समरसता खिचड़ीः शेफ, स्वाद और सियासत
भाजपा की सियासी खिचड़ी के लिए दाल-चावल दलितों के घर से आए मगर शेफ नागपुर से, दलित शेफ का उठा सवाल

नागपुर से शेफ विष्णु मनोहर अपने साथ 20 फीट व्यास, छह फीट गहराई वाली कढ़ाई लाए और रामलीला मैदान में भीम महासंगम में भाजपा के लिए खिचड़ी पकाई. वैसे फाइन आर्ट के छात्र रहे शेफ विष्णु के लिए खिचड़ी बनाना बड़ी बात नहीं है. इससे पहले अक्तूबर, 2018 में वे नागपुर के चिटनिस पार्क में 3,000 किलो खिचड़ी बनाने का रिकार्ड अपने नाम दर्ज करा चुके हैं. नागपुर में खिचड़ी बनाने का मकसद इस व्यंजन को राष्ट्रीय व्यंजन घोषित कराने की मुहिम चालू रखना था जबकि रामलीला मैदान में खिचड़ी पकाने का मकसद खांटी सियासी था. मनोहर कहते हैं, ''रामलीला मैदान में खिचड़ी बनाने का ऑफर मिला तो मेरे मन में भी यह बात आई थी. फिर मैंने सोचा, एक ही चीज को कई चश्में से देखा जा सकता है. मैं शेफ हूं और मेरा काम स्वादिष्ट खाना बनाकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसे चखाना है. ये मेरे लिए एक मौका है.'' वे कुछ चुटकी भरे अंदाज में कहते हैं, ''स्वस्थ रहने के लिए खिचड़ी से बेहतर व्यंजन और कुछ हो ही नहीं सकता. सेहतमंद शरीर में विचार भी स्वस्थ आते हैं. सियासत में मन और शरीर से स्वस्थ्य लोगों की बहुत जरूरत है.''
मनोहर अप्रैल, 2017 में भी वल्र्ड गिनेस बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं. उन्होंने लगातार 53 घंटे तक शाकाहारी व्यंजन बनाने का रिकॉर्ड बनाया था. दिसंबर, 2018 में उन्होंने जलगांव में 2,500 किलो बैंगन का भर्ता बनाया था. जाहिर है, महाराष्ट्र में ठाणे, नागपुर, मुंबई, पुणे और औरंगाबाद में विष्णुजी की रसोई नाम से शाकाहारी रेस्त्रां की शृंखला के मालिक मनोहर शाकाहारी व्यंजन के महारथी हैं. सियासी खिचड़ी बनाने का मौका उन्हें पहली बार मिला.
भाजपा का मकसद दिल्ली के तीन लाख दलितों के घर से मुट्ठी भर चावल और दाल मंगाकर उन्हें पार्टी से जोडऩा था. लेकिन आपको क्या अजीब नहीं लगता है कि शेफ की स्वादिष्ट दुनिया में नामी गिरामी लोगों के बीच दलित नाम ढूंढने से नहीं मिलता? मनोहर जवाब देते हैं, ''दलित और अनुसूचित जनजातियों के व्यंजन बेहद स्वादिष्ट होते हैं. वे खाना पकाने की कला में भी माहिर होते हैं. लेकिन दूसरे पेशों की तरह यहां भी वे फ्रंट पर नजर नहीं आते. हालांकि, मेरे पूरे बिजनेस में खाना पकाने वाले करीब साठ फीसदी लोग इन्हीं समुदायों के हैं.'' विष्णुजी की रसोई की मशहूर डिश लंबी रोटी बनाने के लिए खासतौर पर आदिवासी हलबी समुदाय के लोग ही रखे जाते हैं. इस डिश में गेहूं के आंटे को डेढ़ से दो घंटे तक माडऩा होता है. फिर रोटी बेलकर इसे उलटे मटके पर पकाया जाता है. ऐसे और भी कई व्यंजन हैं. लेकिन शायद इनके बीच की झिझक कम पढ़ाई लिखाई, आर्थिक तंगी इन लोगों को आगे नहीं आने देती. मनोहर संकोच के साथ यह कहते भी हैं कि सोने पर सुहागा होता अगर यह खिचड़ी कोई दलित शेफ ही पकाता.
महाराष्ट्र में खिचड़ी को पूर्णान्न भी कहा जाता है. इसका मतलब है ऐसा भोजन जिसमें सारे पोषक तत्व मौजूद हों. अब तो चुनाव नतीजे ही बताएंगे कि भाजपा के लिए यह सियासी पूर्णान्न कितना पौष्टिक साबित होगा. दलित शेफ के सवाल पर इस आयोजन के सूत्रधार मोहन लाल गिहारा कहते हैं, ''सुझाव उत्तम है. अगर शीर्ष नेतृत्व से अनुमति मिली तो 2019 और विधानसभा चुनाव से पहले हम मंडल स्तर पर भी खिचड़ी पकवाएंगे और तब दलितों के हाथ से ही खिचड़ी पकाने के बारे में विचार किया जा सकता है.''
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