दिमाग पर छा जाता है कोहरा
समझने-बूझने की कमजोर ताकत और स्वभाव में उतार-चढ़ाव से लेकर न्यूरोलॉजिकल क्षति तक, दिमाग की सेहत पर कोरोना वायरस के प्रभाव को हल्के में नहीं लिया जा सकता.

सोनाली आचार्जी
दरअसल, संक्रमण के झटके के बाद कोविड रिपोर्ट निगेटिव आने पर लग सकता है कि यह जश्न मनाने का मौका है, लेकिन कई लोगों के लिए यह एक और मुसीबत की शुरुआत होती है. आभा मलिक की रिपोर्ट नेगेटिव आने के दो महीने बाद भी उनकी जिंदगी और कामकाज प्रभावित हो रहे हैं. बेंगलूरू में आइटी रिसर्च इंटर्न 28 वर्षीया मलिक कहती हैं, ''मैंने अपनी कलम रख दी और दो मिनट बाद ही मुझे याद नहीं कि मैंने उसे कहां रखा है.
जब दूसरे लोग बोल रहे होते हैं तो मेरे लिए शब्दों पर ध्यान देना मुश्किल हो जाता है. ऐसा लगता है कि मेरा दिमाग उलझ गया है.’’ उनके सहकर्मी मजाक में उन्हें ''नूडल ब्रेन’’ कहते हैं, वहीं उनके डॉक्टर का कहना है कि वे मेंटल फॉगिनेस (मानसिक अस्पष्टता) से पीडि़त हैं—यह दशा अक्सर कीमोथेरेपी लेने वाले कैंसर रोगियों से जुड़ी होती है (जिसे आम तौर पर कीमोब्रेन) कहते हैं, जिसमें भावनाएं और नींद के अलावा ध्यान और स्मृति प्रभावित होती है.
एम्स, दिल्ली में न्यूरोलॉजी विभाग की अध्यक्ष और न्यूरोसाइंसेज सेंटर की प्रमुख डॉ. एम.वी. पद्मा श्रीवास्तव का कहना है, ''जब महामारी शुरू हुई तो हमें लगता था कि इसके लक्षण मुख्यत: फेफड़ों में ही रहेंगे. अब यह बिल्कुल साफ हो गया है कि यह वायरस दिमाग सहित किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है. हमने भारत में ब्रेन फॉग वाले कई मरीजों को देखा है.’’
जर्नल जामा नेटवर्क ओपन में अक्तूबर 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, कोविड से पीड़ित चार में से लगभग एक व्यक्ति मेमोरी रिकॉल और मेमोरी एन्कोडिंग के मामले में समस्याओं से पीड़ित होता है, जबकि कइयों में समझने-बूझने और बोलने की क्षमता के प्रभावित होने के भी लक्षण होते हैं. डॉ. श्रीवास्तव कहती हैं, ''यह हालत अल्पकालिक हो सकती है लेकिन यह जीवन की गुणवत्ता को नुक्सान पहुंचा सकती है.’’
मार्च 2022 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की ओर से किया गया और नेचर जर्नल में प्रकाशित 1,00,000 लोगों के एक अध्ययन से पता चलता है कि हल्के कोविड के साढ़े चार महीने बाद रोगियों के मस्तिष्क का आकार औसतन 0.2-2 फीसद कम हो गया था.
जो लोग मध्यम से लेकर गंभीर रूप से कोविड के शिकार हुए थे, उनका मामला और भी बदतर है—ईक्लिनिकलमेडिसिन में प्रकाशित एनआइएचआर कैम्ब्रिज बायोमेडिकल रिसर्च सेंटर के अप्रैल 2022 के अध्ययन का निष्कर्ष है कि ऐसे लोगों का दिमाग इस कदर क्षतिग्रस्त हो सकता है कि उनकी उम्र 20 साल ज्यादा हो गई हो. इसमें 66,000 रोगियों को शामिल किया गया. इस अध्ययन से पता चलता है कि कॉग्निटिव या संज्ञानात्मक नुक्सान की भयावहता 10 आइक्यू अंक खोने के बराबर है.
इसके अलावा, जामा में प्रकाशित अप्रैल, 2021 के एक अध्ययन में पाया गया है कि जिन लोगों को कोविड था, उनमें समान उम्र, लिंग और जातीयता के अन्य लोगों की तुलना में स्ट्रोक से पीड़ित होने का जोखिम दोगुना था. डॉ. श्रीवास्तव कहती हैं, ''कोविड की वजह से होने वाली आंतरिक सूजन से रक्त के थक्के बन सकते हैं जो मस्तिष्क के लिए उतने ही हानिकारक होते हैं जितने कि किसी अन्य अंग के लिए. यहां तक कि एक मामूली दिल की धड़कन को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. दिल और दिमाग आपस में जुड़े हुए हैं और एक में परेशानी के संकेत दूसरे में परेशानी का संकेत दे सकते हैं.’’
डॉ. श्रीवास्तव का कहना है कि स्वास्थ्य लाभ के चरण में ''सामान्य होने की’’ जल्दबाजी और जागरूकता की कमी तथा एहतियाती जांच में कोताही से दिमाग की सेहत खराब हो सकती है. ज्यादातर डॉक्टर इससे सहमत हैं कि दिमाग की समस्याओं के अंदेशे का मतलब यह नहीं कि कुछ न कुछ होकर रहेगा.
दिल्ली में अपोलो हॉस्पिटल्स के सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. पी.एन. रंजन का कहना है, ''घबराने से कोई मुश्किल हल नहीं होती. तनाव बढ़ने से आपकी हालत बिगड़ सकती है. जोखिम को समझने और उसे दूर करने के लिए कदम उठाकर दिमाग की सेहत को बचाने और दुरुस्त करने में मदद मिल सकती है.’’ दो साल पहले के उलट आज इस बारे में पर्याप्त जानकारी है कि कोविड दिमाग के साथ क्या करता है, और बचाव तथा इलाज की दिशा में यही पहला कदम है.
कोविड दिमाग को संक्रमित करता है?
महामारी के शुरुआती दिनों में कुछ लोगों ने अनुमान लगाया था कि यह वायरस मस्तिष्क में प्रवेश करके समझने-बूझने की प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार कोशिकाओं न्यूरॉन को प्रभावित कर रहा होगा. लेकिन हाल के अध्ययनों से जाहिर होता है कि यह वायरस ज्यादा से ज्यादा ब्लड-ब्रेन बैरियर (बाधा) तक ही जा सकता है—यह न्यूरॉन पर सीधा हमला नहीं करता. अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के जुलाई 2022 के अध्ययन में इस वायरस के मस्तिष्क में सीधे प्रवेश करने के कोई सबूत नहीं मिले.
मेदांता—द मेडिसिटी, गुरुग्राम के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेज में न्यूरोलॉजी की एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. ज्योति सहगल का कहना है, ''सूजन, रक्त के बहाव में कमी या रक्त के साथ घूम रहे थक्के को आम तौर पर दिमाग को नुक्सान पहुंचाने वाले कारकों के रूप में देखा जाता है.’’ कैलिफोर्निया यूनिविर्सिटी के न्यूरोलॉजिस्ट की ओर से जनवरी, 2022 में प्रकाशित कोविड से मरने वाले लोगों के एक अध्ययन में पाया गया कि 66 फीसद मामलों में वायरस ने मस्तिष्क की कोशिकाओं को प्रभावित किया था.
जिन्हें एस्ट्रोसाइट्स के रूप में जाना जाता है. यह थकान, अवसाद और ब्रेन फॉग जैसे लक्षणों की वजह हो सकता है. यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन ने दूसरा सबूत पेश किया कि कोविड अंग में रक्त प्रवाह को रोककर मस्तिष्क को प्रभावित करता है. ऐसा तब होता है जब पेरिसाइट्स नामक रिसेप्टर्स क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे टिश्यू सिकुड़ जाते हैं. कम रक्त प्रवाह न्यूरॉन्स के कामकाज को खराब कर सकता है और उन्हें मार भी सकता है.
कोविड के दिमाग पर असर डालने का एक तीसरे रास्ते के भी सबूत सामने आए हैं. अमेरिका स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोलॉजिकल डिसआर्डर ऐंड स्ट्रोक के शोध से पता चलता है कि सूजन की वजह से प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला होता है और यहां तक कि मस्तिष्क की कोशिकाओं को भी नुक्सान पहुंचता है. ऐंटीबॉडी—कोविड के जवाब में प्रतिरक्षा प्रणाली की ओर से उत्पादित प्रोटीन—को ब्लड-ब्रेन बाधा बनाने वाली कोशिकाओं को नुक्सान पहुंचाते देखा गया है.
डॉ. सहगल कहती हैं, ''इस अवरोध को नुन्न्सान ही वजह से मरीजों में रक्तस्राव हो सकता है और थक्के जम सकते हैं, जिससे स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. कोविड ने आपके शरीर और मस्तिष्क को कैसे प्रभावित किया है, इसका पता लगाने के बाद ही इलाज का तरीका तय होगा. अगर किसी को रन्न्त का थन्न्का जम जाता है या रन्न्त प्रवाह में कमी आती है, तो यह स्थिति उस समय की तुलना में अधिक गंभीर होती है जब आपको ब्रेन फॉग के लक्षण होते हैं लेकिन अंग को कोई शारीरिक क्षति नहीं होती है.’’
सुरक्षित कैसे रहें
टीके से ब्रेन फॉग का अंदेशा कम हो जाता है. नवंबर, 2021 में ब्रिटेन के 12 लाख नागरिकों के खुद रिपोर्ट किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि दो खुराक ने लंबे-कोविड के जोखिम को आधा कर दिया. जनवरी, 2022 के मध्य से पहले प्रकाशित आठ अध्ययनों का विश्लेषण करते हुए ब्रिटेन की हेल्थ सेक्यूरिटी एजेंसी ने पाया कि उनमें से छह ने दिखाया कि टीकों ने कोविड के बाद की जटिलताओं को कम किया है. डॉ. सहगल कहती हैं, ''यह अतिरिक्त सुरक्षा है और सूजन को सीमित करता है, जो बदले में स्थायी जटिलताओं को कम करता है.’’
कई डॉक्टर टीका लगवा चुके उन लोगों को भी बीमारी के दौरान बुनियादी ब्लड टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं जो पहले ही कई बीमारियों से ग्रस्त है या बुजुर्ग हैं, उन्हें अभी भी न्यूरोलॉजिकल जटिलताओं का खतरा हो सकता है. बीमारी के दौरान टीके की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. डॉ. श्रीवास्तव कहती हैं, ''मैं चार परीक्षणों का सुझाव देती हूं—इंटरल्यूकिन 6 या आइएल -6, डी-डाइमर, कंप्लीट ब्लड काउंट और सी-रिएक्टिव प्रोटीन.’’
ये टेस्ट डॉक्टरों को आगे के परीक्षणों की जरूरत का पता लगाने में मदद कर सकते हैं. डॉ. रंजन कहते हैं, ''मैंने अपने रोगियों में देखा है कि आइएल-6 (सूजन से जुड़ा एक रसायन) की निगरानी करने से कोविड के बाद की मस्तिष्क की समस्याओं का अंदेशा कम हो सकता है.’’
जर्मन शोधकर्ताओं की ओर से पबमेड में प्रकाशित 8,077 लोगों के जून, 2022 के एक अध्ययन में गंभीर लंबे-कोविड के लक्षणों वाले लोगों में आइएल-6 का स्तर ज्यादा पाया गया. डॉ. रंजन कहते हैं, ''हमें इस बारे में और ज्यादा शोध की जरूरत है कि क्या निरंतर आइएल-6 वृद्धि से ब्रेन फॉग, अवसाद और अन्य मस्तिष्क की दुर्बलताएं होती हैं, पर इतना तय है कि कोविड होने के बाद निगरानी करने के लिए यह एक सहायक पैरामीटर है.’’
डॉ. सहगल के मुताबिक, कोविड के बाद के स्वास्थ्य की क्लिनिकल जांच जरूरी है. लक्षणों और ब्लड बायोमार्कर के आधार पर, डॉक्टर ब्रेन इमेजिंग, या यहां तक कि सेरीब्रोस्पाइनल (मस्तिष्कमेरु) द्रव परीक्षण की सलाह दे सकते हैं, जिसमें ब्रेन क्रलुइड या द्रव में असामान्यताओं की जांच की खातिर एक सुई डाली जाती है. डॉ. सहगल का कहना है, ''आपकी समस्याएं मामूली हैं या किसी बड़ी बात का संकेत, ये सब कई कारकों से निर्धारित होते हैं—उम्र, पारिवारिक इतिहास, स्वास्थ्य की स्थिति, कोविड का प्रकार, देखभाल और लक्षण.’’
शोध और डॉक्टर ब्रेन फॉग को ठीक करने के लिए आराम, पोषण और मानसिक स्वास्थ्य सहायता पर जोर देते हैं. डॉ. ओझा कहते हैं, ''ठीक होने के लिए रात में 8 से 10 घंटे की नींद जरूरी है.’’ वैसे 500 रोगियों के 2021 पबमेड अध्ययन में पाया गया कि ब्रेन फॉग नींद की गुणवत्ता और लंबाई को बुरी तरह प्रभावित करता है. इससे निबटने के लिए डॉक्टर दिनचर्या दुरुस्त करने पर जोर देते हैं.
स्वास्थ्य लाभ के दौरान मस्तिष्क को पोषक तत्वों की जरूरत होती है. डॉक्टर विटामिन बी12, विटामिन ई और ऐंटीऑक्सीडेंट से भरपूर आहार की सलाह देते हैं. नट्स, डेयरी उत्पादों और मछली का सेवन, जो सेरोटोनिन से भरपूर होते हैं, कमजोरी को दूर करने, कोशिकाओं की मरम्मत करने तथा मूड में सुधार करने में मदद कर सकते हैं. डॉ. रंजन कहते हैं, ''अगर आपके लक्षण हल्के ब्रेन फॉग का संकेत देते हैं और जांच इसकी पुष्टि करती हैं, तो मैं आमतौर पर जीवनशैली में बदलाव की सलाह देता हूं, जिसमें बेहतर पोषण और उचित आराम शामिल हैं.’’
डॉक्टर मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की भी सलाह देते हैं. दिल्ली में वोहरा न्यूरो साइकियाट्री सेंटर के संस्थापक और मनोचिकित्सक डॉ. संदीप वोहरा कहते हैं, ''इसका मतलब यह नहीं कि आपको चिकित्सा के लिए जाना होगा या दवा लेनी होगी.’’ कोविड के बाद के अवसाद से पीडि़त कई रोगियों का इलाज करने के बाद डॉ. वोहरा कहते हैं कि कभी-कभी हालात पहले से मौजूद थे और बीमारी ने उन्हें बिगाड़ दिया.
वे कहते हैं, ''अगर सूजन ज्यादा हो और माहौल में ज्यादा तनाव हो तो वे बीमारी की वजह से भी हो सकते हैं.’’ उनका कहना है कि इलाज का पहला चरण घर से ही शुरू होता है. वे कहते हैं, ''करीबी दोस्तों और परिवार से बात करके या अपनी समस्याओं को लिखकर शुरुआत करें. लेकिन अगर वह कारगर नहीं है तो डॉक्टर की सलाह लेने की कोशिश करें.’’
डॉक्टरों का कहना है कि इस डर के साथ जीने के बजाए कि आपका दिमाग ठीक से काम नहीं कर रहा है, सलाह के लिए आना सबसे अच्छा है. डॉ. सहगल कहती हैं, ''कई लोग समय पर जांच को नहीं आते. इंटरनेट के भरोसे अपना इलाज खुद करना हानिकारक है क्योंकि कोविड का मस्तिष्क के साथ पेचीदा संबंध है. आहार, व्यायाम या दवा शुरू करने से पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए.’’
''अब यह साफ हो चुका है कि यह वायरस मस्तिष्क समेत किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है. हमने ब्रेन फॉग वाले कई मरीजों को देखा है’’
डॉ. एम.वी. पद्मा श्रीवास्तव, एम्स, दिल्ली में न्यूरोलॉजी की प्रमुख और न्यूरोसाइंसेज सेंटर की चीफ
''जोखिम को समझने और उसे दूर करने के कदम उठाकर ही मस्तिष्क की सेहत को बचाने और उसमें सुधार करने में मदद मिल सकती है’’
डॉ. पी.एन. रंजन, सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट, अपोलो हॉस्पिटल, दिल्ली
''इलाज का पहला चरण घर से ही शुरू होता है... अगर इससे लाभ नहीं होता तो अपनी जरूरत के अनुसार इलाज की योजना का खाका खींचने के लिए डॉक्टर से संपर्क करें’’
डॉ. संदीप वोहरा, मनोचिकित्सक और वोहरा न्यूरो साइकियाट्री सेंटर, दिल्ली के संस्थापक.