हाथियों को ट्रेन की चपेट से बचाने के लिए रेलवे ने किए सुरक्षा के जंबो इंतजाम

मौजूदा बुनियादी ढांचे में एक साधारण-सा तकनीकी संशोधन करके भारतीय रेलवे ने ट्रेनों के साथ टकराने के कारण हाथियों की मौत की घटनाओं पर काफी हद तक काबू पाया

इंट्रूजन डिटेक्शन सिस्टम से रेलवे कर रही हाथियों की सुरक्षा
इंट्रूजन डिटेक्शन सिस्टम से रेलवे कर रही हाथियों की सुरक्षा

अगर हाथियों का कोई झुंड अपनी राह में मस्ती से झूमता चला जा रहा हो तो कोई भी इंसान या जानवर उसके रास्ते में आने की हिमाकत नहीं कर सकता. मगर रेलगाडिय़ां तो अपनी पटरियों से बंधी हैं, और उन नियमों से नहीं चलतीं जिसे इंसान या जानवर समझते हैं. भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में इसके नतीजे अक्सर त्रासद रहे हैं. इस क्षेत्र में 10,000 से ज्यादा हाथियों का बसेरा है. पिछले 10 वर्षों में पूर्वोत्तर राज्यों में ट्रेनों की चपेट में आकर 200 से ज्यादा हाथियों की मौत हो चुकी है.

काफी प्रयासों के बाद भारतीय रेलवे ने आखिरकार इसे रोकने के लिए समाधान भी निकाल लिया है. असम स्थित नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर रेलवे (एनएफआर) के इंजीनियरों ने मौजूदा तकनीक में जुगाड़ करते हुए बदलाव किया, ताकि जब भी हाथियों का झुंड रेलवे ट्रैक की ओर आता दिखे तो ट्रेन के इंजनों और स्टेशनों पर अलार्म बज जाए. वे इसे इंट्रूजन डिटेक्शन सिस्टम या आईडीएस कहते हैं.

साल 2021 के आखिर में रेलवे ने पाया कि समाधान तो रेल पटरियों के आसपास छिपा है. वह था सिग्नल ट्रांसमिट करने के लिए पटरियों के किनारे बिछा ऑप्टिक फाइबर केबल (ओएफसी). उन ओएफसी को इंटेलिजेंट सेंसर में बदलने के लिए उनमें बस डिस्ट्रीब्यूटेड एकूस्टिक सेंसिंग (डीएएस) की तकनीक लगाना था. उससे वे पूरी लंबाई तक ध्वनिक कंपन का पता लगाने में सक्षम बन जातीं. दरअसल, फाइबर में एक लेजर पल्स भेजी जाती और फिर यह देखा जाता है कि फाइबर में कंपन या किसी अन्य गतिविधि से लाइट पैटर्न के बिखराव में क्या अंतर आया.

अगर सिग्नल लौटकर वापस आता है, तो इसका अर्थ है कि केबल की निरंतरता टूट गई है, जिसे 'बैकस्कैटर' कहा जाता है. इस तरह की गड़बड़ियों की मॉनिटरिंग के जरिये डीएएस ओएफसी से जुड़े उपकरणों की मदद से स्थान, दिशा और पटरियों पर कैसी आवाजाही हुई है, इसके बारे में भी बता सकता है. फिर, सिस्टम को एक सेंट्रल सर्वर से जोड़ा जाता है. वहां पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रोग्राम की मदद से हाथियों के पटरियों को पार करने या उनके गुजरने की ध्वनि तरंगों को बाकी हलचलों से अलग कर उनकी पहचान की जाती है. 

सेंट्रल सर्वर रियल टाइम में ट्रेन कंट्रोल ऑफिस, लेवल-क्रॉसिंग फाटकों और स्टेशन मास्टरों के कार्यालयों में एलिफेंट अलर्ट सेट करता है. अलार्म मशीनें इंजन कैब के अंदर भी फिट की जाती हैं. जिन कुछ ट्रेनों में ये सिस्टम नहीं है, वहां नजदीकी स्टेशन मास्टर वॉकी-टॉकी से ट्रेन ड्राइवर को सूचित करते हैं.

नवंबर, 2022 से मार्च, 2023 के दौरान असम में लुमडिंग और लंका के बीच छह हाथी गलियारों और पश्चिम बंगाल में अलीपुरद्वार डिविजन में हासीमारा और चाल्सा के बीच 140 किलोमीटर तक फैले आठ गलियारों में यह प्रणाली लगाई गई. एनएफआर के प्रिंसिपल चीफ सिग्नलिंग और टेलीकॉम इंजीनियर उपेंद्र भूमिज कहते हैं, "पिछले साल परीक्षण शुरू होने के बाद उन हिस्सों में हाथियों के ट्रेन से टकराने या उनकी मौत की एक भी घटना नहीं हुई." पहले छह महीनों में हाथियों की ट्रेनों से 590 टक्कर रोके गए. अब रेलवे ने ईस्ट कोस्ट रेलवे, दक्षिण रेलवे, उत्तर रेलवे और दक्षिण पश्चिम रेलवे में भी 700 किमी ट्रैक पर यह सिस्टम लगाने का फैसला किया है. 

- अभिषेक जी. दस्तीदार

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