पांच में से एक बच्चों के जन्म का समय डॉक्टर नहीं ज्योतिषी करते हैं तय

ज्योतिष शास्त्र की आलोचना को अमूमन हिंदू धर्म की आलोचना के रूप में देखा जाता है. पर क्या खुद को शास्त्र और विद्या का जानकार बताने वाले ज्योतिषी ग्रह नक्षत्रों के प्रभावों को प्रयोगों की कसौटी में कसकर दिखा सकते हैं?

बच्चों के जन्म पर ग्रह-नक्षत्रों का अंधजाल
बच्चों के जन्म पर ग्रह-नक्षत्रों का अंधजाल

सीजेरियन ऑपरेशन से हुई पांच डिलीवरी में से एक का समय कोई ज्योतिषी निर्धारित करता है, जिसको इस ऑपरेशन से जुड़े खतरों का ककहरा भी नहीं पता होता. क्या सचमुच किसी की किस्मत इस बात पर टिकी होती है कि उसके जन्म के समय ग्रह-गोचर आसमान में कहां खड़े थे? क्या इसका कोई वैज्ञानिक आधार है?

काटा गया गर्भनाल दुर्गंध से भरा एक "केक्ड ब्लड" या खून का लोथड़ा जैसा होता है. मुख्य रूप से दुर्गंध से भरी गीली और लिसलिसी गर्भनाल के साथ हिलसा मछली सी बदबू वाला वह द्रव होता है, जिसमें गर्भस्थ शिशु डूबा रहता है लेकिन इस सब पर भारी पड़ती है गर्भनाल से बेतहाशा बहते खून की सड़ांध.

गर्भनाल का अंग्रेजी शब्द केक के लिए प्रयुक्त लैटिन शब्द प्लेसेंटा से बना है. यदि इसे गौर से देखें तो यह भ्रूण और गर्भाशय के उत्तकों से बना संगमरमर सा चमकता धारीदार केक जैसा ही दिखता है. प्रसव के तीसरे चरण में शिशु गर्भ को भेदकर रास्ता बनाता धीरे-धीरे बाहर की ओर सरकता है.

उसे हल्के हाथों से खींचकर गर्भनाल से अलग किया जाता है और इस तरह वह प्रसव कराने वाली दाई के ठंडे हाथों में पहुंच जाता है. लेकिन ऐच्छिक सिजेरियन या जिसे आमतौर पर सी सेक्शन कहा जाता है, में बात थोड़ी अलग होती है. जहां गर्भाशय को चीरकर ही खोला जाना है, तो फिर प्रसूति अवस्था या प्रसव पीड़ा का बहुत ज्यादा महत्व रह नहीं जाता. इसमें बच्चे के जन्म के बाद गर्भाशय से निकाली गई गर्भनाल और भ्रूण की झिल्ली सामान्य प्रसव की तुलना में थोड़ा अलग व्यवहार करती है.

गर्भाशय, इसे सिकोड़कर या जोर लगाकर, खुद से अलग नहीं करता बल्कि कई बार गर्भनाल को खींचकर बाहर निकालना पड़ जाता है. यदि सिजेरियन पहले भी हो चुका है तो इस बात की संभावना है कि दूसरे गर्भ के दौरान गर्भाशय में गर्भनाल उसी स्थान पर बन जाए जहां पिछली बार गर्भ को काटने के बाद टांके लगाए गए थे. बिल खोदकर भीतर घुसने वाले किसी जीव की तरह, यह गर्भ की मांसपेशियों को बेधता हुआ जाता है.

कई बार तो यह ठीक बगल में स्थित मूत्राशय तक में पहुंच सकता है. इसे गर्भनाल की खराबी कहा जाता है जिसमें रूग्ण गर्भनाल को गर्भाशय की दीवार से काटकर अलग करने के सिवा कोई चारा नहीं होता. जब इसे काटा जाता है तब गर्भाशय से इस प्रकार बेतहाशा रक्तस्राव होता है, जैसे खून का कोई बांध टूट गया हो. ऐसा हर बात होता है. कोई सर्जन, बच्चे पैदा कराने का कितना ही बड़ा महारथी क्यों न रहा हो, ठीक-ठीक अंदाजा नहीं लगा सकता कि खून कितना और कितनी देर तक बहेगा.

मुहुर्त की हड़बड़ी

एक बार मैं भी एक ऐसे ही सिजेरियन ऑपरेशन में शामिल था. मेरे सामने तनाव से भरी एक नर्स जो हताशा में बिना इधर-उधर नजर घुमाए जल्दी-जल्दी एक पर एक टांके लगाए जा रही थी. यह सब देखकर सहसा मेरे दिमाग में ग्रह-नक्षत्रों के मनुष्य पर आधिपत्य की बात कौंध गई. दरअसल नर्स हड़बड़ी में थी कि कहीं बताया गया शुभ मुहुर्त बीत न जाए.

मुझे वहां गर्भाशय में खून की आपूर्ति रोकने के लिए भीतरी इलियक धमनी (एक प्रकार की नस) को नियंत्रित करने के लिए बुलाया गया था. 34 सप्ताह का एक भ्रूण जिसके फेफड़े अपरिपक्व थे, खींचकर निकाला गया था. उसकी सांस और धड़कनें बचाने के लिए उसे तत्काल नवजात शिशुओं के गहन चिकित्सा कक्ष (नियोनैटल आईसीयू) में रखा गया था.

सबकुछ ग्रहों की उत्तम स्थितियों का ध्यान रखते हुए पूरा किया गया था. जब लग्न और सातवां घर किसी भी ग्रहदशा से पीड़ित नहीं थे, नवमांश उन्नत था, चंद्रमा की स्थिति सर्वथा अनुकूल परिणाम देने वाली थी. ये शुभ मुहुर्त था, जिसे किसी ज्योतिषी ने निर्धारित किया था.

परिवार के लोगों ने बच्चे के जन्म का उत्तम मुहूर्त जानने के लिए किसी ज्योतिषी से संपर्क साधा था और ज्योतिषी ने अपनी सारी तथाकथित गणनाओं के बाद सिजेरियन का यही सबसे उत्तम मुहूर्त बताया था. सिजेरियन की सारी प्रक्रिया को संपन्न करने के लिए डॉक्टरों को बस 15 मिनट दिए गए थे. उन्हें बताया गया था कि नवमांश के लग्न 8 से 14 मिनट के अंतराल में बदल जाते हैं. इसलिए सबकुछ पंद्रह मिनट के भीतर पूरा हो जाना चाहिए. उस नवजात शिशु को चार हफ्ते तक आईसीयू में रखा गया, तब जाकर उसकी जान बच सकी. लेकिन दुनिया की सारी दौलत और ग्रहों की भरपूर कृपा मिलकर भी, उस औरत के गर्भाशय को नहीं बचा पाई.

आंकड़ों जुबानी अंधविश्वास की कहानी

शहरी भारत में होने वाले पहले गर्भधारण के करीब एक तिहाई बच्चों का जन्म, अब सिजेरियन ऑपरेशन से होता है. गलत तरीके से जुड़े हुए गर्भनाल की समस्या बढ़कर पिछले दशक तक हर 2000 से 3000 गर्भधारण में से एक की हो चुकी है. 1930 के दशक में 30,000 गर्भधारण में से एक गर्भ में हुआ करती थी. इनमें से करीब 50 प्रतिशत सिजेरियन ऑपरेशन तो ऐच्छिक होते हैं जो डॉक्टरों की सलाह पर नहीं बल्कि माता के अनुरोध पर किए जाते हैं.

पांच में से कम से कम एक ऐच्छिक सिजेरियन ऑपरेशन तो ऐसा होता ही है जब ऑपरेशन के सही समय का निर्णय डॉक्टर नहीं बल्कि ज्योतिषी करते हैं. इस पर आस्था रखने वालों के लिए स्त्री के गर्भ में स्थापित भ्रूण, भौतिक विज्ञानी श्रोडिन्गर की बिल्ली का थोड़ा संशोधित हिंदू संस्करण जैसा ही है लेकिन इस संस्करण के पीछे कोई निश्चित सिद्धांत या तर्क मौजूद नहीं. जैसे श्रोडिन्गर के डिब्बे में रेडियो सक्रियता मापने वाला गाइजर मौजूद था उसी प्रकार आस्थावान इस मामले में मानते हैं कि गर्भ में भी ऐसी ही एक अदृश्य शक्ति उपस्थित रहती है, जो उस अजन्मे बच्चे के जीवन को खुशहाल भी कर सकती है और तबाह भी.

और बक्सा जब तक बंद है तब तक बाजी आपके हाथ में है जिसमें आप फेर-बदल कर सकते है. बक्से के खोलने के समय पर ही सारा खेल टिका है. बक्सा खुला और खेल आपके हाथ से निकल गया. चंद्रमा और अन्य ग्रह, नक्षत्र, महादशाएं- सब उस अदृश्य शक्ति पर इस प्रकार नियंत्रण रखते हैं जैसे गाइजर का काउंटर, उसके प्रयोग वाले बक्से की रेडियो सक्रियता पर नजर रखता है.

शिशु के जन्म का समय ही यह निर्धारित कर देता है कि उसका पूरा जीवन कैसा रहेगा. इसलिए सिजेरियन का शुभ मुहूर्त में किया जाना बहुत जरूरी हो जाता है. ऐसी बातें कहने वालों पर क्या हंसना चाहिए? क्या जन्मकुंडली की यह कहानी बुद्धि भरमाने वाली कोई कपोल कल्पना नहीं लगती? क्या ज्योतिषी उस फेरीवाले जैसे हैं जो जान-बूझकर भ्रम में डालने वाली आवाज लगाता है? या फिर वे अनुभवजन्य ज्ञान के कुछ प्राचीन शास्त्रीय जानकारी की पूंजी पर आधारित घोषणाएं करते हैं? ग्रहों की चुंबकीय ऊर्जा के नाम पर इस बकवास को अफवाह की तरह इसलिए फैलाया जा रहा है, क्योंकि ज्योतिषशास्त्र, भौतिक विज्ञान के प्रति ईर्ष्याभाव रखता है?

वैदिक ज्योतिषशास्त्र विज्ञान की कसौटी पर नहीं उतरता खरा

वैदिक ज्योतिष, वैदिक अनुष्ठानों को मजबूती और बढ़ावा देने वाले विभिन्न सहायक विषयों में से एक है. इसलिए ज्योतिष शास्त्र की आलोचना को हिंदू धर्म की आलोचना बताया जाने लगता है. पर क्या खुद को शास्त्र और विद्या का जानकार बताने वाले ज्योतिषी क्या इन अनुमानों को प्रयोगों के जरिए साबित कर सकते हैं? शास्त्र कहे जाने के लिए ऐसे तर्कों का ठोस आधार होना जरूरी है जिन्हें बुद्धि-विवेक की कसौटी पर कसा जा सके और प्रमाणित करके दिखाया जा सके.

जन्मकुंडली के विभिन्न खांचे, व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पक्षों पर आधिपत्य रखते हैं. लग्न का पहला घर जातक के शरीर और स्वास्थ्य का सूचक है. दूसरे घर से जातक की वाणी और धन की स्थिति की गणना होती है. यदि लग्न में राहू हो, तो जातक को हमेशा बीमारियां घेरे रखेंगी. वह व्यक्ति बातूनी, चिड़चिड़ा, आपराधिक प्रवृति वाला, गलत कार्यों के प्रति जल्दी आकर्षित होने वाला और साहसी स्वभाव का होगा.

यह जातक में क्रूरता का भाव भरता है और जातक आम तौर पर कुरुप होगा (मानसागरी, ग्रंथ के अनुसार). राहू अगर दूसरे घर का स्वामी हो, तो जातक भीतरघुन्ना या गूढ़ बातें करने वाला होगा. यह व्यक्ति को चोर, अभिमान में चूर रहने वाला और परेशानियों में घिरा रहने वाला बनाता है. उसकी प्रवृति झगड़ालू होगी, पशुचर्म का व्यापार करने वाला, मछली बेचने वाला, अत्यधिक मांस-मदिरा का सेवन करने वाला और बुरे लोगों की संगति पसंद करने वाला होगा. इन्हें बहुत जल्दी क्रोध आता है और मुख की बीमारियों से ग्रसित रहते हैं. यदि राहू दूसरे घर में शुभ फलदायी स्थिति में हो, तो जातक अथाह धन कमाता है (फलदीपिका और सर्वार्थ चिंतामणि ग्रंथ के अनुसार).

ये सारे दावे उस लिखित दस्तावेज के हैं जिसे शास्त्र कहा जाता है. इनमें से किसी भी दावे को कसौटियों पर कसे बिना तत्काल खारिज नहीं किया जा रहा है. आकाशीय पिंड जब एक विशेष स्थिति में हों, उनके आधार पर उस खास समय पर जन्मे¢ कुछ लोगों के गुण-दोषों और भूत-भविष्य का निर्धारण कर देना, अध्ययन का एक अच्छा आधार हो सकता है. इसके लिए एकमात्र जरूरत है कि ऐसे चरों और नियंत्रकों को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाए, जिन पर इन ग्रहों का जोर नहीं चलता.

हिंदू ज्योतिषशास्त्र का प्रतिपादन करने वाले विद्वान पाराशर अपने बृहत पाराशर होराशास्त्र (अध्याय 81, पद 47) में कहते हैं- यदि मंगल लग्न से 12वें, चौथे, सातवें और आठवें घर में हो और किसी भी शुभग्रह के साथ युति न हो अथवा शुभग्रह की दृष्टि न हो तो ऐसी स्त्री के पति का निधन अल्पायु में हो जाता है.

मंगल दोष निवारण और मांगलिक-गैर मांगलिक जातकों के आपस में विवाह हो जाने की स्थिति में पति को असामयिक निधन से बचाने का एक रास्ता भी बताया गया है. स्त्री का विवाह पहले किसी केले या पीपल के वृक्ष से करना चाहिए. उसके बाद वर के साथ उसका ब्याह कर देने से यह दोष मिट जाता है. इसे सही सिद्ध करने के लिए पहले ऊपर बताए गए दोष से पीड़ित दो जोड़ों का विवाह कराना होगा. एक के साथ ऊपर बताए गए उपाय करने होंगे और दूसरे का विवाह बिना उपाय को आजमाए करना होगा.

फिर यह दिखाना होगा कि जिसके लिए उपाय किए गए वह व्यक्ति लंबे समय तक जीवित रहा जबकि दूसरे का जल्दी निधन हो गया. तभी यह माना जा सकता है कि जन्म के समय मंगल की एक खास स्थिति अनिष्टकारक सिद्ध होती है.

कार्य-कारण थ्योरी की कसौटी पर भी असफल

घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने वालों के दावों के पीछे क्या आधार है जिससे यह मान लिया जाए कि अमुक घटना के आधार पर अमुक दावे किए जा रहे हैं. घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए किसी को साहचर्य के किस अभिलक्षण के आधार पर कोई इस निष्कर्ष तक पहुंचे कि इस व्याख्या के पीछे जो सबसे संभावित विवेचन का आधार संभव है, वह कार्य और कारण का संबंध हो सकता है.

कारण-कार्य संबंध ( कारक के बिना कारण संभव नहीं), मजबूती (जुड़ाव जितना गहरा होगा उतना ही अधिक प्रेरणार्थक होगा), सामंजस्य (भिन्न-भिन्न लोगों द्वारा, अलग-अलग स्थानों, परिस्थितियों और समय पर किया गया लगातार विश्लेषण),विशिष्टता ( एक प्रभावशाली कार्य एक अलग छाप छोड़ सकता है).

विज्ञान को झुठलाया नहीं जा सकता

अठारहवीं सदी में पर्सिवल पॉट भारी चिमनी और अंडकोष की थैली के कैंसर के बीच एक संबंध को स्थापित कर सके. जो मजदूर टार या खनिज तेल के संपर्क में नहीं थे उनके मुकाबले चिमनी के पास रहने वाले मजदूरों की मृत्यु दर 200 गुना अधिक थी. 18वीं सदी में यह एक अनर्गल बात लगती थी जिसे दुर्भावना से प्रेरित समझा गया.

अगस्त 1883 में, डच ईस्ट इंडीज के प्रायद्वीप पर एक ज्वालामुखी विस्फोट हुआ. विस्फोट की आवाज दूरस्थ मॉरिशस और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया तक सुनी गई और अनेक सुनामी आईं. भारी मात्रा में सल्फर डाई ऑक्साइड निकला और हवा के साथ पूरे ग्रह पर फैल गया. इसके कारण बने सिरस के बादलों से ज्यादातर सूर्य की किरणें परावर्तित होने लगीं, कई वर्षों तक पृथ्वी से ऊपर आकाश में अंधेरा गहराया रहा. सूर्य के चारों तरफ एक नीला प्रभामंडल जिसे बिशप की अंगूठी कहा गया, दिखने लगा. गर्मियों का तापमान कई डिग्री तक गिर गया. सल्फेट का एरोसोल 1889 तक समताप मंडल में बना रहा जिसके कारण पूरी धरती पर शानदार, चमकदार, लाल-नारंगी सूर्योदय और सूर्यास्त होते रहे.

1883 के बाद ईंग्लैंड के अंधेरे, शहरी, कोयले के ईंधन पर आश्रित इलाकों में अचानक रिकेट्स का प्रकोप बढ़ गया. यही वह समय था जब थियॉबाल्ड पाम ने अपर्याप्त सूर्य के प्रकाश और अपंग बच्चों के बीच संबंधों को परिभाषित किया. उन्होंने बताया कि पैरों में विकृति, मुड़े हुए पांव, दुर्बल घुटने और कलाई, टखने में होने वाली परेशानियों के पीछे सूर्य के प्रकाश की स्थिति है.

अपने आसपास के संसार का गहराई से अवलोकन के साथ ही सभी अनुसंधान आरंभ हो जाते हैं. फ्रांसीसी सांख्यिकीविद् मिशेल गैक्विलिन ने आकाशीय पिंडों के मानव शरीर और लौकिक वस्तुओं पर प्रभाव को खोजने समझने के लिए कई अनुभवजन्य प्रयोग किए. अलग-अलग भाग्य के जांच का विश्लेषण करने के लिए उन्होंने ज्योतिषियों को आमंत्रित किया और उन्हें चालीस जन्मकुंडलियां दीं.

उन जन्मकुंडलियों में से उन्होंने 20 आपराधिक प्रवृति और 20 जिम्मेदार नागरिकों के लक्षण वाली कुंडलियों को छांटकर अलग करने को कहा. परिणाम तुक्कों पर आधारित थे. गैक्विलिन ने 1955 में एक विशेष आलेख प्रकाशित किया जो प्रसिद्ध लोगों के जन्म के समय और ग्रहों की स्थिति के बीच के संबंधों पर उनके शोध पर आधारित था. (इस रिपोर्ट ने खुद गैक्विलिन और उनकी बिरादरी को चौंका दिया था).

उन्होंने लिखाः मैंने एक जबरदस्त परस्पर संबंध यह पाया कि जब मंगल ग्रह का या तो उदय हो रहा हो या जब वह आकाश में अपनी पराकाष्ठा पर हो, तो उस दौरान खेल जगत के चैंपियन जन्म लेते हैं (आम लोगों की तुलना में अक्सर यह अधिक देखा गया है).

उन्होंने इसे मंगल का प्रभाव कहा. 1994 में कमिटी फॉर द स्टडी ऑफ पैरानॉर्मल फेनामेना (असाधारण घटनाओं के अध्ययन के लिए गठित समिति) के बेंस्की एट ऑल ने 1,066 फ्रेंच स्पोर्ट्स चैंपियनों पर एक वृहत अध्ययन किया (गैक्विलिन की रिपोर्ट का आधार बनाकर) और पाया कि मंगल की आकाशीय स्थिति और खेल जगत की हस्तियों के जन्म के समय के मध्य ऐसा कोई संबंध नहीं है जिसके आधार पर कहा जाए कि मंगल के प्रभाव से श्रेष्ठ खिलाड़ियों का जन्म होता है. उन्होंने कहा कि आंकड़ों के चयन की प्रक्रिया में चूक हुई होगी, जिसके कारण गैक्विलिन को शायद ऐसे परिणाम मिले हों.

90 के दशक के आखिर में पर्सी सेमर खगोल भौतिकविद् प्लाइमाउथ Ùð जन्म की व्याख्या एक दूसरे नजरिए से की. उन्होंने जन्म के समय से जुड़ी थोड़ी अलग अवधारणा पेश की. भ्रूण में जैविक घड़ियों की एक श्रृंखला (सेमर के अनुसार) पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के साथ-साथ बढ़ती है (जो कि सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र का कारक है और यह सूर्य और चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करता है) जो इस बात का निर्धारण करता है कि गर्भ के बाहर आने का समय क्या होगा.

जब समुद्र में पाए जाने वाले बैक्टिरिया अपना भोजन तलाशने, पक्षी और मछलियां दिशा निर्धारण में चुंबकीय शक्ति का प्रयोग कर सकते हैं तो फिर मानव भ्रूण क्यों नहीं? जन्म की स्वभाविक प्रक्रिया से जन्मे¢ बच्चों के आनुवांशिक गुण आकाश में स्थित ग्रहों के अनुरूप होते हैं.

सेमर का तर्क था कि जन्म के समय आकाश में ग्रहों की स्थिति किसी के गुणों को निर्धारित करने की क्षमता तो नहीं रखती लेकिन इसका संकेत तो दे सकती है. उनके सिद्धांत पर हर ओर से आक्षेप हुआ. अमेरिकी खगोल विज्ञानी सेठ शोशक ने यह कहते हुए सेमर के सिद्धांत को खारिज किया कि आप अपने घर की बत्ती और वॉशिंग मशीन से, बृहस्पति के मुकाबले ज्यादा मजबूत चुंबकीय क्षेत्र का अनुभव करेंगे.

तो भारत में हम भी ऐसी ही स्थिति में खुद को ठहरा हुआ पाते हैं. 2011 में, भ्रामक विज्ञापनों को रोकने वाले कानून के तहत की गई एक अपील को मुंबई उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इस कानून के दायरे में ज्योतिष और संबंधित विज्ञान नहीं आते.

ज्योतिष और जादुई उपाय (आपत्तिजनक विज्ञापन) कानून, 1954 के तहत नहीं

क्रेंद सरकार ने एक हलफनामा दायर करके स्वीकार किया है कि चार हजार वर्षों से भरोसेमंद विज्ञान के रूप में अभ्यास किया जा रहा ज्योतिष औषधि और जादुई उपाय (आपत्तिजनक विज्ञापन) कानून, 1954 के तहत नहीं आता. यह अधिनियम जादुई उपाय के अंतर्गत किसी भी तावीज़, मंत्र या ऐसे किसी अन्य वस्तु के रूप में परिभाषित करता है, जिसमें यह दावा किया जाता हो कि इसमें मनुष्यों की बीमारी का ईलाज, निदान, रोकने या कम करने वाली चमत्कारिक शक्तियां मौजूद हैं.

वैदिक ज्योतिष के करीब एक चौथाई भाग में जो बातें हैं वह उसे स्वास्थय और रोगों के कारण, लक्षणों का पूर्वानुमान और निदान बताने वाले विज्ञान के रूप में प्रचारित करती हैं. ग्रहों के दुष्परिणाम से रोगों का जन्म होता है और ग्रह दशाओं को ठीक करके रोगों निदान किया जा सकता है. नीलम और शनियंत्र धारण करने से नपुंसकता दूर होती है. अथवा शुक्रवार को गाय को मीठी रोटी खिलाने और ब्राह्मण को पीली वस्तु का दान करने से बृहस्पति मजबूत होता है और इससे डायबिटीज की परेशानी में आराम मिलता है. या फिर पीपल के वृक्ष से मंगल दोष के कारण अकाल मृत्यु की आशंका को रोकने की विनती की जाती है.

भले ही यह पूरी तरह से भ्रामक और बेअसर सिद्ध हो फिर भी इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती.वैज्ञानिक प्रक्रिया आखिर किसे कहेंगे, इस पर एक आम सहमति तो होनी ही चाहिए. ऑस्ट्रियाई दार्शनिक कार्ल पॉपर ने वैज्ञानिक पद्धति के मूल सिद्धातों का सुझाव दिया था. आप एक वैज्ञानिक मान्यता को सही सिद्ध करने का प्रयास नहीं करते, बल्कि उसे गलत सिद्ध करने की कोशिश करते हैं.

इसे भी परीक्षण योग्य, खंडन योग्य और मिथ्या ठहराने योग्य बनना पड़ेगा. अन्य सभी प्रकार के ज्योतिष के समान वैदिक ज्योतिषी भी वैज्ञानिक सिद्धांतों की बुनियादी जरूरतों पूरा उतरने में असमर्थ रहता है. यह परीक्षण योग्य होने के पहले ही सिद्धांत पर खरा नहीं उतरता.

भविष्यवाणियां सही नहीं साबित होतीं. 4,000 साल पुरानी यह पवित्र विधा खगोलीय पिंडों के आधार पर मनुष्यों के गुण-धर्म निर्धारित होने के अपने दावों को सिद्ध नहीं कर पाती. घरों और ग्रहों की स्थिति को आधार बनाकर कुछ नियमों की घोषणा कर देने से यह विज्ञान नहीं बन जाएगा. इन परिकल्पनाओं का आधार क्या है, ये कैसे उपजीं? ये अनुमान कहां से, किस आधार पर लगाए गए? इन ग्रह-गोचर के योगों, उदाहरण के लिए मंगल-शुक्र योग को ही लें, के प्रभाव को क्या परखा जाएगा?

इस योग में जन्मा व्यक्ति ढोंगी, जुए की लत का शिकार, विवाहेतर संबंधों में पड़ने वाला और लोगों से बहुत घुलने-मिलने वाला तो नहीं होगा लेकिन वह गणित में निपुण होगा और कुशल खिलाड़ी बन सकता है. अगर हमें सितारों ने इतना गढ़ा है तो उसका प्रमाण कहां हैं?

यहां असफल रहे ज्योतिषी

कुछ समय पहले पुणे में जाने-माने ज्योतिषियों को 200 बच्चों की जन्मकुंडली दी गई तो वे बच्चों की सही-सही बुद्धिमता का अंदाजा लगाने में असफल रहे (उसी परिभाषा के आधार पर जो उन्होंने अपने शास्त्रों के आधार पर प्रदान किए थे) बच्चों का लिंग सही-सही बताने में भी उतने ही सफल रहे जितना एक तुक्के से बताया जा सकता है. अनेक मौकों पर अनगिनत जांच हुई है जब ज्योतिषियों से कहा गया कि वे लोगों के फोटो और जन्मकुंडली देखकर उनके बारे में निजी जानकारियों (आम रुचि, शौक, व्यक्तिगत खूबियां आदि) का आकलण करके बताएं. हर मौके पर वे भी उतना ही बता पाए जितना ज्योतिष की कोई जानकारी नहीं रखने वाला व्यक्ति भी तुक्के पर अंदाजा लगा लेता है.

हर अंधविश्वास कारण और प्रभावों का ऐसा निर्धारण है जिसका कोई ठोस आधार नहीं होता, भोले-भाले लोगों को संसार के बारे में सुनाई ग§ü एक झूठी कहानी, स्किनर के क्रिया प्रसूत अनुकूलन सिद्धांत सा ही है, जिससे स्किनर ने पिंजरे में बंद कबूतरों को पिंग-पॉन्ग खेलना सिखा दिया. हार्वर्ड के मनोवैज्ञानिक बी.एफ. स्किनर ने एकबार पिंजरे में कैद कबूतरों के साथ एक प्रयोग किया. कबूतरों को कुछ-कुछ अंतराल पर खाने को दिया जाता था. जल्दी ही वे यह मानते हुए एक खास व्यवहार प्रदर्शित करने लगे कि ऐसा करने पर उन्हें कुछ खाने को मिलेगा.

ज्योतिष अंधविश्वास का सबसे बुरा स्वरूप है जो हमें मूर्ख बनाता है, हमारी बुद्धि को हर लेता है और हम यह मानने लगते हैं कि सितारे, ग्रह-गोचर ये सब मिलकर हमारी किस्मत लिखते हैं. इसकी जादुई व्यूह-रचना को तोड़ना होगा. जिस प्रकार वे अपनी विधा को विज्ञानपुष्ट बताते हैं उसी तर्ज पर उन्हें झूठा साबित करना होगा. इस प्रकार का वशीकरण और नीचता हिंदू धर्म में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका कैसे निभा सकती है? क्यों ज्यादातर हिंदू अपनी जन्मकुंडली बनवाते हैं?

विवाह से पहले वे भावी जीवनसाथी के साथ सामंजस्य की संभावना को कुंडली के आधार पर क्यों परखते हैं? और सिजेरियन ऑपरेशन के लिए मुहूर्त निर्धारित करने के पीछे क्या नैतिकता है? क्या हम इन महिलाओं के साथ पक्षपात करके इनका माखौल नहीं उड़ा रहे?

प्रसूति दर्द से नहीं गुजर रही स्त्री के गर्भाशय के निचले हिस्से पर चलाने के लिए सर्जरी वाली छुरी उठाने से पहले यह निर्णय का अधिकार हमारे हाथ में होना चाहिए कि बच्चा गर्भ से कब बाहर आएगा. यदि गैर-चिकित्सीय कारण यह तय करने लगेंगे कि बच्चे का जन्म सिजेरियन विधि से कराया जाए, यदि सिजेरियन ऑपरेशन डॉक्टरी जरूर से नहीं माता के अनुरोध पर होने लगे, तो रोगी की स्वायत्ता का सिद्धांत प्रभावशाली हो जाएगा.

विज्ञान पर हवी अंधविश्वास

जहां सामान्य तरीके से भी बच्चे का जन्म कराया जा सकता था, वहां मुहुर्त निकलवाकर सिजेरियन कराए जाने लगेंगे. यदि सिजेरियन का निर्णय दर्द और योनि के टोन को ध्यान में रखकर किया जा सकता है, तो फिर भाग्य और प्रवृति का निर्धारण करने वाली उस मान्यता के अनुसार क्यों नहीं जो यह कहती है कि नवजात का चरित्र और भविष्य दोनों उसके जन्म के समय के ग्रह-गोचर से निर्धारित होता है?

ज्यादातर ऐच्छिक सिजेरियन 39 सप्ताह पूरे होने पर या उससे पहले करा लिए जाते हैं हालांकि कि तब तक प्रसूति पीड़ा शुरू भी नहीं हुई होती. इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि 39 हफ्ते से पूर्व जन्मे बच्चों को पैदा होते ही सांस लेने की परेशानी का खतरा बहुत अधिक होता है.

प्रसूति पीड़ा शुरू होने से पहले कराया गया ऐच्छिक सिजेरियन सुरक्षित नहीं है. इसलिए माताओं के अऩुरोध पर किए जाने वाले सिजेरियन की सिर्फ निंदा करें और दूसरे कारण से होने वाले सिजेरियन की निंदा न करें, यह तो उचित नहीं होगा. और फिर रोगग्रस्त और उलझे हुए गर्भनाल की काली परछाई भी तो अपनी जगह पर खड़ी है. गर्भ से बेतहाशा खून निकालता है. इस तरफ से देखें या उस तरफ से, इस नश्वर कुंडली में हम सब श्रोडिन्गर की बिल्लियां ही तो हैं.

ज्योतिष अंधविश्वास का सबसे बुरा स्वरूप है जो हमें इस बात का यकीन करा देता है कि सितारे, ग्रह-गोचर ये सब हमारी किस्मत लिखते हैं.

अंबरीष सात्विक बेस्ड वैस्कुलर सर्जन और लेखक हैं. ब्रिटिश राज के आवारा यौन इतिहास को रेखांकित करता उनका पहला उपन्यास पेरिनियमः नेदर पार्ट्स ऑफ द इम्पायर पेंग्विन प्रकाशन ने 2007 में छापा था. वर्तमान में वह सचित्र चिकित्सा-यौन निबंधों पर कार्य कर रहे हैं.

***

Read more!