लो आ पहुंचा 'चीन का गूगल'
इंटरनेट कंपनी बाइडू ने चीन के प्रौद्योगिकीय परिदृश्य को बदल डाला है और इस कंपनी की निगाह अब भारत पर है !

उत्तरी बीजिंग में स्थित कांच की एक विशाल इमारत और करीने से काटे गए बगीचे इस बात के गवाह हैं कि चीन की प्रौद्योगिकी कंपनी बाइडू को अक्सर ''चीन का गूगल" क्यों कहा जाता है. यह अपने किस्म का इकलौता परिसर है. राजधानी की स्टालिनवादी वास्तुकला के बरअक्स सिलिकॉन वैली से मेल खाता इकलौता ढांचा.
सुबह के नौ बजे हैं. एमबीए डिग्रीधारी स्थानीय और विदेशी छात्र कंपनी मुख्यालय के बीचोबीच स्थित रिसेप्शन पर इंतजार कर रहे हैं. इसकी लॉबी के फर्श पर भालू के पंजे की विशाल छाप है, जो बाइडू कंपनी का लोगो है. इसके पीछे यह सोच है कि यह कंपनी किसी शिकारी की तरह लगातार अपने शिकार की तलाश में है. इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि सन् 2000 में देश के पहले सर्च इंजन के तौर पर शुरुआत करने वाली बाइडू आज नैस्डेक में सूचीबद्ध है, जो न केवल चीन में सरकार नियंत्रित इंटरनेट पर अपना प्रभाव डालती है, बल्कि लाखों चीनियों को भी बराबर प्रभावित करती है.
एक कम चर्चित उद्यमी रॉबिन ली ने इस कंपनी की शुरुआत की थी जो तुरंत अमेरिका से लौटे थे. वहां उन्होंने हाइपरटेक्स्ट डॉक्युमेंट रिट्रीवल नाम का एक नया सर्च अलगोरिद्म पेटेंट कराया था. आज यह कंपनी चीन के दैनिक जीवन के कई आयामों से जुड़ चुकी है—मानचित्र, फूड डिलिवरी, ऑनलाइन वॉलेट, ऑनलाइन पर्सनल सेक्रेटरी, स्वास्थ्य सेवाएं और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस. चीन में कुल 70 करोड़ सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं, जिनमें दिसंबर, 2015 तक बाइडू की हिस्सेदारी हर महीने 65.7 करोड़ सक्रिय मोबाइलधारकों की थी, जिन्होंने उसके सर्च इंजन का इस्तेमाल किया था. बाइडू की एक नई सेवा ई-पेमेंट वॉलेट सिस्टम का दिसंबर में 5.3 करोड़ लोग इस्तेमाल कर रहे थे और पिछले एक साल में इसमें 189 फीसदी का इजाफा हुआ है.
भारत पर निशाना
चीन पर फतह करने के बाद कंपनी ने विदेश में अपने पांव फैलाने शुरू किए. इनमें सबसे पहला सर्च इंजन ब्राजील के लिए 2014 में शुरू किया गया, जिसके बाद मिस्र के बाजार के लिए एप्लिकेशन विकसित किए गए. इनमें एक ऐप की मार्केटिंग थोड़े इस्लामी टच के साथ ऐनोन इबादत निर्देशिका के तौर पर की जा रही है. इसमें इबादत का वक्त याद दिलाने की सुविधा है. इसके बाद बाइडू की एक कंपनी ने जापान के लिए सिमोजी नाम का लोकप्रिय इमोटिकॉन कीबोर्ड विकसित किया. सन 2008 में इसे वहां के बाजार में उतारने के बाद से इसके 20 करोड़ से ज्यादा डाउनलोड हो चुके हैं. कंपनी ने पिछले महीने अंग्रेजी में ऐसा ही एक ऐप अमेरिकी बाजार के लिए भी लॉन्च किया है.
कंपनी के रडार पर अगला देश भारत है. पिछले सितंबर में बाइडू ने गुडग़ांव में अपना एक छोटा-सा कार्यालय खोला और यह यहां के बाजार के हिसाब से ऐप्स विकसित करने पर काम कर रही है. इंटरनेशनल बिजनेस डेवलपमेंट के लिए जिम्मेदार कंपनी की ग्लोबल बिजनेस यूनिट के निदेशक रिचर्ड ली ने बीजिंग मुख्यालय में इंडिया टुडे के साथ बातचीत में बताया कि उनके तीन तकनीकी ऐप भारत में काफी लोकप्रिय हुए हैं. डीयू बैटरी सेवर और स्पीडबूस्टर के मासिक 80 लाख सक्रिय उपयोगकर्ता हैं, जबकि एक फाइल एक्सप्लोरर ऐप के एक करोड़ उपयोगकर्ता हैं. बाइडू जानता है कि वह भारत में गूगल और याहू की नकल नहीं कर सकता. इसीलिए उसने चुनिंदा युटिलिटी ऐप्लिकेशन पर ध्यान केंद्रित किया है.
अगला चरण लोकलाइजेशन का है. ली कहते हैं, ''हम लोग भी कुछ दूसरे प्रतिस्पर्धियों की तरह केवल अंग्रेजी में सेवाएं उपलब्ध करा सकते थे, लेकिन हम दूसरे तरीके से सोच रहे हैं." इस साल मार्च में कंपनी के मोबाइल मार्केटप्लेस ऐप ने हिंदी, तमिल, बांग्ला, मराठी, तेलुगु और उर्दू में अपनी सेवाएं शुरू की हैं. पहले चरण में युटिलिटी और ऐप पर काम किया जाएगा, अगले चरण में भारतीय डिजिटल कंपनियों के साथ विलय और उनमें रणनीतिक निवेश होगा. कंपनी ऐसे कंटेंट ऐप भी लाने की सोच रही है जो चीन में काफी लोकप्रिय हैं. जैसे समाचार पढऩे वाला ऐप जो सभी हेडलाइनों को इकट्ठे दिखा देता है.
चीन की ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा और ऑनलाइन ट्रैवेल पोर्टल सीट्रिप पहले ही भारत में प्रवेश कर चुके हैं और इन्होंने पेटीएम और मेकमाइट्रिप में निवेश कर दिया है. रिपोर्टों के मुताबिक, बाइडू ने जिन कंपनियों से बात की है, उनमें जोमैटो भी है. बाइडू का फूड डिलीवरी ऐप चीन में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. इसमें एक लोकप्रिय सुविधा यह है कि इस ऐप में एक मानचित्र है, जो दिखाता है कि खाना लेकर आने वाला लड़का कहां तक पहुंचा है.
तकनीकी क्रांति और चुनौती
वैश्विक होती अधिकतर चीनी कंपनियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती राज्य-नियंत्रित इंटरनेट से मुक्त होने की है. चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का इंटरनेट पर कठोर नियंत्रण कायम है. बाइडू अगर चीन के श्ग्रेट फायरवॉल्य का पालन नहीं करती और उसे कुछ हद तक अपनाती नहीं है तो वह खुद को बचा नहीं पाएगी. गूगल ने 2009 में चीन के बाजार को ऐसी ही बंदिशों के चलते छोड़ दिया था. हालांकि उससे पहले उसने अपनी बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए काफी संघर्ष किया था. आज चीन में गूगल, फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर नहीं चलता है. बाइडू पर तियानानमेन चैक लिखकर खोजने पर पहला नतीजा यह आता है, ''तियानानमेन चौक हत्याकांड एक मिथक है." यह शीर्षक सरकारी अखबार चाइना डेली के एक लेख का है. सवाल उठता है कि दुनिया के सबसे बड़े निषेध तंत्र के भीतर यह कंपनी एक नवाचारी स्टार्ट-अप के बतौर अपनी छवि कैसे बनाए रखती है? बाइडू के एक अधिकारी के मुताबिक, ''हम रोज इससे लड़ते हैं. हम खुद से पूछते हैं कि क्या हम चीजों को बेहतर बना रहे हैं या बदतर? क्या हमारे कारण चीन के लोगों को ज्यादा सूचना मुहैया हो पा रही है?"
चीन में सिर्फ प्रतिबंध ही सबसे बड़ी चुनौती नहीं है. मई में कंपनी एक विवाद में घिर गई, जब उसके ऊपर आरोप लगा कि उसके खोज के नतीजों में बड़ी मात्रा पेड नतीजों की थी यानी जो नतीजे पैसे लेकर दिखाए जाते हैं. इस विवाद की जड़ में एक कॉलेज के छात्र वेइ जेजी की कैंसर से हुई मौत थी, जिसने बाइडू पर देखकर बीजिंग के एक सैन्य अस्पताल में उपचार लिया था. हालांकि इन मुश्किलों के बावजूद हुवेइ से लेकर शिओमी तक तमाम चीनी कंपनियां दिखा रही हैं कि वे बाकी दुनिया के साथ स्पर्धा कर सकती हैं और नवाचार में सक्षम हैं. बाइडू की विदेश से जुड़ी कारोबारी योजना में नवाचार में भारी निवेश शामिल है.
कंपनी का सारा जोर फिलहाल इसी पर है और यहीं से नवाचार की नई लहर उठने की उम्मीद है. आज स्वचालित बीएमडब्ल्यू बाइडू कारें चीन की सड़कों पर दौड़ रही हैं और अगले तीन साल में कंपनी इन्हें व्यावसायिक स्तर पर उतारना चाहती है. चीन में कंपनी के अपने संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ डीप लर्निंग ने स्मार्ट बाइकें निकाली है, जो उपभोक्ता की सेहत से लेकर बाइकिंग के आंकड़ों तक हर चीज की निगरानी करती हैं और स्मार्टफोन पर नक्शे में रूट भी दिखाती हैं. इस साल बाइडू ने स्मार्ट चॉपस्टिक की शुरुआत की, जो बताता है कि खाना सुरक्षित है या नहीं.
कंपनी का सबसे ताजा उत्पाद शंघाई के एक केएफसी आउटलेट में बाइडू का रोबोट है. यह रोबोट ऑर्डर लेता है, ग्राहकों के स्मार्टफोन से भुगतान लेता है, बिना तार ग्राहकों के फोन चार्ज करता है और संगीत भी बजाता है. बाइडू भारत में भले ही धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ा रहा है, लेकिन सवाल यह है कि क्या वह इस देश को अपनी धुन पर नचा पाएगा?