महाराष्ट्र : सीएम शिंदे की 'रेवड़ी' कितने वोट बटोर पाएगी?

इस साल नवंबर में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं. इस बीच मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन क्या इससे उन्हें अधर में लटके महायुति के भविष्य को नई दिशा देने में मदद मिलेगी

मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहन योजना लॉन्च करने के मौके पर सीएम एकनाथ शिंदे को मुंबई में 29 जून को महिलाओं ने राखी बांधी
मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहन योजना लॉन्च करने के मौके पर सीएम एकनाथ शिंदे को मुंबई में 29 जून को महिलाओं ने राखी बांधी

महिलाओं को 1,500 रुपए की मासिक सहायता, हर साल तीन बार मुफ्त एलपीजी सिलेंडर भरवाने की सुविधा, वरिष्ठ नागरिकों को मुफ्त तीर्थयात्रा और कमजोर वर्गों की महिलाओं को मुफ्त व्यावसायिक शिक्षा मुहैया कराना. ये ऐसी कल्याणकारी योजनाएं हैं जिन्हें एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार ने हाल ही में शुरू किया है.

लेकिन इनके पीछे असल मकसद किसी से छिपा नहीं है. दरअसल, लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की कुल 48 सीटों में से 31 पर कब्जा जमा चुके विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) से मात खाने के बाद सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन ने साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए पूरी ताकत झोंक दी है.

राज्य सरकार ने इस साल बजट में महिलाओं, बुजुर्गों और युवाओं पर केंद्रित सात प्रमुख कल्याणकारी योजनाएं घोषित की हैं. इनमें से एक प्रमुख योजना 'मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहन' भी है, जिसके तहत गरीब महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपए की आर्थिक सहायता मिलेगी. महायुति सरकार ने मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को राजनैतिक लाभ पहुंचा चुकी लाडली बहना योजना की तर्ज पर बनाई गई इस योजना पर काफी उम्मीदें टिका रखी हैं.

शिंदे जोर देकर कहते हैं कि उनकी सरकार लाडकी बहन और अन्य योजनाओं को निरंतर जारी रखने का इरादा रखती है. उन्होंने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा, ''ये स्थायी योजनाएं हैं. इन्हें चुनावों को ध्यान में रखकर घोषित नहीं किया गया है. उन्हें (विपक्ष को) अच्छी तरह पता है कि एक बार महिलाओं के खातों में पैसे आ गए तो उनकी राजनीति मुश्किल हो जाएगी. अमीर परिवार में जन्मे लोग 1,500 रुपए की अहमियत नहीं समझ पाएंगे. महिलाएं इसका इस्तेमाल कपड़े, खिलौने, खाने-पीने की चीजें खरीदने या फिर अपने बच्चों की स्कूल फीस भरने में कर सकती हैं. यह पैसा अर्थव्यवस्था में आएगा.''

इस कदम से विपक्षी दलों में होड़ मच गई है. कांग्रेस ने सत्ता मिलने पर लाडकी बहन की रकम को बढ़ाकर 2,000 रु. करने का संकल्प लिया है जबकि शिंदे ने वादा किया है कि अगर वे दोबारा सत्ता में आए तो रकम बढ़ाकर 3,000 रु. कर दी जाएगी.

महाराष्ट्र में चुनाव नवंबर के मध्य में संभावित हैं और तब तक महिलाओं को पूरी पांच किस्तें मिल चुकी होंगी. साथ ही सरकार 2.5 करोड़ महिलाओं के पंजीकरण का लक्ष्य पूरा कर चुकी होगी. महिला एवं बाल विकास मंत्री अदिति तटकरे का कहना है कि अनुमानित तौर पर करीब 2.5 करोड़ महिलाएं लाडकी बहन योजना के लिए पात्र होंगी.

दो महीने के भुगतान वाली 3,000 रुपए की पहली किस्त अगस्त मध्य में दी गई थी, जिसके तहत करीब एक करोड़ महिलाओं को 3,000 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया. वे कहती हैं, ''यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. यह राशि उन्हें घरेलू खर्च के साथ अपनी बचत बढ़ाने में मददगार होगी. फिर, यह धन अर्थव्यवस्था में भी प्रवाहित होगा.'' अफसरों का कहना है कि तीसरी किस्त का भुगतान शुरू हो गया है.

महायुति के एक वरिष्ठ नेता ने दावा किया कि महिलाएं विचारधारा से ज्यादा भावनात्मक रूप से जुड़ाव महसूस करती हैं और इसलिए ऐसी सरकार के साथ खड़ी होती हैं जो उन्हें लगता है कि उनके लिए काम कर रही है. इसी तरह, वरिष्ठ नागरिक भी एक बड़ा मतदाता वर्ग है जिसे कल्याणकारी योजनाओं से लुभाया जा सकता है. लेकिन राजनैतिक विश्लेषक हेमंत देसाई का तर्क है कि महाराष्ट्र में अभी तक ऐसी योजनाएं कोई खास असर नहीं दिखा सकी हैं. उनके मुताबिक, ''लोग सरकार के प्रदर्शन के आधार पर फैसला करेंगे...सरकार ऐसी योजनाएं शुरू करके अपनी हताशा को ही दर्शा रही है.''

राजकोषीय घाटा बढ़ा रहा चिंता

चौतरफा दरियादिली की घोषणाओं का राज्य के खजाने पर असर चिंताजनक है. अकेले लाडकी बहन योजना से सरकारी खजाने पर 46,000 करोड़ रुपए का भार पड़ने की संभावना है और इन सभी योजनाओं का कुल वित्तीय बोझ 90,000 करोड़ रुपए के ऊपर पहुंच सकता है. उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री अजित पवार ने जून में 6.12 लाख करोड़ रुपए का बजट पेश किया, जिसमें राजकोषीय घाटा 1.10 लाख करोड़ रुपए था.

इसके बाद 96,000 करोड़ रुपए की पूरक मांगें रखी गईं. हालांकि, शिंदे का दावा है कि योजनाओं के लिए प्रावधान किए गए हैं. उनके मुताबिक, ''राजकोषीय घाटा एफआरबीएम ऐक्ट, 2003 के तहत निर्धारित 3 फीसद सीमा से कम है. सरकार जीडीपी का 25 फीसद तक उधार ले सकती है, जो अभी 17.5 फीसद है.'' लेकिन राजनैतिक विश्लेषक संतोष प्रधान चेताते हैं, ''राजकोषीय घाटा 3 फीसद से ऊपर पहुंच जाएगा और राजस्व घाटा 2 लाख करोड़ रुपए पार कर जाने के आसार हैं. यह नई सरकार के लिए बड़ी चुनौती हो सकता है. इससे महाराष्ट्र जैसा प्रगतिशील राज्य वित्तीय हालात के मामले में पिछड़ सकता है.''

जिताऊ रणनीति

सत्तारूढ़ गठबंधन को भरोसा है कि लाडकी बहन और अन्य योजनाएं चुनाव में एमवीए से मुकाबले में मददगार साबित होंगी. यही वजह है कि सत्ताधारी सहयोगियों के बीच इनका श्रेय लेने की होड़ भी लग गई है. हालांकि, शिंदे को योजनाएं उनके नाम पर होने के कारण सहयोगियों से आगे माना जा रहा है. लेकिन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के कुछ नेताओं की तरफ से पवार को श्रेय देते हुए लगाए गए बैनरों में योजना के नाम के साथ मुख्यमंत्री शब्द का जिक्र नहीं किया गया है. दिलचस्प तो यह है कि इन योजनाओं के नाम पर मतदाताओं का समर्थन जुटाने में विपक्षी दलों के नेताओं ने लाभार्थियों के नामांकन के लिए शिविर लगाए. 

शिवसेना नेता संजय निरुपम कहते हैं, ''यह योजना गेमचेंजर साबित होगी. महिलाएं इससे जुड़ रही हैं...इसका विधानसभा चुनाव नतीजों पर काफी असर पड़ेगा.'' वे इस बात पर भी जोर देते हैं कि कैसे इसी तरह की योजनाओं ने मध्य प्रदेश में भाजपा और दिल्ली में आम आदमी पार्टी को लाभ पहुंचाया. मराठा समुदाय के एक वरिष्ठ नेता ने भी इस पर सहमति जताई.

उनका कहना है कि सरकारी योजनाओं, खासकर लाडकी बहन का विदर्भ और मराठवाड़ा जैसे क्षेत्रों में काफी प्रभाव पड़ सकता है, जहां लोगों को कृषि संकट और कम आय जैसी चुनौतियां झेलनी पड़ीं. इससे मराठवाड़ा क्षेत्र में मराठों के बीच भाजपा और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को लेकर नाराजगी भी कुछ हद तक कम हो सकती है. लोकसभा चुनाव में दलितों और आदिवासियों के अलावा मराठा मतदाताओं के बड़े वर्ग के भी एमवीए के पक्ष में लामबंद हो जाने से विपक्ष मराठवाड़ा की आठ में से सात सीटें जीतने में सफल रहा था.

हालांकि, एनसीपी के एक वरिष्ठ नेता ने दावा किया कि सत्ता विरोधी लहर में कमी आई है और इसका श्रेय प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण को जाता है. लेकिन विपक्षी दल कांग्रेस के एक नेता इससे सहमत नहीं हैं. उनके मुताबिक, ''लोकलुभावन उपायों के बावजूद सत्ताधारी सरकारों के हारने के कई उदाहरण सामने हैं. ऐसी योजनाओं के बावजूद राजस्थान में सत्ता हमारे हाथ से चली गई. कर्नाटक में हमारी पांच गारंटियां लोकसभा चुनावों में कमाल नहीं दिखा सकीं. केंद्र की पूर्ववर्ती यूपीए सरकार को (राष्ट्रीय) खाद्य सुरक्षा अधिनियम (2013) के बावजूद हार का सामना करना पड़ा.''

उत्तरी महाराष्ट्र से उनकी ही पार्टी के एक सहयोगी का सुझाव है कि प्याज की कीमतों में गिरावट और शिवसेना और एनसीपी को जान-बूझकर दो-फाड़ कराने जैसे स्थानीय मुद्दों को जोर-शोर से उठाना सत्ता समर्थक किसी भी लाभ पर भारी पड़ सकता है. हालांकि, शिवसेना (यूबीटी) के एक वरिष्ठ नेता ने माना कि ये योजनाएं, खासकर लाडकी बहन, महिला मतदाताओं को कुछ हद तक लुभा सकती हैं.

उनके मुताबिक, ''जब तक विधानसभा चुनाव की घोषणा होगी तब तक लाभार्थियों को इसकी कई किस्तें और लाभ मिल चुके होंगे...हम केवल इस पर संदेह ही जता सकते हैं कि चुनाव के बाद योजना जारी रहेगी या नहीं. लाभार्थियों में बड़ी संख्या मुस्लिम और दलितों की है, जो इनका लाभ उठाने के बावजूद भी महायुति को वोट देने से किनारा कर सकते हैं.'' एक वरिष्ठ भाजपा विधायक इस तर्क को निराधार करार देते हैं. उनका कहना है, ''कम से कम सत्ता विरोधी भावना घटेगी. लोकसभा चुनाव के दौरान तो दलित और मुस्लिम सिर्फ भाजपा के खिलाफ वोट देने के लिए बड़ी संख्या में बाहर निकले थे. ऐसा नहीं हुआ तो हमें फायदा ही होगा.''

बहरहाल, सरकार के भीतर भी इस तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं कि इन लोकलुभावन योजनाओं के कारण बुनियादी ढांचे और सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी परियोजनाओं पर खर्च घट सकता है. एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा, ''अक्सर, नई योजनाओं की कीमत पर पुरानी कल्याणकारी योजनाओं को धन की कमी का सामना करना पड़ता है. उदाहरण के तौर पर, शिवभोजन योजना (10 रुपए में भोजन थाली) को मौजूदा 2,00,000 थाली प्रति दिन से बढ़ाकर 5,00,000 करने की आवश्यकता है. लेकिन संसाधनों की कमी के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा है.''

लेकिन क्या कल्याणकारी है?

शिवसेना के एक सूत्र के मुताबिक, मुख्यमंत्री शिंदे खुद को कल्याणकारी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करने वाले नेता के तौर पर पेश करना चाहते हैं. वे कहते हैं, ''बड़े राजनैतिक कद वाले अपने अधिकांश पूर्ववर्तियों के विपरीत शिंदे गरीबों, महिलाओं और विकास पर ध्यान केंद्रित करते अपनी एक अलग राजनैतिक छाप (कल्याणकारी) स्थापित करना चाहते हैं. वैचारिक दृढ़ता पुरुषों के लिए अधिक मायने रखती है, लेकिन महिलाएं तो सामने आने वाली रोजमर्रा की चुनौतियों पर ज्यादा ध्यान देती हैं...करीब 40,000 महिलाओं पर हुए सर्वेक्षण में पता चला कि पसंदीदा मुख्यमंत्री के तौर पर शिंदे की रेटिंग 74 फीसद है.''

लेकिन लोग इन्हें लोक कल्याण के बजाए राजनैतिक लाभ उठाने का जरिया बताकर खारिज करते हैं. एनसीपी (शरद पवार) के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनीश गवांडे कहते हैं, ''कोई लाडकी बहन या लाडका भाऊ नहीं है—लाडकी तो केवल खुर्ची है, नजरें तो बस उस कुर्सी पर ही टिकी हैं. ये योजनाएं विधानसभा चुनाव से पहले सियासी नौटंकी के अलावा कुछ नहीं हैं.'' वहीं, लाभार्थियों का कहना है कि कैसे 1,500 रुपए की मासिक सहायता उन परिवारों के साथ एक 'क्रूर मजाक' है, जिनका बजट 'इस ट्रिपल-इंजन सरकार के तिहरे खतरों—महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार' के कारण गड़बड़ा गया है.

इसी तरह, राज्य कांग्रेस महासचिव और मुख्य प्रवक्ता अतुल लोंढे पाटिल का दावा है कि ''ये योजनाएं लंबे समय तक जारी रहने की गारंटी नहीं देतीं और बढ़ती महंगाई की अपेक्षा सहायता नगण्य ही है.'' इस बाबत राज्य के आदिवासी क्षेत्र के एक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता का आरोप और भी ज्यादा गंभीर है. वे कहते हैं कि प्रदेश की शिंदे सरकार गरीबी घटाने के उपायों की दिशा में बहुत कम प्रयास कर रही है. उनकी राय है, ''सारा ध्यान राजनैतिक अवसरवादिता पर केंद्रित है.'' सवाल है कि क्या मतदाता इस बात को समझ पाएंगे.

चुनावी सौगात

महिलाओं, बुजुर्गों और युवाओं को लक्ष्य कर लाई गईं प्रमुख कल्याणकारी योजनाएं

मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहन योजना

> 21 से 60 वर्ष की महिलाओं को प्रति माह 1,500 रु. मिलेंगे, लेकिन परिवार की अधिकतम दो महिलाएं ही इसका लाभ उठा सकती हैं. 2.5 लाख रु. से कम वार्षिक आय वाले परिवारों की महिलाएं इसमें आवेदन कर सकती हैं.

> अनुमानित व्यय: 46,000 करोड़ रुपए.

> लाभार्थियों की संख्या: 2.5 करोड़.

मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना

केंद्र की उज्ज्वला और राज्य की लाडकी बहन योजना के पात्रों को सालाना तीन मुफ्त एलपीजी सिलेंडर.

> अनुमानित व्यय: 829 करोड़ रुपए.

> लाभार्थियों की संख्या: 52 लाख+लाडकी बहन के लाभार्थी.

मुख्यमंत्री बलिराजा मोफत विज योजना

> 7.5 हॉर्स पावर क्षमता तक कृषि पंपों को मुफ्त बिजली.

> अनुमानित व्यय: 14,761 करोड़ रुपए.

> लाभार्थियों की संख्या: 44 लाख.

मैगेल टायला सौर ऊर्जा पंप

> किसानों को सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप मिलेंगे. इसे कृषि बिजली ग्रिड से अलग करके सौर ऊर्जा से चलाया जाएगा, ताकि किसानों को दिन के समय निर्बाध बिजली मिल सके.

> अनुमानित व्यय: 27,000 करोड़ रुपए.

> लाभार्थियों की संख्या: 8,50,000.

महिलाओं के लिए मुफ्त व्यावसायिक शिक्षा

> इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, फार्मेसी, मेडिसिन और कृषि में डिप्लोमा/डिग्री कोर्स करने वाली ईडब्ल्यूएस, ओबीसी और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग की छात्राओं को फीस में 100 फीसद छूट. पात्रता के लिए पारिवारिक आय 8 लाख रु. से कम हो.

> अनुमानित व्यय: 2,000 करोड़ रुपए.

> लाभार्थियों की संख्या: 2,05,000.

मुख्यमंत्री युवा कार्य प्रशिक्षण योजना

> हर साल औद्योगिक और गैर-औद्योगिक प्रतिष्ठानों में युवाओं के लिए नौकरी के साथ प्रशिक्षण. प्रशिक्षु को प्रतिमाह 10,000 रुपए तक राशि प्रदान की जाएगी.

> अनुमानित व्यय: 10,000 करोड़ रुपए.

> लाभार्थियों की संख्या: 10 लाख.

मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना

> 2.50 लाख रुपए या उससे कम वार्षिक पारिवारिक आय वाले वरिष्ठ नागरिक मान्यता प्राप्त पर्यटन कंपनियों के माध्यम से राज्य (66) और देश (73) में तीर्थस्थलों की यात्रा कर सकते हैं.

> अनुमानित व्यय: अभी परिव्यय तय नहीं.

> लाभार्थियों की संख्या: 36,000.

मुख्यमंत्री वयोश्री योजना

> दो लाख रुपए से कम वार्षिक पारिवारिक आय वाले 65 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों को सहायक जीवन उपकरण और शारीरिक सहायता के लिए 3,000 रुपए तक की सहायता मिलेगी.

> अनुमानित व्यय: 450 करोड़ रुपए.

> लाभार्थियों की संख्या: 12.5 से 15 लाख.

90,000 करोड़ रुपए का वित्तीय बोझ इस साल घोषित की गई कल्याणकारी योजनाओं से पड़ेगा. केवल फ्लैगशिप लाडकी बहन योजना पर 46,000 करोड़ रुपए खर्च होंगे.

6.12 लाख करोड़ बजटीय खर्च है इस वर्ष का. 1.10 लाख करोड़ रुपए के साथ राजकोषीय घाटा 3 फीसद के स्वीकृत सीमा के भीतर है.

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