सेक्स सर्वे 2017: दिमागी रसायनों से प्यार का झमेला

आधुनिक विज्ञान के अनुसंधानों ने दिखाया कि प्यार और उससे उपजने वाली वासना, उत्तेजना जैसी तमाम फितरतें दिमाग की उपज.

प्यार, वासना और उत्तेजना दिमाग की उपज हैं
प्यार, वासना और उत्तेजना दिमाग की उपज हैं
हम में से जितने लोग बॉलीवुड की फिल्में देखते बड़े हुए हैं, वे हीरो-हीरोइन को पहाडिय़ों से लुढ़कते, पेड़ों के गिर्द नाचते-गाते एक-दूसरे के लिए प्यार का इजहार करते जैसे दृश्य देखते-देखते रम चुके हैं. इन यादगार दृश्यों को देखकर आपको शायद यकीन ही हो जाए कि प्यार के इजहार के लिए बस बेहद लचीली रीढ़ और साफ-सुरीले गले भर की दरकार है. लेकिन आधुनिक विज्ञान तो कुछ और ही बताता हैः

शायद ''प्यार" सबसे अबूझ और सबसे कम समझदारी वाली फितरत है. आखिर जब कोई प्यार में पागल होता है तो उसके दिमाग में क्या चल रहा होता है? डॉ. हेलेन फिशर का महत्वपूर्ण अनुसंधान इस बारे में कुछ सुराग देता है. यह ''प्यार" में गहरे फंसे दो व्यक्तियों के दिमाग के एमआइआर स्कैन पर  आधारित है. इससे पता चलता है कि अपने प्रिय की छवियों से उभरने वाले रोमांस की उत्तेजना से दिमाग में डोपामाइन समृद्ध क्षेत्र सक्रिय हो जाता है जो उत्साह और उमंग से संबंधित वेंट्रल टैगमेंटल क्षेत्र और कॉडेट न्युक्लियस से जुड़ा होता है. डोपामाइन ''न्यूरोट्रांसमिटर" (या तंत्रिका पारेषण) या ऐसा रसायन है जो दिमाग की कोशिकाओं में खुशनुमा संकेत भेजता है और दिमाग में उमंग वाले तंत्र को सक्रिय कर देता है. लिहाजा, प्यार एक सुखद एहसास बन जाता है. दिलचस्प यह भी है कि दिमाग के इन हिस्सों में डोपामाइन ही मादक द्रव्य या शराब के सेवन के वक्त भी अहम भूमिका निभाता है.

दरअसल नशे में दिमाग का यही डोपामाइन समृद्ध क्षेत्र भावनाओं में बह जाता है. शायद अमेरिकी पॉप गायक रॉबर्ट पाल्मर का वह गीत सही है कि एडिक्टेड टु लव (प्यार के नशे का शिकार)? लेकिन टीना टर्नर सवाल कर सकती हैं-ह्वाटस् लव गॉट टु डू विद इट (प्यार से इसका क्या लेना-देना)? बेशक, बहुत लेना-देना है, अगर आप मधुमक्खियों और भौरों से पूछें. 2012 के एक अध्ययन के मुताबिक, नर मधुमक्खी यौन संबंधों के मामले में ठुकराए जाने पर उस मधुमक्खी से अधिक शराब सोखता है, जिसका मादा से मिलन हो चुका है. तो, अगर प्यार में नाकाम मधुमक्खियां और भौरे तक शराब में डूब जाते हैं तो भला ''देवदास" को क्यों कोसें?

आवेग भरा रोमांस वाला प्यार अद्भुत है. 2011 में औसतन 21 साल से विवाहित एक जोड़े के एमआइआर स्कैन के जरिए एक और अध्ययन से पता चला कि दिमाग के डोपामाइन समृद्ध क्षेत्र में वैसी ही उत्तेजना और सक्रियता दिखी, जो नए प्रेमियों में दिखती है. दूसरे शब्दों में पुराना प्यार कभी नहीं मरता, न ही उसकी लगावट कम होती है. असल में वह लगातार गहरा होता जाता है. प्यार के शुरुआती चरण धुकधुकी की वजह से तनाव भरे हो सकते हैं.

इससे तनाव वाला हार्मोन कॉर्टिसोल का स्तर बढ़ जाता है और उससे भावनात्मक और शारीरिक उत्तेजना पैदा होती है. प्यार में डूबे किसी किशोर या किशोरी से पूछिए, जो गहरी बेचैनी का अनुभव करता है, जिसका दिल तेज-तेज धड़कता है, रातें आंखों में गुजरती हैं, वगैरह! अगर शुरुआती चरण का यह प्यार आखिरकार लंबे रिश्ते में स्थायी हो जाता है तो कॉर्टिसोल का बढ़ा हुआ स्तर धीरे-धीरे घटकर सामान्य हो जाता है. इस तरह बेहद शांत और करुणामय प्रेम की राह खुलती है, जो अभी भी आनंद और उमंग से संबंधित दिमाग के हिस्से को सक्रिय रखता है.

कामदेव के तरकश में सिर्फ डोपामाइन नामक रासायनिक अस्त्र ही नहीं है. वैसोप्रेशिन और ऑक्सिटोसिन जैसे रसायन लंबी उम्र तक एक ही संबंध निभाने में अहम भूमिका निभाते हैं. लैरी यंग और उनके साथियों के चौंकाने वाले अनुसंधान से पता चला है कि अमेरिका के मैदानी इलाकों में पाए जाने वाले वोल (चूहे जैसी एक प्रजाति) में जोड़े में रहने और उसके व्यवहार को नियंत्रित करने में ऑक्सिटोसिन और वैसोप्रेशिन की अहम भूमिका है. सहवास के बाद ये मैदानी वोल जोड़े में आजीवन रहते हैं. यानी एक रात का आलिंगन जीवन भर का साथ बन जाता है! इन मैदानी वोल के विपरीत पहाड़ी वोल यौन संबंधों में उन्मुक्त और स्वच्छंद होते हैं.

इन दो प्रजातियों का फर्क वैसोप्रेशिन और ऑक्सिटोसिन और दिमाग की प्रतिक्रिया से होता है. यह व्यवस्था ताला-चाभी वाली है- वैसोप्रेशिन या ऑक्सिटोसिन चाभी की तरह हैं लेकिन उससे दरवाजा तभी खुलता है जब वह सही ताले में पड़ती है, यानी दिमाग में जब खास तरह की प्रतिक्रिया होती है. जैसे ही ताले में चाभी सही बैठती है, दिमाग की कोशिकाएं सक्रिय हो जाती हैं. इससे पता चलता है कि वोल की इन दो प्रजातियों के संसर्ग के तौर-तरीकों में फर्क इस पर निर्भर है कि दिमाग के विभिन्न क्षेत्रों में ऑक्सिटोसिन और वैसोप्रेशिन के कितने रिसेप्टर हैं.
मसलन, बहु यौन संबंधों वाले पहाड़ी वोल के मुकाबले एक विवाह की प्रथा वाले मैदानी वोल में पहले बताए गए डोपामाइन उमंग व्यवस्था वाले हिस्से के प्रीलिंबिक कॉर्टेक्स न्यूक्लियस एकुबेन्स में ऑक्सिटोसिन रिसेप्टर का घनत्व अधिक होता है. मैदानी वोल में भावनात्मक दिमाग के तंत्र में ये रिसेप्टर अधिक होते हैं.

इसके विपरीत पहाड़ी वोल में लैटरल सेप्टम नामक दिमाग के दूसरे हिस्से में इन्हीं रिसेप्टर की मात्रा अधिक होती है. मैदानी वोल जब संसर्र्ग करते हैं तो ऑक्सिटोसिन और वैसोप्रेशिन का स्राव होता है. इससे संसर्र्ग करने वाले जोड़े में एक-दूसरे के लिए आकर्षण पैदा होता है और लंबे समय तक साथ रहने का ठोस आधार बन जाता है. वैसे, अगर मैदानी वोल में ऑक्सिटोसिन और वैसोप्रेशिन का स्राव अवरुद्ध हो जाए, वे बहु संसर्ग वाले बन जाते हैं और उनमें अपने पार्टनर के प्रति आकर्षण नहीं रह जाता.

यही वह राज है. अगर जीन इंजीनियरिंग के जरिए मैदानी वोल में पाया जाने वाला खास तरह का वैसोप्रेशिन पहाड़ी वोल में डाल दिया जाए तो मैदानी वोल की तरह अपने पार्टनर के साथ उसके संबंध ताउम्र बने रहते हैं! दिमाग की यही गतिविधि लंबे समय तक साथ रहने वाले आदमी-औरत में भी पाई जाती है.

आखिर में ऑक्सिटोसिन की जादुई ताकत के बारे में भी जान लीजिए, जो यौन संबंधों वाले प्यार से भी आगे ले जाता है. ऑक्सिटोसिन मां-बच्चे के लगाव में बड़ी भूमिका निभाता है और तनाव तथा दुश्चिंता घटाने में मदद करता है. दिलचस्प यह भी है कि यौन संबंधों वाले प्रेम और मातृत्व लगाव दोनों में दिमाग के एक-दूसरे से जुड़े क्षेत्र सक्रिय होते हैं और ये वही क्षेत्र हैं जो ऑक्सिटोसिन रिसेप्टर के मामले में समृद्ध होते हैं. अगर आप सोच रहे हों कि प्रेम हम मनुष्यों का खास गुण है तो पालतू पशुओं के बारे में क्या कहेंगे? कुत्ते पालने वाला कोई गवाही देगा कि कुत्ते आदमी से गहरी दोस्ती रखते हैं.

कई बेमिसाल अध्ययन में नागासावा और उनके साथियों ने दिखाया कि जब कुत्ता टकटकी लगाकर देखता है, तो उसके मालिक में ऑक्सिटोसिन का स्तर बढ़ जाता है, जिससे लगाव पैदा होता है. बदले में कुत्ते में ऑक्सिटोसिन का स्तर बढ़ जाता है. यानी यह प्यार का एक सकारात्मक तत्व है! इस तरह मधुमक्खियों से लेकर चूहों (वोल) और कुत्तों से लेकर आदमी तक प्यार का रसायन एक समान है. जब दुनिया भर में भय, गुस्से और हिंसा का माहौल फैल रहा है, ऐसे दौर में एकमात्र उम्मीद यही है कि देर-सवेर प्यार नफरत पर विजय पा लेगा.

(डॉ. सुमंत्र चट्टर्जी बेंगलूरू में नेशनल सेंटर फॉर बॉयोलॉजिकल साइसेंज में न्यूरोबॉयोलॉजी के प्रोफेसर हैं. वे बेंगलुरू के इंस्टीट्यूट ऑफ स्टेम सेल बायोलॉजी ऐंड रिजेनरेटिव मेडिसिन के सेंटर फॉर ब्रेन डेवलेपमेंट ऐंड रिपेयर के निदेशक भी थे.)

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