रायबरेली दोनों जगहों से जीत हासिल की लेकिन उत्तर प्रदेश की परिवार का गढ़ रही सीट अपने पास रखना पसंद किया. 

नेता प्रतिपक्ष वी.डी. सतीशन ने इंडिया टुडे से कहा, "हम उन्हें पांच लाख से अधिक वोट से जिताना चाहते हैं. राज्य में सत्तारूढ़ वाम मोर्चा सरकार के प्रति सत्ता विरोधी लहर है. हम केरल में सर्वाधिक अंतर से जीत का इतिहास रचना चाहते हैं." वाम मोर्चा ने तपे-तपाए नेता 71 वर्षीय सत्यन मोकेरी को मैदान में उतारा, जो छात्र दिनों से ही वायनाड से जुड़े हैं. मोकेरी ने इंडिया टुडे से कहा, "हम मुद्दों के आधार पर चुनाव लड़ते हैं, न कि इस आधार पर कि हमारा राजनैतिक विरोधी कौन है." उधर बीजेपी ने लोकप्रिय अदाकार खुशबू को लाने की बहुतेरी कोशिश के बाद अंतत: सॉफ्टवेयर इंजीनियर से नेता बनीं नव्या हरिदास को उतारा है, जो कोझिकोड की निगम पार्षद रही हैं.

प्रियंका के लिए वायनाड आसान नहीं होगा. एलडीएफ और बीजेपी वायनाड से सांसद के तौर पर राहुल गांधी के योगदान पर सवाल खड़े कर उन्हें सैलानी सांसद बता रहे हैं, जिसने कभी निर्वाचन क्षेत्र से जुड़ा मुद्दा नहीं उठाया. लोग जानना चाहते हैं कि सभी तीनों पक्षों ने जुलाई के भूस्खलन पीड़ितों के पुनर्वास के लिए क्या किया. अपने बचाव में कांग्रेस भी बीजेपी की ही दलील को दोहराएगी कि केंद्र सरकार से धन हासिल करने के लिए पिनाराई सरकार ने नुक्सान के फर्जी आंकड़े गढ़े. पीएम नरेंद्र मोदी ने आपदा प्रभावित इलाकों का अगस्त में दौरा किया लेकिन राहत की राशि की तंगी रही और इस बात के लिए केरल हाइकोर्ट ने भी केंद्र सरकार की आलोचना की.

वायनाड के लोगों को अलबत्ता किसी भी पार्टी से कोई उम्मीद नहीं है. बाथरी के 39 वर्षीय किसान ऑगस्टीन जोसफ कहते हैं, "कोई भी जीते, हमारी तकदीर बदलने वाली नहीं है." कृषि उपज की कम कीमत, कर्ज का जाल, किसानों की आत्महत्या, बंद मेडिकल कॉलेज, रात में वायनाड से कर्नाटक तक की यात्रा पर पाबंदी (वाइल्डलाइफ कॉरिडोर के कारण) से प्रभावित होता कारोबार जैसे यहां के रोजमर्रा के ज्वलंत मुद्दे हैं.

खास बातें

> कांग्रेस के गढ़ वायनाड लोकसभा सीट के तहत कोझिकोड, मलाप्पुरम और वायनाड जिले आते हैं

> करीब 13 लाख वोटर हैं, जिनमें 58 फीसद अल्पसंख्यक

> लेफ्ट ने भाकपा के बुजुर्ग नेता सत्यन मोकेरी को और बीजेपी ने पूर्व सॉफ्टवेयर इंजीनियर नव्या हरिदास को उतारा है

> वायनाड के लिए पिछला कुछ समय मुश्किल भरा रहा, जुलाई में भूस्खलन से यहां 550 लोगों की जान चली गई थी

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