आराम नहीं हराम
आज की भागमभाग और तनाव भरी जिंदगी में आराम बहुत जरूरी है. भरपूर नींद जरूरी है. हम अपने शरीर से जितना काम लेते हैं, जरूरी है कि उसी अनुपात में उसे आराम भी दिया जाए.

वह पिछले तीन घंटे से लगातार अपनी डेस्क पर लैपटॉप पर आंखें गड़ाए हुए हैं. फर्ज कीजिए, वे मि. एक्स हैं. हालांकि उन्हें अपने काम से बेहद प्यार भी है, लेकिन उन्हें समझ में नहीं आता कि पिछले कुछ अरसे से वे इतना झल्लाने क्यों लगे हैं, जरूरी बातें भूल जाते हैं, बात-बात पर आपा खो देते हैं और गुस्से से भर जाते हैं. आखिर क्यों? दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजी विभाग में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. पी.एन. रंजन कहते हैं, ''उन्हें गुस्सा आ रहा है क्योंकि इस वक्त उनके मस्तिष्क की तंत्रिकाओं में तनाव है. तंत्रिकाएं गुस्से में हैं."
तंत्रिकाएं गुस्से में? जी हां. इस सवाल का जवाब डॉ. एडवर्ड जैकबसन की किताब प्रोग्रेसिव रिलैक्लेशन में कुछ यूं मिलता है. हमारा दिमाग लाखों-करोड़ों तंत्रिकाओं का एक विशालकाय जाल है. इंद्रियों के जरिए मिलने वाले संदेशों को ये तंत्रिकाएं मस्तिष्क तक पहुंचाती हैं. आप यूं समझ लें कि जब तक वे ये काम खुशी-खुशी कर रही हैं, आप खुशी महसूस करेंगे और जब उन्होंने आपस में लडऩा शुरू कर दिया तो आपकी भी खैर नहीं.
मस्तिष्क की तंत्रिकाएं आपस में लडऩे लगें तो आपको डिप्रेशन, अवसाद, चिंता, अपच और अनिद्रा जैसी बीमारियां घेरने लगेंगी. आप तनाव में रहेंगे, स्मृति कमजोर हो जाएगी, जरूरी फाइल आलमारी में रखकर भूल जाएंगे, मीटिंग में सहकर्मियों पर गुस्सा हो जाएंगे, दुखी और तनावग्रस्त रहेंगे. तंत्रिकाओं का गुस्सा और झगड़ा बढ़ता जाए तो यह कैंसर जैसी बड़ी बीमारी का भी रूप ले सकता है. इन सबसे बचने का तरीका क्या है? तरीका एक ही है. तंत्रिकाओं के आपसी झगड़े बंद हों और वे प्यार से काम करें. लेकिन इस झगड़े के निबटारे के लिए जरूरी कदम तो खुद मि. एक्स को ही उठाने होंगे. वे जरूरी कदम क्या हो सकते हैं? मेदांता हॉस्पिटल में डिपार्टमेंट ऑफ इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी के डायरेक्टर डॉ. रजनीश कपूर कहते हैं, ''घंटों एक ही पोजिशन में बैठकर काम करते रहना हार्ट और स्पाइन के लिए खतरनाक हो सकता है. जरूरी है कि हम बीच-बीच में उठकर बॉडी को स्ट्रेच करें, आंखों को आराम दें. और इस अपराध बोध से भी बचें कि ऐसा करना वक्त की बर्बादी है."
इन सभी बातों का आशय दरअसल यह है कि आज की भागमभाग और तनाव भरी जिंदगी में आराम बहुत जरूरी है. भरपूर नींद जरूरी है. हम अपने शरीर से जितना काम लेते हैं, जरूरी है कि उसी अनुपात में उसे आराम भी दिया जाए. काम करना जरूरी है, लेकिन काम का तनाव लेना नहीं. वर्ष 2007 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में हुए एक अध्ययन के मुताबिक, रिलैक्सेशन या आराम को गंभीरता से लेने वाले लोगों में हार्ट अटैक का खतरा 24 फीसदी तक कम हो जाता है. ऐसे लोगों का शरीर किसी संकट या आपात स्थिति में उपजे तनाव का सामना करने में भी ज्यादा सक्षम होता है.
डॉ. कपूर कहते हैं, ''यह जरूरी है कि कोई न कोई व्यायाम हमारी नियमित दिनचर्या का हिस्सा हो, चाहे वह योग हो, जिम जाना, दौडऩा, तैरना या और कोई भी व्यायाम." वे बताते हैं कि सिर्फ इतना ही काफी नहीं है. इसके अलावा काम के दौरान हर घंटे पर पांच मिनट का ब्रेक लेना जरूरी है. हर एक-डेढ़ घंटे के बाद दो मिनट के लिए आंखें बंद करके कुर्सी पर सिर टिकाकर बैठ जाएं. बीच-बीच में दोनों हाथों को ऊपर करके बॉडी और पैरों को स्ट्रेज करें, गर्दन को घुमाएं और ब्रीदिंग एक्सरसाइज करें. कोशिश करें कि लिफ्ट लेने की बजाए दफ्तर में भी सीढिय़ों का इस्तेमाल करें. इसके अलावा दोपहर के खाने के बाद पांच मिनट की नैप या झपकी कार्यक्षमता को बढ़ाती है. सिर्फ एक महीने ये करके देखें. क्या आपकी स्मृति से लेकर कार्यक्षमता तक में इजाफा हुआ है?
आराम का ही एक जरूरी हिस्सा है नींद— गहरी और सुकून भरी नींद. नींद हमारी जिंदगी का इतना अहम अंग है कि अमेरिका में नेशनल स्लीप फाउंडेशन नाम की एक संस्था ही बन गई, जिसका काम अपने देश के नागरिकों की नींद पर रिसर्च करना और वे तरीके ईजाद करना है, जिससे लोगों की नींद को बेहतर किया जा सके. इस संस्था के 18 विशेषज्ञों के एक समूह ने 300 से ज्यादा शोधपत्रों के बाद वह चार्ट बनाया है, जो बताता है कि नवजात शिशु से लेकर 70 वर्ष के वृद्ध तक, हर आयु वर्ग के व्यक्ति के लिए कितनी नींद जरूरी है.
ध्यान भी आराम का ही विस्तार है. जैसा कि ईशा फाउंडेशन के संस्थापक जग्गी वासुदेव कहते हैं, ''व्यायाम देह और ध्यान मन और आत्मा को तंदुरुस्त रखता है." इस भाग- दौड़ के वक्त में, जब किसी के पास ठहरकर अपने भीतर की आवाज सुनने का वक्त नहीं है, हमारा मूलमंत्र होना चाहिए— 'आराम हराम नहीं है.' सफल होने और शिखर पर पहुंचने के बोझ से लदा हमारा शरीर कह रहा है, मुझे आराम की जरूरत है. क्या हम सुन पा रहे हैं?