पंजाबी पर फिदा बॉलीवुड

बॉलीवुड के गानों में कुछ अरसा पहले तक ठेठ पंजाबी लफ्जों की भरमार थी पर अब हिट पंजाबी गीतों को ज्यों का त्यों फिल्मों में पिरोया जा रहा है. बता रहे हैं नरेंद्र सैनी.

एक वक्त हिंदी फिल्मों में महज शादी-ब्याह के दृश्यों में जमने वाली पंजाबी धुनों और लक्रजों वाले गीतों की अब ऐसी बहार आई है कि बॉलीवुड में पंजाबी गायकों की जैसे फौज उतर आई है. ठेठ पंजाबी गाने भी ज्यों के त्यों हिंदी फिल्मों की शान बन रहे हैं, बल्कि शायद ही कोई फिल्म पंजाबी धुनों और गीतों के बगैर पूरी होती है. युवा पीढ़ी में इन गीतों का नशा ऐसा तारी है कि दूर-दराज के इलाकों में भी युवाओं के होंठ और पांव उन ठेठ पंजाबी गीतों पर बरबस थिरकने लगते हैं जिनके लफ्जों का वे मतलब तक नहीं समझते. यह नशा बहुत कुछ पंजाबी व्यंजनों के चस्के जैसा है. आज देश का शायद ही कोई कोना ऐसा हो जहां ढाबों-होटलों-रेस्तरां के मेन्यू में सबसे ऊपर दाल मक्खनी, मक्के दी रोटी और सरसों का साग न हो. जैसे इन व्यंजनों के स्वाद को ट्रक ड्राइवरों ने पूरे देश की जबान पर चढ़ा दिया, उसी तरह आज बॉलीवुड की फिल्में हर किसी को पंजाबी गीतों का दीवाना बना रही हैं.

पंजाबी गायकों की इस आमद से जगुआर, गुची, अरमानी, लंबोरगिनी जैसे ढेरों अंतरराष्ट्रीय ब्रांड भी सुनने वालों की जबान पर चढऩे लगे हैं. अमेरिका, कनाडा, दुबई, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के नजारों से उनके वीडियो सराबोर होते हैं. यूट्यूब पर उनके गानों की व्यूअरशिप करोड़ों के पार है. पंजाबी संगीत का नशा इस कदर हावी है कि बॉलीवुड में फिल्म के कैरेक्टर कहीं के भी हों, उन पर पंजाबी गाने फिट किए जा रहे हैं. साजिद-वाजिद जोड़ी के संगीतकार साजिद कहते हैं, ''जो बिकता है वही दिखता है. जो दौर चल रहा है, जो लोग चला रहे हैं, वह तो चलता रहेगा.''

हाल के दिनों में ऐसे गानों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है, जिनमें पंजाबी शब्दों की बहुतायत है, जो पंजाबी धुनों की तर्ज पर बने हैं या फिर ज्यों के त्यों उठा लिए गए हैं. 2004 में बॉम्बे रॉकर्स नाम के बैंड का एक गाना आया था, रॉक द पार्टी. इस पंजाबी-अंग्रेजी गाने को दुनियाभर में पसंद किया गया. इस गाने की मकबूलियत को देखते हुए जॉन अब्राहम ने रॉकी हैंडसम में इसे शामिल कर लिया. एक भुला दिए गए गाने को यूट्यूब पर लगभग 51 लाख हिट मिल चुके हैं. 

पंजाबी हिट गानों को फिल्म में ज्यों का त्यों शामिल करने का ताजा रुझान शुरू करने का क्रेडिट कुछ हद तक संगीतकार प्रीतम को जाता है. उन्होंने 2012 में कॉकटेल फिल्म में योयो हनी सिंह और गिप्पी ग्रेवाल के सुपरहिट गाने अंग्रेजी बीट का इस्तेमाल किया था, जिसे दर्शकों ने हाथोहाथ लिया. प्रीतम कहते हैं, ''अंग्रेजी बीट फिल्म में यूज नहीं हुआ था. सिर्फ ट्रेलर में ही हुआ था.'' आलम यह है कि फाजिलपुरिया का कर गई चुल, हनी सिंह और जैज धामी का हाइ हील्स फिल्मों में पिरोए जा रहे हैं, और हिट भी हो रहे हैं. और फिल्म निर्माताओं को यही तो चाहिए. एक म्युजिक डायरेक्टर कहते हैं, ''प्रोड्यूसर कोई रिस्क नहीं लेना चाहता. उसकी कोशिश जांचे-परखे माल को लेने पर रहती है. हिट पंजाबी गानों के फिल्मों में नजर आने की यह भी एक वजह है.''

पंजाबी का सफर
बेशक आज बॉलीवुड में पंजाबी का बोलबाला है लेकिन इसका अपना एक लंबा सफर रहा है. शुरुआत में पंजाबी गायकी को आम जनता तक पहुंचाने का काम गुरदास मान ने किया. उन्होंने 1980 के दशक में दस्तक दी और दूरदर्शन पर नए साल पर आने वाले प्रोग्राम में उनके गाने नजर आए. छल्ला से लेकर दिल दा मामला जैसे उनके गाने शहरी उत्तर भारत में अपनी जगह बनाने लगे. 1986 में जाकर मलकीत सिंह आए और उनके तूतक तूतक तूतियां ने तो जैसे सारे रिकॉर्ड ही तोड़ डाले और यह गाना हर किसी की जबान पर था, और उसके लिए उसका पंजाबी होना जरूरी नहीं था. दिलचस्प यह कि इस गाने का इस्तेमाल 1989 की फिल्म घर का चिराग में भी हुआ था.

1995 में दलेर मेहंदी ने दस्तक दी और सीन को बदल कर रख दिया. उनके गाने बोलो ता रा रा ने धूम मचा दी और यह गाना हर महफिल की जान हो गया. उन्होंने फिल्म गायकी की राह भी खोली और 1999 में अर्जुन पंडित फिल्म में कुडिय़ां शहर दी गाया तो वह भी हिट रहा. दलेर मेहंदी के गाने बॉलीवुड में बढ़ते जा रहे थे और इसी बीच उनके छोटे भाई मीका सिंह ने एंट्री मारी. 1998 में उनकी सावन में लग गई आग एल्बम आई और एक अनगढ़ आवाज ने अंगड़ाई भरी. इसी दौर में जैजी बी जैसे सिंगर भी विदेशों से भारत का रुख कर रहे थे और लोकप्रियता का पायदान चढ़ रहे थे.

हालांकि बॉलीवुड में किस्मत आजमाने में मीका सिंह और दलेर मेहंदी ही अव्वल रहे. लेकिन जैसे ही पंजाबी के साथ रैप का संगम हुआ, दर्शकों ने दिल खोलकर इसका स्वागत किया. अभी तक अंग्रेजी गानों से ही रैप की भूख मिटाने वाले भारतीय दर्शकों के सामने रैप अब देसी अंदाज में था. इस रैप को क्रांतिकारी मोड़ दिया योयो हनी सिंह ने. उन्होंने 2010-11 में पंजाबी रैप में जो दस्तक दी, फिर कभी पीछे मुडऩे का मौका नहीं मिला. युवा भारत के अरमानों को गानों के जरिये पंख लगाने वाला गायक मिला. जो महंगी कारों, गर्ल फ्रेंड और पार्टी की बात कर रहा था. हनी सिंह की लोकप्रियता ने उन्हें बॉलीवुड में जगह दिलाई और उनके गाने फिल्म के हिट होने में अहम किरदार निभाने लगे. जिसकी मिसाल चेन्नै एक्सप्रेस का लुंगी डांस और बॉस का आंटी पुलिस बुला लेगी है. हिट सांग डोप शोप के सिंगर दीप मनी मानते हैं कि योयो हनी सिंह ने पंजाबी संगीत को अब लोगों की नसों में उतार दिया है. वे कहते हैं, ''पंजाबी  संगीत की खासियत यह है कि उसमें वेरिएशन बहुत है. एक ही तरह के गाने नहीं हैं. अब हनी को ही देखिए, उसने रैप गाया, स्लो गाना गाया और ट्रांस भी गाया.'' जल्द ही बॉलीवुड में खुद दीप मनी के छह गाने सुनने को मिलेंगे. अब दिलजीत दुसांझ और बादशाह जैसे सिंगर्स भी बॉलीवुड में जगह बना चुके हैं. 

यही नहीं, पंजाबी के गाने हिट होने का फॉर्मूला बन गए तो सरदार कैरेक्टर भी अपनी जगह बॉलीवुड में बनाने में सफल रहे हैं. सन ऑफ सरदार के अजय देवगन, लव आज कल में सैफ अली खान और सिंह इज किंग के अक्षय कुमार ने इसका भरपूर फायदा उठाया. इनकी फिल्मों ने 100 करोड़ रु. के आंकड़े को छुआ. अक्षय तो बतौर सरदार सिंह इज ब्लिंग भी कर चुके हैं जबकि सन ऑफ सरदार का सीक्वल भी आएगा. खबर है कि शाहरुख खान भी एक फिल्म में सरदार के कैरेक्टर में नजर आ सकते हैं.

प्रीतम का मानना है कि यह रुझान बदलने वाला नहीं, बल्कि यह और बढ़ेगा ही. विशेषज्ञों का मानना है कि पंजाबी ऐसी भाषा है जो हिंदी के बेहद करीब है, और इसकी रीच विदेशों तक है.

बाजार का खेल
सवाल उठता है कि आजादी के बाद के सिनेमा में राज कपूर, देव आनंद, सुनील दत्त और धर्मेंद्र सरीखे नायकों ने दस्तक दी. फिर भी फिल्मों में पंजाबियत नहीं दिखती थी? एक फिल्म विशेषज्ञ कहते हैं, ''वह जमाना बंटवारे के बाद पाकिस्तान से भारत आए लोगों के संघर्ष का था. वे अपनी खोई संपत्ति और रुतबे को पाने की जद्दोजहद में थे. इसलिए तब उनकी कहानियां तो आईं लेकिन जीवन और भाषा उस तरह से नहीं आ सकी.'' समय ने करवट ली. उसी पंजाबी तबके ने समाज में एक मुकाम हासिल कर लिया और भारतीय मध्यवर्ग के प्रभावशाली हिस्से के तौर पर उभरा. मिसाल के तौर पर अजय बिजली के पिता का ट्रांसपोर्ट का कारोबार था लेकिन आज वे अपने पीवीआर सिनेमा हॉल में रुपहले पर्दे पर सपनों की सौदागरी करते हैं.

यही नहीं, 1950 से 1980 के दशक तक गांव का मतलब उत्तर प्रदेश, या बिहार के गांव होते थे लेकिन 1994 में दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे ने इस कॉन्सेप्ट को बदलने का काम किया. डीडीएलजे से शुरू हुई यह कहानी जब वी मेट (2007) तक पहुंची. जिसमें पंजाब, उसके लोग और उसका संगीत हर किसी के दिल में गहरे तक उतर गया. सिमरन और गीत जैसे नाम घर-घर में नजर आने लगे. इस कॉन्सेप्ट ने भारत की युवा आबादी से जुडऩे का काम किया है.

वैसे भी बॉलीवुड 16-35 वर्ष आयु वर्ग के शहरी युवाओं को आकर्षित करने के लिए यह प्रयोग कर रहा है. साजिद कहते हैं, ''पंजाबी संगीत एनर्जी से भरपूर होता है और आप उसे सुनकर थिरकने लगते हैं.'' इस सांस्कृतिक ऊर्जा का इस्तेमाल फिल्म संगीत में किया जाता है, जिसकी बदौलत बेजान फिल्म में भी जान दिखने लगती है. ट्रेलर में इन पंजाबी गानों को ऐसे पिरोया जाता है कि वे जिज्ञासा पैदा करें. बिल्कुल उसी तरह जैसे सिंह इज ब्लिंग में था. फिल्म की कहानी कमजोर थी लेकिन टुंग टुंग गाने ने इसकी लोकप्रियता में चार चांद लगाने का काम किया.

अन्य क्षेत्रीय भाषाएं क्यों नहीं सफल
अब सवाल यह भी पैदा होता है कि भोजपुरी भाषी भी दुनियाभर में फैले हुए हैं लेकिन भोजपुरी संगीत इतना लोकप्रिय नहीं है? विशेषज्ञों के मुताबिक, इसकी सांस्कृतिक वजह हैः भोजपुरी लोगों का भदेसपन युवाओं को आकर्षित नहीं करता. यही नहीं, उनकी क्रय क्षमता भी इतनी नहीं है. यहीं सारी कहानी बदल जाती है. बॉलीवुड में बनने वाली अधिकतर फिल्मों का टारगेट ऑडियंस शहरी मध्यवर्ग है. उस खांचे में पंजाबी के व्यावसायिक पहलू फिट बैठते हैं जबकि अन्य भाषाएं उस कदर असरदार नहीं हैं.

आने वाले दिनों में अक्षय कुमार की फिल्म में पंजाबी सिंगर सुखी का हिट गाना जगुआर देखने को मिल सकता है तो इसके अलावा गैरी संधू और गिरिक अमान जैसे पंजाबी गायक भी बॉलीवुड में दांव खेलते नजर आएंगे. बॉलीवुड पंजाबी को कैश करवाने के लिए तैयार है. गानों के अलावा दिलजीत दुसांझ जैसे पंजाबी कलाकार हिंदी फिल्मों में आ रहे हैं तो प्रियंका चोपड़ा जैसी अदाकारा पंजाबी फिल्मों की प्रोड्यूसर बन गई हैं. संकेत अच्छे हैं. यानी आने वाले दिनों में बॉलीवुड में पंजाबी मिस्री की खूब बल्ले-बल्ले रहने वाली है.

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