रैपिड टेस्ट किटः जांच किट पर आंच

चीनी रैपिड ऐंटीबॉडी टेस्टिंग किट पर मचे हंगामे ने ‘खराब’ उपकरण से लेकर लंबी आपूर्ति शृंखला और व्याख्या की असहमतियों और मुनाफाखोरी तक की अनेक परेशानियों का पर्दाफाश किया.

सुरक्षा की पहली पंक्ति चेन्नै के टेस्टिंग सेंटर में रक्त के नमूने लेते स्वास्थ्य कर्मचारी
सुरक्षा की पहली पंक्ति चेन्नै के टेस्टिंग सेंटर में रक्त के नमूने लेते स्वास्थ्य कर्मचारी

सोनाली आचार्जी

एयर इंडिया की एक कार्गो उड़ान 16 अप्रैल को नई दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरी. यह चीन की मेडिकल टेक्नोलॉजी फर्म गुआंगझोउ वोंडफो बायोटेक से 2,76,000 रैपिड ऐंटीबॉडी टेस्टिंग किट लेकर आया था. किट के आने का खासी धूमधाम से स्वागत किया गया. खून के नमूनों में ऐंटीबॉडी की मौजूदगी का पता लगाकर कोविड-19 के संभावित फैलाव की जांच के लिए इन किट का इस्तेमाल होना था. उक्वमीद की जा रही थी कि ये किट वायरस के फैलाव का सही-सही नक्शा बनाने की भारत की कोशिशों में अहम भूमिका अदा करेंगे.

भारत ने 29 अप्रैल तक 7,70,764 टेस्ट किए थे. इसके बावजूद भारत, लॉकडाउन के मुकाबले बड़े पैमाने पर टेस्ट को तरजीह देने वाले दक्षिण कोरिया या अमेरिका सरीखे देशों की टेस्ट दरों से बहुत पीछे था. दोनों देशों ने रैपिड ऐंटीबॉडी टेस्ट का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया और यही भी एक वजह थी कि उनके टेस्ट की तादाद इतनी ज्यादा थी. चेन्नै स्थित मैट्रिक्स लैब के डायरेक्टर सुरेश कुलंदैवेल, जिनके पास इस टेस्टिंग किट के आयात के लिए भारतीय दवा महानियंत्रक (डीसीजीआइ) का लाइसेंस है, करीब एक हक्रते से इस कार्गो जहाज का इंतजार कर रहे थे.

वे कहते हैं, ‘‘कस्टम की मंजूरियों में कुछ देरी हुई.’’ हालांकि, इनके आने से मिलने वाली राहत भी ज्यादा वक्त कायम नहीं रह सकी. दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुंसधान परिषद (आइसीएमआर) ने इन किट के मिलते ही उन्हें देश भर के राज्यों को बांट दिया. मगर जल्दी ही राजस्थान, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल से शिकायतों का तांता लग गया, जिनमें इन किट के नतीजों की शुद्धता पर सवाल उठाए गए थे.

राजस्थान को 30,000 किट मिले थे. इनका इस्तेमाल उसने कई नमूनों की जांच के लिए किया, जिनमें से 36 पॉजिटिव पाए गए. मगर जब तस्दीक के लिए पीसीआर (पॉलीमरेज चेन रिऐक्शन) तरीके से टेस्ट किए गए तो वे नेगेटिव आए. यह गुत्थी सुलझाने के लिए राजस्थान के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी ऑफ हेल्थ रोहित के. सिंह ने डॉक्टरों और माइक्रोबायोलॉजिस्ट की एक जांच समिति गठित की. उन्होंने कम से कम आठ दिन पहले—उनके खून के नमूनों में ऐंटीबॉडी के प्रकट होने के लिए यह पर्याप्त अवधि थी—पीसीआर पद्धति के जरिए कोविड-19 का टेस्ट किए जाने पर नेगेटिव पाए गए 168 मरीजों पर ऐंटीबॉडी टेस्ट किया. चीनी टेस्ट किट ने उनमें से महज नौ को कोविड-19 का पॉजिटिव मरीज पाया. तब आइसीएमआर को नोटिस भेजा गया और उसे बताया गया कि इन किट की सटीकता महज 5.4 फीसद है.

गुणवत्ता नियंत्रण

आइसीएमआर ने 27-28 मार्च को वोंडफो से 5,00,000 किट की निविदा को मंजूरी दी थी, इसके अलावा अन्य 2,50,000 किट का ऑर्डर चीनी फर्म झूहाई लिवजॉन डायग्नोस्टिक्स को दिया जा रहा था. एजेंसी का कहना है कि ये किट राज्यों के आग्रह पर खरीदी जा रही थीं. आइसीएमआर के ऑर्डर देने के बाद 5 अप्रैल को ऑक्सफोर्ड यूनिवॢसटी के शोधकर्ताओं ने पाया कि वोंडफो के किट की एक खेप, जो ब्रिटेन के ऑर्डर पर भेजी गई थी, ठीक से काम नहीं कर पाई या उसके नतीजे भरोसेमंद जांच की कसौटी पर खरे नहीं उतरे. बताया गया कि ब्रिटेन ने करीब 20 लाख किट के लिए 2 करोड़ डॉलर का भुगतान कर दिया था और अब वे उसके वापस मिलने की उक्वमीद कर रहे हैं. ऑल इंडिया ड्रग ऐक्शन नेटवर्क (एआइडीएएन) की सह-संयोजक मालिनी ऐसोला कहती हैं, ''अगर हम चीन से किट खरीद रहे थे और उनकी गुणवत्ता को लेकर दुनिया भर में सवाल उठ रहे थे, तो सौदे से पहले ज्यादा पड़ताल करनी चाहिए थी.’’

अलबत्ता वोंडफो से 5,00,000 किट खरीदने की निविदा में एक शर्त शामिल थी जिसमें कहा गया था कि गुणवत्ता की परख के लिए आइसीएमआर शिपमेंट से पहले किट की रैंडम जांच का अपना अधिकार सुरक्षित रखती है. भारत में एचआइवी और वायरल हेपेटाइटिस डायग्नोसिस पर काफी काम कर चुके मेडिसिन्स सैंस फ्रंटियर्स की रीजनल हेड लीना मेंघानी कहती हैं, ''जब मैंने ऐंटीबॉडी टेस्टिंग पर (देशों की) इतनी ज्यादा निर्भरता के बारे में सुना तो मैं हैरान थी. पहले वायरल हेपेटाइटिस (की जांच के लिए ऐंटीबॉडी किट का इस्तेमाल करते हुए) हमने पाया कि इन किट की गुणवत्ता की परख कर पाना मुश्किल होता है और इनके बहुत ज्यादा फॉल्स नेगेटिव नतीजों का इतिहास रहा था.''

आइसीएमआर की निविदा शर्तों के मुताबिक, कोई भी वस्तु अस्वीकार्य पाए जाने पर लौटा दी जाएगी और समयबद्ध ढंग से उसे बदलना होगा. 16 अप्रैल को 2,76,000 किट की खेप मिलने पर एजेंसी ने रैंडम जांच की थी या नहीं, यह पक्का नहीं है. आइसीएमआर ने इस पर सवालों का जवाब नहीं दिया.

हमसे गलती कहां हुई?

आइसीएमआर ने 27 अप्रैल को एक नोटिस जारी किया, जिसमें राज्यों से यह कहकर जांच किट का इस्तेमाल रोकने को कहा गया था कि इन्हें लौटाया जाना है. आइसीएमआर की अधिसूचना में कहा गया कि इन किट ने 'अच्छे प्रदर्शन के शुरुआती वादे के बावजूद अपनी संवेदनशीलता में भारी फर्क प्रदर्शित किया' है. इस पर भारत स्थित चीनी दूतावास ने कड़ी प्रतिक्रिया की. चीनी काउंसलर जी रोंग ने कहा कि ''कुछ लोगों का चीनी उत्पादों को खराब करार देना अनुचित और गैरजिम्मेदाराना'' है. उन्होंने और किट के दोनों निर्माताओं ने कहा कि ये किट प्रमाणित हैं और इशारा किया है कि दिक्कत अनुचित तरीके से रखरखाव की वजह से हो सकती है. अभी तक आधिकारिक जांच न होने की वजह से किसी को ठीक-ठीक दोषी ठहरा पाना मुश्किल है; लेकिन कुछ संभावित गलतियां तो दिखाई दे ही रही हैं.

पहली, गुणवत्ता की परख में हमने शुरुआत से गलती की हो सकती है. यूरोपीय कमिशन सरीखी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने कुछ अनिवार्य मानदंड तय किए हैं, जिनके आधार पर रैपिड ऐंटीबॉडी किट की जांच की जानी चाहिए. इनमें शामिल हैं: जांच का प्रकार, जांच का स्वरूप, मापा गया लक्ष्य, वे लोग जिन पर ये टेस्ट किए जा सकते हैं, जरूरी नमूने का प्रकार, टेस्ट किट कैसे रखी जानी हैं, इनका इस्तेमाल करने वाले कर्मचारियों की जरूरी योग्यता, नतीजों की व्याख्या के लिए दी गई हिदायतें और फॉल्स पॉजिटिव और फॉल्स नेगेटिव परिणामों की संभावित सीमाएं.

कुलंदैवेल कहते हैं, ''लाइसेंस जारी होने से पहले मैंने एक नमूना किट जांच के लिए तमाम जरूरी कागजात के साथ पुणे के राष्ट्रीय वायरोलॉजी संस्थान (एनआइवी-पुणे) को भेजी थी.'' एनआइवी-पुणे ने वोंडफो किट को मंजूरी देने के लिए किन नियम-कायदों का इस्तेमाल किया, यह सार्वजनिक नहीं किया गया है. यह भी साफ नहीं है कि लैबोरेटरी से मंजूर किए गए रैपिड किट के दूसरे ब्रांड को गुणवत्ता, इस्तेमाल में आसानी और अन्य सीमाओं में वर्गीकृत किया गया था और क्या आइसीएमआर ने वोंडफो को किट का ऑर्डर देने का फैसला भी इन्हीं आधारों पर लिया था.

इन किटों का इस्तेमाल और इनके नतीजों की व्याख्या भी, जैसा कि इनके निर्माता ने बताया है, एक मुद्दा हो सकता है. सभी राज्यों ने किट के साथ परेशानी की रिपोर्ट नहीं दी हैं. मिसाल के लिए, छत्तीसगढ़ और गुजरात ने कोई शिकायत नहीं की. गुजरात ने तो एक कदम और आगे बढ़कर 33 में से 30 जिलों में आइसीएमआर से प्राप्त 24,000 किट का इस्तेमाल शुरू कर दिया. गुजरात की प्रिंसिपल सेक्रेटरी ऑफ हेल्थ जयंती रवि कहती हैं कि किट इस्तेमाल के लिए कैलिब्रेट की गई थीं और स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षण दिया गया कि उनका इस्तेमाल कैसे करना है. जयंती कहती हैं, ''यह टेस्ट केवल निगरानी के लिए है, ताकि हमें यह पता चल सके कि किन इलाकों में कोविड का असर हो सकता है.''

छत्तीसगढ़ को 4,800 किट मिली थीं और उसने 392 टेस्ट किए जिनमें से चार पॉजिटिव निकले. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव कहते हैं, ''चीनी किट के साथ कोई परेशानी नहीं है. लेकिन उनकी सटीकता को लेकर (उठ रहे) सवालों को देखते हुए हमने दक्षिण कोरियाई फर्म एसडी बायोसेंसर को 400 रुपए प्रति किट के हिसाब से 25,000 किट का ऑर्डर देने का फैसला लिया. ये आ भी गई हैं. हम इसी हफ्ते इनका इस्तेमाल करना शुरू करेंगे, मगर केवल इम्यूनोलॉजिकल स्थिति की जांच के लिए और यह देखने के लिए कि हॉटस्पॉट या गैर-हॉटस्पॉट क्षेत्रों में वायरस के होने की संभावना है या नहीं. अगर एक शख्स रैपिड टेस्ट में पॉजिटव मगर पीसीआर में नेगेटिव आता है, तो इसका यह अर्थ हो सकता है कि वह किसी न किसी वक्त वाहक था. संपर्कों का पता लगाने के लिए इस किस्म का डेटा उपयोगी है.'' एसडी बायोसेंसर ने कहा है कि उसे आइसीएमआर से भी 1,00,000 किट का ऑर्डर मिला है. किट का निर्माण हरियाणा में मानेसर के नजदीक कारखाने में किया जाता है.

चीनी किट के इस्तेमाल के कुछ निश्चित नियम हैं. पैथोलॉजिस्ट और डॉ. डैंग्स लैब के सीईओ डॉ. अर्जुन डैंग कहते हैं, ''रैपिड टेस्ट प्रोटोकॉल से मैंने जो बात समझी है, वह यह कि उनमें से ज्यादातर को एक निश्चित तापमान—करीब 25-30 डिग्री सेल्सियस—पर रखना होता है. अगर इन किट को थोड़ी देर के लिए भी (खुले में) छोड़ दिया जाए, तो सटीकता पर असर पड़ सकता है. खोलने के बाद निश्चित वक्त के भीतर उनका इस्तेमाल भी करना ही होता है.''

वोंडफो बायोटेक भारतीय एजेंसियों के साथ सहयोग करते हुए मामले की तहकीकात करने के लिए राजी हुई है. कंपनी ने एक पत्र में यह भी बताया है कि ऐंटीबॉडी टेस्ट के मरीजों का पता लगाने की दर तब कहीं ज्यादा बढ़ जाती है जब शरीर वायरस से उबरते हैं और अगर वायरस ने ऐंटीबॉडी को पहले ही बेअसर कर दिया है तो ऐंटीबॉडी टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए लोग पीसीआर टेस्ट में नेगेटिव नतीजे दिखा सकते हैं. इसी तरह पीसीआर टेस्ट में पॉजिटिव नतीजे के साथ-साथ ऐंटीबॉडी टेस्ट में नेगेटिव नतीजा इसलिए आ सकता है क्योंकि खून में वायरस तो मौजूद है लेकिन ऐंटीबॉडी का निर्माण नहीं हुआ है. चेन्नै स्थित प्राइमजेन हेल्थकेयर लैब्स के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. श्रीधर मायावन कहते हैं, ''एक टेस्ट वायरस का पता लगाता है, दूसरा ऐंटीबॉडी का पता लगाता है. दोनों एक ही वक्त मौजूद नहीं भी हो सकते हैं. ऐंटीबॉडी टेस्ट संक्रमण का प्रभाव पहले जानने के लिए किया जाता है. वायरल संक्रमण के अलग-अलग चरणों में अलग-अलग टेस्ट का इस्तेमाल किया जाता है. डायग्नोस्टिक किट परखने के लिए कुछ सौ नहीं ज्यादा नमूनों की जरूरत होती है.''

कीमत को लेकर विवाद

रैपिड किट विवाद से कुछ और मुद्दे भी जुड़े हैं. एक बड़ा आरोप निजी मुनाफाखोरी का है.

चीनी कंपनियों ज्यादातर चिकित्सा उपकरणों के लिए अग्रिम भुगतान की उम्मीद करती हैं. वोंडफो से मंगवाए गए उपकरणों के लिए मैट्रिक्स लैब्स ने 5,00,000 किट के लिए 12.25 करोड़ रुपए का पूरा भुगतान किया है. अलबत्ता मैट्रिक्स ने ये किट सीधे आइसीएमआर को नहीं बेचे. यह बिक्री एक डीलर, दिल्ली स्थित रेयर मेटाबॉलिक्स के जरिए हुई, जो मैट्रिक्स के आयातित किट का अकेला वितरक होने का दावा करता है. (हालांकि मैट्रिक्स ने तमिलनाडु सरकार को ये किट एक अन्य डीलर शान बायोटेक ऐंड डायग्नोस्टिक्स के जरिए बेचे.)

रेयर मेटाबॉलिक्स ने मैट्रिक्स से ये किट 21 करोड़ रुपए में खरीदे और फिर आइसीएमआर को 30 करोड़ रुपए में बेचे, जिससे उसे इनकी कीमत 600 रुपए प्रति किट पड़ी. मैट्रिक्स का कहना है कि रेयर ने उससे पूरे भुगतान का वायदा किया था लेकिन उसे अभी तक महज 12.75 करोड़ रुपए ही मिले हैं. मामले के निपटारे के लिए 24 अप्रैल को दिल्ली हाइकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. आखिर में सहमति इस बात पर बनी थी कि मैट्रिक्स आइसीएमआर को दी जाने वाली बाकी 2,24,000 किट सप्लाइ करेगा और रेयर मैट्रिक्स को 5,00,000 किट के लिए 21 करोड़ रुपए का पूरा भुगतान करेगा.

मैट्रिक्स को बाकी 2,24,000 किट और उसके साथ 5,00,000 और किट की नई खेप भी 27 अप्रैल को मिल गई. (इस नई खेप में से 50,000 किट तमिलनाडु सरकार को चली जाएंगी जिसने आइसीएमआर के बराबर दाम पर ही अपना अलग ऑर्डर दिया था.) इस तरह मैट्रिक्स के पास 4,50,000 किट बचेंगी. हाइकोर्ट ने कहा है कि वह ये किट किसी भी राज्य सरकार को या चाहे तो किसी भी निजी संस्था को सीधे बेच सकता है पर उसका दाम 400 रुपए प्रति किट से ज्यादा नहीं होना चाहिए. रेयर मेटाबॉलिक्स के डायरेक्टर कृपाशंकर गुप्ता ने संपर्क करने पर कुछ भी कहने से मना कर दिया.

अदालत ने इस सवाल पर कोई व्यवस्था नहीं दी कि आइसीएमआर को 5,00,000 किट के लिए रेयर मेटाबॉलिक्स को पूरे 30 करोड़ रुपए का भुगतान करने की जरूरत है या नहीं. आइसीएमआर सफाई में कह चुका है कि उसे 528-795 रुपए की कीमत पर रैपिड टेस्ट किट खरीदने की इजाजत दी गई थी. इसके लिए जारी निविदा पर चार बोलियां आईं और उसने सबसे कम दाम वाली बोली को चुन लिया गया. ऐसोला कहती हैं, ''रैपिड टेस्ट की कच्ची लागत बिल्कुल कम से कम है. यह रहस्य ही है कि लागत कम से कम रखने के लिए सीधे आयातक से खरीदने की बजाए हमने इतनी लंबी आपूर्ति शृंखला को क्यों चुना. अगर लागत कम रखने के लिए किया गया, तो गुणवत्ता खराब निकली. अगर यह समय बचाने की गरज से किया गया तो इससे वह मकसद भी पूरा नहीं हुआ. हम लॉकडाउन के पांचवें हफ्ते में हैं और तमाम राज्यों में व्यापक पैमाने पर जांच अब भी शुरू नहीं हुई है.''

अब क्या?

भारत की जांच दर में अलग-अलग राज्यों में खासा फर्क है. जहां जांच की संक्चया कम है, मसलन पश्चिम बंगाल और बिहार (प्रति दस लाख लोगों में क्रमश: 121 और 162 जांच), उनका कहना है कि वे टेस्ट किट की सप्लाइ का इंतजार कर रहे हैं. जिन राज्यों में जांच की दर ज्यादा है लेकिन साथ ही संक्रमण की दर भी ज्यादा है, मसलन दिल्ली और राजस्थान में (प्रति दस लाख लोगों में क्रमश: 1,880 और 1,885 जांच), उनका भी कहना है कि उन्हें और ज्यादा किट की जरूरत है. मेंघानी कहती हैं, ''गुणवत्ता और इलाज के नजरिए से सुनहरा मानक पीसीआर टेस्ट ही है.

एचआइवी, वायरल हेपेटाइटिस और टीबी डायग्नोसिस के हमारे इतिहास को देखते हुए भारत के पास पीसीआर टेस्ट करने की खासी अच्छी क्षमता है.'' यह सच है. न केवल भारत में हम पांच कंपनियों को पीसीआर किट बनाने की मंजूरी दे चुके हैं, बल्कि हमारे यहां इसका बुनियादी ढांचा भी है. आंध्र प्रदेश में हरेक जन स्वास्थ्य केंद्र पर ट्रू-नैट मशीन मौजूद है—जो पीसीआर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करती है. यहां मुद्दा मशीन की कमी का नहीं बल्कि उनमें इस्तेमाल किए जाने वाले रसायनों की कमी का है.

मेंघानी कहती हैं, ''पीसीआर टेस्ट में आरएनए को डीएनए में बदलने की खातिर जरूरी रिएजेंट्स मोटे तौर पर रोशे और थर्मोफिशर के पास हैं.'' इन रसायनों की फिलहाल दुनिया भर में कमी है. इन रसायनों का भारत में कितना भंडार है, इसके कोई आंकड़े मौजूद नहीं हैं. रिएजेंट्स की कमी और देश की विशाल आबादी को देखते हुए हमारी राष्ट्रीय क्लस्टर नियंत्रण रणनीति की खातिर रैपिड टेस्ट किट जरूरी हैं. इनसे जन स्वास्थ्य अधिकारियों को उन इलाकों को तेजी से पहचानने और पृथक करने में मदद मिलेगी जहां कोविड-19 का कुछ न कुछ संक्रमण रहा हो सकता है. डीसीजीआइ और आइसीएमआर ने रैपिड टेस्ट किट के 100 सप्लायरों का मंजूरी दी है. इनमें से 68 फर्म चीनी किट की आपूर्ति करती हैं और उनमें से भी 14 वोंडफो की किट बेचती हैं. राज्य इनमें से किन्हीं भी सप्लायरों को ऑर्डर देने के लिए स्वतंत्र हैं.

कोविड-19 के लक्षणहीन लोगों की पहचान का अकेला तरीका भरोसेमंद डायग्नोस्टिक उपकरण ही हैं. आइसीएमआर ने कहा है कि खराब चीनी किट के लिए देश को एक पाई भी नहीं चुकानी पड़ी है. अलबत्ता समय और भरोसा तो देश ने गंवाया ही और यही वह चीज है जो महामारी के इन दिनों में हम गवारा नहीं कर सकते.

आइसीएमआर ने राज्यों से उन टेस्ट किट का इस्तेमाल रोकने को कहा है जो उसने खरीदी हैं क्योंकि ये ठीक से काम नहीं कर रही हैं जांच पर विवाद रैपिड ऐंटीबॉडी टेस्ट की उपयोगिता को लेकर जानकारों की राय बंटी हुई है

अनिवार्य उपकरण

तेजी नतीजे: रैपिड ऐंटीबॉडी टेस्ट, पीसीआर टेस्ट के मुकाबले ज्यादा तेज और सस्ते हैं और सामुदायिक फैलाव की थाह लेने के साथ कोविड-19 से प्रभावित होने वाले संभावित इलाकों की पहचान करने के लिए बेहद जरूरी हैं

कम ही विकल्प: सुनहरा मानक तो पीसीआर टेस्ट ही है. अलबत्ता इनके लिए जरूरी रासायनिक रिएजेंट्स की सप्लाइ दुनिया भर में कम है

जबरदस्त जरूरत: लक्षणहीन वाहकों का पता लगाने और संपर्कों का पीछा करने का अकेला तरीका डायग्नोसिस है. ऐंटीबॉडी और पीसीआर टेस्ट करना आदर्श हैं, जिसमें ऐंटीबॉडी टेस्ट निगरानी और पीसीआर टेस्ट तस्दीक के लिए किए जाएं

समस्या बनता समाधान

सटीकता का मुद्दा: इनके नतीजों की निश्चितता और संवेदनशीलता में भारी फर्क हो सकता है. और कई देशों ने गुणवत्ता पर सवाल उठाए हैं. इनके रखने और इस्तेमाल के कायदों को लेकर भी निश्चित मुश्किलें पेश आ रही हैं

लंबी आपूर्ति शृंखला: स्वदेशी ऐंटीबॉडी किट बाजार में नहीं आई है. आयात करने या विदेशी कंपनियों से खरीदने पर निजी मुनाफाखोरी और जवाबदेही के मुद्दे पैदा हो सकते हैं

व्याख्या की समस्याएं: रैपिड ऐंटीबॉडी टेस्ट के नतीजों की तुलना हमेशा पीसीआर टेस्ट के नतीजों से नहीं की जा सकती. कोविड-19 से उबर चुके लोगों के खून में उनके भले-चंगे होने के कुछ समय बाद ऐंटीबॉडी होंगे

वायरस की जांच ओडिशा के एक रैपिड टेस्ट सेंटर में नमूनों की जांच

साथ में रोमिता दत्ता, किरण डी. तारे और रोहित परिहार

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