आम चुनावों में उभर कर सामने आएगा बिलकीस बानो के आरोपियों को माफी देने का मामला?

खेल ऐसे मोड़ पर है जहां यह महाराष्ट्र की भाजपा की अगुआई वाली गठबंधन सरकार को सांसत में डाल सकता है, फड़नवीस ने यह कहकर बचाव किया था कि यह 'सुप्रीम कोर्ट के आदेशों' के आधार पर हुई

बिलकीस बानो
बिलकीस बानो

नया साल 2002 के गुजरात दंगों के मामले की पीड़िता बिलकीस बानो के लिए उम्मीद की किरण लेकर आया. लेकिन जब 8 जनवरी, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के 14 सदस्यों की हत्या के दोषी 11 लोगों की सजा माफी रद्द कर दी, तो इसका प्रतीकात्मक वजन व्यक्तिगत तकदीरों की कहानी से कहीं ज्यादा था. आम चुनाव का वर्ष होने के कारण इसे राजनैतिक धार मिलना तय है, हालांकि कहना मुश्किल है कि इसकी चुभन किस तरह होगी.

गुजरात सरकार का अगस्त, 2022 का फैसला पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को दोषियों के साथ 'मिलकर काम करने' और अदालत के साथ 'फ्रॉड' करने के लिए फटकार लगाई. उसने कहा कि सजा माफी के मुद्दे का फैसला करने के लिए राज्य सक्षम प्राधिकार नहीं है, क्योंकि इस केस की सुनवाई, दोषसिद्धि और सजा 2008 में महाराष्ट्र में सीबीआई की विशेष अदालत में हुई थी.

न्यायमूर्तिद्वय बी.वी. नागरत्ना और उज्जल भुइयां के दस्तखतों से दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले में 'फ्रॉड' शब्द का 25 बार इस्तेमाल किया गया और उन घटनाओं के सिलसिले को विस्तार से समझाया गया जो अंतत: सजा माफी की ओर ले गया, और जिसमें 'महत्वपूर्ण तथ्यों को दबाकर और तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करके... इस अदालत के हाथों धोखाधड़ी से प्राप्त किए गए' मई 2022 के आदेश की भी मदद ली गई. अदालत ने आदेश दिया कि सभी दोषी जेल अधिकारियों के समक्ष समर्पण करें और बची हुई सजा काटें.

गुजरात चुनाव से महज कुछ महीने पहले अगस्त, 2022 में दोषियों की रिहाई से चौतरफा आक्रोश पैदा हुआ था. इसकी शुरुआत 2019 से ही कर दी गई थी जब दोषी राधेश्याम शाह ने 14 साल और पांच महीने की सजा काटने के बाद समय-पूर्व रिहाई पर विचार करने के लिए गुजरात हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाइकोर्ट ने कहा कि चूंकि उनके मुकदमे की सुनवाई महाराष्ट्र में हुई थी, इसलिए सीआरपीसी की धारा 432(7) के मुताबिक, इस उद्देश्य के लिए 'उपयुक्त सरकार' उसी राज्य की होगी (बिलकीस को मौत की धमकियां मिलने और अदालत को मामले के साथ छेड़छाड़ होने की आशंका के बाद उनका मामला 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र स्थानांतरित किया था).

अगस्त 2019 में शाह ने महाराष्ट्र के गृह सचिव के सामने याचिका दायर की, पर कोई राहत नहीं मिली, क्योंकि इस मामले में मुकदमा चलाने वाली एजेंसी सीबीआई ने कहा कि वह किसी नरमी का हकदार नहीं है. जनवरी 2020 में मुंबई स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने भी नकारात्मक रिपोर्ट दी, जैसा कि दाहोद (गुजरात में दोषियों का गृहनगर) के पुलिस अधीक्षक ने भी ऐसी ही रिपोर्ट दी थी. 

हालांकि यथास्थिति में तेजी से बदलाव के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे, पर कोशिशें जारी रहीं. फरवरी 2021 में इन सभी ने गुजरात में गोधरा उप जेल के अधीक्षक के समक्ष, जहां वे सजा काट रहे थे, सजा माफी की याचिकाएं पेश करना शुरू कर दिया. उधर, शाह अब भी महाराष्ट्र में राहत की तलाश कर रहा था, जहां सीबीआई के विशेष जज ने फिर कार्यवाही पर रोक लगाकर उसे मायूस कर दिया. मार्च 2022 में जाहिर राय में जज इस नतीजे पर पहुंचे कि अगर महाराष्ट्र के नियम लागू किए जाते हैं, तो दोषियों को सजा माफी से पहले 28 साल सजा काटनी होगी (इसके लिए अप्रैल 2008 के संकल्प का हवाला दिया गया).

मगर ज्यादातर लोगों को भनक तक नहीं लगी कि इस बीच दोषियों के लिए चीजें बेहतर होने लगी थीं. जुलाई 2021 में गुजरात की 10 सदस्यों की जेल सलाहकार समिति शाह के मामले पर चर्चा के लिए मिली. इसमें चार सामाजिक कार्यकर्ता, दो विधायक, गोधरा के एसपी, और जिला सत्र न्यायाधीश शामिल थे. जज के अलावा सभी ने इस आधार पर सजा माफी की सिफारिश की. आधार था कि शाह कारावास में 15 साल पूरा कर चुका है. जज ने अपनी राय में कहा कि समय से पहले रिहाई की वजह से सांप्रदायिक तनाव पैदा हो सकता है.

सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, जब शाह मई 2022 में सीआरपीसी की धारा 432 के तहत सजा माफी के लिए उसके पास आया था, उसने यह तथ्य दबा लिया कि वह पहले ही महाराष्ट्र सरकार के पास जा चुका था और 2019 में उसकी याचिका ठुकरा दी गई थी. शाह के वकील ने एक और हाथ की सफाई से काम लिया—वे गुजरात की 1992 की एक नीति के आधार पर रिहाई चाहते थे जिसने कम से कम 14 साल की सजा काट चुके दोषियों को इसकी इजाजत दी थी (उस नीति को बाद में कूड़ेदान में डाल दिया गया और 2014 की नई नीति ने जघन्य अपराधों में दोषी मुजरिमों की रिहाई पर रोक लगा दी थी).

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और विक्रम नाथ की उस सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपील की इजाजत दे दी और गुजरात सरकार से 1992 की नीति के आधार पर 'दो महीने में' समय-पूर्व रिहाई के दावे पर विचार करने को कहा. इसी आदेश के आधार पर गुजरात की एक समिति ने बिलकीस बानो मामले के सभी दोषियों की रिहाई को मंजूरी दे दी. शाह ऐंड कंपनी 15 अगस्त, 2022 को न केवल जेल से निकल आई, बल्कि उन्हें सम्मानित भी किया गया और भाजपा की स्थानीय इकाइयों ने उन्हें मालाएं पहनाने के कार्यक्रम आयोजित किए. इन 18 महीनों में जब वे आजाद थे, काफी कुछ घट चुका है. इनमें गुजरात के विधानसभा चुनाव भी थे, जिनमें सत्तारूढ़ भाजपा ने एक बार फिर चौतरफा जीत हासिल की. मगर एक और चुनावी लड़ाई बहुत करीब है, जिसमें दांव कहीं ज्यादा ऊंचे हैं. 

खेल ऐसे मोड़ पर है जहां यह महाराष्ट्र की भाजपा की अगुआई वाली गठबंधन सरकार को सांसत में डाल सकता है. उनकी रिहाई का भाजपा के उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने यह कहकर बचाव किया था कि यह 'सुप्रीम कोर्ट के आदेशों' के आधार पर हुई, लेकिन उन्होंने दोषियों को 'संस्कारी ब्राह्मण' बताकर तारीफ करने पर असहमति जताई थी. अब जब चुनावी शोर-शराबा बढ़ रहा है तो कई बड़े नेताओं के सही चीजें कहने और करने के संकल्प की अग्निपरीक्षा होगी.

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