खास रपटः गुलदारों से गुलजार गलियारा
झालाना रिजर्व फॉरेस्ट में लेपर्ड सफारी की कामयाबी से उत्साहित होकर झालाना से सरिस्का तक लेपर्ड कॉरिडोर बनाने की योजना.

झालाना रिजर्व फॉरेस्ट (जेआरएफ) के अफसरों ने मादा तेंदुआ फ्लोरा को दो शावकों के साथ देखा. हालांकि भारत में तेंदुओं की आबादी बीते कुछ सालों से बढ़ रही है, पर यह खासकर इसलिए खुशी की बात थी कि अक्तूबर 2018 में राजस्थान सरकार ने ऐलान किया था कि झालाना में देश की पहली लेपर्ड सफारी होगी.
यहां 29 वयस्क और 15 शावक तेंदुए हैं, जिनमें 12 इसी साल जन्मे हैं. कुछ लोगों का कहना है कि दुनिया में तेंदुओं की आबादी का सबसे ज्यादा घनत्व जेआरएफ में है. हालांकि अधिकारी कहते हैं कि यह दावा करना अभी जल्दबाजी होगा.
तो भी जेआरएफ ने अफसरों, सैलानियों और वन्यजीव विशेषज्ञों में खासी दिलचस्पी जगा दी है. इसकी कामयाबी को नजदीकी इलाकों में दोहराने का मनसूबा भी है, जिसमें इसे अंतत: नजदीकी (करीब 100 किमी दूर) सरिस्का टाइगर रिजर्व से जोड़कर एक गलियारा बनाया जाएगा.
राजस्थान के प्रधान मुख्य वन संरक्षक और जंगल अमले के मुखिया दीप नारायण पांडे कहते हैं, ''जेआरएफ कामयाबी की कहानी बनकर उभर रहा है, पर हमें इसकी परवरिश करने की जरूरत है. जिस तरह रणथंभौर बाघ देखने के लिए सबसे अच्छी जगह है, वैसे ही झालाना तेंदुए देखने की बेहतरीन जगह है.’’
लेपर्ड या तेंदुओं को कई इलाकों में गुलदार भी कहा जाता है. यह नाम उनक शरीर पर काली चित्तिायों की वजह से पड़ा है. भारत में तेंदुओं के साथ बाघों के सौतेले भाइयों सरीखा बर्ताव किया जाता है. वे उन बड़ी बिल्लियों में जो हैं जिनका सबसे कम अध्ययन किया गया है. झालाना इसे भी बदल सकता है.
दक्षिण अफ्रीका के क्रूगर नेशनल पार्क में गेम रेंजर के तौर काम कर चुके झालाना वाइल्डलाइफ रिसर्च फाउंडेशन के प्रमुख रिसर्चर स्वप्निल कुंभोजकर कहते हैं कि जेआरएफ हमारे लिए तेंदुओं के व्यवहार को लेकर अपनी समझ बढ़ाने का भी मौका है. मार्च 2020 के एक सहलिखित परचे में उन्होंने ऐसे ही एक लम्हे का वर्णन किया है. ऊपर जिस फ्लोरा का जिक्र है, 2019 में उसके दो शावक गायब हो गए.
अधिकारियों और सैलानियों ने उसे एक पहाड़ी पर बैठे अपने शावकों को पुकारते देखा-सुना. करीब एक घंटे बाद एक पेड़ के नीचे बैठे दो धारीदार लकड़बग्घों पर उसकी नजर पड़ी. कौए उनके ऊपर मंडरा रहे थे, जो चिंताजनक संकेत था. वह ताबड़तोड़ पहाड़ी से नीचे भागी, बबूल के पेड़ों और सफारी जीपों के बीच से सरपट दौड़ती पेड़ तक पहुंची और उस पर चढ़ गई.
कुछ पल बाद अफसरों और सैलानियों के चेहरे तब मायूसी से घिर गए, जब उन्होंने उसे जबड़े में एक शावक को दबाए पेड़ से उतरते देखा. उसे लेकर फिर वह अरावली पहाड़ियों की कांटेदार नागफनी में चली गई. कुंभोजकर कहते हैं, ''मां तेदुए के अपने मृत शावक को मुर्दाखोर जानवरों से दूर ले जाने का यह पहला मामला (हमने देखा) है.’’ उनकी टीम ने एक नर तेंदुए को भी नजदीकी पहाड़ी पर बैठे देखा. उन्हें शक है कि शावक की मौत के लिए वही जिम्मेदार था.
पिछले साल छपे एक शोधपत्र में कुंभोजकर ने यह भी दावा किया कि झालाना भारत की उन जगहों में है जहां तेंदुओं का सबसे ज्यादा, 0.86 प्रति वर्ग किमी, घनत्व है. अनुमान है कि यहां तकरीबन 29 वर्ग किमी इलाके में 25 वयस्क तेंदुए हैं. हालांकि सटीक आंकड़ा निकालना आसान नहीं है, क्योंकि बाघों की गिनती केवल उन्हीं इलाकों में बार-बार की जाती है जहां सुसज्जित कैमरा ट्रैप लगे हैं.
2018 में भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की तरफ से 20 राज्यों में बाघों के ठौर-ठिकानों पर किए गए अध्ययन में अनुमान जाहिर किया गया कि तमिलनाडु के श्रीविल्लिपुथुर भूरी गिलहरी वन्यजीव अभयारण्य में उस वक्त तेंदुओं का सबसे ज्यादा, प्रति 100 वर्ग किमी 20.43, घनत्व था. राजस्थान के तीन टाइगर रिजर्व में करीब 476 तेंदुए होने का अनुमान है, जिनमें से 83 मुकुंदरा, 105 रणथंभौर और 273 सरिस्का में हैं.
अफसरान इस बहस में पड़ना नहीं चाहते कि भारत में तेंदुओं की सर्वाधिक सघनता जेआरएफ में है या नहीं, पर वे खुशी-खुशी यह दावा जरूर करते हैं कि झालाना में तेंदुए देखना किसी भी और जगह से ज्यादा आसान है. तेंदुओं के दिखाई देने के लिहाज से झालाना की तुलना राजस्थान के पाली जिले के जवाई बांध से की जा सकती है, जहां तेंदुओं ने मैदान से ऊपर पहाडिय़ों और स्थानीय लोगों के खेतों पर कब्जा जमा रखा है (न जेआरएफ और न ही जवाई बांध टाइगर रिजर्व है).
प्राइवेट सफारियों का इंतजाम यहां स्थानीय लोग और होटल मालिक करते हैं, क्योंकि ज्यादातर जमीनें निजी मिल्कियत में हैं. यहां तेदुओं की कुल संख्या का अंदाज लगा पाना तो मुश्किल है, पर स्थानीय लोगों का कहना है कि 50 से 60 के बीच गुलदार (तेंदुए) इस इलाके में हैं.
जेआरएफ को 1961 में राजस्थान वन कानून 1953 के तहत आरक्षित वन घोषित किया गया. यह उत्तरी उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन जयपुर के दक्षिणूपर्व में और समुद्र स्तर से 516 मीटर की औसत ऊंचाई पर है. राज्य के वन विभाग ने करीब 20 साल पहले इस जंगल में स्थानीय पेड़-पौधे रोपने में बढ़ोतरी की कोशिशें शुरू कीं. फिर 2015 में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने जेआरएफ को लेपर्ड सफारी के इलाके में विकसित करने का आदेश दिया.
उन्होंने राजस्थान प्रोजेक्ट लेपर्ड की स्थापना भी की. 2017 में रिजर्व में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई और अक्तूबर 2018 में मुख्यमंत्री राजे ने जेआरएफ में तीन रास्तों पर ढाई घंटे की लेपर्ड सफारी का औपचारिक उद्घाटन किया. आज जेआरएफ को ईंट और कांटेदार झाड़ियों से बनी 32 किमी लंबी चारदीवारी ने घेर रखा है, जिससे अतिक्रमण में भारी कमी आई है और यह इस पूरे इलाके के लिए हरा-भरा द्वीप और हीट सिंक या ऊष्माशोषक बन गया है.
राजस्थान वन्यजीव बोर्ड के सदस्य और वर्ल्ड वाइल्डरनेस कांग्रेस के भारत प्रमुख सुनील मेहता कहते हैं, ''झालाना की अनूठी खासियत यह है कि यह जयपुर शहर के हृदयस्थल के ठीक बगल में स्थित शहरी वन है. इसकी चारदीवारी के एक तरफ तीस लाख से ज्यादा लोग रहते हैं और दूसरी तरफ 1,00,000 लोग वन क्षेत्रों के बहुत नजदीक या भीतर रह रहे हैं.’’
जेआरएफ को तभी से स्थिर वासस्थान से चरागाह के रूप में विकसित करने की कोशिशें की जाती रही हैं. इस कवायद का मकसद इसके दायरे में रहने वाले जानवरों के लिए चारे और शिकार का आधार बनाना है. पशु-पक्षियों को आकर्षित करने के लिए स्थानीय फलों के पेड़ लगाए और अतिक्रमण हटाए गए हैं.
पांडे कहते हैं, ‘‘हमारा लक्ष्य नई प्रजातियां लाने के बजाए स्थानीय प्रजातियों के जरिए झालाना और आसपास के पारितंत्र को यथा संभव अधिक से अधिक मजबूत करना है.’’ इसीलिए जेआरएफ में 24 जलाशय भी हैं. इनमें से 17 बोरवेल से भरे गए हैं, जिनमें दर्जन भर का रख-रखाव सौर ऊर्जा से चलने वाले पंपों से किया जाता है. बाकी टैंकरों से भरे गए हैं.
जेआरएफ में पौधों की 220, स्तनधारियों की 33, पक्षियों की 132 और सर्पों की 20 प्रजातियां हैं. तेंदुओं के अलावा जो जानवर यहां बहुधा देखे जाते हैं, उनमें लकड़बग्घे, रेगिस्तानी लोमड़ियां, सियार, जंगली बिल्लियां, चीतल और सांभर हैं.
तेंदुओं के लिए शिकार के अड्डे के लिहाज से इलाके में जंगली कुत्तों की बड़ी आबादी है. तेंदुओं की लीद के विश्लेषण से पता चला कि कुत्ते और बिल्लियां गुलदारों का मुख्य आहार हैं. बकरियों और मवेशियों के अलावा चूहे-गिलहरियां, हिरण, छोटे भारतीय गंधबिलाव, मैकॉक, उत्तरी मैदानी भूरे लंगूर और नेवले भी उनके आहार का हिस्सा हैं.
झालाना में अब सुस्थापित खाद्य शृंखला है, जिसमें तेंदुओं का आहार हैं कुत्ते और बिल्लियां, जो इलाके में बड़ी तादाद में फैले चूहों-गिलहरियां का शिकार करते हैं. इसके उलट, अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक गोबिंद सागर भारद्वाज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सरिस्का टाइगर रिजर्व में 84 फीसद तेंदुओं के शिकार मवेशी हैं.
झालाना की अन्य कामयाबियों में दूसरी प्रजातियों की रिवाइल्डिंग या उन्हें नए सिरे से जंगल में बसाना भी है. इनमें चीतल भी हैं जिन्हें चिड़ियाघरों से यहां लाया गया. सैकड़ों चीतल लाए गए थे, जिनमें से करीब 15 बचे हैं और एक किस्म से संस्थापक आबादी बन गए हैं. पांडे कहते हैं, ''वे जंगल में रहने के अभयस्त हो गए और उन्होंने तेंदुओं से बच निकलने की फितरत विकसित कर ली.’’
पांडे 20 चीतल और 20 सांभर की संस्थापक आबादी विकसित करना चाहते हैं ताकि उनकी तादाद बढ़े. उन्होंने नजदीक में स्थित तेंदुओं के दूसरे वासस्थानों के लिए भी ऐसे ही उपाय प्रस्तावित किए हैं. झालाना में और जयपुर के आसपास मवेशियों पर तेंदुओं की निर्भरता को कम से कम रखना बेहद जरूरी है ताकि इनसानों के साथ उनके टकराव से बचा जा सके. अधिकारी जैसे-जैसे ज्यादा लेपर्ड रिजर्व स्थापित करने और उन्हें सफारियों के लिए खोलने की अपनी योजनाओं पर आगे बढ़ेंगे, यह समस्या भी बढ़ती जाएगी.
वन अधिकारियों और स्वतंत्र पर्यवेक्षकों ने पाया कि झालाना के तेंदुए घूमते हुए करीब 40 किमी दूर अचरोल तक चले जाते हैं. अधिकारियों का कहना है कि तेंदुए अक्सर नजदीकी इनसानी बस्तियों में आ जाते हैं, पर चूंकि उन्हें मुश्किल से कभी देखा गया और इनसानों के साथ टकराव भी बहुत कम हुए, इसलिए वे सुरक्षित घर लौट जाते हैं.
कुंभोजकर के मुताबिक, ताजातरीन अध्ययनों से पता चला कि जेआरएफ में नर तेंदुए ज्यादा बड़े, मगर अनिश्चित इलाके में घूमते हैं, जबकि मादा तेंदुए और उनकी मादा शावक अपनी पैदाइश के नजदीकी इलाकों में घर बनाती और वहीं आसपास घूमती हैं. यही वजह है कि महकमा अमागढ़ वन क्षेत्र का 16 वर्ग किमी जेआरएफ सफारी इलाके में जोड़ने पर विचार कर रहा है, ताकि तेंदुओं को घूमने और शिकार करने के लिए ज्यादा बड़ा इलाका मिल जाए.
महकमे की दूसरी प्राथमिकता यह है कि अचरोल में छोटे-से वन क्षेत्र नाहरगढ़ के 50 वर्ग किमी में और फिर रामगढ़ वन क्षेत्र के 300 वर्ग किमी में सीमित सफारियां शुरू की जाएं. रामगढ़ वन क्षेत्र को सरकार ने 2019 में सरिस्का टाइगर रिजर्व के 1,100 वर्ग किमी से मिला दिया था ताकि संसाधन बढ़ाकर इसे मजबूत किया जा सके.
वासस्थान को मजबूत करने पर करीब 50 करोड़ रुपए का खर्च आने का अनुमान है. वहीं इन इलाकों को जोड़ने के लिए शमन उपाय करने पर करीब 100 करोड़ रुपए की लागत आएगी. मगर सरिस्का टाइगर रिजर्व में दाखिल होने से पहले जयपुर की बाहरी 100 किमी लंबी पट्टी पर लेपर्ड सफारियों का संचालन करने के लिए यह कोई बड़ी कीमत नहीं है.ठ्ठ
सफारी की सांख्यिकी
जब से झालाना रिजर्व फॉरेस्ट में लेपर्ड सफारियां शुरू हुईं (2017 में सफारियों की सॉफ्ट-लॉन्चिंग हुई), करीब 1,00,000 सैलानी यहां आए हैं. छह इलेक्ट्रिक वाहन और जिप्सी आगंतुकों को रिजर्व के तीन में से एक रास्ते पर दो घंटे के सफर पर ले जाती हैं.
राजस्थान के प्रधान मुख्य वन संरक्षक दीप नारायण पांडे कहते हैं कि झालाना तेंदुए देखने के लिए भारत में सबसे अच्छी जगह है, जैसे रणथंभौर बाघ देखने के लिए. माना जाता है कि इस जंगल और आसपास के इलाके में करीब 30 वयस्क तेंदुओं की आबादी है.
सफारियों की कामयाबी से उत्साहित अधिकारी नजदीकी इलाकों में ऐसे ही रिजर्व विकसित करने, झालाना से अमागढ़, नाहरगढ़ और रामगढ़ से होते हुए सरिस्का टाइगर रिजर्व तक एक वन्यजीव गलियारा बनाने पर काम कर रहे हैं. वासस्थान को मजबूत बनाने पर करीब 50 करोड़ रुपए की लागत आएगी, जबकि शमन उपायों पर और 100 करोड़ रुपए के खर्च का अनुमान है.
भारत में तेंदुओं की खोजबीन
भारत के ज्यादातर वन क्षेत्रों में तेंदुआ प्रमुख परभक्षी जानवर है. इसकी भारतीय प्रजाति पैंथेरा पार्डस फुस्का केवल थार के निर्जल रेगिस्तान और मैंग्रोव सुंदरबन को छोड़कर भारत के सभी वासस्थानों में पाई जाती है. हालिया अध्ययनों से पता चलता है कि उनके वासस्थानों पर मानव अतिक्रमण के चलते बीती दो सदियों में उनकी आबादी 75-90 फीसद कम हुई.
लिहाजा आइयूसीएन (अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ) के तहत उनका दर्जा 'संकटासन्न’ से घटाकर 'असुरक्षित’ कर दिया गया. उन्हें भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) कानून 1972 की अनुसूची-1 में रखा गया है, जो कानून के तहत उपलब्ध सर्वाधिक संरक्षण देती है.
2018 में प्रकाशित डब्ल्यूआइआइ और एनटीसीए के अध्ययन ने अनुमान लगाया था कि पूरे भारत में 13,000 तेंदुए हैं. यह अध्ययन बाघ के वासस्थानों पर कैमरा ट्रैप से किया गया, जिन्होंने 26,838 जगहों पर करीब 5,200 गुलदारों की तस्वीर खींचीं.
झालाना सुरक्षित अभयारण्य भारत की उन जगहों में है जहां तेंदुओं का सबसे ज्यादा, 0.86 प्रति वर्ग किमी, घनत्व है.