सुर्खियों के सरताज 2024: अयोध्या के भव्य राम मंदिर में दिखी आधुनिक भारत की झलक
अयोध्या में राम मंदिर जमीन के एक भूभाग पर हिंदू समाज के स्वामित्व का प्रतीक था. इसके निर्माण से भक्तों को एक तरह की परिपूर्णता और उल्लास की अनुभूति हुई.

समकालीन भारत के मनोविज्ञान, उसके सामाजिक और राजनैतिक चेहरे, देह और आत्मछवि के प्रत्यक्ष प्रतीक के तौर पर अयोध्या के राम मंदिर का शायद ही कोई सानी हो.
मंदिर के द्वार खुलने से इसके विकास का निर्णायक अध्याय एक तरह से खत्म होता मालूम दिया. किसी भक्त के लिए आध्यात्मिक उल्लास और उपलब्धि का पल.
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए विचारधारा से जुड़े एक प्रमुख वादे का हकीकत में मूर्त होना. दूसरों के लिए आधुनिक भारत में धर्म के हाथों भांजी जाने वाली राजनैतिक सत्ता का प्रतीक आम चुनाव से तीन महीने पहले प्रधानमंत्री की अगुआई में भव्य प्राण प्रतिष्ठा के साथ कार्यक्रम के समय ने उन पक्के जुड़ावों को और पुख्ता कर दिया.
हुआ यह कि चुनावी फसल उम्मीद के मुताबिक नहीं लहलहाई और राजनैतिक कुशलक्षेम बना रहा तो इसलिए कि राम के साथ रह गई कसर को आज के 'पलटूरामों' ने पूरा किया. गौरतलब यह कि भाजपा अयोध्या तक में हार गई. पहचान को लेकर चल रही उस बहस का अंत भी नजदीक आता नहीं दिखा कि 'भारत' और साथ ही 'हिंदू' खुद को कैसे परिभाषित करेंगे.
एक लंबे समय से चली आ रही महागाथा, जिसने दशकों से राज्यनीति को उसके मर्म तक झकझोर रखा था, नए अध्यायों में जारी थी. उन व्यक्त वादों के बावजूद कि अयोध्या अपने आप के साथ भारत की सौदेबाजी का समापन होगी.
उसके पीछे जो शेष रहा, वह परंपराओं के कोलाज में भव्य बहुस्तंभीय नमूना है. राजस्थान के गुलाबी बलुआ पत्थरों में वास्तुकला की उत्तर भारतीय नागर शैली और उसके साथ मैसूर के मूर्तिकार के हाथों दक्षिण के किसी देवता की तरह बनाई गई काले ग्रेनाइट की रामलला की मूर्ति. इस मध्यकालीन पवित्र शहर को एक झटके में खींचकर अत्याधुनिकता में ढाल दिया गया.
इसके प्राचीन प्रांतीय तंत्रिका नेटवर्क को चीरती नई सड़कें, बुनियादी ढांचे की चमचमाती परियोजनाएं, बढ़िया नया हवाईअड्डा, पांच सितारा होटल, और अचल संपत्तियों का नया उभरता बाजार. अतीत को लेकर उस किस्म की कोई चिंता-सरोकार नहीं, जिसे प्रामाणिकता के खत्म होने को लेकर त्यौरियां चढ़ा लेने वाले धरोहरों के संरक्षक तवज्जो देते.
इस सबसे कहीं ज्यादा ऊंचाई पर हिचकिचाते समय का भव्य प्रतीक, जो एक साथ पुराना भी है और नया भी. तीर्थयात्री विस्मय से इसे ताकते हैं और पूजा के जाने-पहचाने अनुष्ठानों के लिए पुराने हनुमान गढ़ी मंदिर की तरफ बढ़ जाते हैं.
अपने पूरे राजसी वैभव के साथ जनवरी 2024 में राम मंदिर अंतत: अस्तित्व में आया. लेकिन जो अनिवार्य काम यह करता है, वह है भारत के 'वर्तमान समय' को उसके अतीत से सीधे जोड़ने का. कौन-सा अतीत? इसके जन्म का कालक्रम देखने वाले की नजर पर निर्भर करता है.
सबसे तंग कैलेंडर 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी के बाद चार साल बताता है. कानून और इंसाफ से कमतर तैयारी की अवधि दूसरे- इस बार 1989 के 9 नवंबर को शिलान्यास से और उसके बाद 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के प्रलंयकारी विध्वंस से शुरू होती है. कुछ लोग छलांग लगाकर चार दशक पहले चले जाएंगे, जब 1949 में मस्जिद के अहाते में राम की मूर्ति 'प्रकट' हुई.
भक्त तो शायद अतीत में सफर करते हुए ठेठ त्रेता युग तक चले जाएं. इतिहास के प्रति कम धुंधला झुकाव रखने वाले ईसा पूर्व करीब 600 से 12वीं सदी में राजपूतों के हाथों मंदिर निर्माण तक साकेत के लंबे बौद्ध युग से इस अवधि को दर्ज करेंगे.
इनमें से कुछ ही उन भरी-पूरी कानूनी बहसों से छनकर निकलीं जिन्होंने रोशनी से ज्यादा गर्मी पैदा की. ऐसे तापमान हिंदुत्व को अनुकूल ठौर-ठिकाना मुहैया करते हैं, जिसमें कहा जा सकता है कि अयोध्या में लड़ाई जीत ली, बावजूद इसके कि इसके बाशिंदों ने अन्यथा फैसला दिया. मंदिर कई मायनों में लोगों की आकांक्षाओं, विसंगतियों और जटिलताओं को प्रतिबिंबित करते आईने की तरह खड़ा है.
संरचना और उसकी विशेषताएं
› यह मंदिर वास्तुकला की प्राचीन उत्तर भारतीय नागर शैली का उत्कृष्ट नमूना है जिसे अखिल भारतीय टच दिया गया है.
› राजस्थानी गुलाबी बलुआ पत्थर पर बारीक नक्काशी का सिलसिला वहां तक जाता है जहां दक्षिण भारतीय शैली में बनी रामलला की मूर्ति विराजित है.
› मंदिर की नींव भारत के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित तीर्थों से लाई गई मिट्टी और पानी से मिलकर बनी है.
राम मंदिर अंतत: साकार हुआ, पूरी भव्यता और शानोशौकत के साथ, वर्तमान को अतीत से एकाकार करते हुए.