रानिल विक्रमसिंघे या सजित प्रेमदास, कौन बनेगा श्रीलंका का अगला राष्ट्रपति?
श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे और विपक्ष के नेता सजित प्रेमदास 21 सितंबर को होने वाले महत्वपूर्ण राष्ट्रपति चुनाव के सबसे बड़े चेहरे हैं. अगले राष्ट्रपति पद के लिए इन दोनों में जोरदार टक्कर देखी जा रही है

श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे और विपक्ष के नेता सजित प्रेमदास 21 सितंबर को होने वाले महत्वपूर्ण राष्ट्रपति चुनाव के सबसे बड़े चेहरे हैं. अलग-अलग बातचीत में दोनों उम्मीदवारों ने इंडिया टुडे ग्रुप के एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा से आगामी चुनाव के महत्व, प्रमुख मुद्दों और चिंताओं, अपने व्यक्तिगत राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण और भारत के साथ संबंधों की प्रगति के बारे में बात की. बातचीत के अंश:
• श्रीलंका के लिए यह चुनाव कितना महत्वपूर्ण है?
रानिल विक्रमसिंघे: यह श्रीलंका का भविष्य तय करेगा. यही तय करेगा कि क्या आर्थिक सुधार जारी रहेंगे. क्या लोगों की स्थिति बेहतर होगी या फिर सब छिन्न-भिन्न हो जाएगा और हम फिर जुलाई 2022 जैसी स्थिति या शायद उससे भी बदतर हालात में पहुंच जाएंगे. लेकिन इसके बाद हमें फिर खड़े होने का मौका नहीं मिल पाएगा.
इसलिए यह श्रीलंका के लिए एक निर्णायक चुनाव है. या तो हम अपने सुधारों और समझौतों पर कायम रहते हुए हालात को पटरी पर लाने की दिशा में आगे बढ़ें या फिर सब कुछ बिखर जाने दें. तब हालात 2022 से भी बदतर हो जाएंगे.
सजित प्रेमदास: श्रीलंका अभी एक ऐसे प्रशासन के अधीन है जिसे जनादेश हासिल नहीं है. संसद में भी वही लोग बहुमत में हैं जिनकी अतार्किक और गलत आर्थिक नीतियों की वजह से ही श्रीलंका को आर्थिक कंगाली की स्थिति का मुंह देखना पड़ा. ये वही लोग हैं जिन्होंने देश को गंभीर संकट की स्थिति में डाला, और कितने ही लोगों की जिंदगी तबाह करने का कारण बने. खुद को विकल्प के तौर पर पेश करने के लिए उन्होंने खुद ही एक गठबंधन बना लिया.
हमारे पास एक ऐसा राष्ट्रपति है जिसे जनादेश गंवा चुके सांसदों के एक समूह ने ही चुना और इस कुर्सी पर बैठाकर एक तरह से नाममात्र के लिए चेहरा बदल दिया. इसलिए बहुत जरूरी हो गया है कि लोगों की आवाज सुनी जाए, उन्हें खुद अपना नेता चुनने का मौका दिया जाए और निर्वाचित नेता पुरानी व्यवस्था का बदला हुआ मुखौटा भर न हो. हमें एक निर्वाचित नेता चाहिए. पहली महत्वपूर्ण बात तो यह है कि उसे आम लोगों का समर्थन हासिल हो. दूसरा, इसे भले ज्यादा तवज्जो न दी जाए कि क्या कम मायने रखता है और क्या ज्यादा, लेकिन श्रीलंका को आर्थिक संकट से बाहर निकालने को सबसे अधिक अहमियत दी जानी चाहिए.
मौजूदा दौर को आप इकोनॉमिक आर्मागेडन या आर्थिक मोर्चे पर निर्णायक संघर्ष की स्थिति कह सकते हैं. देश एक आर्थिक कंगाली से जूझ रहा है, जिसने सभी 2.2 करोड़ नागरिकों का जीवन बुरी तरह प्रभावित किया. श्रीलंका को संकट से उबारने के लिए हमें एक सटीक, जन-नेतृत्व वाले और जनता समर्थित कार्यक्रम की जरूरत है जो तर्कसंगत हो और राजनैतिक अर्थव्यवस्था की सही समझ पर आधारित हो.
यही नहीं, नीतिगत फैसले लेने वाली साक्ष्य-आधारित निर्णय प्रक्रिया की जरूरत भी है. श्रीलंका ने दक्षिणपंथी, नव-उदारवादी आर्थिक नीतियों के कारण बहुत कुछ झेला, जिसने मूलत: अमीरों को और अमीर तथा गरीबों को और गरीब बना दिया. हम ऐसा नहीं चाहते. क्रोनी कैपिटलिज्म इसी का नतीजा है. दूसरी ओर, हमारा यह भी मानना है कि वामपंथी समाजवादी तरीका भी देश और लोगों को अपेक्षित फायदा नहीं पहुंचाने वाला. इसलिए, हम मध्यमार्ग पर चलकर सही समाधान निकालने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
• 2022 के आर्थिक संकट से उबरने के लिए क्या कदम उठाए गए और क्या वे कारगर रहे?
विक्रमसिंघे: सबसे पहली बात, मैंने राष्ट्रपति पद उस वक्त संभाला जब हर कोई हालात से भाग रहा था. दूसरे, मुझे ऐसी टीम मिली जो स्थितियों को संभालने में सक्षम थी. तीसरे, मैंने मदद के लिए आइएमएफ से बात की. और चौथा, सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए मुझे लोगों का समर्थन भी मिला. कुल मिलाकर इन सबने स्थिरता लाने में मदद की.
प्रेमदास: जाहिर है, विक्रमसिंघे ने दो अलग-अलग क्षेत्रों में दो अलग-अलग तरीकों से स्थिरता प्रदान की है. उन्होंने राजपक्षे परिवार को मजबूत किया. उन्होंने खुद को और अपने आसपास के दबंगों और घनिष्ठ मित्रों को बेहतरीन स्थिरता प्रदान की. लेकिन 2.2 करोड़ लोगों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी, उनका जीवन दांव पर लगा. अर्थव्यवस्था सिमटकर रह गई. इसलिए, वे जिस स्थिरता की बात कर रहे हैं, वह काफी ज्यादा महंगी पड़ी है.
श्रीलंका की आबादी का करीब आधा हिस्सा गरीबी से हलकान है. लोग उपभोक्ता वस्तुओं, खाने-पीने की चीजों, निवेश और आजीविका, हर स्तर पर अभाव झेलने को मजबूर हैं. लिहाजा, शासक लोग सपनों की दुनिया में जी रहे हैं. करीब 3,00,000 सूक्ष्म, लघु और मझोले आकार के उद्यम बंद हो गए हैं. लाखों लोग बेरोजगार हैं. कारोबार ठप हो गया है. और सरकार की यह अक्षमता भविष्य में सामाजिक अशांति के बीज बो रही है.
• विक्रमसिंघे के इस आरोप पर आप क्या कहना चाहेंगे कि 2022 में जब श्रीलंका तबाह हो रहा था, तब सजित प्रेमदास और अन्य विपक्षी नेता मैदान छोड़कर भाग गए थे?
प्रेमदास: हां, हम दुष्ट प्रकृति के लोगों से भाग रहे थे. हम भ्रष्ट राजनैतिक व्यवस्था, भ्रष्ट राजनेताओं से भाग रहे थे, जो आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हुए थे. मुझे कोई अचरज नहीं कि विक्रमसिंघे और राजपक्षे बेहद सहज राजनैतिक सहयोगी हैं.
जिस देश को राजपक्षे प्रशासन ने भ्रष्टाचार, वित्तीय गड़बड़ियों और श्रीलंकाई लोगों के संसाधनों की व्यापक लूट के जरिए दिवालिया बना दिया, वही अब भी राष्ट्रपति का समर्थन कर रहे हैं. यही वजह है कि हमारी संपत्ति पर डाका डालने वालों को अब तक सजा नहीं मिल पाई. यह ऊंचा पद पाने के लिए दिए गए समर्थन का ही नतीजा है.
विक्रमसिंघे: मैं इस पर कोई जवाब देने का इच्छुक नहीं हूं. देश जानता है कि आखिर क्या हुआ.
• भविष्य की बात करें तो श्रीलंका को लेकर आपका आर्थिक दृष्टिकोण क्या है? श्रीलंका को किस वजह से आपको फिर वोट देना चाहिए?
विक्रमसिंघे: पहली बात तो यह कि हालात पूरी तरह स्थिर करने हैं और आईएमएफ तथा कर्जदाता देशों से धन और सहायता प्राप्त करनी है. हमें अभी वादे के अनुरूप सहायता नहीं मिली है जिससे हम अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकें.
दूसरा, अर्थव्यवस्था को निर्यात-उन्मुख बनाने के लिए आवश्यक कानून हम पहले ही पारित कर चुके हैं. इसमें कुछ क्षेत्रों में एकीकरण के संबंध में भारत के साथ बेहद करीबी आर्थिक संबंध स्थापित करना शामिल है. कनेक्टिविटी पर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है.
प्रेमदास: एकदम सीधा-सरल मंत्र है: वृद्धि, वृद्धि, वृद्धि...निर्यात, निर्यात, निर्यात और जितना संभव हो उतना एफडीए हासिल करो. यही वह मंत्र है जो गरीबी घटाने में कारगर साबित होगा, विकास को बढ़ावा देगा, रोजगार उत्पन्न करेगा और आजीविका के साधनों को बढ़ाएगा. अगर लोगों के हाथ में पैसा होगा, तभी वे उपभोग कर सकेंगे, निवेश करेंगे, उत्पादन बढ़ाएंगे, बचत करेंगे, निर्यात करेंगे और इसी से समाज आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बनेगा.
यही नहीं, हमें अपने अंतरराष्ट्रीय भागीदारों से बात करनी होगी ताकि समुचित पैकेज उपलब्ध हो सके और इसका फायदा देश के ऐसे बहुसंख्यक तबके को मिल सके, जिसे वाकई इसकी जरूरत है. हम अपने देश में सिर्फ उन चुनिंदा लोगों के बारे में नहीं सोच सकते जो बहुत अमीर हैं. अमीरों को संरक्षण और बाकी लोगों को दंडित करना हमारी नीति नहीं होगी.
• चुनाव लड़ने के लिए बनाए गए गठबंधन कितने स्थिर हैं और श्रीलंका में उत्तर-दक्षिण विभाजन को पाटने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
विक्रमसिंघे: देखिए, दो साल पहले हमें आपातकालीन स्थिति से निबटने के लिए साथ आना पड़ा. कोई भी चुनाव के लिए साथ आने की कोशिश नहीं कर रहा था. राजनैतिक दलीय प्रणाली पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो गई थी, और जैसा मैंने कहा कि लोग जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थे. पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के साथ एसएलपीपी (श्रीलंका पोदुजना पेरामुना) के एक हिस्से ने अलग रास्ता अपना लिया लेकिन बड़ी संख्या में सदस्यों ने तय किया कि हम साथ रहें.
पहली बार, हम सभी दलों को साथ ला रहे हैं. यह एक ऐसा पहलू है जिस पर हमें निश्चित तौर पर काम करना होगा. हमें दक्षिण में कई प्रमुख दलों का समर्थन हासिल है, वहीं उत्तर में तमिल और मुसलमान समर्थन कर रहे हैं. हमारे पास केवल उन लोगों का समर्थन नहीं है जो 2022 के हालात से भाग खड़े हुए थे. मैं आपको बता दूं कि इस चुनाव में कोई धार्मिक या जातीय मुद्दा नहीं है. यह पूरी तरह आर्थिक स्थिति पर केंद्रित है.
प्रेमदास: हमने देश में सबसे बड़ा राजनैतिक गठबंधन बनाया. हम ही देश के लिए एकमात्र विकल्प हैं क्योंकि हम श्रीलंकावाद समर्थक हैं; जाति या धर्म को लेकर हमारा कोई पूर्वाग्रह नहीं है. हमने सभी नौ प्रांतों को एकजुट किया. सभी 25 प्रशासनिक जिलों को एकजुट किया, जिसमें उनके मंडल, शहर, कस्बे और गांव शामिल हैं.
• क्या पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के बेटे और एसएलपीपी नेता नमल राजपक्षे के मैदान में उतरने से नतीजों पर कोई असर पड़ेगा?
विक्रमसिंघे: उन्होंने (महिंदा राजपक्षे) सबसे मुश्किल समय में हमारा साथ दिया. मैंने इसके लिए उनका आभार भी जताया. लेकिन मैं चुनाव में उन्हें अपने समर्थन के लिए बाध्य नहीं कर सकता. वे एक पार्टी से हैं और मैं दूसरी पार्टी से. मुझे लगता है कि एसएलपीपी के काफी समर्थक मुझे वोट देंगे, और यूएनपी (यूनाइटेड नेशनल पार्टी) के समर्थक भी ऐसा ही करेंगे.
प्रेमदास: मेरा अपने प्रतिद्वंद्वियों के साथ कोई मुकाबला नहीं है. मैं अपनी सारी ऊर्जा यह पता लगाने में खर्च कर रहा हूं कि देश के लिए सबसे अच्छा क्या है. मेरी चुनौती यह है कि श्रीलंका के लोगों की पीड़ा कैसे कम की जा सकती है. मुझे पूरा भरोसा है कि मेरी टीम और मैं समयबद्ध तरीके से इसका समाधान खोजने में सक्षम होंगे.
• आप की नजर में भारत-श्रीलंका संबंध अभी कैसे हैं और भविष्य में क्या आकार ले सकते हैं?
विक्रमसिंघे: हमारे संबंध अच्छे हैं. और उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मैंने जो विजन स्टेटमेंट बनाया है, उसे लागू किया जाएगा. मैं भारत के साथ आर्थिक संबंधों को एकदम स्थिर रखना चाहता हूं.
प्रेमदास: हमें एक देश के तौर पर उन सभी राष्ट्रों के साथ करीबी बढ़ानी चाहिए जो हमें प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्रदान करते हैं. यही एक सरल मंत्र है. लेकिन भारत के मामले में हमें यह बात समझनी होगी कि हमारा एक विशेष संबंध है जिसे प्राथमिकता मिलनी चाहिए और इसे और मजबूत करना चाहिए.
जब श्रीलंका संकट में घिरा था तब जिस देश ने हमें सबसे ज्यादा सहारा दिया, वो भारत ही था. हम इसकी सराहना भी करते हैं. इसलिए भारत के साथ मजबूत संबंधों को हम एक अच्छा अवसर मानते हैं. यही नहीं, उसे श्रीलंका के आर्थिक विकास की राह पर तेजी से बढ़ने में सबसे बड़े सहायक राष्ट्र के तौर पर देखते हैं.