चुनावी साल में अशोक चव्हाण का भगवा प्रेम कांग्रेस को क्या नुकसान पहुंचाएगा?
गांधी परिवार के वफादार रहे शंकरराव चव्हाण के वारिस तथा खुद दो बार मुख्यमंत्री रहे अशोक चव्हाण का जाना कांग्रेस के लिए बड़े नुकसान के रूप में देखा जा रहा है

इस चुनावी मौसम में गठबंधन टूट रहे हैं और राजनेता भी पार्टी लाइन से इतर जा रहे हैं. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण कांग्रेस छोड़ने वाले नए शख्स हैं. वे कई अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों की कतार में शामिल हो गए हैं जिन्होंने बीते दशक में इस पुरानी पार्टी को छोड़ दिया और उनमें से कई भगवा खेमे में चले गए.
चव्हाण ने 12 फरवरी को कांग्रेस के सभी पदों और भोकर निर्वाचन क्षेत्र के विधायक पद से इस्तीफा दे दिया. एक दिन बाद ये 65 वर्षीय मराठा नेता भाजपा में शामिल हो गए, जिससे अटकलें शुरू हो गईं कि उन्हें राज्यसभा के लिए नॉमिनेट किया जा सकता है. साल 2019 में चव्हाण अपने गढ़ नांदेड़ लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के प्रतापराव चिखलीकर पाटील से हार गए थे, जो खुद सियासी दलबदल के प्रतीक रहे हैं.
दो बार मुख्यमंत्री और गांधी परिवार के वफादार रहे शंकरराव चव्हाण के वारिस तथा खुद दो बार मुख्यमंत्री रहे अशोक चव्हाण का जाना कांग्रेस के लिए बड़े नुकसान के रूप में देखा जा रहा है. वह भी ऐसे वक्त में जब पार्टी राज्य में अस्तित्व की चुनौतियों से जूझ रही है. पिछले एक दशक में भाजपा ने कांग्रेस की प्रमुख शख्सियतों और उनके रिश्तेदारों को अपने पाले में करने की रणनीति अपनाई है. इससे न केवल उसने अपने खेमे को मजबूत किया है बल्कि गांधी परिवार के लिए भी अजीब स्थिति पैदा कर दी है.
इसके उदाहरण भरे पड़े हैं: पंजाब में पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के भाजपा में शामिल होने के बाद उनकी बेटी को भी राज्य इकाई में जगह दी गई. वहीं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बेटे सौरभ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे और पुष्कर सिंह धामी सरकार में मंत्री हैं. इसी तरह से गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री प्रतापसिंह राणे अपने बेटे विश्वजीत राणे के कहने पर सेवानिवृत्त हो गए और विश्वजीत भाजपा में शामिल होकर अब प्रमोद सावंत कैबिनेट में मंत्री हैं.
कांग्रेस से अलग होने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अक्सर पार्टी छोड़ने की वजह 'सलाहकारों' से घिरे केंद्रीय नेतृत्व के साथ अलगाव को बताते हैं. उनके अनुसार, वे 'सलाहकार' केंद्रीय नेतृत्व तक उन्हें पहुंचने नहीं देते. उन्होंने जमीनी स्तर के नेताओं पर निर्भरता की कमी का भी रोना रोया.
पिछले साल अप्रैल में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने अपने संस्मरण आज़ाद का लोकार्पण किया था. उस किताब में उनके इस दावे ने लोगों का ध्यान खींचा कि राजनेताओं को "आज की कांग्रेस में बचे रहने के लिए रीढ़विहीन होना होगा." भगवा खेमे के भीतर कई कांग्रेसी पूर्व मुख्यमंत्री खुद को सेवानिवृत्ति की ओर बढ़ता देख रहे हैं.