कावेरी जल विवाद की पूरी हकीकत
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के लिए कावेरी का पानी छोडऩे का आदेश क्या दिया, कर्नाटक जलने लगा.

कर्नाटक रक्षणा वेदिके के कार्यकर्ता रवि गौड़ा कहते हैं, ''कावेरी हमारे लिए देवी है...यह दक्षिण कर्नाटक की जीवनरेखा है. देवी के नाम पर तमिलनाडु में कन्नड़ लोगों पर हमले हम बर्दाश्त नहीं करेंगे." वे तमिलनाडु की नंबर प्लेट लगी गाडिय़ों में आगजनी भी जायज ठहराते हैं. कावेरी के पानी के बंटवारे का सवाल कर्नाटक में ऐसी ही भावनाएं भड़काता है और सियासी दल अपने फायदे के लिए वर्षों से इसका दोहन कर रहे हैं.
एक दिन बाद सिद्धरामैया ने सावधानी बरती और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक तमिलनाडु को पानी देने के लिए राजी हो गए. उधर तमिलनाडु में सत्तारूढ़ एआइएडीएमके ने इसे अपनी नेता ''अम्मा" की एक और जीत करार दिया. उक्वमीद नहीं है कि तमिलनाडु सुप्रीम कोर्ट के फैसले से संतुष्ट होगा. उसने पहले ही कावेरी सुपरवाइजरी कमेटी का दरवाजा खटखटाया है.
कावेरी से जुड़ी हिंसा का केंद्र मांड्या जिला रहा है. इसी जिले केमेलुकोटे के कर्नाटक राज्य रैयत संघ (किसानों की एक संस्था) की नुमाइंदगी करने वाले निर्दलीय विधायक के.एस. पुट्टनैया कहते हैं, ''पानी का यह विवाद अदालत में नहीं सुलझाया जा सकता. यह सार्थक बातचीत से ही हो सकता है. दोनों राज्यों के नेता अपने अहं को तिलांजलि दें और तंगी के वर्षों में पानी के बंटवारे का कोई फॉर्मूला निकालें." उनके जैसे किसान मौजूदा हालात के लिए कर्नाटक और तमिलनाडु के राजनेताओं को दोषी ठहराते हैं. इसलिए और भी कि पिछले नौ वर्षों से तंगी का कोई फॉर्मूला नहीं निकाला जा सका है. कावेरी पंचाट ने अपना आखिरी फैसला 5 फरवरी, 2007 को सुनाया था, तब से अब तक कोई सर्वानुमति नहीं हुई है कि मॉनसून खराब रहने पर पानी का बंटवारा कैसे किया जाएगा.
तंगी के इन वर्षों में वटल नागराज और कर्नाटक रक्षणा वेदिके के संस्थापक नारायण गौड़ा सरीखे कन्नड़ नेताओं को कन्नड़ भाषा और किसानों के अपने प्रिय मुद्दों पर खम ठोंकते हुए सामने आने का मौका मिल जाता है. नागराज दो टूक कहते हैं, ''जब कर्नाटक को पीने के पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए भी पर्याप्त पानी नहीं है तो हमें तमिलनाडु के साथ कावेरी के पानी का बंटवारा क्यों करना चाहिए. हम कावेरी के लिए लड़ेंगे...कावेरी कर्नाटक की है."
तंगी के वर्षों में दिक्कत इसलिए भी होती है क्योंकि पंचाट का आदेश इस बारे में पूरी तरह साफ नहीं है—''तंगी के साल में जब कावेरी बेसिन में पानी कम हो, तो केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और पुदुच्चेरि के बीच आवंटित हिस्से उसी अनुपात में कम हो जाएंगे." यह कावेरी सुपरवाइजरी कमेटी के विवेक पर छोड़ दिया गया है कि वह दोनों राज्यों की जमीनी हकीकत का आकलन करके तमिलनाडु के लिए छोड़े जाने वाले पानी की मात्रा तय करे. अलबत्ता कावेरी मैनेजमेंट बोर्ड कम बारिश वाले वर्षों में उपलब्ध पानी के बंटवारे को लेकर उसी किस्म के फॉर्मूले के आधार पर फैसला कर सकता था, जैसे देश के दूसरे नदी मैनेजमेंट बोर्डों ने अपनाए हैं. पर न तो कर्नाटक और न ही तमिलनाडु ने इस बोर्ड के गठन के लिए दबाव डालने की कोशिश की.
पंचाट के फैसले से कोई भी राज्य संतुष्ट नहीं. पंचाट ने कावेरी बेसिन के कुल 740 टीएमसी फुट पानी में से 419 टीएमसी फुट तमिलनाडु को, 270 टीएमसी फुट कर्नाटक को, 30 टीएमसी फुट केरल को और 7 टीएमसी फुट पुदुच्चेरि को आवंटित किया है. बाकी 14 टीएमसी फुट पानी पर्यावरण सुरक्षा और समुद्र में जाने देने के लिए रखा गया है. अलबत्ता कर्नाटक ने 312 टीएमसी फुट पानी पर दावा किया है और वह देखना चाहेगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मसले को कैसे सुलझाता है.