जहां भर की दुत्कार इनकी कमाई

देश भर में आवारा कुत्तों के हमले की घटनाएं तेजी से बढ़ रहीं. इससे इस संवेदनशील मसले पर एक बार फिर बहस शुरू हो गई है कि इनसान और कुत्ते क्या एक साथ प्रेम से रह सकते हैं?

खतरे की जद में दिल्ली के मोतीनगर में सड़क पार करती एक महिला को घेरे कुत्ते
खतरे की जद में दिल्ली के मोतीनगर में सड़क पार करती एक महिला को घेरे कुत्ते

नोएडा की रहने वाली 49 वर्षीया उमा शर्मा के लिए घर के बाहर गली के छह कुत्तों को रोटी खिलाना, चार साल पहले पति की मौत के सदमे से उबरने का एक जरिया था. उन कुत्तों का प्यार और वफादारी का साथ न होता तो शायद वे डिप्रेशन का शिकार हो जातीं. लेकिन उनकी हाउसिंग सोसाइटी के दूसरे लोगों में कुत्तों के प्रति वैसा लगाव न था. साल भर पहले जब वे शहर से बाहर थीं, सोसाइटी के लोगों ने उनमें से चार कुत्तों को उठाया और कहीं और पहुंचा दिया. शर्मा कहती हैं, ''इससे मेरा दिल टूट गया. इससे उबरने को उन्हें इलाज कराना पड़ा. कुत्तों ने कभी किसी को काटा या दौड़ाया नहीं था. उन्हें टीके लगे थे. पर समाज के कुछ सदस्यों के पूर्वाग्रहों की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी.'' कुत्ते अपना एक इलाका बनाकर रखते हैं और नए इलाके में पहुंचा देने पर अक्सर उनकी मृत्यु हो जाती है. वहां पहले से मौजूद कुत्ते बाहरी की घुसपैठ को आसानी से नहीं स्वीकारते. 

कुत्तों को रोटी खिलाना पशु प्रेमियों और उनके विरोधियों के बीच विवाद की पुरानी वजह रही है. पूरे भारत में आवारा कुत्तों के हमलों की घटनाएं बढ़ने से यह विवाद और तेज हो गया है, जिससे लोगों में एक तरह की दहशत फैल गई है. अक्तूबर में ओडिशा के बोलांगिर जिले के पटनागढ़ ब्लॉक में तीन साल की एक बच्ची को कुत्तों ने मार डाला. सितंबर में केरल के कोझिकोड जिले में एक 12 वर्षीय लड़के पर आवारा कुत्ते ने उसके घर के सामने हमला किया. इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. अप्रैल में आवारा कुत्तों के एक झुंड ने लखनऊ के मुसाहबगंज इलाके में सात और पांच साल के दो बच्चों पर हमला किया, जिसमें एक की मौत हो गई.

शर्मा ने सोसाइटी के सदस्यों के खिलाफ क्रूरता का मामला दर्ज कराया है. वे कहती हैं, ''कानूनन उन लोगों को बाकी दो कुत्तों को छूने की मनाही है.'' उन्होंने बताया कि कई बच्चों और सोसाइटी के गार्डों के लिए भी वे कुत्ते दोस्त सरीखे थे. शर्मा कहती हैं, ''जब तक वे किसी को नुक्सान नहीं पहुंचा रहे, हम उनसे छुटकारा पाने की सोचें ही क्यों?''

यह एक ऐसा सवाल है जो कई लोग बॉम्बे हाइकोर्ट के हाल के एक फैसले की रोशनी में पूछ रहे हैं, जिसमें नागपुर में घरों के बाहर आवारा कुत्तों को रोटी खिलाने वालों पर जुर्माना लगाया गया है. फैसले के खिलाफ, 30 अक्तूबर को मुंबई के शिवाजी पार्क में कुत्तों को खिलाने वाले करीब 1,500 लोगों ने मौन विरोध प्रदर्शन किया. उनका अहम ऐतराज यह है कि अदालत नागरिक निकायों को कुत्तों की आबादी के बेहतर नियंत्रण के लिए नसबंदी कार्यक्रमों में सुधार करने को कहने और ज्यादा सहिष्णु समाज बनाने के कदम उठाने की बजाए सारी जिम्मेदारी उन लोगों पर डाल रही है जो उन्हें खिलाते हैं. पशु विशेषज्ञों का कहना है कि डॉग फीडर्स को दोष नहीं देना चाहिए. मुंबई के द वेलफेयर ऑफ स्ट्रे डॉग्स के सीईओ अबोध अरास कहते हैं, ''पशु कल्याण संगठनों और पालिका अधिकारियों को नसबंदी के लिए कुत्तों को पकड़ने में मदद करके फीडर्स बड़ी सेवा कर रहे हैं. उन्हें दोष देने का कोई मतलब नहीं. अरास कहते हैं, ''कुत्तों को खाना खिलाना बंद कर दो' तो वे गायब हो जाएंगे? इसका उलटा हो सकता है. भूखे कुत्ते की तुलना में खाए-पिए कुत्ते के ज्यादा शांत रहने की संभावना है. मानव हितों और आवारा कुत्तों के कल्याण के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है.''

आवारा कुत्तों को रोटी खिलाने के खिलाफ खड़े लोगों का कहना है कि ऐसे कुत्ते ने किसी व्यक्ति या पालतू कुत्ते पर हमला किया तो किसी को तो उनकी जिम्मेदारी लेनी होगी. पुणे की एक गृहिणी और 35 वर्षीया सोनाली बत्रा कहती हैं, ''मैं पशु प्रेमी हूं पर मैं कुत्तों को बाहर नहीं खिलाती क्योंकि मैं उनकी जिम्मेदारी नहीं ले सकती.'' उन्हीं की तरह अधिकांश फीडर जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं. भोपाल की वकील वान्या झा आवारा कुत्तों को नियमित रोटी खिलाती हैं. वे कहती हैं, ''मैं कुत्ते के काटने पर इलाज में मदद करूंगी पर एक दायित्व के रूप में तब तक नहीं जब तक कि उस आवारा कुत्ते को मैंने अपना न लिया हो. और उस स्थिति में वह आवारा नहीं रहेगा. और वैसे भी आम तौर पर आवारा पशुओं को कोई एक आदमी या परिवार नहीं खिलाता.''

कानूनन, सभी को भूखे मर रहे जानवरों को खिलाने और देखभाल करने का अधिकार है. 2021 में दिल्ली हाइ कोर्ट ने कहा था कि ''...जानवरों को सम्मान और गरिमा के साथ जीने का अधिकार है'' अदालत ने आगे कहा कि ''यह आरडब्ल्यूए या नगर निगम और पुलिस जैसे प्रवर्तन अधिकारियों सहित सभी सरकारी अधिकारियों का कर्तव्य और जिम्मेदारी होगी कि वे समुदाय के जानवरों की देखभाल करने वालों को सभी सहायता प्रदान करें और पकका करें कि कोई उन्हें बाधा न पहुंचाने पाए.'' सुप्रीम कोर्ट ने भी 19 मई, 2022 के अपने आदेश में उस फैसले को बरकरार रखा. 2014 में शीर्ष अदालत ने यह भी माना था कि सामुदायिक जानवरों को खिलाने पर कोई प्रतिबंध या उन्हें हटाना या उनके साथ किसी भी तरह की क्रूरता को सम्मान से जीने के उनके अधिकार का सीधा उल्लंघन माना जाएगा. फिर भी फीडर अक्सर खुद को और जिन कुत्तों की वे देखभाल करते हैं, उन्हें परेशानी में पाते हैं.

अपने पीजी आवास के बाहर नौ कुत्तों को रोटी खिलाने वालीं, नोएडा में एमबीए की 28 वर्षीया छात्रा अदिति चतुर्वेदी कहती हैं, ''कुत्तों को खिलाने के लिए कुछ पुरुषों ने मुझे सार्वजनिक रूप से गाली दी और धमकी दी गई कि कुत्तों ने किसी को भी काटा तो वे मुझे पीटेंगे. पर मैं ऐसे गुंडों से डरने वाली नहीं. ये वही लोग हैं जो दूसरों को फटकारेंगे कि आप समाज को नुक्सान पहुंचा रहे हैं लेकिन खुद पटाखे फोड़ेंगे और सड़कों पर जहरीला कचरा डालेंगे जो कहीं ज्यादा नुक्सानदेह है.''

दिल्ली स्थित एनजीओ फ्रेंडिकोज के कार्यकारी सदस्य कार्तिक सत्यनारायण सरीखे आवारा कुत्तों के साथ काम करने वालों का कहना है कि अगर जिम्मेदारी केवल फीडरों पर डालनी है फिर तो समाधान नहीं मिल सकता. वे कहते हैं, ''अगर हमें पड़ोसी नापसंद है तो क्या हम उसके पास लगातार जाते रहेंगे और तब तक परेशान करते रहेंगे जब तक कि वह कहीं दूर नहीं चला जाता? हमें साथ रहने का हुनर सीखना होगा और इसके तरीके खोजने होंगे.'' सत्यनारायण आगे जोड़ते हैं, पहली बात तो वास्तव में विचार करने योग्य है. तथ्य यह है कि दुनिया में आवारा कुत्तों के नियंत्रण के जितने भी कार्यक्रम हैं, उनमें से सबसे सफल कार्यक्रमों में से एक भारत का भी है. ''नगरपालिकाएं और एनजीओ कुत्तों की नसबंदी करने का काम करते हैं, जिससे सड़कों पर आवारा कुत्तों की संख्या पहले से कम हो गई है. इन कुत्तों को भी टीका लगाया जाता है और पहले वाली जगह पर ही पहुंचा दिया जाता है.'' दिल्ली नगर निगम का एक ऐप है, जिस पर आप कुत्ते की नसबंदी, उसकी सर्जरी और रिलीज की तारीख भी ट्रैक कर सकते हैं. अकेले दक्षिणी दिल्ली में सालाना 40,000 कुत्तों की नसबंदी हो रही है. सत्यनारायण कहते हैं, ''गलियों के सारे कुत्तों को मारने का लक्ष्य नहीं है. बस पक्का करना है कि उनकी आबादी बेतहाशा न बढ़े.''

जनसंख्या विस्फोट का सच

2021 में पेट होमलेसनेस इंडेक्स के आंकड़ों में अनुमान लगाया गया है कि भारत में लगभग 6.2 करोड़ आवारा कुत्ते हैं. यह 100 लोगों पर लगभग पांच कुत्तों का अनुपात है जो अभी भी विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन के मानक आंकड़े—100 लोगों पर तीन कुत्ते—से ऊपर है. हालांकि आंकड़े बताते हैं कि संख्या बढ़ने के बजाय घटती जा रही है. इस साल लोकसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक, 2012 से 2019 तक उनकी आबादी में अखिल भारतीय स्तर पर 10 फीसद की गिरावट दर्ज की गई. उत्तर प्रदेश में तो इनकी आबादी 2012 में 42 लाख से घटकर 2019 में 21 लाख हो गई. सबसे ज्यादा वृद्धि कर्नाटक और उसके बाद राजस्थान में हुई. 2019 की कुत्तों की जनगणना में मणिपुर और दादरा, नगर हवेली दो ऐसे क्षेत्र थे जिन्हें आवारा कुत्तों से मुक्त क्षेत्र घोषित किया गया था. सत्यनारायण कहते हैं, ''कुत्ते सड़कों पर औसतन लगभग छह साल ही रह पाते हैं क्योंकि यहां सबसे मजबूत और समर्थवान ही अस्तित्व बचा पाता है. एक साथ पैदा हुए झुंड में से केवल एक या दो ही पिल्ले जीवित रहते हैं. तो यह एक गलत धारणा है कि हम आवारा कुत्तों के मामले में एक जनसंख्या विस्फोट की स्थिति का सामना कर रहे हैं.'' 

विशेषज्ञों की राय में, यह महत्वपूर्ण है कि जिन राज्यों में नसबंदी कार्यक्रम पर्याप्त नतीजे नहीं दे रहे हैं, वे बेहतर जनसंख्या नियंत्रण के लिए दूसरे प्रयास तेज करें. इसी लोकसभा रिपोर्ट के अनुसार, ओडिशा, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और केरल में संख्या में 1,00,000 से भी कम की वृद्धि हुई है. अरास कहते हैं, ''जहां भी पशु जन्म नियंत्रण नियम लागू किए गए हैं, वहां आपको आवारा कुत्तों के मनुष्यों पर हमला करने की समस्या देखने को नहीं मिलेगी. एक सुसंगत नसबंदी कार्यक्रम होना चाहिए जो पूरे समूह के मूल व्यवहार को बदल दे. ''पशु कल्याण पर केंद्र सरकार की सर्वोच्च संस्था, भारतीय पशु कल्याण बोर्ड ने सभी राज्यों को एक सक्रिय नसबंदी कार्यक्रम बनाकर नियमों का पालन करने के लिए कहा है.

पेटा इंडिया की पशुओं के साथ क्रूरता पर प्रतिक्रिया देने वाली परियोजनाओं के प्रबंधक मीत अशर कहते हैं, ''अगर कुत्तों की नसबंदी नहीं की जाती है, तो उनके बीच झगड़े हो सकते हैं, और कभी-कभार शायद कोई इनसान उस लड़ाई में फंस जाता है. प्रभावी नसबंदी कार्यक्रम ऐसी स्थितियों को रोकने में मदद करता है. बेहतर नसबंदी कार्यक्रम न होने से इलाके में नए कुत्तों के लिए जगह नहीं बन पाती. कुत्तों की प्राकृतिक मौत के जरिए उनकी संख्या घटती है.'' नसबंदी किसी झुंड में एक कुत्ते के वर्चस्व वाली मानसिकता को खत्म करने में मदद करती है क्योंकि वे हॉर्मोन जो कुत्ते को मादा या फिर इलाके पर कब्जे के लिए प्रतिस्पर्धा करने को प्रेरित करते हैं, वे अब मौजूद नहीं होते. अशर कहते हैं, ''नसबंदी, टीकाकरण, अच्छा भोजन और देखभाल पाने वाले सामुदायिक कुत्ते भी बिना नसबंदी, बिना टीका वाले और अजनबी कुत्तों को अपने क्षेत्र में घुसने से रोकते हैं. यह प्रक्रिया आस-पड़ोस में सामुदायिक कुत्तों की आबादी को स्थिर करती है.''

लेकिन गली के कुत्तों की नसबंदी करना हमेशा आसान काम नहीं होता. कई नगरपालिकाओं के लिए उन्हें पकड़ना एक चुनौती बना हुआ है क्योंकि कुत्ते भाग जाते हैं या अजनबियों पर हमला करते हैं. भोपाल नगरपालिका सीमा में कुत्तों की नसबंदी करने वाली एजेंसी नवोदय के पशु चिकित्सक डॉ. उमेश भास्कर कहते हैं, ''कभी-कभी कुत्ता प्रेमी जानवरों को नसबंदी के लिए ले जाने का विरोध करते हैं. वे जानना चाहते हैं कि कुत्तों को कहां ले जाया जा रहा है और वे कब वापस आएंगे. लोगों को यह बताने के लिए अधिक जागरूकता की जरूरत है कि आवारा कुत्तों के बेहतर भविष्य के लिए उनकी नसबंदी सबसे अच्छा उपाय है.'' पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ता) नियम, 2001 में कहा गया है कि नसबंदी के बाद कुत्तों को उसी जगह छोड़ा जाना चाहिए, जहां से उन्हें लाया गया था. लेकिन जब कुत्तों को वापस करने का समय आया, कुछ नगरपालिकाओं को खतरों का सामना करना पड़ा. नाम न छापने की शर्त पर दिल्ली नगरपालिका के एक सदस्य बताते हैं, ''हमें कुत्तों को इकट्ठा करने के लिए और कभी-कभी हमें उन्हें रिहा करने के लिए लड़ना पड़ता है क्योंकि हर कोई उन्हें वापस नहीं चाहता. देश गली के कुत्तों को लेकर बंटा हुआ है और प्रेम-नफरत का यह विभाजन अक्सर हमारे काम के रास्ते में आ जाता है.''

कुछ शहरों में नागरिक निकायों ने महसूस किया है कि फीडरों के साथ काम करने से बेहतर नतीजे मिलते हैं. मुंबई एक ऐसी मिसाल है जहां फीडर कुत्तों को पकड़ने में मदद करते हैं और यह पक्का करते हैं कि उनकी देखरेख में सभी कुत्तों का टीकाकरण और नसबंदी का काम पूरा हो. बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) ने बदले में, 2022-2023 में अपने नसबंदी बजट के लिए 4 करोड़ रुपए अलग रखे हैं और फीडरों का कहना है कि प्रक्रिया हमेशा सुचारु रूप से पूरी होती रही है. बीएमसी में पशु चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग के महाप्रबंधक डॉ. कलीमपाशा पठान कहते हैं, ''हर कोई आवारा कुत्तों को उपद्रव के रूप में देखता है और चाहता है कि उन्हें उनके परिसर से दूर ले जाया जाए. सह-अस्तित्व बेहद अहम है; कुत्ते हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं. आवारा कुत्तों की आबादी को एक ऐसे आंकड़े तक ले जाने की जरूरत है, जिसे क्षेत्र की मानव आबादी अच्छी तरह से स्वीकार ले, ताकि किसी भी संघर्ष को टाला जा सके. आवारा कुत्ते अगर स्वस्थ और साफ-सुथरे रहते हैं और बीमारियों से दूर रहते हैं तो संघर्ष और समस्याएं कम हो जाती हैं.'' सितंबर तक नगर निकाय ने 3,86,347 कुत्तों की नसबंदी की है और एक वार्षिक रेबीज टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करने की योजना बना रहा है, जिसमें एक वर्ष में 1,00,000 टीकाकरण की उम्मीद है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनियाभर में रेबीज से हर साल लगभग 20,000 मौतें होती हैं जिनमें से 36 प्रतिशत मौतें भारत में होती हैं. और भारत में रेबीज के लगभग सभी मामले कुत्तों के काटने से ही सामने आते हैं. देश 2030 तक रेबीज के मामले पूरी तरह से समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है और नसबंदी के लिए लाए गए सभी आवारा कुत्तों को इसका टीका अनिवार्य रूप से दिया जाता है.

आवारा कुत्तों के साथ जीना

इस साल लोकसभा में केंद्रीय मत्स्य पालन और पशुपालन मंत्री के पेश किए आंकड़ों से पता चलता है कि भारत भर में आवारा कुत्तों के काटने की संख्या 2019 में 73 लाख से घटकर 2021 में 17 लाख हो गई है. और यह नसबंदी कराए गए कुत्तों के भी काटने की घटनाओं से इनकार नहीं करता. यानी यह मानना गलत है कि जिन कुत्तों की नसबंदी हो गई है, वे काटेंगे ही नहीं.

विशेषज्ञों का कहना है कि कुत्ता किसी खतरे को भांपने पर अपनी रक्षा में काटता या हमला करता है. और नसबंदी कराया गया कुत्ता बिना उकसावे के हमला नहीं करेगा, लेकिन खतरे की स्थिति में बचाव में हमला करेगा. जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम अधिनियम, 1960, ऐसे कृत्यों को परिभाषित करता है जो जानवरों के प्रति क्रूरता की श्रेणी में आते हैं और उन्हें दंडनीय बनाते हैं. इन कृत्यों में ''किसी भी जानवर को पीटना, लात मारना, हमला करना या प्रताड़ित करना ताकि उन्हें अनावश्यक दर्द या पीड़ा हो'' शामिल हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक, आवारा कुत्तों को नुक्सान पहुंचाने पर आमादा लोगों की संख्या कम करने के तरीकों में से एक यह है कि हम देखें कि कुत्ते हमारे लिए कितने उपयोगी हैं. कई लोगों के लिए मूल्यवान सहयोगी होने के अलावा, कुत्ते रात में रिक्त स्थानों को सुरक्षित रखने में भी मदद करते हैं. वे एक जैविक सफाईकर्ता हैं जो हमें कचरे, चूहों और दूसरे जानवरों से बचाते हैं.

दिल्ली के कालकाजी एक्सटेंशन क्षेत्र में 45 कुत्तों की देखभाल करने वाले सुनील कुट्टम सह-अस्तित्व की अच्छी मिसाल हैं. सभी कुत्तों का टीकाकरण किया जाता है और संबंधित आरडब्ल्यूए के पास उनके प्रमाण पत्र होते हैं. कुट्टम और उनकी टीम नई नौकरानियों, ड्राइवरों और कूरियर वालों की कुत्तों से पहचान कराने में मदद करती है.यह जानना भी जरूरी है कि आवारा कुत्तों के काटने की संख्या उतनी नहीं जितनी की मानी जा रही है और न ही आवारा कुत्ते ज्यादा आक्रामक हो रहे हैं. एर्णाकुलम, केरल के सरकारी अस्पताल के अनुसार, 2015 में छह महीने की अवधि में कुत्ते काटने के 75.6 प्रतिशत मामले पालतू कुत्तों के आए थे न कि आवारा कुत्तों के. विकसित देशों में ऐसे कुत्तों की आबादी को नसबंदी कार्यक्रमों से बल्कि उन्हें आश्रय देकर भी नियंत्रित किया जाता है. नोएडा प्राधिकरण अमेरिका से कुछ सीख ले रहा है. नोएडा प्राधिकरण के ओएसडी इंदु प्रकाश सिंह ने इंडिया टुडे से कहा, ''आरडब्ल्यूए की मदद से शहर में कुत्तों के लिए 18 आश्रय गृह बनाने की योजना बन रही है. ये आश्रय गृह आरडब्ल्यूए ही चलाएंगे और आवारा कुत्तों को रहने और बीमार होने पर इलाज की सुविधा प्रदान करेंगे. हम भी इसमें मदद करेंगे. सेक्टर 135 में डॉग पार्क भी बनाया जा रहा है.'' कुत्तों की अहमियत और उनके साथ उचित व्यवहार को लेकर जागरूकता, उनकी आक्रामकता को नियंत्रित करने के लिए नसबंदी और तय स्थानों पर उन्हें खिलाना, ऐसे उपाय इनसान और कुत्तों के बीच स्वस्थ सह-अस्तित्व की बुनियाद बन सकते हैं. 

आवारा कुत्तों के इलाके में अगर फंस जाएं तो आखिर करें क्या

उन पर न तो कुछ फेंकें, न उन्हें दौड़ाएं या न जोर की आवाज के साथ और न ही हाथ ऊपर उठाकर उन्हें डराने की कोशिश करें. इससे वे चौंक और घबरा करके आक्रामक हो सकते हैं. अपने बच्चों को भी यह बात अच्छी तरह से समझाएं कि आवारा कुत्तों के साथ दूरी बनाकर चलें

जब तक उकसाएं न, कुत्ते हमला नहीं करते फिर भी अगर आप गुर्राते कुत्ते के सामने पड़ जाएं तो भागें नहीं. तनकर खड़े रहें, उसे महसूस कराएं कि आप डर नहीं रहे और फिर धीरे-धीरे वहां से हटें. जरूरत पड़े तो किसी को मदद के लिए बुलाएं. ज्यादा लोगों के दिखने पर कुत्ते अमूमन खिसक लेते हैं

पुचकारे जाने के लिए नजदीक आने पर कुत्ते के किसी अंग को न छेड़ें खासकर पूंछ को

दुम हिलाते हुए पास आते किसी कुत्ते के साथ आप अगर सहज महसूस नहीं करते तो उसे डराने या धमकाने की बजाए बस धीरे-धीरे चलते जाएं. कुत्ते अपने इलाके के बाहर पीछा नहीं करेंगे

इसके बाद भी अगर आपको डर लगता है तो कुत्तों के इलाके से गुजरने के लिए सोसाइटी के गार्डों या कुत्तों को रोटी खिलाने वालों से मदद मांगें. इलाके में कुत्ते किसी के हिले-मिले होते ही हैं

—साथ में, सोनाली आचार्जी, मनीष दीक्षित, राहुल नरोन्हा और रोहित परिहार

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