अनोखी दास्तां कहतीं दीवारें

पब्लिक आर्ट या जन कला रचनात्मकता की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती देने वाली दिलचस्प घटना और अच्छे-खासे पैसे का उद्योग बन गई है. हाल ही के कुछ सबसे दिलचस्प पब्लिक आर्ट प्रोजेक्ट्स पर एक नजर

फ्रेस्को ससून डॉक्स में नवंबर 2017 को हुए स्टार्ट मुंबई फेस्टिवल का नजारा
फ्रेस्को ससून डॉक्स में नवंबर 2017 को हुए स्टार्ट मुंबई फेस्टिवल का नजारा

बेस्ट की डबल डेकर बस पर बने सुनहरे पंखों में रात के वक्त गजब की चमक आ जाती है और यह अपने चारों तरफ खड़ी कांच और इस्पात की इमारतों को फीका कर देती है. इसके रचयिता सुदर्शन शेट्टी के लिए यह  मुंबई की मध्यमवर्गीय जिंदगी की कशीदाकारी है.

लाल रंग की डबल डेकर बसें 1937 से चल रही हैं. उनकी तादाद जरूर 1942 के 242 से घटकर 122 पर आ गई है, हालांकि बेस्ट ने कहा है कि 2019-20 तक इसमें और कमी नहीं की जाएगी. शेट्टी ने बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स के मेकर मैक्सिटी में विशाल स्थापत्य के जरिए उस नश्वरता और बीते जमाने की यादों को संजोया है जो मुंबई की परिवहन की विरासत को बताती हैं.

9,000 किलो की यह कलाकृति केवल अपने वजन की वजह से ही इतनी विशाल नहीं है बल्कि इसलिए भी कि इसके ऊपर पुरानी यादों और इस एहसास का भारी बोझ भी तारी है कि ज्यों-ज्यों हम भविष्य में आगे बढ़ते जाते हैं, वैसे-वैसे जानी-पहचानी चीजें लुप्त हो रही हैं.

चाहे दीवारों पर दास्तानें बयां करती पेंटिंग हों या निजी जद्दोजहद की जयकार करती स्थापत्य कलाएं, जन कला ने कुछ सालों के दौरान देश में रफ्तार पकड़ ली है. कलाकार कला को सीधे सड़कों पर ले जाकर कला दीर्घाओं की एकरसता तोडऩे की कोशिश कर रहे हैं.

स्टार्ट इंडिया फाउंडेशन के अक्षत नौरियाल कहते हैं, "कला का मकसद प्रतिक्रिया पैदा करना है. एडगर डेगास ने कहा था कि कला वह नहीं है जो आप देखते हैं, बल्कि वह है जो आप दूसरों को दिखाते हैं. इसमें लोगों को झकझोरने और विचार या संवाद पैदा करने की ताकत होती है.

यह सियासी मायनों से लबरेज हो या न हो, पर यही वह ताकतवर खूबी है जो कला में होती है, इसीलिए किसी भी संदर्भ में यह प्रासंगिक है.'' स्टार्ट इंडिया फाउंडेशन पिछले चार साल से जन कला परियोजनाओं पर काम कर रहा है. इनमें मुंबई के 142 साल पुराने ससून डॉक्स को नई सज-धज देना और दिल्ली में लोधी कॉलोनी के आसपास के इलाके को हिंदुस्तान का पहला पब्लिक आर्ट जिला बनाने के लिए 25 से ज्यादा स्ट्रीट आर्टिस्ट को साथ लाना शामिल है.

हालांकि यह अमेरिका और यूरोप जितनी लोकप्रिय तो नहीं है, पर जन कला ने देश में भी छाप छोड़ी है. एक मिसाल नई दिल्ली के एम्स फ्लाइओवर पर इस्पात की कोंपलें हैं. इनका सृजन 2008 में कलाकार विभोर सोगानी ने किया था. कई लोगों को ये आंख की किरकिरी मालूम देती थीं, पर फिर भी कलाकारों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई हैं.

जितीश कल्लाट कहते हैं, "अगर सरकार कला की दुनिया में विशेषज्ञों को फैसले लेने दे और कला को व्यापक सार्वजनिक जिंदगी का हिस्सा बनाने के तरीके सुझाने दे तो यह अद्भुत बात होगी.'' जितीश का छह मीटर ऊंचा और गोलाई में 17 मीटर फैला मूर्तिशिल्प "हियर आफ्टर हियर आफ्टर हियर'' ऑस्ट्रिया में स्थायी प्रदर्शन का हिस्सा है.

कलाकार और उनके समूह कला को सभी के लिए सुलभ बनाने की कोशिशें कर रहे हैं और इस वजह से देश में जन कला परियोजनाओं ने रफ्तार पकड़ ली है, बावजूद इसके कि दूरदृष्टि की कमी है और उन्हें गुंडागर्दी की वजह से नुक्सान भी उठाना पड़ता है.

फाउंडेशन फॉर इंडियन कंटेंपररी आर्ट (एफआइसीए) की विद्या शिवदास ऐसा नहीं मानतीं कि हिंदुस्तान में जन कला का चलन है. उन्हें लगता है कि खोज की पूजा सूद सरीखे कई कलाकार और क्यूरेटर सार्वजनिक जगहों पर अपनी कलाकृतियों के जरिए संवाद शुरू कर रहे हैं. एफआइसीए का जन कला अनुदान ऐसी ही एक पहल है. वे कहती हैं, "पर हमें और सहारे की जरूरत है.''

1. ससून डॉक्स

मुंबई

यह मुंबई की सबसे पुरानी गोदियों में से एक है जो 1875 में बनी थी. यह शहर के सबसे बड़े मछली बाजारों में से भी एक है.

हालांकि प्रोजेक्ट गैलरी स्पेसेज, जिसमें कलाकृतियां प्रदर्शित की गई थीं, अब बंद हो चुका है (प्रदर्शनी 11 नवंबर से 30 दिसंबर, 2017 तक खुली थी), पर कलाकार फैजान खत्री की कलाकृति जिसमें उलझे हुए तारों से बना कुत्ता दीवार पर पेशाब कर रहा है, अब भी यहां मौजूद है.

कोलियों की इस बस्ती को नया रूप-रंग देने के लिए दुनिया भर के तीस कलाकार यहां जुटे थे. यह स्टार्ट अर्बन आर्ट फेस्टिवल का हिस्सा था, जिसका आयोजन स्टार्ट इंडिया फाउंडेशन ने "सबके लिए कला'' के सूत्रवाक्य के साथ एशियन पेंट्स के सहयोग से किया था.

गोदी की दीवारों पर एक ही रंग से आम आदमी के पोर्ट्रेट उकेरे गए. बहुत सारे माध्यमों में काम करने वाले कलाकार समीर कुलावूर का "परफ्यूम ससून्य मछली बाजार की तीखी गंध के कसीदे पढ़ता था.

स्थानीय लोगों के चेहरों के साथ इनसाइड आउट प्रोजेक्ट मछली पकडऩे वाले समुदाय पर रोशनी डालने के इरादे से किया गया था. नौरियाल कहते हैं, "ऐसे शहर में जहां होर्डिंग पर आने के लिए सेलेब्रिटी होना पड़ता है, विचार यह था कि ससून गोदी के आम आदमियों को सितारों के तौर पर महिमामंडित किया जाए.''

2. फ्लाइंग बस

मुंबई

"कई बार जब हम यात्रा में होते हैं तो यह भूल जाते हैं कि हम आखिर हैं कौन!'' भारत के संभवतः सबसे महत्वपूर्ण पब्लिक आर्ट प्रोजेक्ट के पास लगे एक शिलापट्ट पर यह प्रसिद्ध कहावत दर्ज है. पंख सृजन, क्षय और पुनर्जीवन का प्रतीकात्मक या सांकेतिक निरूपण है.

कोई पूछ सकता है कि क्या शीशे और लोहे से बनी यह जगह कोई सार्वजनिक स्थान है लेकिन शेट्टी कहते हैं कि लोग अक्सर इसे देखने आते हैं क्योंकि यहां कोई भी आ सकता है. वे कहते हैं, सामान्यतः सारी कलाएं सार्वजनिक होनी चाहिए. गैलरी आभिजात्य या संभ्रांत लोगों की जगहें बनकर रह गई हैं.

फ्लाइंग बस मेरी उस उत्कंठा का उत्तर है कि यदि इतिहास उपलब्ध न हो तो मुझे क्यों यह याद रखने की जरूरत है कि हम कौन हैं, हम खुद को कहां देखते हैं और यहां मेरा तात्पर्य व्यक्तियों के इतिहास से नहीं है. प्रोजेक्टर की प्रतिकृति अतीत के वर्तमान से विलग होने का संकेत देती है.

क्रलाइंग बस स्मृतियों को ताजा करने वाला था.'' मेकर मैक्सिटी के मालिक मनीष मेकर ने 2010 में शेट्टी को यहां के लिए कुछ कलाकृति बनाने को कहा. मनीष चाहते थे कि यह शहरी कॉर्पोरेट पार्क एक कला स्थल भी बने. वे सेकंड हैंड बस की खोज में गए. इसके चांदी के पंख वड़ोदरा में बनाए गए और इसे यहां लगाने में तकरीबन एक साल का समय लगा.

3. मट्टनचेरी

कोच्चि

"गैलरी से बाहर सार्वजनिक स्थल पर'' 1990 से ही दक्षिण भारत में एक आंदोलन जैसा रहा है, जिसे रियास कोमू जैसे बड़े और प्रतिष्ठित क्यूरेटर मटनचेरी में अपने शो के माध्यम से आगे बढ़ाते रहे हैं. कोमू कहते हैं कि "मजदूर और कामगार वर्ग, आंतरिक विस्थापन, अतीत का अन्वेषण, अमूर्त संस्कृतियों, कथाओं और स्मृतियों के रूप में स्थानीय, सामाजिक, ऐतिहासिक और अस्थायी बदलावों ने मटनचेरी प्रोजेक्ट के लिए आधार बनाने में सहयोग दिया.

कोच्चि-मुजिरिस बिनाले के सह-संस्थापक कोमू कहते हैं, "मटनचेरी का विचार स्थापित सूक्ष्म जगत से आगे बढ़कर देखते हुए बहु-स्तरीय सौंदर्य, सांस्कृतिक, सामाजिक और अमूर्त भावनाओं की अभिव्यक्ति है. कोमू कहते हैं, "लोगों को गर्व के भाव से भरने के लिए पब्लिक आर्ट एक बड़ा माध्यम बनता है. लोग इसकी प्रशंसा तभी करेंगे जब यह केवल सांस्कृतिक सरोकारों वाला रहेगा.''

4. मापुसा की सजावट

गोवा

गोवा के अरिजित सेन, जिन्हें बहुत-से लोग भारत का पहला ग्राफिक उपन्यासकार (रिवर ऑफ स्टोरीज,1994) मानते हैं, आनंदपुर साहिब में विरासत-ए-खालसा नामक सात मंजिला भित्तिचित्रों के लिए जाने जाते हैं. उनका हालिया "मैपिंग मापुसा मार्केट'' प्रोजेक्ट कलाकारों, डिजाइनरों और आम जनता के परस्पर सहयोग से गोवा के मापुसा बाजार के बहुस्तरीय जीवन का चित्रण, साक्षात्कार और वीडियो संग्रह समेत विभिन्न दृष्टिकोणों से संजोने का प्रयास है.

सेन कहते हैं, "यहीं से लोककला का समावेश होता है. यह पहले से मौजूद है. क्या मोहर्रम का जुलूस लोककला का सुंदर उदाहरण नहीं है? इसके बारे में लोग बातें करने लगे हैं, बस इसलिए क्योंकि यह शब्द पश्चिम से आया है. इसका मतलब यह नहीं कि हम इन चीजों को लेकर सचेत होने शुरू हुए हैं. आनंदपुर साहिब के होला मोहल्ला के बारे में आप क्या कहेंगे? भारत में लोककला किसी प्रतिष्ठान या मूर्तियों में समा जाने भर से बहुत ऊपर है.''

5. अरावनी आर्ट प्रोजेक्ट

बेंगलूरू और कोलकाता

अरावनी आर्ट प्रोजेक्ट ट्रांसजेंडर, किन्नरों और उभयलिंगी कलाकारों की कला के संरक्षण में एक सुंदर सामूहिक प्रयास है. प्रोजेक्ट के प्रोड्यूसर विक्टर बास्किन के मुताबिक, "किन्नर समुदाय हमारे काम से सीधे तौर पर जुड़ा है क्योंकि वे हमारे इस सामूहिक कार्य के स्थायी सहयोगी हैं. हमारे दिमाग में शुरू से ही एक बात पूरी तरह स्पष्ट थी कि स्टाइल ऐसा होना चाहिए जिससे जुडऩे के लिए लोग खुद आगे आएं और इसमें सामुदायिक भागीदारी ज्यादा से ज्यादा रहे.''

प्रोजेक्ट की कला निर्देशक साधना प्रसाद कहती हैं कि हर समुदाय को एक स्वर चाहिए. "रोजमर्रा के अनुभवों में हम कला को संवाद में लेकर आते हैं.'' कोलकाता वॉल के लिए अरावनी आर्ट प्रोजेक्ट ने फ्रांसीसी भित्ति चित्रकार शिफूमि कोरोहोम के साथ हाथ मिलाया.

कोलकाता प्रोजेक्ट के बारे में प्रसाद बताती हैं, "हमने एशिया के सबसे बड़े रेडलाइट एरिया सोनागाछी के किन्नर सेक्सवर्कर्स के साथ काम किया. सेक्सवर्कर्स और किन्नर होने के कारण उन्हें दुत्कार कर हाशिए पर धकेल दिया गया है.

प्रोजेक्ट के जरिए उस समुदाय के लोगों के करीब आकर और उनके बारे में जानकर हमारा हृदय जहां गहरी पीड़ा से भर गया, वहीं हर्ष भी हुआ. ये भित्तिचित्र इन औरतों, उनकी जिंदगी और उनकी पसंद का जश्न मनाते हैं.''

6. रेलवे स्टेशन

मधुबनी

बिहार के मधुबनी रेलवे स्टेशन की दीवारें पारंपरिक मिथिला पेंटिंग्स से सजी हुई हैं. स्टेशन के दोनों तरफ प्लेटफॉर्म से लेकर टिकट खिड़की तक, प्रतीक्षालय से लेकर बाहरी दीवारों तक करीब 15,000 वर्गफुट क्षेत्र में बनी पेंटिंग्स दुनिया के सबसे बड़े आर्ट कैनवसों में शामिल होती हैं.

कुछ समय पहले तक मधुबनी रेलवे स्टेशन को भारत के सबसे गंदे रेलवे स्टेशनों में गिना जाता था. सब कुछ पिछले साल 2 अक्तूबर को बदल गया जब भारतीय रेलवे और 200 से ज्यादा स्थानीय कलाकारों ने अपने शहर के स्टेशन का रंग-रूप बदल देने का संकल्प लिया.

रेलवे ने पेंट, ब्रश मुहैया कराए तो कलाकारों ने भी फीस नहीं ली. मधुबनी के एनजीओ क्राफ्टवाला के राकेश झा बताते हैं, "इस प्रोजेक्ट से कलाकारों को भी सहयोग मिला है. रेलवे ने अपनी दीवार उन्हें दी. सारी पेंटिंग्स में बनाने वाले कलाकार की जानकारी के साथ उसका फोन नंबर भी दिया गया है ताकि कोई कलाप्रेमी जब चाहे सीधे अपनी पसंद के कलाकार से संपर्क साध सके. इससे बिचौलिए खत्म हो गए.''

7. बस अड्डे, ऑटो और रेल जंक्शन

राजस्थान

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने फ्लाइओवरों को सजाने का काम कराया था. उन्होंने बस अड्डों और ऑटोरिक्शों में आदिवासी कला को उकेरने को बढ़ावा देना शुरू किया है. राजस्थान के बड़े रेलवे स्टेशनों पर पेंटिंग्स ताजगी का एहसास कराती हैं. सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन के लिए विश्व प्रकृति निधि को राजी किया गया, जिसने रणथंभौर स्कूल ऑफ आर्ट के जरिए बाघों को अलग-अलग ढंग से दिखाने वाले चित्र वहां बनवाए. जयपुर मुख्य रेलवे स्टेशन की दीवारों पर जोगी कलाकृतियां देखी जा सकती हैं. इसके अलावा स्थानीय कलाकारों ने जयपुर के मेट्रो स्टेशनों को सजाया है.

—साथ में रोहित परिहार, सुकांत दीपक, प्राची सिब्बल और अमिताभ श्रीवास्तव

***

Read more!