राजस्थान का 'जामताड़ा' बना डीग में कैसे हुआ साइबर अपराधियों का भंडाफोड़?

राजस्थान का नया-नवेला जिला डीग तेजी से देश में ऑनलाइन ठगी का केंद्र बनता जा रहा था. राज्य सरकार और पुलिस की निरंतर कार्रवाई की वजह से यहां पिछले छह महीने के दौरान साइबर अपराध की गतिविधियों में आई काफी कमी

24 अगस्त को डीग जिले के सीकरी गांव में छापेमारी के बाद गिरफ्तार युवक और बरामद हुए चोरी के फोन
24 अगस्त को डीग जिले के सीकरी गांव में छापेमारी के बाद गिरफ्तार युवक और बरामद हुए चोरी के फोन

यह राजस्थान का सबसे नया-नवेला जिला है, जिसे पिछले साल ही राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा के गृह जिले भरतपुर से अलग करके बनाया गया है. लेकिन इस नए जिले डीग ने पहले ही भारत की साइबर अपराध राजधानी के रूप में बदनामी हासिल कर ली है. इसने झारखंड में देवघर और जामताड़ा, बिहार में नवादा और नालंदा, हरियाणा में नूंह और राजस्थान में अलवर जैसे पूर्ववर्ती हॉटस्पॉट को पीछे छोड़ दिया है.

भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (आइ4सी) ने पाया कि फरवरी 2024 में धोखाधड़ी के सभी रिपोर्ट किए गए मामलों में से 19 फीसद मेवात क्षेत्र में इस कस्बे से उत्पन्न हुए थे. विभिन्न राज्यों की साइबर अपराध विरोधी इकाइयां हर रोज इस जिले में लगभग 225 जगहों की मैपिंग कर रही थीं, जो भारत से होने वाली सबसे अधिक साइबर अपराध कॉल के लिए लगातार चार महीनों तक पहले स्थान पर रहा.

अपराधों में फर्जी मोबाइल नंबर/कॉलर आईडी और एटीएम कार्ड का इस्तेमाल करके सामान्य फिशिंग घोटाले, पैसे वाले पुरस्कारों का वादा करने वाले ऑनलाइन घोटाले, सेक्सटॉर्शन, धोखाधड़ी से अवैध हथियार और किराए पर आवास की पेशकश जैसी सरल योजनाएं और सबसे चौंकाने वाली, "युवा महिलाओं को गर्भवती करने" के वादे के बदले पैसे शामिल हैं.

मुख्यमंत्री शर्मा ने साइबर ठगी की इस कमाई से शर्मिंदा होकर इस अपराध के बढ़ते जाल को खत्म करने के लिए भरतपुर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) राहुल प्रकाश को नियुक्त किया. इसके लिए 29 फरवरी को ऑपरेशन ऐंटी वायरस लॉन्च कर डीग पर ध्यान केंद्रित किया गया. प्रकाश कहते हैं, "सीएम ने मुझे तीन बार फोन किया, और कहा कि जब भी वे अन्य राज्यों में जाते हैं, तो उन्हें डीग से साइबर धोखाधड़ी की शिकायतें मिलती हैं. उन्होंने हमें इसे प्राथमिकता के आधार पर रोकने के लिए कहा."

इसके बाद सावधानीपूर्वक ट्रैकिंग के साथ ही अपराधियों की जबरदस्त खोज शुरू हुई और छह महीने के अंदर इस जिले के हालात बदल गए. आइ4सी ने 19 जुलाई को एक वेबिनार में दिखाया कि डीग में धोखाधड़ी वाली कॉल की रिपोर्ट की गई संख्या फरवरी के उच्चतम 6,530 से जून के अंत तक घटकर 2,546 रह गई थी. अगस्त के आखिर तक यह और भी गिरकर 1,501 रह गई थी. ऑपरेशन ऐंटी वायरस के तहत मार्च से जुलाई तक डीग में कथित साइबर अपराधियों के खिलाफ 189 एफआईआर दर्ज की गईं, 743 लोगों को गिरफ्तार किया गया और 49.48 लाख रुपए नकद बरामद किए गए.

सरकारी जमीन पर बनी सात संपत्तियों को ध्वस्त कर दिया गया, जो कथित तौर पर गलत तरीके से कमाए गए पैसे से बनाई गई थीं. पुलिस ने धोखाधड़ी करने के लिए इस्तेमाल किए गए 21,070 सिम कार्ड को ब्लॉक कर दिया और 17,935 आईईएमआआ नंबरों को ब्लैकलिस्ट कर दिया.

आईईएमआई किसी भी फोन की 15 अंकों की अनूठी पहचान संख्या है. आईजी प्रकाश को अपनी और अपनी टीम की अब तक की कामयाबी पर गर्व है. वे कहते हैं कि डीग मॉडल का अनुकरण किया जा सकता है.

डीग का साइबर अपराध में प्रवेश

डीग हरियाणा में फैला और उत्तर प्रदेश तथा दिल्ली से सटा हुआ व्यापक मेवात क्षेत्र का हिस्सा है, जो छोटे-मोटे अपराधों तथा हाईवे डकैती के लिए पुराना कुख्यात क्षेत्र था. फिर वहां अवैध शराब और चोरी की गाड़ियों का व्यापार शुरू हुआ. और जब डीग के कुछ अपराधियों को ऑनलाइन अपराध के कम जोखिम वाले, ज्यादा लाभ वाले व्यवसाय का पता चला, तो उन्होंने नौकरी, रिश्तों तथा 'ओएलएक्स’ अपराधों से जुड़े घोटाले करने का हुनर सीख लिया.

वे गाड़ियों की बिक्री के लिए ऑनलाइन अपलोड किए गए दस्तावेजों की नकल करते थे और उनका इस्तेमाल कर वाहनों को अपना बताकर बेचते थे.

वे एटीएम कार्ड-स्वैपिंग तथा 'म्यूल अकाउंट' के उपयोग में भी माहिर हो गए. म्यूल खाते का इस्तेमाल धोखाधड़ी के जरिए कमाए गए पैसे को रखने के लिए किया जाता है. इसमें खाताधारक को या तो अपराधियों को अपने खाते का इस्तेमाल करने देने के लिए धोखा दिया जाता है या वह अपनी मर्जी से ऐसा करता है.

डीग के आस-पास के इलाके में वेश्यावृत्ति ने महिलाओं की आधुनिक तस्करी को जन्म दिया था; इसलिए ऑनलाइन सेक्सटॉर्शन की गतिविधियां चलाना भी सहज था. हाल ही में हुई गिरफ्तारियों से पता चलता है कि ऐसी हरकतें कितनी जटिल और दुस्साहसिक हो गई हैं.

सावधानीपूर्वक कार्रवाई

प्रकाश को अगस्त की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जारी की गई धमकी के बारे में इंटेलिजेंस ब्यूरो से एक सूचना मिली. इंस्टाग्राम पर पीएम को जान से मारने की धमकी देने वाला एक संदिग्ध राहुल और साकिर मेव नामक दो लोगों के संपर्क में था, जिनके सेलफोन डीग में थे. दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया, और उन्होंने कुछ और ही बात को कबूल किया—वे संभावित खरीदारों को ठगने के लिए सोशल मीडिया पर हथियार व्यापारी के रूप में खुद को पेश करते थे.

पुलिस ने 23 अगस्त को पहाड़ी (डीग) में चार युवकों और एक नाबालिग को 14 देसी बंदूकों और 24 कारतूसों के साथ गिरफ्तार किया. उन्होंने इन हथियारों को धोखाधड़ी करने के उद्देश्य से सोशल मीडिया पर बिक्री के लिए डाला था.

इस बीच खालिद, राजू और राहुल की गिरफ्तारी के साथ एक और तरह का घोटाला सामने आया. तीनों एक गिरोह का हिस्सा थे, जिसने "एक बदकिस्मत नि:संतान महिला" को गर्भवती करने के लिए 25 लाख रुपए के 'इनाम' का ऑफर दे रखा था. कम से कम 20 भोले-भाले लोग इस झांसे में आ गए और हरेक ने 'रजिस्ट्रेशन फीस' के तौर पर 25,000 रुपए जमा कर दिए.

जालसाजों ने उन लोगों को लुभाने के लिए उनके सोशल मीडिया अकाउंट पर एक महिला की तस्वीरें पोस्ट की थीं और यहां तक कि कुछ लाख रुपए के 'न्यूनतम इनाम'—जो कि महिला को गर्भवती करने की कोशिश करने के लिए देय था—के लिए 'अग्रिम जीएसटी' के रूप में हजारों रुपए भी ले लिए थे. उन्होंने इस रकम को फर्जी संदेश भेजकर ट्रांसफर करा लिया था.

साद और पांच अन्य की एक और गिरफ्तारी ने पुलिस को एक ऐसे गिरोह तक पहुंचाया जो महानगरों में किराए पर फ्लैटों के विज्ञापनों के जरिए पीड़ितों को लुभाने में माहिर था. उनके पास से 29 मोबाइल फोन सेट और सात सिम बरामद किए गए. ऐसे फोन को चोरी/जाली पहचान के जरिए एक्टिवेट किया गया था और उन्हें बैंक खातों से जोड़ा गया था जहां अवैध धन ट्रांसफर किया गया था.

उस पूरे गिरोह को 5,447 मामलों में शामिल पाया गया, जिसमें कुल 20.31 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी हुई. इस गिरोह से जुड़े फोन नंबरों के खिलाफ 5,620 शिकायतें थीं, जिसकी वजह से नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर 197 एफआईआर दर्ज की गई थीं.

जाल कितना दूर तक फैल चुका है, यह असम के बारपेटा जिले की निवासी 40 वर्षीया मीना की गिरफ्तारी से साबित हुआ. उसने कुछ साल पहले डीग के गांवडी गांव के अली मोहम्मद उर्फ झब्बू से दोस्ती के बाद शादी कर ली और असम से नकली/जाली सिम कार्ड का सोर्सिंग करना शुरू कर दिया. वह तीन साल तक पुलिस को चकमा देती रही. आखिरकार उसे मई में गिरफ्तार कर लिया गया और उसने—ज्यादातर साइबर धोखाधड़ी को सक्षम करने वाले अपराधियों को— कथित तौर पर 10,000 सिम बेचने की बात कबूल की. प्रत्येक 2,000-5,000 रुपए में बेचे गए, जिससे उसे लगभग एक करोड़ रुपए की कमाई हुई.

और चूंकि जुवेनाइल ऐक्ट में नाबालिगों को हल्की सजा का प्रावधान है, लिहाजा ठग उन्हें अपना जरिया बनाते हैं. पुलिस ने 7 अगस्त को डीग में एक 13 वर्षीय लड़के को हिरासत में लिया. वह मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में एक स्कूल शिक्षक सुरेश चौरसिया के फर्जी सेक्स रील और चैट को सार्वजनिक करने की धमकी देकर ब्लैकमेल कर रहा था. आजिज आकर उस बुजुर्ग व्यक्ति ने जून में आत्महत्या कर ली. इसके बाद, उस लड़के ने एक साइबर क्राइम अधिकारी का रूप धारण कर लिया और उनके परिवार से पैसे मांगने लगा. तभी पुलिस ने उस पर अपना ध्यान दिया और अंतत: उसके नापाक कारोबार को खत्म कर दिया. पुलिस ने 15 और नाबालिगों को गिरफ्तार किया है, उनमें से कई ऑनलाइन धोखाधड़ी में विशेषज्ञ हैं.

प्रकाश और उनके लोगों को जामताड़ा, डीग और मेवात के अन्य हिस्सों के साइबर अपराधियों के बीच घनिष्ठ संबंधों के सबूत भी मिले. दरअसल, वे इस तरह का एक्सचेंज प्रोग्राम चला रहे थे, जिसमें ठगों को दूसरे केंद्रों पर 'प्रशिक्षण' मिलता था. इसी के तहत 32 वर्षीय आरिफ उर्फ बबलू ने फर्जी सिम कार्ड हासिल करने में महारत हासिल करने के लिए मीना के साथ छह महीने बिताए और फिर दिल्ली के तुगलकाबाद के आसिफ उर्फ कल्लू से चोरी के मोबाइल फोन को संभालना सीखा. आरिफ ने जामताड़ा में प्रशिक्षण के बाद खुद अपना गिरोह बनाया और करीब 10,000 चोरी के मोबाइल फोन बेचे.

ऐसे जोड़ी कड़ियां

इन गिरफ्तारियों के पीछे ऑपरेशन ऐंटी वायरस का व्यवस्थित क्रियान्वयन रहा है. प्रकाश और उनकी टीम ने डीग से किए जाने वाले कॉल और पूरे देश में दर्ज साइबर धोखाधड़ी की शिकायतों का इस्तेमाल करके पुलिस स्टेशन स्तर पर संदिग्धों के फोन के स्थानों की एक डायरेक्टरी बनाई है. वॉर रूम में एक समर्पित साइबर टेक्निकल टीम इन फोन और संदिग्धों के अन्य डिजिटल फुटप्रिंट को ट्रैक करती है. संदिग्धों और उसकी विशेषज्ञता की पहचान केसाथ ही इस डायरेक्टरी को लगातार अपडेट किया जाता है:

फर्जी/जाली सिम कार्ड, बैंक खाते और म्यूल एकाउंट मुहैया कराने वाले; सेक्सटॉर्शन करने वाले; सामान्य ऑनलाइन ठग; एटीएम मशीनों के इंस्टॉलर/ऑपरेटर जो साइबर ठगों के साथ मिले हुए हैं और जो लोगों को मजबूर करने के लिए पुलिस अधिकारी/कर्मचारी का रूप धारण करते हैं. यह टीम हर रोज केंद्र के प्रतिबिंब पोर्टल के जरिए से संदिग्ध अपराधियों के हाथों इस्तेमाल किए जाने वाले सेलफोन के एक्टिव होने की जगह का भी विश्लेशषण करती है. वे इनका मिलान स्टेशन-वार डायरेक्टरी में पहले के पते/स्थानों से करते हैं और अंत में छापेमारी करने के लिए सटीक स्थानों पर पहुंचते हैं.

आमतौर पर, उस स्थान पर छापेमारी के दौरान जहां से धोखाधड़ी के कॉल आते हैं, पुलिस मोबाइल फोन जब्त करती है, धोखाधड़ी के कॉल, संदिग्ध लेनदेन और आपत्तिजनक चैट के लिए फोन को स्कैन करती है और नकली सिम कार्ड, जाली दस्तावेज और बदले हुए आइईएमआइ के लिए स्थान/व्यक्तियों की तलाशी लेती है. इन अपराधों के लिए संदिग्धों पर मामला दर्ज किया जाता है और बाल पोर्नोग्राफी और साइबर आतंकवाद के लिए एफआईआर दर्ज की जाती है.

जांच दल संदिग्ध/अवैध वस्तुओं को जब्त करने के बाद, चोरी किए गए मोबाइल फोन, नकली सिम, नकली बैंक खाते और भुगतान स्क्रीनशॉट जैसी सामग्री का विश्लेषण करता है. पुलिस आईएमईआई/सिम के विस्तृत विश्लेषण के बाद दूसरे अपराधियों की तलाश शुरू कर देती है. जिन स्थानों पर हेल्पलाइन नंबर 1930 पर शिकायतों के कारण एफआईआर दर्ज नहीं हुई है, वहां पुलिस अधीक्षकों को पीड़ितों के बयान दर्ज करने के लिए कहा गया है ताकि पुख्ता मामला बनाया जा सके.

प्रकाश के नेतृत्व वाली टीम ने ऑनलाइन धोखाधड़ी को बेहद महंगी हरकत बना दिया है. रोकथाम के तौर पर सिर्फ जेल ही नहीं बल्कि धोखाधड़ी के पैसे से सरकारी जमीन पर बनी संपत्तियों को जब्त/नष्ट करना भी शामिल है, हालांकि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से इस पर लगाम लग सकती है. 

अधूरा एजेंडा

डीग से संचालित साइबर अपराधियों को सख्त सजा देने में पुलिस के सामने ज्यादातर चुनौती कानूनी खामियों से आती है. चूंकि ज्यादातर जालसाज दूसरे राज्यों में पीड़ितों को निशाना बनाते हैं, इसलिए उन राज्यों की पुलिस ज्यादातर उनका पीछा नहीं करती; वैसे भी, किसी दूसरे इलाके में कम समय में संदिग्धों को ढूंढना मुश्किल है. इसके अलावा, 1930 पर दर्ज की गई कई शिकायतें एफआइआर में तब्दील नहीं होतीं.

लेकिन सबसे बड़ी बाधा जमानत की है. साइबर अपराधियों के खिलाफ अक्सर धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया जाता है, जिससे उन्हें कम सजा मिलती है और जमानत मिलने के बाद फिर से अपराध शुरू कर देते हैं. स्थिति को सुधारने के लिए, पुलिस अधिकारी न्यायाधीशों के साथ समन्वय बैठकें करते हैं, जहां वे साइबर अपराध की गंभीरता और व्यापकता से अवगत कराते हैं.

व्यापक पुलिस रिपोर्ट—1930 की शिकायत का ब्यौरा, आपत्तिजनक सामग्री की जब्ती, फोन में मिले सबूत, राष्ट्रीय स्तर पर इसका प्रभाव, इसमें शामिल नाबालिग और क्षेत्र में आपराधिक माहौल का विकास—अपराधियों को जल्दी से जमानत पर छोड़ने से रोकने में काफी मददगार साबित हो रही है.

प्रकाश को भरोसा है कि लंबी अवधि की कैद के साथ-साथ संपत्ति के लक्षित विध्वंस और संपत्तियों की जब्ती ने अपराधियों के मनोबल को तोड़ा है. समस्या यह है कि एक डीग साइबर अपराधियों से मुक्त हो सकता है, लेकिन कई और भी जड़ें जमा सकते हैं.

ऑपरेशन ऐंटी वायरस

आईजी राहुल प्रकाश और उनकी टीम के नेतृत्व में 29 फरवरी को यह अभियान शुरू किया गया. उनका लक्ष्य : डीग से ऑनलाइन ठगी के मामलों को रोकना.

संदिग्धों को वर्गीकृत किया जाता है: फर्जी सिम या एटीएम मुहैया कराने वाले, म्यूल अकाउंट ऑपरेटर्स; सेक्सटॉर्शन अपराधी; नकली पुलिसवाले; सामान्य ऑनलाइन ठग.

पुलिस फ्रॉड कॉल्स की जगह पर पहुंचकर कॉल चेक करने के लिए फोन जब्त करती है, संदिग्ध ट्रांजैक्शन देखती है, फजी सिम कार्ड, दस्तावेज खोजती है और संदिग्धों के खिलाफ मामला दर्ज करती है.

1930 पर शिकायत वाले इलाके की पुलिस को सूचित किया जाता है; अभियुक्त को धरा जाता है.

पुलिस चाइल्ड पोर्नोग्राफी और साइबर आतंकवाद के मामले भी दर्ज करती है.

जांच टीम बरामद सामग्री की जांच करती है; दूसरे अपराधियों का पता लगाने के लिए आईएमईआई को स्कैन करती है.

वे देशभर में दर्ज शिकायतों में से साइबर अपराधियों के ठिकानों की डायरेक्टरी बनाते हैं. इसी के आधार पर डीग पर नजर रखते हैं.

यह टीम रोजाना साइबर अपराधियों के ठिकाने को डायरेक्टरी के ठिकानों से मिलाती है.

पुलिस न्यायाधीशों को साइबर अपराध की व्यापकता के बारे में बताती है ताकि अपराधियों को आसानी से जमानत न मिले.

अपराधियों के बैंक खाते, अवैध कमाई से बनाई संपत्ति  जब्त किए जाते हैं; अनधिकृत भवन ढहाए जाते हैं.

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