'राम-पथ' पर चलकर हिंदुओं की 'वेटिकन सिटी' बनेगी अयोध्या नगरी!

लिफ्ट, एस्केलेटर, फूड प्लाजा और ऐसी ही तमाम चीजों से सुसज्जित तिमंजिला अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन दिन में 50 ट्रेन और 50,000 यात्रियों को संभाल सकता है

Ayodhya
अयोध्या में साधु-संतों का जमावड़ा

अयोध्या. नाम भर से विचारों का वह क्षितिज जगमगा उठता है जहां आकाश धरती से मिलता है- समृद्ध, झिलमिल, मिली-जुली भावनाओं से भरा क्षेत्र विशेष. यह इस धरती पर है, या इससे परे? भारत की तर्कातीत कल्पना में यह धरती पर भी है और उससे परे भी.

जब उसे स्वर्गिक शहर के उच्चतम आदर्श का दर्जा दिया गया, तब भी उसकी अलौकिक रोशनी इस्पात की चौंध से खाली नहीं थी. संस्कृत में आम पैटर्न के हिसाब से उसके नाम में नकारात्मक 'अ' उपसर्ग का अर्थ है 'वह जगह जिसे युद्ध में नहीं जीता जा सकता', यानी वह जगह जो योद्धा की तलवार की पहुंच से परे है.

यही वह भाव है जिसमें इसका पहला उल्लेख करीब 1200 वर्ष ईसा पूर्व के आसपास अथर्ववेद में मिलता है. यहां अयोध्या मानव देह है. यही रूपक कुछ सदियों बाद ईसा पूर्व 600 वर्ष में तैत्तिरीय आरण्यक में फिर मिलता है- आठ चक्रों और नौ द्वारों वाली यह देह देवानाम पुरायोध्या यानी देवताओं का अभेद्य किला हो जाती है. अब तक भी यह नाम नहीं, विशेषण ज्यादा है. इस पड़ाव तक भी सरयू पर स्थित इस शहर, राम दशरथ के वासस्थान को रहस्यों की धुंध से अभी उबरना है. मगर अयोध्या पहले ही पारलौकिक और बहुत सांसारिक के बीच के कगार पर अपने द्वैत में जी रही है.

महर्षि वाल्मीकि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर भगवान राम की कहानी को दर्शाने वाले चित्र और अन्य कलाकृतियां

अब जनवरी 2024 में आइए. उत्तर प्रदेश में आज का नगर अयोध्या, जो पूर्व महाजनपद कौसल का उत्तराधिकारी है, सहस्राब्दी के कैलेंडर पर अपनी छाप छोड़ रहा है. कायापलट के इस जाल का केंद्रबिंदु 70 एकड़ में फैला एक मंदिर परिसर है. सरयू किनारे मिट्टी से उठकर एक सजा-धजा तिमंजिला प्रासाद या महल आसमान छू रहा है, जो उत्तर भारत के मैदानों में मंदिर निर्माण के लिए गढ़ी गई भव्य नागर शैली में बनाया गया है.

पूर्व से पश्चिम 380 फुट और उत्तर से दक्षिण 250 फुट में फैला और शिखर तक 161 फुट ऊंचा मुख्य मंदिर और उसके 12 पूरक मंदिरों में कुल मिलाकर वे सभी खूबियां हैं जो हर किस्म के तीर्थयात्रियों के लिए यहां आना एकाधिक तरीकों से सुखदायक बनाती हैं.

इसके चारों तरफ पूरी उदारता और दानशीलता से अयोध्या पर हर वह उपहार न्योछावर किया जा रहा है जो कृपालु माता-पिता अपने दुलारे बच्चे पर अर्पित कर सकते हैं. नतीजा क्या है? भौतिक कायापलट जो महाकाव्य से कम नहीं है.

अचानक सामने आए अयोध्या के इसी कायापलट ने गुदड़ी बाजार की रहने वाली और नोएडा के एक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज में बीटेक अंतिम वर्ष की 21 वर्षीया छात्रा पूजा गुप्ता को अचंभे में डाल दिया था. कॉलेज में सेमेस्टर ब्रेक होने पर करीब एक साल बाद पूजा 10 जनवरी को अयोध्या के सआदतगंज इलाके में पहुंचीं.

बस से उतरते ही पूजा के आश्यर्च का ठिकाना नहीं था. सआदतगंज की संकरी और ट्रैफिक से जूझती सड़क बहुत चौड़ी हो चुकी थी. दोनों किनारों पर चमचमाते फुटपाथ पैदल यात्रियों को लुभा रहे थे. सआदतगंज में सड़क पर प्रणाम करती हुई करीब 30 फुट की आदमकद प्रतिमा अयोध्या की बदली फि‍जा को शोकेस कर रही थी.

फैजाबाद की संकरी गलियों में पली-बढ़ी हुईं पूजा के लिए बेहद चौड़ी, फुटपाथ और आधुनिक स्ट्रीट लाइटों से युक्त सड़क पर चलना रोमांच से कम नहीं था. उन्होंने पहले प्रणाम करती प्रतिमा के नीचे खड़े होकर सेल्फी ली और अपने कॉलेज के दोस्तों को फोटो भेजकर पूछा, ''बताओ मैं कहां हूं?" रोमांचित पूजा बताती हैं, "मेरे कोई भी दोस्त नहीं बता पाए कि मैं अयोध्या में हूं. जब मैंने उन्हें बताया कि यह अयोध्या है तो सभी ने इस बार गर्मी की छुट्टियों में अयोध्या आने का ही प्लान बनाना शुरू कर दिया है."

नई अयोध्या

अयोध्या का नया स्वरूप कुछ महीनों के अंतराल के बाद यहां आने वालों को आचंभित कर रहा है. पूजा ने अयोध्या के सआदतगंज इलाके में जिस चौड़ी सड़क का जिक्र किया, वह नयाघाट तक जाने वाला 12.97 किलोमीटर लंबा राम पथ है, जिसे रिकॉर्ड 10 महीने में बनाकर तैयार किया गया है.

अयोध्या रेलवे स्टेशन के उद्घाटन के पहले उसका जायजा लेते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

राम पथ आयोध्या के भीतरी हिस्से में नवनिर्मित धर्मपथ, भक्तिपथ और रामजन्मभूमि पथ से जुड़कर बालक राम का दर्शन करने आ रहे श्रद्धालुओं की राह को न केवल सुगम बना रहा है, बल्कि उन्हें आनंदित भी कर रहा है. 2022 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या की भीतरी सड़कों के कायाकल्प की एक बड़ी योजना को मंजूरी दी थी.

उसके बाद अयोध्या के कमिशनर गौरव दयाल ने जिलाधिकारी नीतीश कुमार, अयोध्या विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष विशाल सिंह के साथ अधि‍कारियों की टीम के जरिए रामनगरी के कायाकल्प को मूर्त रूप देना शुरू किया. अयोध्या मंडल के कमिशनर गौरव दयाल बताते हैं, ''राम पथ चार सौ करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट है. लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) का मानक है कि 200 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट को 24 महीने में पूरा होना चाहिए. उस हिसाब से इसे चार साल में पूरा होना चाहिए था. यह केवल दस महीने में ही पूरा हुआ है. देश में इतने कम समय में इतनी बड़ी सड़क को पूरी तरह बदल देने का यह संभवत: अनोखा मामला है." लेकिन यह इतना आसान नहीं था.

13 किलोमीटर लंबी सड़क को एक दर्जन से अधिक भागों में बांटा गया. हर भाग की जि‍म्मेदारी एक-एक मजिस्ट्रेट को सौंपी गई. हर मजिस्ट्रेट के साथ राजस्व विभाग की एक टीम भी लगाई गई. जिलाधिकारी नीतीश कुमार ने हर दूसरे दिन जमीन की उपलब्धता की समीक्षा की.

तीन रजिस्ट्री ऑफिस खोले गए, जो तीन घंटे संचालित होते थे. मुआवजा वितरण में पूरी पारदर्शिता बरती गई, ताकि‍ प्रशासन पर कोई आरोप न लगाया जा सके. नीतीश कुमार बताते हैं, ''राम पथ का निर्माण इसलिए चुनौतीपूर्ण था कि इसमें सिर्फ सड़क ही नहीं बनानी थी, बल्कि स्टॉर्म वाटर ड्रेन, यूटीलिटी डक्ट, वाटर पाइपलाइन, सीवर लाइन भी बिछानी थी. उन्हें घरों से जोड़ा गया. बिजली के तार हटाए गए, फिर उन्हें घरों से जोड़ा गया."

सड़कों के किनारे अयोध्या के हिसाब से विशेष रूप से डिजाइन की गई स्ट्रीट लाइटें लगाई गईं. पूरे देश में पहली बार इस तरह की स्ट्रीट लाइटों का प्रयोग किया गया है. गौरव दयाल बताते हैं, ''सड़क को चौड़ी करने की कवायद में जब किनारे के भवन टूटे तो हमने भवन मालिकों को अपनी मर्जी के मुताबिक निर्माण करने की छूट नहीं दी. प्रदेश सरकार से अनुमति मिलने के बाद अयोध्या विकास प्राधिकरण ने राम पथ, भक्ति पथ, राम जन्मभूमि पथ तक की सभी सड़कों के किनारों के भवनों को अपने मुताबिक सजाया-संवारा, ताकि उनमें एकरूपता बनी रहे."

अयोध्या ने 2017 के बाद जिस तेजी से विकास की गति पकड़ी वह प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के अयोध्या के प्रति आत्मिक लगाव के कारण ही संभव हो पाया. मुख्यमंत्री योगी के निर्देश पर अयोध्या में राम की पैड़ी से सटे नयाघाट चौराहे का जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण करके उसे सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर के नाम पर लता चौक नाम दिया गया.

मुख्यमंत्री योगी ने इसे 28 सितंबर, 2022 को लोकार्पित किया. यहां विशाल वीणा स्थापित की गई है, जो कला के साथ ही आधुनिक अयोध्या के वैभव का पहला प्रतिमान बनी है. यह अयोध्या का प्रमुख सेल्फी पॉइंट भी है, जहां 30 दिसंबर को अयोध्या पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तस्वीरें खिंचवाई थीं.

इस सड़क को सिंगल लेन के बजाय सुव्यवस्थित फोर लेन में कन्वर्ट किया गया. लता चौक 13 किलोमीटर लंबे राम पथ और करीब 2 किलोमीटर लंबे धर्म पथ का मिलन स्थल भी है. लखनऊ-गोरखपुर हाइवे पर सरयू नदी से ठीक पहले अयोध्या कट से राम की पैड़ी की ओर जाने वाली फोर लेन सड़क अब धर्म पथ के रूप में तब्दील हो गई है.

इसके दोनों और स्थापित सूर्य स्तंभ धर्म पथ को गरिमामयी बनाते हैं. गौरव दयाल बताते हैं, ''गोरखपुर हाइवे के किनारे साकेत पेट्रोल पंप से लता चौक तक धर्म पथ पर श्रीराम हेरिटेज वॉक विकसित किया गया. फुटपाथ पर कॉबल स्टोन का प्रयोग किया गया है. फुटपाथ की एक तरफ 81 दीवारें हैं, जिन पर भगवान राम के जीवन से जुड़े म्यूरल लगाए हैं. इसे वॉकिंग प्लाजा के तौर पर विकसित किया गया है.” 

अयोध्या बीते तीन साल से साज-सज्जा की मुद्रा में है. यह अब 36 नए होटलों, 600 होम स्टे और करीब दर्जन भर तंबू शहरों का शहर है, जहां आधा दर्जन नई सड़कें और उत्तर प्रदेश की पहली ऐप-आधारित ईवी कैब सुविधा भी है- और हां, शानदार नया हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन भी.

बाहर से शिखरों और भित्ति चित्रों तथा कलाकृतियों से सुसज्जित नागर शैली में बना महर्षि वाल्मीकि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का अयोध्या धाम टर्मिनल 500 से ज्यादा यात्रियों को समा सकता है. मुख्य अयोध्या छावनी स्टेशन के अलावा पुराने रेलवे स्टेशन पर महज 25 ट्रेन और 10,000 यात्री आ-जा सकते थे.

लिफ्ट, एस्केलेटर, फूड प्लाजा और ऐसी ही तमाम चीजों से सुसज्जित तिमंजिला अयोध्या धाम स्टेशन दिन में 50 ट्रेन और 50,000 यात्रियों को संभाल सकता है. यही नहीं, चौतरफा पवित्रता और स्वच्छता के बीच बसने के इच्छुक लोगों के लिए लखनऊ-गोरखपुर राष्ट्रीय राजमार्ग के दोनों तरफ 1,407 एकड़ में ग्रीनफील्ड टाउनशिप बन रही है.

ऐसे शहर में जिसके बाशिंदों की तादाद 2011 में महज 55,890 थी और अब भी 80,000 से कम ही होगी, लेकिन आने वाले दिनों में आबादी के कई गुना बढ़ने की संभावना जताई जा रही है. यही नहीं, 2022 में ढाई लाख पयर्टकों को संभालने वाली रामनगरी में मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद पर्यटकों की संख्या में भी कम से कम चार गुना इजाफा होने की उम्मीद है.

शहर में आने वाले लोगों की भारी संख्या को संभाल पाने के लिए निर्माण कार्य चल रहे हैं. अयोध्या विकास प्राधिकरण (एडीए) के वाइस-चेयरमैन विशाल सिंह बताते हैं कि इसके अलावा पिछले एक साल में होम स्टे की 600 से ज्यादा अर्जियों और 37 गैर-ब्रांडेड तीन सितारा होटलों को मंजूरी दी गई.

अधिकारी अर्जियों की तस्दीक करने, पुलिस सत्यापन करने और सुरक्षा जांच के बाद ऐप पर लाइसेंस अपलोड करने के लिए लंबे-लंबे घंटे काम कर रहे हैं. विशाल सिंह कहते हैं, ''हमारे यहां रैडिसन तैयार हो गया और चल रहा है. ताज ग्रुप दो ब्रांड लेकर आ रहा है. लेमन ट्री भी है. हमें सात-सितारा रिजॉर्ट के लिए भी प्रस्ताव मिला है."

अयोध्या में राज्य और केंद्र की 37 एजेंसियों के तहत 30,540 करोड़ रुपए की 183 परियोजनाओं- सड़कें, रेल, सौंदर्यीकरण के काम, पार्किंग, घाटों की बहाली- की रोज निगरानी की जा रही है. मूल योजना पूरी होने तक शहर के बुनियादी ढांचे में 50,000 करोड़ रुपए से ज्यादा लग चुके होंगे.

2017 में नए आए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की अगुआई वाली सरकार के तहत तैयारियों को तेज किया गया. पहले फैजाबाद और अयोध्या के नगरपालिका बोर्डों को मिलाकर नया अयोध्या नगर निगम बनाया गया, फिर 2018 में फैजाबाद जिले का नाम ही बदलकर अयोध्या कर दिया गया. 

उधर, इकबाल अंसारी एक और तरह के समापन की उम्मीद संजोए हैं. राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की जमीन के मुकदमे में मुख्य वादियों में से एक अंसारी मंदिर से कुछ मीटर दूर रहते हैं. उनके मन में मस्जिद ध्वंस की ऐसी यादें बसी हैं जो वे शायद न चाहें. पर अब वे उस नई मस्जिद से दिल को समझा लेंगे, जो शहर से 25 किमी दूर धन्नीपुर गांव में बनने वाली है.

अकेली परेशानी यह है कि सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के चार साल बाद, जिसमें उसने बाबरी मस्जिद के नुक्सान की भरपाई की खातिर वैकल्पिक इबादतगाह के लिए पांच एकड़ जमीन देने की बात कही थी, तमाम अखबारों में दमकते भव्य डिजाइनों के अलावा मामला जरा भर आगे नहीं बढ़ा है.

रिपोर्ट बताती हैं कि आवंटित जमीन पर बकरियां घास चर रही हैं और उस जगह बस एक साइनबोर्ड लगा है, जिस पर लिखा है, ''ए मास्टरपीस इन द मेकिंग: मस्जिद मुहम्मद बिन अब्दुल्ला." यहां तक कि यह नाम भी पहले प्रस्तावित दूसरे नाम 'मस्जिद-ए-अयोध्या' पर तकरार के बाद तय हो सका. यह मास्टरपीस जब हकीकत में बदलेगा भी तो नए हवाई अड्डे और रेलवे स्टेशन पर केवल भीड़ ही बढ़ाएगा.

गंगा की पट्टी के इस समूचे मंदिर शहर को ठेठ 21वीं सदी में ले जाया रहा है. अति आधुनिक यात्रा के इस युग में शानदार अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे और देश के ज्यादातर रेलवे स्टेशनों से बेहतर रेलवे स्टेशन से सजी-धजी अयोध्या भारत की सात मोक्षपुरियों में से एक रूप में अपनी पुरानी भूमिका फिर निभाती मालूम दे रही है. हिंदू पुनरुत्थानवाद की राजनीति की भट्टी से निकली भाषा में, जो अक्सर अपनी ही विडंबनाओं के प्रति मासूम ढंग से अनजान है, वे इसे ''नया वेटिकन" या फिर ''भारतीय मक्का" कह रहे हैं. 

अयोध्या पुराण ॉ

अयोध्या एक दिन में नहीं बनी है. फिर बात चाहे उसके मौजूदा अवतार की हो या फिर अतीत के स्वरूप की. सबसे प्राचीन अयोध्या तो वह है जो अंतर्मन में कहीं गहरे तक समाई है, और जिसने हजारों वर्षों में उम्मीदों के साथ आकार लेते शहर में कई बदलाव देखे हैं. वास्तविकता यही है कि कोई भी बदलाव जमीनी स्तर पर साकार होने से पहले कल्पनाओं में आकार लेता है.

अब अयोध्या शहर फिर अपने बारे में एक नया पुराण लिख रहा है, जो संभवत: अपने हालिया इतिहास की तुलना में अधिक रक्तपात रहित है. इसका पूरा खाका क्या रेखांकित करता है? जवाब है, शहर को फिर से सबसे बड़े हिंदू तीर्थस्थल के तौर पर स्थापित करने की महत्वाकांक्षा, और वह भी एक ऐसे देश में जहां पवित्र धार्मिक स्थलों का अभाव कतई नहीं है. फिर भी, यह कहने का क्या मतलब है कि अयोध्या को 'वेटिकन और मक्का की तर्ज पर विकसित किया जाएगा’, जैसा विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व ने दो साल पहले कहा था.

यह रहस्य दरकिनार भी कर दें कि वेटिकन का ईसा मसीह के जीवन से कोई सीधा संबंध नहीं है, यह केवल चर्च की ताकत को दर्शाता है. फिर भी, यह रूपकों का एक संयुक्त रूप है, जिसे व्यापक स्तर पर अपनाया गया है. हिंदू पुनरुत्थानवाद की राजनीति में रुचि रखने वाले एक प्रमुख लेखक ने अयोध्या में अपेक्षित तीर्थयात्रियों की भीड़ की वजह से इसकी तुलना हज के साथ करके कहीं ज्यादा सही आकलन किया है.

दूसरे शब्दों में यह इससे जुड़ी महत्वाकांक्षाओं का सटीक आकलन है. पहली नजर में ही यह वैचारिक प्रतिध्वनि का एक रूप लगता है. यह नई आस्था व्यवस्था पूरी तरह उसी चीज की विशेषताएं अपनाने और नकल करने की कोशिश में लगी है, जिसे वह शत्रु के तौर पर देखती है- यानी इब्राहिमी एकेश्वरवाद. यह अलग बात है कि यहां विलक्षणता के सूत्रधार राम हैं.

भारत की स्व-परिभाषित दिव्यता से परिपूर्ण यह चरित्र हमें रामायण गाथा से मिला है और आधुनिक राष्ट्र की दशा-दिशा निर्धारित करने में एक अहम भूमिका निभा रहा है. रोम-रोम में गुंजायमान ध्वनियों में से एक की ओर इंगित करते हुए धर्म दर्शन में विशेषज्ञता रखने वाली ओटावा यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर सोनिया सिक्का ने एक्स पर लिखा, ''वेटिकन सिटी, मक्का. लगता है कि अंग्रेजों ने अपना काम बहुत अच्छी तरह किया था. हिंदू धर्म पूरी तरह सामीकरण की राह पर चल पड़ा है."

ऐसा नहीं है कि सिर्फ एक शहर का पुन‌र्निर्माण हो रहा है, बल्कि यह तो संपूर्ण मानस को नए खांचे में ढालने का एक प्रयास है. अब जरा हिंदू धर्म के बारे में सोचिए, उसके मूल स्वरूप में, उसकी संपूर्ण खूबसूरती और छोटी-मोटी कमियों के साथ.

यह एक ऐसे विशाल महाद्वीप की तरह है जिसमें घना जंगल भी सांसें लेता है, यह कोई सलीके से सजा शहर नहीं है. सारे रास्ते सिर्फ राम की तरफ ही नहीं जाते. इसका कोई चर्च नहीं है. कोई केंद्रीय प्राधिकारी नहीं. किसी एक धर्मग्रंथ को सर्वोपरि नहीं रखा जाता. मत-मतांतर इसके जीन में समाया है. इसके दर्शन एक-दूसरे का खंडन भी करते हैं- ये जितने भिन्न हैं, उतने ही समरूप भी हैं.

आदि शंकराचार्य मूर्ति-आधारित भक्ति के पक्षधर नहीं थे, तो दूसरी तरफ रामानुज थे जो उनसे सहमत नहीं थे. ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे. कबीर के राम वेदांतिक अमूर्तन के प्रतीक हैं, लेकिन पौराणिक भक्ति के कालक्रम में तुलसीदास के सगुण राम अधिक प्रभावशाली साबित हुए और उन्होंने उत्तर में हिंदू धर्म को एक ऐसे चरण में पहुंचा दिया, जहां राजदंड वैष्णववाद ने संभाल लिया.

इस तरह अयोध्या का मंदिर- जिसके चारों तरफ एक भव्य शहर बसा है- न केवल आधुनिक राजनैतिक परियोजना की परिणति है, बल्कि एक पुरानी प्रवृत्ति के मेल का प्रतिनिधित्व भी करता है. एकमात्र देवता के तौर पर राम के इर्द-गिर्द केंद्रित एकेश्वरवादी, गहन आस्थावादी हिंदू धर्म का मौजूदा विचार एकबारगी थोड़ा असंगत लग सकता है, लेकिन तथ्य यही है कि इसमें एक दिलचस्प बहुपक्षीय प्रतिध्वनि पैदा होती है.

जाने-माने शायर इकबाल ने 1908 में अपने 'धर्मनिरपेक्षता’ वाले दौर- जिसे हिंदू दक्षिणपंथी नेतृत्व अक्सर उद्धृत करता है- में पूरी श्रद्धा के साथ अयोध्या के राजा भगवान राम को 'इमाम-ए-हिंद' बताया था, उनका यह वाक्यांश हमेशा के लिए अमर हो गया. ब्रिटिश उपनिवेशकाल के दौरान तुलसीदास को लेकर बढ़ी उत्सुकता ने इसे एक नया आयाम दिया.

तकरीबन सभी इतिहासकार इस बात से सहमत हैं कि तुलसी कृत रामचरितमानस ने हिंदी/हिंदू-केंद्रित राष्ट्रवाद का खाका तैयार किया, और राम का नाम गांधी से लेकर जन-जन तक की जुबान पर चढ़ गया. इससे, अयोध्या को भी एक नया रुतबा मिला. 1930 में ओरिएंटलिस्ट विद्वान जे.एम. मैकफी ने इसे 'उत्तर भारत की बाइबिल’ बताया था.

उससे दशकों पहले अनुवादक एफ.एस. ग्रोसे- जिन्होंने 19वीं सदी में बतौर सिविल सेवक उत्तर प्रदेश में दशकों बिताए थे- ने इसके बारे में लिखा कि यह ''दार्शनिक हिंदू विचार की वस्तुत: नास्तिकता के खिलाफ एक भावुक विरोध’’ था, और इसमें ''नैतिक भावनाओं की शुद्धता पर तो जोर दिया गया लेकिन उद्विग्नता से पूरी तरह परहेज’’ किया गया.

इसके संदर्भ में ग्रियर्सन ने अधिक स्पष्ट तौर पर कहा- तुलसीदास ने ''देश को शैववाद की तांत्रिक अश्लीलता से बचाया था." राम का चरित्र पवित्रता और दृढ़ता का प्रतीक है, जिसमें अतिवाद कहीं नजर नहीं आता- स्पष्ट तौर पर इसमें ईसाइयत की एक गहरी छाप है. वैसे, ग्रियर्सन ने तो यहां तक कहा कि रामानुज का एकेश्वर वैष्णववाद मायलापुर में सेंट थॉमस माउंट से उनकी निकटता से प्रेरित था. हो सकता है कि यह कहना थोड़ा अजीब लगे?

लेकिन मुद्दे की बात यह है कि लगभग सभी वैष्णव संप्रदायों में कृष्ण और राम की उपासना एक दृढ़ एकेश्वरवाद की प्रतीक है- वे स्वयं भगवान, स्व-जन्मे और सर्वोच्च देवता बने. अचरज की बात है कि जो लोग उपनिवेशवादियों पर आडंबरपूर्ण होने का सबसे अधिक आरोप लगाते हैं, वही वास्तव में उनका अनुसरण कर रहे हैं. बहुत संभव है कि इस सीजन में अयोध्या पहुंचने वाले लाखों लोगों में भी आस्था इसी तरह उबाल मार रही हो. 

Read more!