अयोध्याः यह जमीन आखिर किसकी है?
कानूनी विवाद में नाटकीय मोड़ 1949 में आया जब 22 दिसंबर की रात को बाबरी मस्जिद के बीच के गुंबद के नीचे रामलला की मूर्ति रहस्यमयी तरीके प्रकट हुई. इसके बाद जल्दी ही पूजा भी होने लगी.

राम जन्मभूमि स्थल पर काबिज बाबरी मस्जिद का पहला जिक्र तकरीबन दो सदियों पहले (1822 में) फैजाबाद अदालत के एक कारिंदे हफीजुल्लाह ने किया थाः ''बादशाह बाबर की स्थापित की गई मस्जिद राम के जन्मस्थल पर स्थित है." उसके बाद 1850 के दशक में वैष्णव संप्रदाय के साधुओं के धार्मिक संगठन निर्मोही अखाड़े ने पहली बार विवादित जमीन पर अपना कानूनी दावा किया.
निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने 1885 में फैजाबाद अदालत में भारत के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट के खिलाफ एक मुकदमा (संख्या 61-280) दायर किया जिसमें बाबरी मस्जिद के नजदीक राम चबूतरे पर भगवान राम का मंदिर बनाने की इजाजत मांगी. अदालत ने उथलपुथल के डर से इनकार कर दिया.
कानूनी विवाद में नाटकीय मोड़ 1949 में आया जब 22 दिसंबर की रात को बाबरी मस्जिद के बीच के गुंबद के नीचे रामलला की मूर्ति रहस्यमयी तरीके प्रकट हुई. इसके बाद जल्दी ही पूजा भी होने लगी. 16 जनवरी, 1950 को एक लंबी कानूनी लड़ाई शुरू हुई.
पहला मुकदमा हिंदू महासभा के वकील गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद की अदालत में दायर किया और मूर्ति की पूजा करने की इजाजत मांगी. अदालत ने मूर्ति के हटाने को नामंजूर कर दिया. अगले दिन अनीसुर रहमान ने एक याचिका दाखिल की. आजादी के बाद इस विवाद में यह मुसलमानों का पहली कानूनी पहल थी.
निर्मोही अखाड़े ने 1959 में एक मुकदमा दायर किया और उसमें दावा किया कि प्राचीन काल में बाबरी मस्जिद स्थल पर एक मंदिर मौजूद था और यह जमीन अखाड़े की है. इस मुकदमे को पहले दायर दूसरे मुकदमों के साथ जोड़ दिया गया. 18 दिसंबर, 1961 को उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के नुमाइंदों ने जवाब दिया. आज विवाद में प्राथमिक तौर पर तीन पक्षकार हैं. निर्मोही अखाड़ा, राम जन्मभूमि न्यास (रामलला का प्रतिनिधि) और सुन्नी वक्फ बोर्ड.
कब और क्यों यह विवाद शुरू हुआ
1855-58- सरकारी रिकॉर्ड में पहली बार मंदिर के मालिकाने पर हिंदुओं-मुसलमानों के बीच झड़प दर्ज हुई. अंग्रेज अधिकारियों ने एक रेलिंग डालकर दोनों पूजा स्थलों को अलग कर दिया
1885-86- निर्मोही अखाड़े के महंत ने राम चबुतरे पर छतरी लगाने के लिए मुकदमा दायर किया, जिसे फैजाबाद की अदालत ने खारिज कर दिया और कहा, ''शिकायत के हल के लिए बहुत देर हो चुकी है."
1949- हिंदू कार्यकर्ता मस्जिद में घुस गए, अंदर मूर्ति रख दी और उसे चमत्कार बताया, सरकार ने ताला लगा दिया.