खास रपटः सार्वजनिक स्वास्थ्य निजी समस्याएं
आपूर्ति में सुधार के बावजूद निजी क्षेत्र के टीकाकरण केंद्रों का प्रदर्शन कमजोर ही नजर आता है. टीकाकरण को बढ़ाने के लिए क्या किया जा सकता है?

सोनाली आचार्जी
मई 2021 के बाद से, टीकाकरण दर ने रफ्तार पकड़ी है. जुलाई में, भारत ने केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मंडाविया के उस महीने केलिए निर्धारित लक्ष्य को हासिल किया. मंत्री ने रोजाना औसतन 43 लाख खुराक के साथ जुलाई के लिए कुल 13.5 करोड़ कोविड टीके की खुराक देने का लक्ष्य रखा था. जून में 11.9 करोड़ खुराकें दी गई थीं, और वह भी टीकाकरण कार्यक्रम के लिए मील का पत्थर रहा था. जून में, मई में दी गई खुराकों की तुलना में 96 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी. मई में औसतन 19 लाख टीके रोजाना लगाए गए थे.
3 अगस्त तक, भारत में कुल 47.4 करोड़ खुराकें दी जा चुकी थीं, जिसमें 36.9 करोड़ वयस्कों को कम से कम एक खुराक मिली चुकी थी और 10.4 करोड़ का दोनों खुराकों के साथ पूर्ण टीकाकरण हो चुका था. हालांकि, अभी लंबा रास्ता तय करना है. 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की वयस्क आबादी लगभग 94 करोड़ है, जिसका अर्थ है कि सभी के पूर्ण टीकाकरण के लिए 188 करोड़ खुराक की जरूरत है. 2021 के अंत तक वयस्कों के शत प्रतिशत टीकाकरण के लक्ष्य को पूरा करने के लिए, टीकाकरण कार्यक्रम को अब प्रति दिन 93 लाख खुराकों का लक्ष्य लेकर चलना होगा.
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन पी. श्रीनाथ रेड्डी कहते हैं, ''कोविड के खिलाफ हमारी लड़ाई में टीके अहम हैं. हम उनके बिना सामूहिक प्रतिरक्षा तक नहीं पहुंच सकेंगे. लोगों को टीकों के लिए किफायती, सुलभ चैनल दिए जाने की जरूरत है और उनको टीके की सुरक्षा को लेकर भी आश्वस्त किए जाने की जरूरत है.'' केंद्र सरकार ने आने वाले महीनों में टीकों की बेहतर आपूर्ति का आश्वासन दिया है. वितरण भी उतना ही जरूरी है. सरकार ने टीका निर्माताओं के उत्पादन का 25 फीसद हिस्सा निजी अस्पतालों के लिए रखा है, लेकिन टीकाकरण की गति बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र को शामिल करने के फैसले के वांछित परिणाम अब तक नहीं देखे गए हैं.
क्षमता से कम उपयोग की समस्या
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले ढाई महीनों में हुए कुल टीकाकरणों में निजी क्लिनिकों और अस्पतालों का हिस्सा केवल 7 फीसद है. आंकड़े निजी क्षेत्र की कमियों को उजागर करते हैं. मई से 15 जून तक, लगभग 8,30,000 खुराक निजी अस्पतालों ने लगाई हैं, जबकि मई में कुल 1.2 करोड़ खुराक, निजी अस्पतालों ने निर्माताओं से सीधे खरीदी थीं. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, जुलाई 2021 के अंत तक राज्यों और निजी अस्पतालों के पास तीन करोड़ से ज्यादा अप्रयुक्त टीके थे.
कुछ राज्यों में टीकों के कम उपयोग का आंकड़ा भी अन्य राज्यों की तुलना में काफी बड़ा है. राज्य सरकारों के आंकड़ों के अनुसार, जहां आंध्र प्रदेश के निजी अस्पतालों को मई से 35 लाख खुराक की आपूर्ति की गई है पर अब तक केवल 4,63,000 खुराक का उपयोग किया गया है. उसी तरह तमिलनाडु में, अब तक दी गई लगभग एक करोड़ खुराकों में से, केवल 5 फीसद निजी केंद्रों में दी गई थीं. इन राज्यों ने पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अप्रयुक्त खुराकों के पुन: आवंटन के लिए कहा है. अन्य राज्य निजी क्षेत्रों के लिए आरक्षित कोटे को कम करने की मांग कर रहे हैं. मसलन, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से निजी अस्पतालों के लिए होने वाले मौजूदा 25 फीसद आवंटन को घटाकर पांच फीसद करने के लिए कहा है.
केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने की वजह से निजी क्षेत्र को फटकार लगाई है. उन्होंने कहा, ''आप सभी (निजी क्षेत्र) ने मांग की थी और मुझे याद है कि आप इसके लिए मुझसे कितना लड़े थे तथा टीकाकरण को निजी क्षेत्र के लिए खोलने की मांग की थी. लेकिन आज, आप खुद को आवंटित किए गए 25 फीसद टीके को भी नहीं खरीद रहे हैं.'' गोयल ने कहा, ''मुझे याद है कि एक उद्योग समूह ने कहा था कि वह एक करोड़ टीकाकरण करेगा और दूसरे ने कहा था कि वह सुदूर क्षेत्रों में जाकर टीकाकरण करेगा. लेकिन टीके के प्रति हिचक को खत्म करने के लिए अभियान चलाने और अपने 25 फीसद कोटे का इस्तेमाल करने कोई बिहार, उत्तर-पूर्व, झारखंड और छत्तीसगढ़ नहीं गया.''
प्रमुख कारक
सरकार के अनुसार, निजी केंद्रों से संबंधित चार प्रमुख समस्याएं देखी जा रही हैं. पहली, कई अपने लिए निर्धारित खुराक की पूरी मात्रा के लिए ऑर्डर नहीं दे रहे हैं. दूसरी, ऑर्डर देने के बाद भी कुछ मामलों में पूरा भुगतान नहीं किया गया है. तीसरी, कुछ क्लिनिक भेजी गई खुराक की पूरी मात्रा एक बार में नहीं उठा रहे. और चौथी, पूरी खुराक उठाने वाले असल में उतने टीके लगा नहीं रहे हैं.
कोविड प्रबंधन पर नेशनल टास्क फोर्स के प्रमुख डॉ. वी.के. पॉल कहते हैं, ''हमें निजी क्षेत्र के पास उपलब्ध टीकों का बेहतर उपयोग करना चाहिए. लोगों को टीके लगवाने निजी क्षेत्रों के पास जाने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.'' संयुक्त स्वास्थ्य सचिव लव अग्रवाल के अनुसार, राज्यों को भी टीकाकरण अभियान के लिए अपनी योजना को गति देने की जरूरत है. वे कहते हैं, ''दो सप्ताह पहले पता चल जाता है कि कितने टीके आने वाले हैं, तो उन्हें समुदाय और टीकाकरण केंद्रों से जुड़ने और सुनिश्चित करने की जरूरत है कि पूरी उपलब्ध खुराक लोगों तक पहुंचे.''
निजी क्षेत्र में पूर्ण उपयोग की समस्या भी, एक नीतिगत समस्या है. ऑल इंडिया ड्रग ऐक्शन नेटवर्क (एआइडीएएन) की सह-संयोजक और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ मालिनी ऐसोला कहती हैं, ''शुरुआत में निजी क्षेत्र ने निर्माताओं से सीधा टीका पाने के अधिकार और टीकों की कीमत खुद तय करने के लिए खूब जोर लगाया. इसलिए 1 मई को हुए नीतिगत बदलाव को बड़े अस्पतालों और कॉर्पोरेट चेन के फायदे के लिए तैयार किया गया था.'' इसने निर्माताओं से सीधे थोक ऑर्डर करने की अनुमति दी और नतीजतन, बड़े कॉर्पोरेट चेन के ऑर्डर का आकार छोटे-से-मध्यम व्यवसायों से मेल नहीं खा सकता था. वे कहती हैं, ''वहीं, सरकारी और निजी क्लिनिकों के बीच मूल्य में बड़ा अंतर होने के कारण ज्यादातर लोग, विशेष रूप से छोटे शहरों में, सरकारी क्लिनिकों को चुनना चाहते हैं.''
हमसे चूक कहां हुई?
मई में, सरकार ने आयुष्मान भारत के पैनल में सूचीबद्ध अस्पतालों को टीकाकरण शुरू करने की अनुमति दी. केंद्रों की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से, इसमें कुछ बुनियादी जरूरतों को पूरा करने वाले निजी अस्पतालों को शामिल किया गया था. वास्तव में, बड़े चेन अपने समूह की शाखाओं के लिए निर्माताओं से सीधे थोक ऑर्डर के लिए सौदेबाजी करने में सक्षम थे. स्वास्थ्य एवं परिवार मंत्रालय के एक अधिकारी जो अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहते, कहते हैं, ''एक अस्पताल समूह, एक एकल कॉर्पोरेट इकाई के रूप में कार्य कर रहा है, यहां तक कि कई राज्यों में अपने 20-25 अस्पतालों के लिए ऑर्डर दिया है.'' चूंकि इस तरह के थोक ऑर्डर पर मुनाफे का मार्जिन अधिक था, निर्माताओं ने इनके लिए आपूर्ति को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया. यह मई के मध्य में एक ऐसे चरण में पहुंच गया कि मिसाल के तौर पर, दिल्ली में छोटे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) में कोई टीका उपलब्ध नहीं था, लेकिन निजी अस्पतालों में टीकाकरण के लिए बुकिंग की जा सकती थी.
इसके अलावा, कॉर्पोरेट चेनों ने एक नई व्यावसायिक रणनीति शुरू की, जहां कार में बैठे-बैठे टीका लगाने की सुविधा (ड्राइव थ्रू), या कॉर्पोरेट और आरडब्ल्यूए में टीकाकरण के लिए सेवा शुल्क के नाम पर अतिरिक्त रकम वसूली गई. नतीजतन, मई में कोवैक्सीन की एक खुराक की कीमत दिल्ली के एक सरकारी क्लिनिक में 250 रुपए थी, पर एक निजी अस्पताल में ड्राइव थ्रूके लिए 2,500 रुपए तक लिए गए. ऐसोला कहती हैं, ''टीकाकरण को ज्यादा सुविधाजनक बनाने के लिए ऐसे नए मॉडल जोड़े गए थे जिसके लिए अधिक कीमत वसूली जा सकती थी. छोटे क्लिनिकों में खुराक की कमी हो गई और टीकाकरण बंद कर दिया गया. निजी क्षेत्र को शामिल करने का लक्ष्य—टीकाकरण केंद्रों और भौगोलिक पहुंच का विस्तार—खत्म हो गया.''
इसे ध्यान में रखते हुए 21 जून को केंद्र ने टीकाकरण नीति में संशोधन किया. अब, एक से अधिक स्थानों के लिए थोक खरीदारी का विकल्प नहीं है. प्रत्येक अस्पताल को अपनी खुराक के लिए कोविन के जरिए एक व्यक्तिगत जरूरत अनुरोध देना पड़ता है. राज्य सरकारों को भी टीकों की समान बिक्री सुनिश्चित करने की शक्ति दी गई ताकि छोटे निजी केंद्रों को भी टीके खरीदने का अवसर मिल सके. जहां सरकार 75 फीसद टीके खरीदेगी, वहीं निर्माता के मासिक उत्पादन का 25 फीसद निजी क्षेत्र के लिए रखा जा सकता है. निर्माता निजी कंपनियों को किस दाम पर खुराक बेचेंगे, उस पर अब कोई मूल्य सीमा नहीं है लेकिन उनके लिए सेवा शुल्क की सीमा प्रति खुराक 150 रुपए तय कर दी गई है. इस प्रकार, कोविशील्ड के लिए शुरुआती कीमत अब 780 रुपए प्रति खुराक, कोवैक्सीन के लिए 1,410 रुपए और राज्यों में निजी क्लिनिकों में स्पुतनिक V के लिए 1,145 रुपए हैं; लेकिन राज्य या केंद्र की ओर से संचालित केंद्रों पर ये टीके मुफ्त लगाए जाते हैं.
हालांकि, निजी केंद्रों पर टीकाकरण की दर कम बनी हुई है. विशेषज्ञों का कहना है कि 'कम से कम 3,000 शीशियों के ऑर्डर' की आवश्यकता, परेशानी के मूल में है. छोटे-से-मध्यम अस्पताल चेन के लिए, इतनी बड़ी खरीद थोड़ा मुश्किल वित्तीय प्रस्ताव है, खासकर तब जब उत्पाद को आगे बेचने पर जो लाभ वे कमा सकते हैं, उसकी एक सीमा तय की जाती हो. एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (एएचपीआइ) जिसने हाल ही में भारत भर के 70 निजी अस्पतालों में उनके टीकाकरण की स्थिति को समझने के लिए एक सर्वेक्षण किया है, के अध्यक्ष गिरधर ज्ञानी कहते हैं, ''छोटे ऑर्डर का भी प्रावधान होना चाहिए...
सरकारी और निजी बिक्री के बीच अंतर को कम करने के लिए या तो निर्माता से मूल्य पर बातचीत के लिए विकल्प खुला होना चाहिए या छोटे ऑर्डर की अनुमति दी जानी चाहिए.'' सर्वेक्षण के अनुसार, 25 अस्पतालों ने कहा कि सरकार ने उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए कोई नोडल अधिकारी नियुक्ति नहीं किया है. इस बीच, 39 अस्पतालों ने कहा कि नोडल अधिकारी तो नियुक्त किए गए हैं, लेकिन राज्य सरकारें उनकी चिंताओं को दूर करने के कोई प्रयास नहीं कर रही हैं.
समस्या का समाधान कैसे किया जा सकता है?
विशेषज्ञों ने निजी अस्पतालों में बिकने वाले टीकों की कीमत कम करने का सुझाव दिया है. नारायण हेल्थकेयर के अध्यक्ष डॉ. देवी शेट्टी कहते हैं, ''निजी अस्पतालों में एक खुराक की औसतन कीमत 1,000-1,200 रुपए है. दो खुराक का पर करीब 3,000 रुपए खर्च होंगे. एक युगल के लिए, टीके की पूरी खुराक का अर्थ है कि उन्हें 6,000 रुपए देने होंगे. इसके अलावा परिवार के अन्य सदस्य भी हैं. कितने लोग इसे वहन कर सकते हैं? बीते कुछ महीने मजदूर वर्ग और गरीबों के लिए मुश्किल रहे हैं. कई लोगों पास आय का कोई स्रोत नहीं है. सरकार को पैसे और खुराक देने के वक्त को लेकर बातचीत करनी चाहिए.''
राज्यसभा में 4 अगस्त को भाजपा सांसद सुशील कुमारी मोदी के सवाल के जवाब में मंडाविया ने कहा: ''एक महीने में, हमने देखा कि निजी केंद्रों की ओर से हासिल किए गए टीकों का 7 फीसद से 9 फीसद तक अप्रयुक्त रह गया. ऐसे में हमने उन खुराकों को सरकारी कोटे में शामिल करने का फैसला किया. इसलिए निजी क्षेत्र का कोटा घटाने की जरूरत नहीं है. टीकाकरण सुचारू ढंग से हो रहा है.''
केंद्र पहले ही सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआइआइ) और भारत बायोटेक को 4,500 करोड़ रुपए की अग्रिम राशि का भुगतान कर चुका है. फिर भी, उत्पादन में उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है. सीरम महीने में लगभग 11-12 करोड़ खुराकें बना रहा है और उत्पादन बढ़ाने की उसकी कोई योजना नहीं है. वहीं, भारत बायोटेक एक महीने में लगभग 2.5 करोड़ खुराक का उत्पादन कर रहा है, जबकि जनवरी में यह कहा गया था कि यह जल्द ही एक महीने में बढ़कर चार करोड़ हो जाएगा. ऐसोला कहती हैं, ''यह तर्क कि निजी अस्पताल चेन को उच्च कीमत पर टीके बेचने से निर्माता अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं, काम नहीं कर रहा है. उत्पादन कम है क्योंकि निर्माता अपनी वर्तमान क्षमता तक पहुंच चुके हैं, इसलिए नहीं कि निर्माताओं के पास पैसा नहीं है.''
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर, जिसने अपनी पूरी वयस्क आबादी का टीकाकरण किया है, ने अपने निजी क्षेत्र का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए एक अनुकरणीय कार्य किया है. सरकार ने सभी जिलों और नगर निगमों को अस्पतालों के साथ बैठक करने को कहा ताकि उन्हें खरीद प्रक्रिया के बारे में जागरूक किया जा सके और उनकी मांग और टीकाकरण की क्षमता को नोट किया जा सके. इसके आधार पर खुराक आवंटित की गई. उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर में भी इसी तरह की सफलता देखी गई—जुलाई में जिले में किए गए टीकाकरण का 40 फीसद निजी केंद्रों में किया गया था.
अपोलो अस्पताल, दिल्ली के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर डॉ. अनुपम सिब्बल कहते हैं, ''हमें खरीद में किसी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा.'' अपोलो समूह निजी क्षेत्र में सबसे बड़ा टीका प्रदाता रहा है. उन्होंने केवल तीन हफ्तों में दस लाख टीके की खुराकें लगाईं और सितंबर तक दो करोड़ खुराक का लक्ष्य रखा है. सिब्बल कहते हैं, ''हमं भी टीके लगवाने में लोगों की हिचकिचाहट जैसी कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ा—हर बार जब मीडिया में कोई रिपोर्ट आती है, तो लोग टीकों की सुरक्षा पर सवाल उठाने लगते हैं. हमारे डॉक्टर जानकारी मांगने वाले लोगों के सारे सवालों के जवाब देते हैं ताकि उन्हें जागरूक किया जा सके. हमने टीकों से मिलने वाली सुरक्षा पर शोध भी किया और इससे कई लोगों को अपनी झिझक दूर करने में मदद मिली है.''
वहीं, बेंगलूरू में एक प्रमुख निजी टीका प्रदाता फोर्टिस बेंगलूरू का कहना है कि 18 से ऊपर के सभी के लिए टीकाकरण की शुरुआत के बाद, अस्पताल को मांग बढ़ाने के लिए काम करना पड़ा. बन्नेरघट्टा रोड पर स्थित फोर्टिस की मेडिकल डायरेक्टर डॉ. प्रिया श्रीधरन का कहना है कि अस्पताल ने टीकाकरण को लेकर जागरूकता अभियानों के बाद मांग में वृद्धि देखी है. वे कहती हैं, ''हमें लोगों को बताना पड़ा कि आप टीका लगवाने के बाद भी कोविडग्रस्त हो सकते हैं, लेकिन उस स्थिति में आपको कोविड का गंभीर संक्रमण नहीं होगा.''
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की रिप्रोडक्टिव (आर) संख्या बढ़कर 1 से अधिक हो गई है, जिसका अर्थ है कि पहले से ही संक्रमित व्यक्ति से औसतन एक से अधिक व्यक्ति संक्रमित हो रहे हैं और करीब 43 जिलों में कुल सकारात्मकता दर 10 फीसद से अधिक है, इसलिए देश को चाहिए कि हर महीने आपूर्ति होने वाले टीकों की पूरी खेप का उपयोग करने के लिए हरसंभव प्रयास करे. स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, तमिलनाडु तथा केरल सहित आठ राज्यों में आर वैल्यू 1 से अधिक है. विशेषज्ञों की मानें तो वहां तेजी से टीकाकरण प्राथमिकता होनी चाहिए. विशेष रूप से केरल, असम, हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में जहां सेरोपोजिटिविटी कम है, यह दर्शाता है कि वहां लोग वायरस के संपर्क में कम आए या यहां उनके अंदर ऐंटीबॉडी कम तैयार हुई. पर्याप्त टीकाकरण के जरिए ही तीसरी लहर के प्रभाव को कम किया जा सकता है.