नीतीश कुमार : इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से सोशल इंजीनियरिंग तक
बिहार के मुख्यमंत्री इंडिया गठबंधन का ताना-बाना बुनने वाले सूत्रधार बने और जाति आधारित सामाजिक न्याय को भगवा राजनीति के विरुद्ध विमर्श के केंद्र में ले आए

जनता स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स के पूर्व छात्रों की फितरत में कुछ खास बातें शामिल रही हैं. एक माहिर तैराक की तरह मुश्किल हालात में भी सिर को पानी के ऊपर रखना, गठजोड़ कर गहरे पानी में भी सुरक्षित रहना और जहां पानी की गहराई अनुकूल हो या परिस्थिति का तकाजा हो वहां नए संगठन बनाना. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हर रंग में अपने को ढाल लेने वाले इस समाजवाद के एक और मेधावी छात्र के रूप में दो गजब के पैंतरों के साथ 2023 के राजनैतिक कैलेंडर पर अपना नाम लिखा. दोनों ही दो पक्के वैचारिक गुरुओं—राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण—की याद दिलाते हैं.
खेल की इस किताब का अनुसरण करने वाले एक लिहाज से हमेशा 1977 फिर से रचने का जतन करते हैं. वी.पी. सिंह ने यह 1989 में किया, जब नारा ही था 'वीपी इज जेपी.' तकरीबन तीन दशक बाद, बिहार में अपनी क्षमताओं और उपलब्धियों के शिखर पर पहुंच चुके नीतीश कुमार ने लगता है कि 2023 में दिल्ली के लिए नए वीजा का मौका देख लिया है. राज्य स्तर पर गठबंधन बनाने और तोड़ने में माहिर और नैतिकता और जरूरत का संपूर्ण सम्मिश्रण करने में पारंगत नीतीश ने भले ही 2019 में बड़ी राजनैतिक चाल न चली हो पर 2024 लोक सभा चुनाव के पहले उन्होंने अपनी प्रतिभा को राष्ट्रव्यापी बना ही दिया. यही नहीं, वे 29 दिसंबर को अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बन गए.
जब भी आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके दशक पुराने भगवा साम्राज्य के खिलाफ विपक्षी कंठों से फूटते महाराग को देखें, तो कभी न भूलें कि इसके प्रवर्तक, प्रोत्साहक, निष्पादक और प्रथम हस्ताक्षरकर्ता नीतीश थे. कांग्रेस भले ही इंडिया गठबंधन के केंद्रबिंदु में खुद को ले आई हो, पर अगर नीतीश ने एकाग्रचित्त पैरवी न की होती तो ऐसा नहीं हो पाता. वे विपक्षी नेताओं के साथ 2022 से ही काम कर रहे थे, जब उन्होंने राजद के साथ सरकार बनाने के लिए भाजपा से पल्ला झाड़ लिया था. इस जून में उन्होंने 15 पार्टियों को अपने पटना निवास पर इकट्ठा किया और तब अखिलेश यादव, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल सरीखों ने पहली बार कांग्रेस नेताओं के साथ रणनीतिक सत्रों में हिस्सा लिया.
एक परत है जहां नीतीश और भी जोरदार ढंग से वी.पी. सिंह की याद दिलाते हैं—जाति को विमर्श के बीचोबीच रखना. भारत में 1931 से नहीं गिने गए ओबीसी की असल तादाद जानने के लिए जाति सर्वेक्षण की उनकी हिमायत मंडल 2.0 लम्हे की तरह जान पड़ती है, ऐसा लम्हा जिसमें भाजपा के उग्र-हिंदुत्व को बुनियाद से हिलाने की क्षमता है. यहां तक कि जब केंद्र घबराया हुआ इस मुद्दे के इर्द-गिर्द पंजों पर चल रहा था, नीतीश स्वतंत्र भारत में बिहार की बिल्कुल पहली जाति गणना की राह पर बढ़ गए. मगर मोदी के लिए वह होने के लिए जो राजीव गांधी के लिए वी.पी. सिंह थे, खुदे को सामाजिक न्याय के पुरोधा के तौर पर रखना ही काफी नहीं. नीतीश को लक्ष्य ऊंचा करना होगा और इसमें उन्हें थोड़ा और आगे आना बाकी है.
राजनीति का इंजीनियर
> प्रशिक्षण से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर नीतीश ने सोशल इंजीनियरिंग में महारत हासिल की: उनके जाति सर्वेक्षण ने मंडल 2.0 को बहस का मुद्दा बना दिया
> बात 1967 की बताई जाती है कि छात्र प्रदर्शन के दौरान पुलिस की दो गोलियां सनसनाती हुई उनके कान के पास से गुजर गईं और वे बाल-बाल बचे. क्या इंडिया ब्लॉक के मुख्य विचारक और नेता के रूप में उनमें और राष्ट्रीय नेतृत्व के बीच उतना ही फासला है जितना उस रोज कान की बगल से गुजरती गोली थी?
> पंजीकृत ऑर्गन डोनर नीतीश ने अपनी आंखें एक एनजीओ को देने का वादा किया है जिसके संरक्षक भाजपा के सुशील मोदी हैं, जो कभी उनके डिप्टी हुआ करते थे. भाजपा की नजरें उनकी अगली चाल पर हैं
जाति सर्वेक्षण की उनकी हिमायत मंडल 2.0 लम्हे की याद दिलाती है, जिसमें भाजपा की बुनियाद हिलाने की क्षमता है.