गुजरात की गिफ्ट सिटी: फिनटेक को लुभाने का दांव
प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजक्ट गुजरात की गिफ्ट सिटी ने वित्तीय क्षेत्र से जुड़े बड़े खिलाड़ियों का ध्यान अपनी तरफ खींचा तो है, लेकिन क्या यह एक वैश्विक वित्तीय केंद्र बन पाएगा

इस मंच पर एक विशाल घंटी है, जिसे ऑर्किड और गेंदे के फूलों से सजाया गया है. बगल में कलफदार सूट पहने लोग बैठे हैं. जैसे ही घड़ी 15:40 का वक्त बताती है, सभी उठते हैं और घंटी बजाते हैं. इसके साथ ही एसजीएक्स-निफ्टी का पहला सत्र बंद हो जाता है. इसे अब गिफ्ट निफ्टी नाम दे दिया गया है.
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के निफ्टी सूचकांक के आधार पर, यह भारत और सिंगापुर के पूंजी बाजारों को जोड़ने की एक सीमा आर-पार की पहल है. गिफ्ट सिटी क्लब के खचाखच भरे हॉल में वित्त विशेषज्ञ, कंसल्टेंट और कारोबारी गौर से भाषण और प्रेजेंटेशन देख-सुन रहे हैं.
इन लोगों में से ज्यादातर मुंबई और सिंगापुर से आए हैं. प्रेजेंटेशन में बताया जा रहा है कि गांधीनगर जिले में स्थित गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक (गिफ्ट) सिटी देश में सीमा पार के वित्तीय केंद्र (ओएफसी) को मौके मुहैया करा रही है. आलीशान क्लब से बाहर कदम रखें तो आपको भविष्य का नजारा दिखेगा. चमकदार, तारकोल वाली सड़कों के दोनों तरफ ऊंची इमारते हैं, और ऊंची-ऊंची क्रेनें हैं, जो परियोजनाओं को अंजाम देने में जुटी हैं. हवाई अड्डे से आयोजन स्थल की ओर बढ़ते हुए कई निर्माणाधीन फ्लाइओवर और ऊपर से गुजरती मेट्रो रेल दिखती है. आखिर में 14 आधुनिक इमारतों का वह समूह ऐसे नजर आता है, मानो रेगिस्तान में नखलिस्तान उभर आया हो. 'बिग फोर’ कंसल्टेंसी फर्मों में से एक केपीएमजी के साथ जुड़े तीसेक साल के देवेन जैन (बदला हुआ नाम) ने यहीं एक इमारत में एक ऑफिस किराए पर लिया है.
हॉल के एक कोने में बैठा, भारतीय प्रबंधन संस्थान (आइआइएम) का एक ग्रेजुएट 3 जुलाई की दोपहर बड़े गौर से आंकड़ों पर नजर डाल रहा है. एनएसई IX-एसजीएक्स गिफ्ट कनेक्ट की सुबह निफ्टी फ्यूचर्स में 8.05 अरब डॉलर (66,090 करोड़ रुपए) के ओपन इंटरेस्ट और निफ्टी ऑप्शंस में 1.04 अरब डॉलर (8,540 करोड़ रुपए) से अधिक के साथ शुरुआत हुई (फ्यूचर्स या वायदा और ऑप्शंस शेयर बाजार में उपयोग किए जाने वाले वित्तीय अनुबंध हैं); पहला सत्र 1.13 अरब डॉलर (9,280 करोड़ रुपए) के कारोबार के साथ समाप्त हुआ. बाद में, मुंबई स्थित कंसल्टेंट बातचीत में वही दोहराता है जो उस दिन मंच से कई बार कहा गया—सिंगापुर स्टॉक एक्सचेंज या एसजीएक्स निफ्टी उस देश से एनएसई में स्थानांतरित हो रहा है.
गिफ्ट सिटी में इंटरनेशनल एक्सचेंज (एनएसई- IX) देश के पहले और इकलौते अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (आइएफएससी) के लिए बहुत अवसर लाएगा. गिफ्ट सिटी के प्रबंध निदेशक तपन रे भी इससे सहमत हैं. वे बताते हैं, ''ट्रेडिंग घंटों का विस्तार और एनएसई IX पर अमेरिकी डॉलर-मूल्य वाले निफ्टी डेरिवेटिव्स का विशेष व्यापार, वैश्विक बाजारों तक निर्बाध पहुंच के लिए यह समझदार वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करेगा.”
गिफ्ट सिटी में क्या है खास?
2007 में एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) की कल्पना की गई. इसे गिफ्ट सिटी नाम देकर 2015 में आइएफएससी बना दिया गया, ताकि घरेलू और वैश्विक वित्तीय सेवा क्षेत्र में सक्रिय इकाइयों को आकर्षित किया जा सके. ये इकाइयां अपने फंड अमूमन सिंगापुर, हांगकांग और दुबई जैसे विदेशी टैक्स हैवन में रखती हैं. पिछले कुछ महीनों में कई हाइ-प्रोफाइल कंपनियों का इस ओर रुझान देखा गया है. जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने घोषणा की कि गिफ्ट सिटी में अपनी वैश्विक वित्तीय प्रौद्योगिकी या फिनटेक हब स्थापित करेंगे. यह प्रधानमंत्री का उन दिनों से सपना रहा है, जब वे राज्य के मुख्यमंत्री हुआ करते थे.
आखिरकार कई वर्षों के बाद 2020 में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (आइएफएससी) के गठन के साथ गिफ्ट सिटी की शुरुआत हो पाई. आइएफएससी अपने दायरे में विभिन्न वित्तीय उत्पादों, सेवाओं और संस्थानों के विकास और नियमन के लिए एकल वैधानिक निकाय है. इससे पहले यहां कारोबार शुरू करने के लिए कई वित्तीय नियामकों—भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ), भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी), पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) और बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआइ) से अलग-अलग मंजूरी लेनी पड़ती थी. अब सिर्फ आइएफएससी की मंजूरी ही काफी है.
साल भर पहले यहां कारोबार शुरू करने वाले एक फंड मैनेजर का कहना है, ''आइएफएससीए की स्थापना से नियमों में स्पष्टता आई है.’’ आइएफएससीए के कार्यकारी निदेशक दीपेश शाह के मुताबिक, गिफ्ट आइएफएससी की ओर कई घरेलू और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का रुझान दिख रहा है, जो इसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवाओं के लिए अपना आधार बना रहे हैं. अधिकांश इमारतों में कंपनियां आ रही हैं. हाल ही में मॉर्गन स्टेनली को कारोबार शुरू करने की मंजूरी मिली है.
गिफ्ट सिटी 886 एकड़ में फैली है. इसमें 261 एकड़ का मल्टी-सर्विस आइएफएससी और एसईजेड के अलावा 625 एकड़ का विशेष घरेलू टैरिफ क्षेत्र (डीटीए) है, जो घरेलू कंपनियों के लिए है और भारतीय कानूनों और नियमों के अधीन है. योजना 6.2 करोड़ वर्ग फुट निर्मित क्षेत्र विकसित करने की है, जिसमें 67 फीसद कारोबारी, 22 फीसद आवासीय और 11 फीसद सामाजिक मेलजोल की जगहें होंगी. कारोबारी इस्तेमाल के लिए 4.15 करोड़ वर्ग फुट निर्धारित है, और गिफ्ट के आधिकारिक डेटा का दावा है, 2.4 करोड़ वर्ग फुट या 58 फीसद पहले ही 'आवंटित’ किया जा चुका है, इसका लगभग आधा पिछले तीन वर्षों में ही हुआ है. फिलहाल 40 लाख वर्ग फुट निर्मित क्षेत्र में कारोबार चल रहा है और 90 लाख वर्ग फुट निर्माणाधीन है.
आइएफएससी और एसईजेड के भीतर इस निर्मित क्षेत्र में 400 से अधिक संस्थाओं ने जगह लीज पर ली है और डीटीए में 70 से अधिक संस्थाओं ने जगह ली है, जिनमें से 35 फिनटेक इकाइयां पहले से ही चालू हैं. इसी तरह 36.5 अरब डॉलर (2.99 लाख करोड़ रुपए) की परिसंपत्ति वाली 33 अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग इकाइयां और 14.6 अरब डॉलर (1.19 लाख करोड़ रुपए) प्रतिबद्ध पूंजी के साथ 63 फंड प्रबंधन कंपनियां भी हैं. ब्रिक्स देशों के बहुपक्षीय बैंक न्यू डेवलपमेंट बैंक का क्षेत्रीय मुख्यालय भी गिफ्ट में आ रहा है. गूगल के अलावा जिन दूसरी कंपनियों ने यहां जगह ली है, उनमें आइबीएम, ओरैकल, मैक्सिम इंटीग्रेटेड, टीसीएस और साइबेज शामिल हैं. वित्तीय, कानूनी और अन्य परामर्श सेवाएं प्रदान करने के लिए, प्राइसवाटरहाउसकूपर्स (पीडब्ल्यूसी), ईवाइ, केपीएमजी, सिरिल अमरचंद मंगलदास और ग्रांट थॉर्नटन भारत जैसी कंपनियों ने भी अपने ठिकाने खोल लिए हैं.
तो, इन कंपनियों और संस्थाओं को क्या गिफ्ट सिटी की ओर खींचती है? दरअसल, पेशकश आकर्षक हैं, जिनमें कुछेक 10 वर्षों के लिए सौ फीसद कर छूट, आइएफएससी में प्राप्त सेवाओं और लेनदेन पर कोई माल तथा सेवा कर (जीएसटी) नहीं, सुरक्षा या वस्तु लेनदेन पर स्टांप शुल्क और करों से छूट, और पट्टा किराये, बिजली और पीएफ योगदान पर राज्य की सब्सिडी वगैरह. बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने और नीतिगत समर्थन के साथ केंद्र सरकार देश की फिनटेक क्षमता के विकास के लिए गिफ्ट सिटी पर बड़ा दांव लगा रही है. इसे सिंगापुर, हांगकांग और दुबई के मुकाबले वैश्विक वित्तीय और आइटी सेवा केंद्र के रूप में स्थापित कर रही है. पीडब्ल्यूसी के जून, 2021 के एक अध्ययन में कहा गया है कि एकल नियामक प्राधिकरण, अंतरराष्ट्रीय नियामकों और वित्तीय संस्थाओं के साथ गठजोड़, और फिनटेक कंपनियों को लाइसेंस जारी करने और कर प्रोत्साहन प्रदान करने की क्षमता गिफ्ट सिटी के कुछ नीतिगत फायदे मुंबई और बेंगलूरू जैसे देश के अन्य वाणिज्यिक केंद्रों पर भारी हैं.
गिफ्ट शिपिंग करारों के केंद्र के रूप में भी उभरना चाहता है, क्योंकि गुजरात के भावनगर जिले के अलंग में जहाज तोड़ने वाला उद्योग विश्व स्तर पर सबसे बड़ा है. राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी गुजरात समुद्री क्लस्टर (जीएमसी) विकास योजना के तहत जहाज निर्माण उद्योग के भी जल्द ही शुरू होने की उम्मीद है. और तो और, गांधीनगर स्टार्ट-अप को भी लुभा रहा है. हाल ही में एक इनक्यूबेशन सेंटर स्थापित किया गया है, और गिफ्ट सिटी उन वैश्विक बैंकों के जरिए अंतरराष्ट्रीय उद्यम पूंजी कोष को आकर्षित कर रहा है, जिन्होंने यहां अपने कार्यालय खोले हैं. दरअसल, मार्च के मध्य में कैलिफोर्निया के सिलिकॉन वैली बैंक के ढहने के एक हफ्ते से भी कम समय में केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने दावा किया था कि बैंक में एक अरब डॉलर (8,210 करोड़ रुपए) से अधिक की राशि जमा हो गई है. इसमें भारतीय स्टार्ट-अप्स के लगभग 20 करोड़ डॉलर (1,640 करोड़ रुपए) गिफ्ट आइएफएससी में स्थानांतरित कर दिए गए थे.
क्या ग्लोबल फाइनेंशियल हब बन पाएगी गिफ्ट सिटी?
चौतरफा उत्साह के बावजूद अभी इस बारे में साफ तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता. और संदेह के पीछे, ऐसी खास परियोजनाओं के पूरी तरह आकार लेने में लगने वाली लंबी अवधि के अलावा भी कई कारण हैं. वैश्विक समकक्ष बनने की आकांक्षाओं को छोड़ दें, तो भी सवाल उठता है कि क्या इसके लिए फिनटेक इकोसिस्टम के लिहाज से खुद को दुनियाभर में स्थापित कर चुके मुंबई, बेंगलूरू, गुरुग्राम और हैदराबाद जैसे भारतीय शहरों के साथ बराबरी कर पाना आसान होगा. यह चिंता इस मायने में जायज है कि इन शहरों की आधुनिक जीवनशैली अत्यधिक कुशल मानव संसाधन को अपनी ओर आकृष्ट
करती है, जो उनींदे से रहने वाले गांधीनगर में नजर नहीं आती. और अभी हमने गुजरात में शराबबंदी का जिक्र नहीं किया है.
वैसे, शाह तो दावा करते हैं कि मौजूदा इमारतें करीब 20,000 लोगों को रोजगार उपलब्ध करा सकती हैं, लेकिन यहां काम करने वालों का कहना है कि अधिकांश दफ्तर खाली पड़े हैं. शाह इससे इत्तेफाक नहीं रखते. उदाहरण के तौर पर, वे बताते हैं, ''आइएफएससी के दफ्तरों वाल टावर में बैंक ऑफ अमेरिका ने भी चौथी से 27वीं मंजिल तक जगह ले रखी है. यहां करीब 2,400 लोग काम करते हैं और मैं तो हर दिन इन कार्यालयों में चहल-पहल देखता हूं.’’
हालांकि, पैसों के मामले में यहां कोई दिक्कत नहीं हो सकती लेकिन किसी खास कौशल से संपन्न स्थानीय प्रतिभा को आकृष्ट करना स्टार्ट-अप के लिए एक चुनौती होगी. पहले हमने जिस पीडब्ल्यूसी पेपर का जिक्र किया है, उसमें यह चिंता जताई गई है, ''दिग्गज आइटी कंपनियां तो बड़ी संख्या में वर्क फोर्स की नियुक्ति करती हैं और उनके पास देशभर में अपने नए कर्मचारियों प्रशिक्षित करने का एक मजबूत बुनियादी ढांचा भी होता है, इसके उलट स्टार्ट-अप में रोजगार देने की प्रक्रिया बेहद सीमित है.
इंडिया टुडे ने जिन फंड मैनेजर से बात की, उन्होंने 10 साल की टैक्स छूट का जिक्र करते हुए दावा किया कि यह पर्याप्त नहीं है. गिफ्ट सिटी के हालिया घोषित लक्ष्यों में से एक फैमिली ऑफिस के प्रबंधन में माहिर एक फंड मैनेजर ने कहा, ''आइएफएससी में कार्यालय स्थापित करने के लिए कई सालों में कायम आत्मविश्वास के साथ निरंतरता और विश्वसनीयता की भी जरूरत होती है. हमारे मौजूदा कार्यालयों को सिंगापुर और दुबई से गांधीनगर स्थानांतरित करने को लेकर ग्राहक सुरक्षा के साथ-साथ टैक्स हॉलीडे (निर्धारित अवधि के लिए कर छूट) की भी मांग करते हैं.’’ उन्होंने यह सवाल भी उठाया, ''अगर केंद्र में सरकार बदल जाए या फिर कोई दूसरा प्रधानमंत्री इन टैक्स छूट को न बढ़ाए तो क्या होगा?’’ हालांकि, ऐसी कई आशंकाओं के बावजूद उनका कहना है कि अधिकांश मध्यम और बड़े आकार वाले फंड मैनेजर गिफ्ट सिटी में सांकेतिक स्थान ले चुके हैं.
दूसरी ओर, सरकार की तरफ से गिफ्ट डीटीए में अपने दफ्तर स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किए जाने के बावजूद क्षेत्र का आइटी उद्योग सांकेतिक तौर पर जगह लेने जैसा भी जोखिम उठाने को तैयार नहीं है. हालांकि, गिफ्ट के अधिकारियों का दावा है कि डीटीए का विश्वसनीय बुनियादी ढांचा और पारिस्थितिकी तंत्र, और आइएफएससी और एसईजेड से नजदीकी एक बड़ा आकर्षण है. लेकिन अहमदाबाद स्थित व्यापार संघ के एक सदस्य का तर्क है कि डीटीए में टैक्स हॉलीडे के फायदे को छोड़ दें तो शहर में उपलब्ध अन्य ऑफिस स्पेस में मिलने वाली सुविधाओं में कोई ज्यादा अंतर नहीं है. उनके मुताबिक, ''अधिकांश स्थानीय आइटी कंपनियां सीमित बजट वाले एमएसएमई की श्रेणी में आती हैं. कर्मचारियों के रोजाना अहमदाबाद से 40 किमी आने-जाने का कोई मतलब नहीं है.’’
जापानी, कोरियाई और ताइवानी निवेशकों के प्रबंधन में माहिर मुंबई के एक फंड मैनेजर का दावा है कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भारतीय नियामकों से 'डरती’ हैं, और कर संबंधी कानूनों में पहले से लागू होने वाले बदलाव भी उन्हें आगे बढ़ने से रोकते हैं. वे कहते हैं, ''जाहिर है कि गिफ्ट में क्षमताएं हैं, लेकिन इसके प्रति भरोसा कायम होने में सालों लगेंगे. अभी, अधिकांश लोग पीएमओ स्तर पर दिए जा रहे जोर या देश में अपनी अन्य परियोजनाओं की वजह से यहां आए हैं.’’ जैन का भी मानना है कि आइएफएससी को पूरी तरह आकार लेने में अभी कई साल लगेंगे. वे कहते हैं, ''मेरी पत्नी का मुंबई में करियर है और मेरे बच्चे भी यहां आने को कभी तैयार नहीं होंगे. जब तक पूरा परिवार हमेशा के लिए यहां नहीं बस जाता, तब तक गिफ्ट में इन बड़े ब्रांड के कार्यालय सिर्फ बैक ऑफिस जैसे बने रहेंगे.’’ वे यह कहते हैं, सी-सूट के अधिकारी और वरिष्ठ प्रबंधक कहीं और से काम करते हैं और सप्ताह में केवल कुछ दिन ही विमान से यहां आना पसंद करते हैं. उनके मुताबिक, ''जो लोग अच्छी कमाई कर रहे हैं, वे अच्छी जगहों पर रहना पसंद करते हैं, जहां मनमाफिक एक स्वस्थ जीवनशैली उपलब्ध हो.’’
बहरहाल, ये 'सारे पहलू वही’ हैं जो सरकार के एजेंडे में शामिल हैं, भले ही इन पर काम अपेक्षित गति से न चल रहा हो. समुदाय की जरूरतों को ध्यान में रखकर सीमित आवाजाही वाली चारदीवारी के साथ शानदार आवासीय व्यवस्था, रेस्तरां, मूवी थिएटर, अत्याधुनिक स्वास्थ्य सेवाएं और अंतरराष्ट्रीय स्तर की शिक्षा की सुविधाएं—वह भी सब कुछ साबरमती के किनारे मुहैया कराना—कुल मिलाकर इस प्रोजेक्ट को एक संपूर्ण गिफ्ट पैकेज बनाती हैं. शाह कहते हैं, ''कुछ प्रमुख रियल्टर्स यहां अपने विशिष्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़े कर रहे हैं.’’ 2022 के केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की थी कि विश्वस्तरीय विदेशी विश्वविद्यालयों को यहां गिफ्ट सिटी में अपने कैंपस स्थापित करने की अनुमति दी गई है. ये यूनिवर्सिटी स्थानीय नियमों से मुक्त होंगी. कम से कम दो ऑस्ट्रेलियाई संस्थान—डीकिन यूनिवर्सिटी और वोलोंगोंग यूनिवर्सिटी—तो 2024 में गिफ्ट सिटी में अपना शैक्षणिक सत्र भी शुरू कर देंगे.
हालांकि, अधिकांश निर्माण कार्य फिलहाल जारी है. पिछले दशक में, विशेष तौर पर 330 ऐसे किफायती घर बनाए गए, जो गिफ्ट सिटी कर्मचारी खरीद सकें. तीन साल पहले खुले बाजार में बिक्री के प्रस्ताव से पहले तक वे खाली ही रहे. हाल ही में आसपास के चार गांवों की शहरी योजना का जिम्मा आर्किटेक्ट बिमान पटेल की फर्म एचसीपी को सौंप दिया गया है, जो दो दशकों से अधिक समय से प्रधानमंत्री मोदी के साथ जुड़े हैं और नई दिल्ली स्थित सेंट्रल विस्टा जैसी भव्य पुनर्विकास परियोजनाओं की निगरानी कर चुके हैं. लेकिन जैसा कि, ऊंची सैलरी पैकेज के बावजूद गांधीनगर जाने से इनकार कर देने वाले एक शीर्ष कंपनी के सलाहकार का कहना है, कुछ ठोस करने के लिए इस तरह का 'पैचवर्क’ कारगर नहीं होगा. उनके मुताबिक, ''अवसरों और वैचारिक स्तर पर विविधता को स्वाभाविक रूप से फलने-फूलने देने की जरूरत है ताकि प्रतिभाशाली पेशेवर इसकी तरफ खुद-ब-खुद खिंचे चले आएं. गिफ्ट सिटी के विकास के लिए अहमदाबाद और गांधीनगर को मुंबई और बेंगलूरू जैसे महानगरीय केंद्रों के तौर पर विकसित करना होगा.’’ और, यह तो फिलहाल दूर की कौड़ी ही लगता है.