कोविड-19ः तो क्या चौथी लहर चल पड़ी है?

कोविड संक्रमण की तीसरी लहर भले ही अपेक्षाकृत कम असर छोड़कर विदा हो गई हो लेकिन डॉक्टरों की चेतावनी है कि थोड़ी-सी भी ढील देना बला को न्यौता देने जैसा होगा. विशेषज्ञों का तो साफ कहना है कि चौथी लहर का आना तय है.

उधर फिर जानलेवा हांगकांग के एक अस्पताल में वेंटिलेटर पर चल रहे मरीजों के आसपास रखे कोविड के शिकार लोगों के बॉडीबैग
उधर फिर जानलेवा हांगकांग के एक अस्पताल में वेंटिलेटर पर चल रहे मरीजों के आसपास रखे कोविड के शिकार लोगों के बॉडीबैग

सोनाली आचार्जी

भारत में 20 मार्च को कोविड के 1,761 नए मामले दर्ज किए गए. यह बीते दो साल में एक दिन का सबसे कम आंकड़ा था. वाकई पिछले पांच हफ्तों के दौरान देश में महामारी में इतनी भारी गिरावट आई मालूम देती है जितनी मार्च 2020 के बाद कभी नहीं आई. 15 मार्च को खत्म सप्ताह में 3,536 औसत नए मामले दर्ज हुए और इसके साथ भारत ने वैश्विक मामलों में महज 0.21 फीसद का योगदान दिया, जो हौसला बढ़ाने वाला रिकॉर्ड निचला स्तर था.

मगर दुनिया भर में मामलों में गिरावट आने का रुझान उलटने लगा है. 20 मार्च को खत्म हुए सप्ताह में कोविड के मामले उससे पिछले सप्ताह के मुकाबले 8 फीसद बढ़े. 17 मार्च को दक्षिण कोरिया ने हर 20 में से एक व्यक्ति के पॉजिटिव निकलने के साथ रिकॉर्ड 6,20,000 नए मामले बताए. किसी भी दे

क्या चौथी लहर चल पड़ी है

श में यह अब तक का एक दिन का दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा था. बीते हफ्ते जर्मनी में 15 लाख, वियतनाम में 12 लाख, फ्रांस में 5,20,000 और ब्रिटेन में 4,80,000 नए मामले आए.

दुनिया भर में इस बढ़ोतरी को देखकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को 21 मार्च को इस कड़वी हकीकत पर जोर देना पड़ा कि महामारी अभी खत्म नहीं हुई है. पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआइ) के प्रेसिडेंट के. श्रीनाथ रेड्डी कहते हैं, ''तीसरी लहर भारत में भले खत्म हो गई हो, पर आप न तो बेपरवाह होकर बैठ सकते हैं और न भावी लहरों की संभावना से इनकार कर सकते है.’’

 

आइआइटी कानपुर के मशहूर मॉडल ने 22 जून तक भारत में चौथी लहर आने की भविष्यवाणी की है, वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि तीन बड़े कारकों से तय होगा कि अगली लहर देश में कब आएगी और कितनी असरदार होगी. पहला यह कि महामारी से उपजी थकान को हम कैसे संभालते हैं, फिर कोविड के नए रूपों का उभार और आखिर में अतिसंवेदनशील लोगों को मिलने वाली वैक्सीन की बूस्टर खुराक.

महामारी की थकान से मुकाबला
चीन इस बात की दोटूक मिसाल है कि महामारी को रोकने के लिए कठोर लॉकडाउन ही काफी नहीं है. चीन ने कोविड को लेकर रत्ती भर भी रियायत न बरतने की नीति के साथ दुनिया का सबसे कठोर लॉकडाउन और यात्रा पर पाबंदियां लगाईं, जिसकी बदौलत वह ज्यादातार वायरस मुक्त बना रहा. मगर जनवरी में देश ने ज्यों ही पाबंदियां हटानी शुरू कीं, संक्रमणों की लहर आ गई और लोग फिर मरने लगे. पिछले साल 25 जनवरी, 2021 के बाद चीन ने 19 मार्च को कोविड से पहली और उसके बाद 21 मार्च को दूसरी मौत दर्ज की.

इसके मुकाबले पूरे 2021 में जब दूसरे देशों से जानलेवा डेल्टा लहर के चलते हजारों मौतों की खबरें आ रही थीं, चीन में कोविड से जुड़ी महज दो मौत हुई थीं. हांगकांग में 17 मार्च को एक ही दिन में 20,000 नए मामले आए और देखते ही देखते मुर्दाघरों में जगह कम पड़ने और जहाजों पर माल लादने वाले ठंडे कंटेनरों में लाशें रखने की खबरें आने लगीं. शहर में मौजूदा लहर इतनी प्रचंड थी कि हांगकांग के कुल 10 लाख मामलों में से 97 फीसद अकेले मार्च में दर्ज हुए और वहां कोविड से हुई कुल 5,401 मौतों में से 96 फीसद 9 फरवरी के बाद हुईं.

विशेषज्ञों को लगता है कि यह महामारी की बढ़ती थकान की वजह से है, जब लॉकडाउन के प्रति सार्वजनिक प्रतिबद्धता और कोविड के नियमों में ढिलाई बरती जाने लगती है. मुंबई के फोर्टिस मुलुंड अस्पताल में क्रिटिकल केयर के डायरेक्टर और महाराष्ट्र की कोविड-19 टास्क फोर्स के सदस्य डॉ. राहुल पंडित कहते हैं, ''आप बस इतने ही वक्त लोगों को घरों में बंद रख सकते हैं.

इसके बाद लहरों का असर कम रखने के लिए आपको कोविड के नियम-कायदों के प्रति लोगों में जागरूकता, बड़े पैमाने पर टेस्टिंग, टीके लगाने और इलाज की सुविधाओं की जरूरत होती है.’’ भारत में लोग बड़े पैमाने पर कोविड-19 वायरस के संपर्क में आए और जुलाई 2021 में हुए आखिरी राष्ट्रीय सीरो-सर्वे से संकेत मिला कि दो-तिहाई लोग कोविड-19 के खिलाफ ऐंटीबॉडीज से लैस हैं. इससे स्वाभाविक ही उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हुई और उसके साथ टीके लगने से तीसरी लहर का असर कम रखने में मदद मिली.

अलबत्ता विशेषज्ञों का कहना है कि यह रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यों-ज्यों कमजोर पड़ने लगती है और कोविड रूप बदलकर ज्यादा संक्रामक हो जाता है, तो ऐसे में चौथी लहर को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता. मुंबई की आंतरिक चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. फरह इंगले कहती हैं, ''वायरस टीके या संक्रमण से हासिल रोग प्रतिरोधक क्षमता को पछाड़ने के तरीके खोज रहा है. यह बुजुर्गों या दूसरी बीमारियों से ग्रस्त रोगियों सरीखे कमजोर लोगों के लिए खास तौर पर खतरनाक है.’’ यूरोप के कई देशों में फिलहाल यही स्थिति है, जो कहीं ज्यादा संक्रामक वैरिएंट (उप-रूप)—बीए.2—से उत्पन्न ओमिक्रॉन की दूसरी लहर से जूझ रहे हैं.

बीए.2: वायरस का गुप्त रूप
भारत में तीसरी लहर इस साल ओमिक्रॉन के पहले रूप बीए.1 से पैदा हुई थी. अब दुनिया भर में तेजी से इसकी जगह बीए.2 लेता जा रहा है. बीए.2 वैरिएंट जीनोमिक डेटा की सबसे बड़ी डायरेक्टरी जीआइएसएआइडी को अब तक बताए गए तमाम सीक्वेंस या अनुक्रमणों में 90 फीसद से ज्यादा के लिए जिम्मेदार है.

बीए.2 का तेज उभार डेनमार्क में देखा जा सकता है, जहां इसका फैलाव दिसंबर के आखिरी हफ्ते के 20 फीसद से छलांग लगाकर जनवरी के तीसरे हफ्ते में 66 फीसद पर पहुंच गया. प्री-प्रिंट सर्वर मेडआरएक्सआइवी पर जनवरी 2022 में छपे एक अध्ययन ने जनवरी 2021 और जनवरी 2022 के बीच डेनमार्क के दो रूपों की पड़ताल करने के बाद बीए.2 को 10 फीसद ज्यादा संक्रामक पाया.

हालांकि डब्ल्यूएचओ का कहना है कि ओमिक्रॉन के दोनों वैरिएंट की संक्रामकता का यह फर्क मामूली है और बीए.1 तथा डेल्टा (जिसे जनवरी 2022 में फ्रांस के एक अध्ययन ने 105 फीसद ज्यादा संक्रामक पाया था) के बीच फर्क जितना अहम नहीं है. डब्ल्यूएचओ ने यह भी कहा कि बीए.1 का संक्रमण होने के बाद बीए.2 से फिर संक्रमण विरले ही हुआ है, हालांकि ऐसे मामले दर्ज हुए हैं. दिल्ली की संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. अंकिता बैद्य कहती हैं, ''बीए.1 से दोबारा संक्रमण के खिलाफ मजबूत प्रतिरक्षा हासिल होनी चाहिए. मगर हमें पता नहीं कि यह अन्य रूपों के मामले में टिकेगी या नहीं या कितने लंबे समय तक टिकेगी.’’

अलबत्ता बीए.2 में बीए.1 के कई म्यूटेशन साझा हैं. मेडआरवीआइएक्स पर 13 मार्च, 2022 को प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, दोनों वैरिएंट में 28 म्यूटेशन अलग-अलग हैं. इसके अलावा बीए.2 के स्पाइक प्रोटीन में आठ नए म्यूटेशन हैं. बीए.2 के स्पाइक प्रोटीन के इन म्यूटेशनों के कारण रैपिड पीसीआर टेस्ट में इनका पकड़ में आना मुश्किल हो जाता है. इसीलिए इन्हें 'गुप्त या चोरी-छिपा रूप’ नाम दिया गया है. 

बीए.1 की तरह बीए.2 फेफड़ों को उस तरह संक्रमित नहीं करता जैसे डेल्टा करता था, फिर भी इसकी जान लेने की मारकता को खारिज नहीं किया जा सकता, खासकर उन लोगों की जान, जो बुजुर्ग हैं या जिन्हें टीके नहीं लगे हैं. अमेरिका ने 2022 में ओमिक्रॉन की लहर के दौरान मौतों के 3,500 के शिखर पर पहुंचने की इत्तिला दी, जो एक साल पहले टीकाकरण की शुरुआत के बाद सबसे ज्यादा थीं.

मेदांता अस्पताल में आंतरिक चिकित्सा की सीनियर डायरेक्टर और 2020 की शुरुआत में गुरुग्राम के पहले कोविड मरीज का इलाज करने वालीं डॉ. सुशीला कटारिया कहती हैं, ''टीके संक्रमण के लक्षणों, अस्पताल में भर्ती होने और मौतों को रोकने में मददगार हैं.’’ वे बताती हैं कि उन्होंने अपने मरीजों में लक्षणों की गंभीरता को काफी कम होते देखा है और आखिरी मुश्किल मामला उन्होंने जुलाई 2021 में संभाला था.

वे बताती हैं, ''इसका यह मतलब नहीं कि कोविड अब भी जानें नहीं ले सकता.’’ डॉ. इंगले कहती हैं, ''ओमिक्रॉन ज्यादातर ऊपरी श्वास नलिका को प्रभावित करता है. सबसे सामान्य लक्षण थकान है और लक्षण इतने हल्के हैं कि संक्रमित लोग अक्सर जांच करवाना टाल देते हैं. या लोग घर पर ही ऐंटीजेन किट्स से टेस्ट कर रहे हैं, पर बीमारी हल्की होने पर खुद को आइसोलेट नहीं कर रहे हैं. इससे बुजर्गों और दूसरी बीमारियों से ग्रस्त लोगों के लिए जोखिम बढ़ जाता है, क्योंकि ओमिक्रॉन को पकड़ना और काबू करना कहीं ज्यादा मुश्किल है.’’

बुजुर्गों की हिफाजत
दुनिया की सबसे ज्यादा कोविड मृत्यु दर वाले हांगकांग में जब ओमिक्रॉन की लहर शुरू हुई, 70 से ऊपर की उम्र के पांच लाख से ज्यादा लोगों को टीके नहीं लगे थे. शहर में हुई 70 फीसद से ज्यादा मौतें इसी आयु समूह में बताई गईं. इसी तरह चीन में 80 से ऊपर की उम्र के 50 फीसद से ज्यादा लोगों को पूरे टीके नहीं लगे हैं और 70 से ऊपर की उम्र के केवल 48 फीसद लोगों को बूस्टर डोज लगा है.

राष्ट्रीय कोविड-19 टीका प्रशासन विशेषज्ञ समूह (एनईजीवीएसी) के चेयरमैन डॉ. वी.के. पॉल कहते हैं, ''60 से ऊपर की उम्र और साथ ही दूसरे गंभीर रोगों वाले भारतीयों की कोविड से हिफाजत करना बेहद जरूरी है.’’ सबसे ज्यादा कमजोर लोगों को बूस्टर खुराक लगाने को प्राथमिकता देने की सरकारी नीति का फैसला उस वैश्विक चिकित्सा डेटा के मद्देनजर लिया गया जिसमें टीके नहीं लगे बुजुर्गों की व्यथा सामने आई थी. डॉ. कटारिया कहती हैं, ''जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ चुकी है, उनके लिए तो एक सर्दी भी जानलेवा हो सकती है.’’ 

भारत में अब तक करीब 90 फीसद वयस्कों को दोनों टीके और देश के करीब 100 फीसद लोगों को 1-1 टीके लग चुके हैं. एक करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स को और इसके अलावा 60 से ऊपर की उम्र के अन्य एक करोड़ लोगों को बूस्टर शॉट लग चुके हैं.

15 से 18 साल के बीच की उम्र के किशोर-किशोरियों को भी टीके लगाने का कार्यक्रम जनवरी में शुरू हो गया और उनमें से 75 फीसद से ज्यादा को पहली खुराक लग चुकी है. पिछले हफ्ते राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम का विस्तार करके 60 से ऊपर के सभी लोगों को बूस्टर डोज के लिए शामिल किया गया और देश में 12-14 आयु समूह के लिए बाल टीकाकरण भी शुरू हो गया.

भारत फिलहाल चार वैक्सीन का इस्तेमाल कर रहा है. ये हैं ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन, जिसे भारत में कोविशील्ड के नाम से जाना जाता है; भारतीय फर्म भारत बायोटेक की कोवैक्सिन; रूस में बनी स्पुतनिक वी; और अब कोर्बीवैक्स. वयस्कों को अब तक लगे टीकों में 90 फीसद से ज्यादा हिस्सेदारी कोविशील्ड की है. सरकार ने मॉडर्ना वैक्सीन का भी आयात करने के लिए सिप्ला को अधिकृत किया है, लेकिन इसके डोज अभी बाजार में नहीं आए हैं. भारत ने फरवरी में एकल-खुराक वैक्सीन स्पुतनिक लाइट को भी मंजूरी दे दी.

ब्लूमबर्ग ग्लोबल वैक्सीन ट्रैकर के मुताबिक, केवल 1.5 फीसद भारतीयों को तीसरा बूस्टर डोज लगा है. दुनिया भर के अध्ययन और अनुभव तीसरी खुराक की बढ़ती अहमियत बता रहे हैं. ब्रिटेन के एनएचएस के निगरानी डेटा से पता चलता है कि दोनों वैरिएंट के मामले में कोविड के लक्षणों के खिलाफ वैक्सीन का असर दूसरी खुराक के 25 सप्ताह या ज्यादा वन्न्त बाद 20 फीसद से कम रह जाता है, पर तीसरी खुराक के दो से चार हफ्ते बाद करीब 70 फीसद बढ़ जाता है.

ब्रिटेन में एस्ट्राजेनेका ने अपने बूस्टर के परीक्षणों के अंतरिम विश्लेषण से तस्दीक की कि एक ही वैक्सीन की दो खुराक लगने के बाद तीसरी खुराक ओमिक्रॉन के संक्रामक लक्षणों को रोकने में मदद करती है. डॉ. इंगले कहती हैं, ''भारत में कई लोग बूस्टर डोज नहीं लगवा रहे हैं और यह चिंता की बात है. बूस्टर कोविड के संक्रमण को भले न रोके, पर यह अस्पताल में भर्ती होने और मौत के खिलाफ और ज्यादा रोग प्रतिरोधक क्षमता देता है.’’

असल में पिछले हफ्ते इज्राएल में एक नए अनाम रूप के उभार के बाद, जो बीए.1 और बीए.2 दोनों के म्यूटेशनों का जोड़ है, ब्रिटेन ने अपनी आबादी के ज्यादा कमजोर तबकों को और ज्यादा सुरक्षा देने के लिए दूसरा बूस्टर डोज देना शुरू कर दिया. वैश्विक संकेतों और चिकित्सा अध्ययनों से तस्दीक होती है कि कोविड की भावी लहरों का असर तय करने में यह बात बेहद अहम होने जा रही है कि कितने लोगों को बूस्टर डोज लग चुके हैं.

साठ से ऊपर की आयु वाले और साथ ही दूसरी गंभीर बीमारियों से ग्रस्त भारतीयों  की कोविड से हिफाजत बहुत ही अहम पहलू है. इसमें किसी तरह की कोताही बहुत भारी पड़ेगी 

डॉ. वी.के. पॉल
कोविड-19 के लिए टीकाकरण के वास्ते गठित राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह के चेयरमैन
आपने इतने लंबे समय तक लोगों को लॉकडाउन में रख लिया. उसके बाद तो फिर किसी लहर को काबू में रखने के लिए आपको कोविड प्रोटोकॉल के प्रति जागरूकता, टेस्टिंग, टीकाकरण और इलाज के केंद्र बढ़ाने जैसे उपायों का समन्वय करना होगा 

डॉ. राहुल पंडित
डायरेक्टर, क्रिटिकल केयर, फोर्टिस मुलुंड, मुंबई
वैक्सीन हमें लक्षणों के साथ होने वाले इन्फेक्शन, अस्पताल में भर्ती होने और मौतों से भी बचाती है...लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं निकाल लेना चाहिए कि कोविड अब जान नहीं ले सकता
डॉ. सुशीला कटारिया
सीनियर डायरेक्टर, इंटरनल मेडिसिन,
मेदांता हॉस्पिटल

दुनिया भर में फिर बढ़ी हलचल
कई देशों में कोविड के मामले और मौतों के आंकड़े भी बढ़ने शुरू हो चुके हैं

8%
कोविड मामलों में बढ़ोतरी हुई है 20 मार्च को खत्म हुए हफ्ते में

6,00,000
नए मामले आए दक्षिण कोरिया में. पूरी दुनिया में एक दिन में इतने ज्यादा मामले आने का यह दूसरा सबसे बड़ा वाकया था

97% 
कोविड के मामले, हांगकांग के, पिछले एक महीने में रिपोर्ट किए गए हैं

3,500
संक्रमितों की एक दिन में मौत हुई. पिछले साल टीकाकरण शुरू होने के बाद यह एक दिन में होने वाली सबसे ज्यादा मौत थी 

2
संक्रमितों की मौत चीन की अपनी धरती पर हुई. साल भर में मौत का यह पहला मामला था

15
लाख नए मामले दर्ज किए गए जर्मनी में; 12 लाख मामले दर्ज किए गए वियतनाम में, 20 मार्च को खत्म होने वाले हफ्ते में.

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