नवीन पटनायक की 24 साल की सत्ता पलटने वाली बीजेपी ओडिशा में क्या करने जा रही है?
पिता के निधन के बाद 51 साल की उम्र में राजनीति में आए निवर्तमान मुख्यमंत्री पिछले 24 साल से लगातार सत्ता में रहे हैं

ओडिशा में बीजू जनता दल (बीजद) की अप्रत्याशित हार और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के 24 साल के शासन की समाप्ति के बाद 6 जून को मुख्य सचिव प्रदीप जेना ने एक वीडियो संदेश जारी करते हुए राज्य के लोगों को आश्वस्त किया कि निर्वतमान सरकार की अहम स्वास्थ्य योजना - बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना (बीएसकेवाई) - जारी रहेगी. जेना मीडिया की इन खबरों के बाद स्पष्टीकरण जारी करने को मजबूर हुए कि कई अस्पतालों ने बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना के कार्डों को मानने से इनकार कर दिया है और मरीजों को लौटा रहे हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि अनिश्चितता का यह भाव आने वाली भाजपा सरकार के लिए मुख्य चुनौती होगा. हर किसी की जबान पर एक ही सवाल है कि क्या वह नवीन की ओर से शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं को बरकरार रखेगी. इन आशंकाओं को राज्य के भाजपा नेताओं की तरफ से आए संकेतों से भी बल मिला. प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल ने केंद्र की आयुष्मान भारत योजना को राज्य में लागू करने का सुझाव पेश किया.
एक स्वतंत्र राजनैतिक विश्लेषक संदीप साहू कहते हैं, "भाजपा नेताओं ने स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा कि वे बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना को रोक देंगे. हालांकि, लोग डरे हुए हैं कि अगर आयुष्मान भारत को लागू किया जाता है तो ऐसा हो सकता है. कई अस्पतालों ने इस योजना के कार्ड को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है." चांदाबाली विधानसभा सीट से चुनाव में विफल रहे सामल ने 5 जून को मीडिया को बताया कि आयुष्मान भारत लोकप्रिय योजना है और इसे लागू किया जाएगा जिससे राज्य के बाहर रह रहे डेढ़ करोड़ ओडिया लोगों को भी इसके लाभ मिल सकें.
147 सदस्यों वाली राज्य विधानसभा में भाजपा ने 78 सीटें जीती हैं जो बहुमत के आंकड़े से महज चार अधिक हैं जबकि बीजू जनता दल ने कांटे की टक्कर वाले इस चुनाव में 51 सीटें हासिल की हैं. राज्य में विधानसभा के साथ ही लोकसभा की 21 सीटों के लिए भी चुनाव हुए हैं. 2019 में बीजू जनता दल ने भाजपा की 23 सीटों के मुकाबले 112 सीट जीती थीं. जहां भाजपा का वोट प्रतिशत 32.5 फीसद से बढ़कर 40 फीसद हो गया, वहीं बीजू जनता दल का 42.8 फीसद से घटकर 40.2 फीसद रह गया.
विधानसभा में कांग्रेस को 14 सीट मिली है जो 2019 के उसके आंकड़े से पांच अधिक हैं. संसदीय चुनाव में भगवा खेमे ने बीजू जनता दल का पूरी तरह सफाया करते हुए 45.4 फीसद वोटों के साथ 20 सीट हथियाई हैं. बची हुई एक सीट कांग्रेस को मिली है जबकि 37.5 फीसद वोट पाने के बावजूद बीजू जनता दल को कोई सीट नहीं मिली है.
सामल कहते हैं कि भाजपा ने जो भी वादे किए हैं, सभी पूरे करेगी. "फिर चाहे वह रत्न भंडार खोलने या श्रीमंदिर (पुरी में जगन्नाथ मंदिर) के द्वार खोलने का मामला हो या फिर 3,100 रु. प्रति क्विंटल पर धान खरीद की बात हो." लेकिन इन सब मोर्चों पर अमल से पहले पार्टी के लिए सबसे चुनौती भरा काम मुख्यमंत्री का चुनाव करना है. हालांकि हवा में कई नाम तैर रहे हैं लेकिन केंद्रीय मंत्री और संबलपुर के सांसद धर्मेंद्र प्रधान सबसे पसंदीदा विकल्प हो सकते हैं.
लेकिन ऐसे समय में जब भाजपा केंद्र में बहुमत से कम है तो प्रधानमंत्री अपने महत्वपूर्ण संसदीय साथी को शायद यूं नहीं छोड़ना चाहेंगे. पूर्व महालेखा नियंत्रक गिरीश चंद्र मुर्मू का नाम भी अटकलों सूची में शामिल है, खासतौर पर इसलिए कि उनकी मोदी से निकटता है. लेकिन कई लोगों का मानना है कि इसकी संभावना कम है कि पार्टी किसी पूर्व आईएएस अफसर को राज्य की कमान सौंपेगी जबकि खुद उसने बीजू जनता दल की "ओडिशा को नौकरशाही वाला राज्य में बदलने" के लिए आलोचना की है. इसके भी आसार हैं कि पार्टी कम जाने पहचाने चेहरे पर दांव लगा सकती है.
दूसरी तरफ 27 वर्ष पुराने बीजू जनता दल के ऊपर अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है. साहू कहते हैं, "नवीन बाबू बहुत बुजुर्ग और बीमार हैं, वे पार्टी का उद्धार नहीं कर पाएंगे. भाजपा निश्चित रूप से उसे तोड़ना चाहेगी." बीजू जनता दल के कई नेता कथित तौर पर भ्रष्टाचार में फंसे हुए थे, जिनमें सीशोर चिटफंड और खनन घोटाले शामिल हैं. ये भाजपा सरकार के लिए मौका हो सकते हैं. विपक्ष के नेताओं के खिलाफ जांच एजेंसियों का इस्तेमाल करने के भगवा पार्टी के कथित पुराने ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए इस बात की अटकलें हैं कि नई सरकार पुलिस के बल पर बीजू जनता दल और कांग्रेस विधायकों पर पाला बदलने के लिए दबाव डाल सकती है.
इतना ही नहीं राज्य की नौकरशाही भी व्यापक फेरबदल की उम्मीद कर रही है. सूत्रों का कहना है कि अहम सचिवों के कई पदों पर तमिलनाडु में जन्मे वी.के. पांडियन, जो नवीन के सबसे निकट सहयोगी और आईएएस अफसर से बीजद नेता बने, के कथित करीबी लोग तैनात हैं. नवीन के साथ पांडियन ही पार्टी के दिखाई देने वाला चेहरा थे जिसकी वजह से चुनाव के दौरान भाजपा ने ओडिया अस्मिता का मुद्दा जोरदार ढंग से उठाया.
एक सवाल जिसका जवाब मिलना है, वह यह कि विपक्ष में बैठने में नवीन कितना सहज महसूस करेंगे. पिता के निधन के बाद 51 साल की उम्र में राजनीति में आए निवर्तमान मुख्यमंत्री पिछले 24 साल से लगातार सत्ता में रहे हैं. शुरू में केंद्र सरकार में रहे नवीन ने 2000 से ही ओडिशा में सरकार चलाई है. लेकिन पिछले पांच साल में खास तौर से कोविड-19 के बाद विधानसभा और राज्य सचिवालय में उनकी मौजूदगी बहुत कम हो गई थी. अक्सर वे वीडियो लिंक के जरिए रिमोट भागीदारी करते थे. निश्चित ही इस फैसले ने राजनेता नवीन की मदद नहीं की.
- अर्कमय दत्ता मजूमदार