खास रपटः बनारस के नए महाराज
बनारस मुझे बहुत पसंद है और कुछ दिनों में वहां गए बिना मेरा मन नहीं लगता लेकिन मैंने बनारस में रहने की बाध्यता नहीं रखी है.

आलोक पराड़कर
बनारस सिर्फ अपने स्थापत्य में नहीं बदल रहा है, उसके प्रतिनिधि कलाकारों की चिरपरिचित छवि भी बदल रही है. राजन-साजन मिश्र की तरह उनके मुंह हमेशा पान के बनारसी रस में घुले-भरे नहीं होते, गुदई महाराज की तरह गमछा या किशन महाराज की तरह लुंगी पहने वे मोहल्ले का चक्कर नहीं लगाते, बिस्मिल्लाह खान की तरह उनके बेडरूम में काला पंखा या चारपाई जैसी सादगी भी नहीं होती.
वे नए दौर के कलाकार हैं. स्टाइलिश कपड़े पहनते हैं, महंगे मोबाइल सेटों पर अपने यूट्यूब वीडियो के व्यूज और लाइक्स की हर पल खबर रखते हैं, व्हाट्सऐप पर सक्रिय रहते हैं, हर तरह के संगीत पर नजर रखते हैं और गाहे-बगाहे उसमें हाथ आजमाने से गुरेज भी नहीं करते.
पंडित साजन मिश्र के पुत्र और दिवंगत पंडित राजन मिश्र के भतीजे स्वरांश मिश्र इस साल की शुरुआत में बनारस के पद्मविभूषण गिरिजा देवी सांस्कृतिक संकुल में पिता के साथ 'बागेश्री’ के खयाल में अपने सुर मिला रहे थे तो संकुल में मौजूद बहुत सारे दर्शकों को याद आ रहा था कि किस प्रकार कुछ वर्षों पूर्व तुलसीघाट पर वे अपने बैंड के साथ आए थे और भारतीय संगीत तथा पाश्चात्य संगीत का फ्यूजन प्रस्तुत कर सबको चौंका दिया था.
स्वरांश कहते हैं, ''मैं शुरू से ही आजाद रहा हूं. मुझे संगीत के हर कोने को छूने की आकांक्षा रही है. हर प्रकार के संगीत को पसंद करता हूं मैं. चाचा (पंडित राजन मिश्र) के निधन के बाद मैंने तय किया कि मैं पिता (पंडित साजन मिश्र) के गायन में उनका साथ दूंगा लेकिन पॉपुलर संगीत से मेरा लगाव कम नहीं हुआ है. फिल्म संगीत के लिए काम करने के साथ ही लिखने का भी शौक है.’’
बनारस के इन नए महाराजों के लिए न तो किसी खास संगीत को पसंद करने का बंधन रहा है और न ही शहर में बस जाने का. बिस्मिल्लाह खान, गुदई महाराज, किशन महाराज जैसे दिग्गज कलाकार इस शहर को भी जीते थे. इसीलिए देश-दुनिया के तमाम प्रलोभनों और इस पुराने शहर में रहने की किन्हीं मुश्किलों के बावजूद उन्होंने अंत तक बनारस नहीं छोड़ा लेकिन अपने पिता का शहर कोलकाता छोड़कर बचपन में ही अपने नाना पंडित किशन महाराज के पास बनारस आ गए शुभ महाराज कहते हैं, ''आपको एक व्यापक दायरे में पहचान बनाने के लिए बनारस से बाहर भी निकलना पड़ता है.
बनारस मुझे बहुत पसंद है और कुछ दिनों में वहां गए बिना मेरा मन नहीं लगता लेकिन मैंने बनारस में रहने की बाध्यता नहीं रखी है.’’ शुभ गिरिजा देवी, हरि प्रसाद चौरसिया, शिव कुमार शर्मा, अमजद अली खान, राजन-साजन मिश्र, विश्वमोहन भट्ट, शाहिद परवेज जैसे प्रसिद्ध कलाकारों के साथ संगत कर चुके हैं.
वे कहते हैं, ''नए जमाने के साथ अच्छी बात यह है कि अगर आप में प्रतिभा है तो आपको शोहरत पाने से कोई रोक नहीं सकता. आज ऑफलाइन से अधिक ऑनलाइन दर्शक हैं. आपकी अच्छी-बुरी बात कुछ ही समय में पूरी दुनिया में फैल जाती है. आपके उन शहरों और देशों में भी प्रशंसक होते हैं जहां आपने कभी कोई कार्यक्रम नहीं किया. मुझे खुशी होती है जब लातूर में मेरे तबला वादन को अमेरिका में सुनकर कोई मुझे बधाई भेजता है.’’
दिवंगत पंडित राजन मिश्र के छोटे बेटे रजनीश मिश्र को तो कार चलाने और नई-नई जगहों को एक्सप्लोर करने का शौक है. यह शौक बनारस में रहकर पूरा नहीं किया जा सकता था. वैसे भी वे दिल्ली में पले-बढ़े क्योंकि राजन-साजन मिश्र दिल्ली और बनारस दोनों ही जगहों पर रहते थे. रजनीश कहते हैं, ''मैं दुनिया के किसी कोने में जाता हूं और जैसे ही समय मिलता है तो गाड़ी हायर करके चलाता हूं. मुझे गाड़ी चलाने का बहुत शौक रहा है.’’ राजन मिश्र के बड़े बेटे रीतेश मिश्र बताते हैं, ''हमारी पैदाइश तो बनारस में हुई, पढ़ाई दिल्ली में हुई. दिल्ली विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की.’’
लेकिन बनारस छोड़कर महानगरों में जाने का विशाल कृष्ण का अलग ही अनुभव रहा. विशाल कथक के बनारस घराने के गुरु पांडे महाराज (दुर्गा प्रसाद) के पौत्र हैं. पांडे महाराज इस घराने के प्रवर्तक सुखदेव महाराज के बेटे थे. सुखदेव महाराज की बेटियों—अलकनंदा, तारा और सितारा देवी भी विख्यात कथक नृत्यांगनाएं रही हैं. गोपीकृष्ण तारा देवी के बेटे थे. विशाल को जब उनके पिता मोहन कृष्ण ने सितारा देवी के पास मुंबई भेजा तो उन पर एक किस्म की पाबंदियां भी थीं.
सितारा देवी को बाहर जाने और होटलों में खाना खाने का शौक था लेकिन वे विशाल को कहीं अकेले नहीं जाने देती थीं. मुंबई की चमक-दमक में कला के खो जाने का भय था इसलिए वे उन्हें हमेशा साथ रखतीं और बाहर जाने पर उनके साथ जातीं. विशाल कहते हैं, ''तब मेरा मन भी दूसरे लड़कों की तरह इधर-उधर भागता था. मेरा रियाज में बिल्कुल मन नहीं लगता था.
मैं घूमना चाहता था, खेलना चाहता था.’’ विशाल बताते हैं कि ऐसा बहुत दिन नहीं चला. ''एक रोज उन्होंने मुझे देर तक समझाया. उन्होंने मुझसे कहा, ‘‘तुम किसी पार्टी में जाते हो और अगर वहां पांच सौ लोग हैं तो उसमें कलाकार तुम अकेले होगे.’ यह बात मुझे समझ में आ गई और फिर मैं जमकर रियाज करने लगा. उनसे सीखकर जब बनारस लौटा तो बहुत बदल चुका था.’’
बनारस के बारे में कहा जाता है कि इस शहर का एक पैर आधुनिकता की ओर बढ़ने के लिए उठा हुआ दिखता भी हो तो दूसरा पैर अपनी परंपरा और विरासत में गहरे तक धंसा है. बनारस के ये कलाकार नए जमाने के जरूर हैं लेकिन परंपरा को लेकर उनमें गहरा आग्रह भी है. विरासत की गरिमा को सहजेकर रखने की जिम्मेदारी को वे बखूबी समझते हैं.
रीतेश-रजनीश मिश्र कहते हैं, ''शास्त्रीय संगीत में तो हर कलाकार अपने विचार को शामिल करता है, खयाल गायन में हमारे खयाल तो आते ही हैं लेकिन जो चीजें हमें मिली हैं, जो हमारे घराने की विरासत है, हमारे पूर्वजों से पीढ़ी दर पीढ़ी हम तक पहुंची है, उसे संभालना, उसकी गरिमा और गंभीरता को बनाए रखना और उसे आगे बढ़ाना कम महत्वपूर्ण नहीं है.’’ शुभ महाराज भी कहते हैं कि पूर्वजों ने कितना कुछ काम किया है, रचनाओं का तो पूरा खजाना है. इसे संभालना और इसे अच्छी तरह बजा लेना भी एक बड़ी चुनौती है.
पर यह भी सच है कि बदलते जमाने के साथ संगीत का दायरा भी बदल रहा है. इन युवा कलाकारों को वे सुधी दर्शक-श्रोता तो अक्सर नहीं मिलते जो उनके पूर्वजों की संगीत सभाओं में होते थे. रीतेश-रजनीश कहते हैं, ''आज प्रस्तुतियों का समय कम हो रहा है. बहुत कम संगीत समारोह ऐसे होते हैं जहां आपको दो घंटे का समय मिलता हो और आप राग को सिलसिलेवार ढंग से चैनदारी के साथ सुना सकें.
कम समय और दर्शकों को देखकर हम अपनी प्रस्तुति को उस अनुरूप बनाने की कोशिश करते हैं.’’ विशाल ने परपंरा को नए ढंग से पुनर्जीवित करने की कोशिश की है. उन्होंने अलकनंदा की थाली पर नृत्य की प्रस्तुति को अपनाया है. वे कहते हैं, ''जब मैं थाली से तत्कार करता हूं तो वे दर्शक भी जुड़ते हैं जो शास्त्रीय संगीत के जानकार नहीं हैं. युवा इससे आकर्षित होते हैं.’’
वे नए जमाने के हैं, देश-दुनिया घूमते हैं लेकिन शहर की आबोहवा इनसे नहीं छूटती. वास्तव में उनका निर्माण ही इससे हुआ है. शुभ कहते हैं, ''जब भी बनारस आता हूं, मौका निकालकर घाट किनारे चला जाता हूं. घाट की सीढिय़ों पर एकांत, मौन बैठना मुझे पसंद है. एक नई ऊर्जा मिलती है.’’ विशाल कहते हैं कि जिस घाट पर भीड़भाड़ न हो वहां रात 10-11 बजे पहुंच जाना और चांदनी को गंगा की लहरों पर खिलखिलाते देखना मुझे बहुत भाता है. रीतेश-रजनीश मिश्र जब भी बनारस आते हैं, लंका पर कचौड़ी जलेबी खाना नहीं भूलते. पान की आदत नहीं है लेकिन बनारस आने पर पान जरूर घुला लेते हैं. बनारस का रस कुछ ऐसा ही है.
-आलोक पराड़कर
रीतेश मिश्र 48 वर्ष,
रजनीश मिश्र 46 वर्ष
शास्त्रीय गायक
विरासत: प्रसिद्ध सारंगी वादक पंडित हनुमान प्रसाद मिश्र के पौत्र, प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक दिवंगत पंडित राजन मिश्र के बेटे और पंडित साजन मिश्र के भतीजे
घराना: बनारस घराना
नवाचार: परंपरा को संभालते हुए कम समय में भी उसकी पूरी झलक प्रस्तुत करना
स्वरांश मिश्र 37 वर्ष
शास्त्रीय गायक
विरासत: प्रसिद्ध सारंगी वादक पंडित हनुमान प्रसाद मिश्र के पौत्र, प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पंडित साजन मिश्र के बेटे और दिवंगत पंडित राजन मिश्र के भतीजे
घराना: बनारस घराना
नवाचार: हर तरह के संगीत से लगाव, पिता के साथ जुगलबंदी के पहले बैंड भी बनाया
शुभ महाराज 35 वर्ष
तबला वादक
विरासत: प्रसिद्ध तबला वादक पंडित किशन महाराज के नाती
घराना: बनारस घराना
नवाचार: संगीत महफिलों के साथ ही सोशल मीडिया का उपयोग, एकल और संगत दोनों ही प्रस्तुतियां
विशाल कृष्ण 30 वर्ष
कथक नर्तक
विरासत: कथक के बनारस घराने के गुरु पांडे महाराज के पौत्र
घराना: बनारस घराना
नवाचार: थाली से तत्कार से युवाओं में पैठ
रीतेश मिश्र, रजनीश मिश्र, स्वरांश मिश्र, शास्त्रीय गायक,
शुभ महाराज, विशाल कृष्ण, कथक नर्तक, तबला वादक