राजस्थान में हाइटेंशन तार में फंसी परिंदों की जिंदगी, आंकड़े हैरान कर देंगे

भारतीय वन्यजीव संस्थान के अनुसार, हाइटेंशन तारों की वजह से केवल गोडावण ही नहीं, बल्कि हर साल करीब 88 हजार परिंदों की मौत हो जाती है

हाइटेंशन तारों से टकराकर गोडावण पक्षियों के मरने का सिलसिला थम नहीं रहा
हाइटेंशन तारों से टकराकर गोडावण पक्षियों के मरने का सिलसिला थम नहीं रहा

राजस्थान में जैसलमेर से करीब 50 किलोमीटर दूर रासला गांव के पास देगराय ओरण के बीच एक चबूतरे पर प्रदेश के राज्य पक्षी गोडावण की आदमकद मूर्ति लगी है. प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनाई गई यह मूर्ति विश्व का सबसे पहला गोडावण स्मारक है. दो साल पहले हाइटेंशन लाइन से टकराकर मारी गई एक मादा गोडावण की याद में इसे बनाया गया है.

वन्यजीवों को बचाने में जुटे सांवता रासला गांव के पर्यावरणविद् सुमेर सिंह भाटी कहते हैं, ''हमने यह स्मारक वन विभाग और सरकार की आंखें खोलने के लिए बनाया था. पर आज भी जिस तरह यहां गोडावण की मौत हो रही है, उससे लगता है कि सरकार कोई सबक नहीं लेने वाली.''

पिछले साल 20 दिसंबर को जैसलमेर जिले के पाकिस्तान सीमा से सटे म्याजलार गांव और 19 मार्च, 2023 को पोकरण के खेतोलाई गांव के पास दो गोडावण मृत पाए गए. म्याजलार गांव में गोडावण आवारा कुत्तों का शिकार बन गया और खेतोलाई के पास गोडावण हाइटेंशन तारों से टकराकर मौत का शिकार बना था. इस क्षेत्र में पिछले कुछ अरसे में बिजली की हाइटेंशन लाइनों से टकराकर इस प्रजाति के आठ परिंदों की मौत हो चुकी है.

गोडावण थार के रेगिस्तान में पाया जाने वाला एक बड़ा देसी पक्षी है और गंभीर रूप से संकटग्रस्त श्रेणी में शामिल है. 2018 की गणना के अनुसार, देश में इस समय 150 से भी कम गोडावण रह गए हैं. 20-22 साल पहले तक राजस्थान में इनकी संख्या 600 से भी ज्यादा थी. गोडावण को बचाने के लिए 1981-82 में वन्यजीव अधिनियम 1972 के तहत जैसलमेर और बाड़मेर जिलों के 3,162 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में डेजर्ट नेशनल पार्क बनाया गया था. क्षेत्रफल की दृष्टि से यह राजस्थान का सबसे बड़ा अभयारण्य है.

राजस्थान में सर्वाधिक संख्या में गोडावण पक्षी इसी उद्यान में पाए जाते हैं. इस अभयारण्य क्षेत्र को गोडावण की शरणस्थली कहा जाता है. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 9 सी के तहत गोडावण संकटग्रस्त प्रजातियों में प्रथम श्रेणी में शामिल है. इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कंजर्वेशन ऑफ नेचर की संकटग्रस्त प्रजातियों पर प्रकाशित होने वाली रेड डेटा बुक में भी इन्हें 'गंभीर रूप से संकटग्रस्त' श्रेणी में रखा गया है.

जैसलमेर के धोलिया गांव के वन्यजीव प्रेमी राधेश्याम विश्नोई के शब्दों में, ''इस विशालकाय पक्षी की आंखें उसके माथे के दोनों तरफ होती हैं, इसीलिए वह सामने के खतरों को ठीक से नहीं भांप पाता और उड़ान भरते हुए हाइटेंशन तारों से टकरा जाता है. दिक्कत यह भी है कि गोडावण उड़ते हुए तेजी से मुड़ नहीं पाता, इसी वजह से उनके डैने तारों में उलझ जाते हैं. तारों से टकराकर वह बच भी जाता है तो भी इतनी ऊंचाई से जमीन पर गिरने की वजह से वह जिंदा नहीं रह पाता.''

जैसलमेर जिले के सम, सुदासरी, सलखा, रामदेवरा, भादरिया, खेतोलाई, कनोई, रासला और देगराय इलाके गोडावण का प्रमुख विचरण क्षेत्र हैं. पिछले कुछ साल में इन इलाकों में निजी सोलर और विंड कंपनियों के कई प्लांट लगाए गए हैं और पूरे क्षेत्र में बिजली की लाइनों का जाल बिछ गया है. सम और सुदासरी इलाके डेजर्ट नेशनल पार्क (डीएनपी) में शामिल हैं जिसके चलते वहां निजी कंपनियों को जमीन नहीं दी गई, लेकिन सलखा, रामदेवरा, खेतोलाई, कनोई, रासला और देगराय इलाकों में हजारों बीघा राजस्व भूमि निजी विंड और सोलर कंपनियों को आवंटित की गई है. बिजली कंपनियों ने यहां अपने प्रोजेक्ट लगाकर हाइटेंशन लाइनों का जाल बिछा दिया है जिनसे टकराने से परिंदों की मौत हो रही है.

भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, हाइटेंशन तारों से यहां केवल गोडावण ही नहीं मारे जा रहे, बल्कि इनसे हर साल विभिन्न प्रजातियों के करीब 88,000 परिंदों की जान चली जाती है. डब्ल्यूआइआइ ने पक्षियों की मौत पर यह अध्ययन 4,200 वर्ग किलोमीटर में फैले थार के रेगिस्तान में किया था. इसी अध्ययन के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 19 अप्रैल, 2021 को गोडावण पक्षी के विचरण क्षेत्र में आने वाली हाइटेंशन लाइनों को भूमिगत करने के निर्देश दिए थे, इसके बावजूद इनका जाल और बढ़ता गया.

कोर्ट ने यह भी कहा था कि जब तक ये विद्युत लाइनें भूमिगत नहीं होतीं तब तक इन हाइटेंशन लाइनों में बर्ड डाइवर्टर लगाए जाएं. न्यूयॉर्क की वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी ने इस क्षेत्र में 1,842 बर्ड डाइवर्टर लगाए. कोर्ट ने अपने फैसले में 104 किमी लंबी हाइटेंशन लाइनों को भूमिगत करने और 1,238 किमी लंबी लाइनों पर बर्ड डाइवर्टर लगाने के लिए चिह्नित किया था. विश्नोई कहते हैं, ''बर्ड डाइवर्टर लगने के बाद भी पक्षियों की मौत का सिलसिला थमा नहीं है. इन डाइवर्टर की क्वालिटी भी इतनी हल्की थी कि अधिकतर तीन-चार माह में ही टूटकर जमीन पर आ गिरे.'' डाइवर्टर एक तरह की प्लास्टिक की डिस्क होती हैं जो तारों पर लटकती है और उनसे रंग-बिरंगी प्रकाश किरणें निकलती हैं. 

आसमान में उड़ते इन परिंदों को खतरा सिर्फ हाइटेंशल लाइन और पवन चक्कियों से ही नहीं, जमीन पर बिछाई गई सोलर प्लेट्स से भी है. राधेश्याम विश्नोई कहते हैं, ''रात में चांद की रोशनी में चमकती ये सोलर प्लेट्स प्रवासी पक्षियों को ऐसी नजर आती हैं जैसे कि नीचे कोई बड़ा तालाब या झील हो. पानी में उतरने की गलतफहमी में जब वे सौलर प्लेट्स के संपर्क में आते हैं तो शीशे की पैनी प्लेट्स इनके कोमल डैनों को क्षत-विक्षत कर देती हैं. टूटे पंख से ये फिर कभी उड़ नहीं पाते.''

पाकिस्तान की ओर पलायन

राजस्थान में इंदिरा गांधी नहर क्षेत्र में बढ़ती कृषि गतिविधियों और हाइटेंशन लाइनों की भरमार के कारण कई गोडावण पाकिस्तान सीमा में चले गए. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से प्रवासी पक्षियों पर हुई अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में यह सामने आया कि राजस्थान से 69 गोडावण पाकिस्तान के चोलिस्तान इलाके में पहुंचे जिनमें से 49 का शिकार हो गया. गोडावण के भारत से पाकिस्तान जाने का खुलासा उस वक्त हुआ जब कुछ माह पहले पाकिस्तान के फोटोग्राफर सैयद रिजवान ने चोलिस्तान में तीन मादा गोडावण की तस्वीरें साझा कीं. ये तीनों राजस्थान के जैसलमेर से पाकिस्तान गई थीं.

गोडावण उड़ने वाले पक्षियों में सबसे अधिक वजनी है. बड़े आकार के कारण यह शुतुरमुर्ग जैसा लगता है. राजस्थान में इसे सोहन चिडिय़ा, हुकना, गुरायिन नामों से भी जाना जाता है. यह पक्षी बहुत ही शर्मीला है और सघन घास में रहता है. गोडावण करीब एक मीटर ऊंचा होता है और एक से डेढ़-मीटर लंबा होता है. इसका वजन 5 से 10 किलो के बीच होता है. यह साल में केवल एक अंडा देता है और वह भी खुले आसमान के नीचे. जंगली कुत्तों की आवाजाही के कारण गोडावण के अंडे हमेशा असुरक्षित रहते हैं. अपने दोनों डैनों को करीब 4.5 फुट तक फैलाकर गोडावण जब उड़ान भरता है तो किसी फाइटर विमान जैसा नजर आता है. गोडावण न तो फसल को नुक्सान पहुंचाता है और न ही इंसान को. घनी घास में पाए जाने वाले सांप, बिच्छू, टिड्डी और छोटी छिपकलियां गोडावण का भोजन हैं.

वन विभाग ने गोडावण संरक्षण के लिए एक गाइडलाइन जारी की है. इसमें कई उपायों का जिक्र है, मसलन: गोडावण संरक्षण के लिए इसके विचरण क्षेत्र की हाइटेंशन लाइनों को भूमिगत करना, वहां सघन गश्त का इंतजाम, शिकार रोकने के लिए खुफिया नेटवर्क का विकास, ज्यादा आवाजाही वाली जगहों पर चेक पोस्ट और बैरियर लगाना, रेंज अधिकारी के नेतृत्व में उड़नदस्ते का गठन, सेवण घास का रकबा बढ़ाना और मौजूदा वायरलेस नेटवर्क का सुदृढ़ीकरण. पर ये सब कहने भर को हैं. गंभीर उपायों और उनके अमल के अभाव में गोडावण की मौत का सिलसिला जारी है.

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