झारखंड : सज गया लड़ाई का मोर्चा, बीजेपी के खिलाफ हेमंत सोरेन की कैसी तैयारी?
मोदी की जमशेदपुर रैली ने राज्य के सियासी पारे को चढ़ाया, हेमंत सोरेन की अगुआई वाले गठजोड़ का दांव लोकलुभावन योजनाओं पर

इसी 15 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रांची पहुंचे. भारी बारिश ने वहां से झारखंड की राजधानी से 125 किमी पर स्थित जमशेदपुर के लिए उनके हेलिकॉप्टर का रास्ता रोक लिया. वहां उन्हें एक जनसभा करनी थी. इससे प्रभावित हुए बगैर मोदी ने वहीं से वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए छह वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों को झंडी दिखाने के अलावा कई अहम रेल परियोजनाओं की आधारशिलाएं रखीं.
हालांकि बाद में जनसभा को संबोधित करने वे सड़क के रास्ते जमशेदपुर गए, जहां जेएमएम, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को उन्होंने झारखंड के तीन दुश्मन बताया. मोदी की रैली ने 81 विधानसभा सदस्यों वाले राज्य को पूरी तरह से चुनावी रंग में ला दिया. वैसे चुनाव आयोग को अभी तारीखों का ऐलान करना है.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और कांग्रेस ने समझ लिया है कि भाजपा के इन आक्रामक तेवरों से निबटने के लिए उन्हें गठबंधन को चाक-चौबंद करना होगा, जिसके पास अभी 45 विधायकों का समर्थन है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पहले ही दावा किया है कि गठबंधन को "भारी बहुमत" मिलेगा. यह बताता है कि सोरेन के चुनावी गेमप्लान में उनकी पार्टी का पूरा विश्वास है. लेकिन इस बार दांव ऊंचे हैं खासकर आम चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के 14 में से नौ लोकसभा सीटें जीतने के बाद से.
हेमंत की चुनावी रणनीति के केंद्र में लोकलुभावन योजनाएं हैं, जिनमें सबसे ऊपर है मैया सम्मान योजना. इसके लिए 45 लाख से ज्यादा महिलाओं को मंजूरी दी जा चुकी है, जिसमें 18 और उससे ऊपर की सभी महिलाओं को 1,000 रु. महीना स्टाइपेंड मिलेगा. हेमंत वोटरों के उस धड़े का समर्थन जुटाने को बेताब हैं जो परिवार और समुदाय के फैसलों में अक्सर अहम भूमिका अदा करता है. सोरेन ने 4 सितंबर को रांची में लाभार्थियों के एक जमावड़े से कहा, "हमें हराने के लिए भाजपा ने सात मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री लगा दिए हैं. पर 'दीदी शेरनी' उनका बोरिया-बिस्तर बांधकर भेजेंगी."
उधर, 25 विधायकों के साथ भाजपा का पूरा ध्यान आदिवासी मतदाताओं पर है. झारखंड विधानसभा की 28 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं, जो राज्य की आबादी में 26 फीसद हैं. 2019 में उसकी हार की ठीकरा इन्हीं सीटों पर उसके खराब प्रदर्शन पर फोड़ा जाता जाता है, जिनमें से उसने केवल दो जीती थीं. इस साल भी वह एसटी के लिए आरक्षित सभी पांचों लोकसभा सीटें हार गई.
अब भाजपा की रणनीति का एक हिस्सा जेएमएम के नामी-गिरामी नेताओं को अपने पाले में लाना है. चंपाई सोरेन को लाने से इशारा मिलता है कि भाजपा हेमंत के आदिवासी समर्थन को कमजोर करना चाहती है. उनका भाजपा में आना कोल्हान इलाके के लिए अहम है, जो झामुमो का गढ़ है और जहां भाजपा ने 2019 में जबरदस्त मुंह की खाई थी. भाजपा का आदिवासियों की तरफ बाहें फैलाना उसके व्यापक राष्ट्रवादी नैरेटिव के अनुरूप है. पार्टी खासकर गैर-आदिवासी वोटरों के बीच बांग्लादेशी घुसपैठ का विवादास्पद मुद्दा बार-बार उठाती रही है. हेमंत सोरन की अगुआई वाली सरकार को इस मुद्दे से निबटने में नाकारा करार देकर भाजपा राष्ट्रवादी भावनाओं को जगाना चाहती है. कुल मिलाकर राजनैतिक माहौल गरमा गया है.