सीजेआई डी.वाई चंद्रचूड़: धारणाओं को किया नजरअंदाज, कानून की किताब को आगे रख सुनाए फैसले

संवैधानिक नैतिकता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दोहरे आदर्शों से प्रेरित जस्टिस चंद्रचूड़ ने अक्सर सुरक्षित बहुमत वाले दृष्टिकोण से असहमति तो जताई लेकिन उनकी राय एक सामूहिक धारणा के दायरे के भीतर समाहित रही

भारत के मुख्य न्यायधीश डी.वाई चंद्रचूड़
भारत के मुख्य न्यायधीश डी.वाई चंद्रचूड़

अमूमन ऐसा नहीं होता है कि उच्च न्यायपालिका जैसे प्रतिष्ठित क्षेत्र का काला चोंगाधारी कोई व्यक्ति सुर्खियां बटोरने के मामले में कुछ सख्त और उतार-चढ़ाव भरे राजनैतिक और ऐसे ही कुछ अन्य पेशों से जुड़े लोगों को पीछे छोड़ दे और वह भी अपनी विश्वसनीयता भरी धमक के साथ. लेकिन जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने जब नवंबर, 2022 में भारत के 50वें प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली, तब एक महीने पहले ही सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग शुरू हो चुकी थी. और संयोगवश वे एक सही समय पर क्लोज सर्किट के असीमित संसार में चमकने वाले सही व्यक्ति बन गए.

न तो उनके व्यक्तित्व का कानूनी अधिष्ठाता की तुलना में अधिक चेतन समाजशास्त्रीय पहलू इसमें आड़े आया और न ही उनकी व्यक्तिगत आस्था ही इसमें बाधा बनी. अपने इर्द-गिर्द बनती धारणा को और पुख्ता करते हुए उन्होंने शुरुआत में ही साफ कर दिया कि उनके मार्गदर्शन में व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों को अधिक तरजीह मिलेगी. नैतिक प्रतिबद्धता को कार्यशैली का हिस्सा बनाने में वे पीछे नहीं रहे—प्रत्येक कार्यदिवस पर जमानत और केस ट्रांसफर से जुड़ी 10-10 याचिकाओं की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में बाकायदा एक व्यवस्था कायम की.

जब तत्कालीन कानून मंत्री किरेन रिजीजु ने इस पर आपत्ति जताई कि सुप्रीम कोर्ट जैसे संवैधानिक कोर्ट को जमानत और जनहित याचिकाओं पर सुनवाई नहीं करनी चाहिए तो सीजेआई का दो-टूक जवाब था कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में तत्परता दिखाना और राहत देना इस कोर्ट के लिए एक तरह से बाध्यकारी है.

साल 2023 के आगे बढ़ने के साथ उन्होंने एक के बाद एक कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए और यह सुनिश्चित किया कि उनकी अनुगूंज सार्वजनिक तौर पर स्पष्ट सुनाई दे. इससे धीरे-धीरे ही सही, एक ऐसी भावना भी मुखर हुई कि न्यायिक प्राचीर से कार्यपालिका की रेतीली जमीन पर गहरी संवैधानिक रेखाएं उकेरने की तैयारी कर ली गई है. हालांकि, साल बीतने के साथ इसमें कमी आती गई.

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के अब तक के पूरे कार्यकाल के दौरान उनके व्यक्तित्व के दो खास पहलू उभरकर सामने आए हैं. एक न्यायशास्त्रीय है, जो किसी भी न्यायाधीश के व्यवहार का मूल आधार होता है. दूसरा, आंतरिक प्रशासनिक कौशल से जुड़ा है और किसी भी लिहाज से कम मायने नहीं रखता—और उन्होंने दोनों के बीच एक बेहद संतुलित संबंध बना रखा है.

सीजेआई का मानना है कि भारतीय न्यायिक प्रणाली की विडंबना यही है कि पूरी प्रक्रिया इतने लंबे समय तक खिंचती है कि वह अपने-आप में किसी सजा से कम नहीं होती. यह न्याय में एक बड़ी बाधा है. सुप्रीम कोर्ट पर मामलों का बोझ और लंबित मामले इसकी पुष्टि भी करते हैं—उनके पद संभालते समय करीब 70,000 मामले लंबित थे. मामलों का बोझ घटाने के लिए जस्टिस चंद्रचूड़ ने उनको सूचीबद्ध करने और वकीलों के उल्लेख को लेकर मानदंड निर्धारित किए.

2023 के अंत तक शीर्ष कोर्ट ने 24,825 नए पंजीकृत मामलों के मुकाबले 29,337 मुकदमों पर फैसला सुनाया, जो मामले निबटारे की उच्च दर का परिचायक है. सीजेआई की पहल पर सुप्रीम कोर्ट को नेशनल जूडीशियल डेटा ग्रिड से जोड़ा जा चुका है, जिसमें देशभर की अदालतों में लंबित मामलों और उनके निबटारे से जुड़े आंकड़े होते हैं. इस कदम की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सराहना की थी.

अदालत में सीजेआई ने विभिन्न मामलों पर जनमानस में बनी धारणाओं को नजरअंदाज कर उनकी बारीकियों पर गौर किया और कानून की किताब को आगे रख फैसले सुनाए, फिर चाहे हिंडनबर्ग-अदाणी मामला हो या महाराष्ट्र में विश्वासमत पर विवाद अथवा दिल्ली में प्रशासनिक अधिकारों से जुड़ी लड़ाई. मणिपुर में महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार का वीडियो वायरल हुआ तो सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्वत: संज्ञान लिया.

अक्टूबर में दो के मुकाबले तीन के बहुमत से खंडपीठ ने समलैंगिक जोड़ों के विवाह को संवैधानिक वैधता देने से इनकार कर दिया तब जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल ने अल्पमत राय दी कि कानूनी ढांचे में अधिक सहानुभूतिपूर्ण रुख अपनाया जाना चाहिए.

संवैधानिक नैतिकता के मुखर पैरोकार सीजेआई राष्ट्रीय महत्व के मामलों की सुनवाई के लिए संवैधानिक पीठों की स्थापना में तेजी लाए. 2023 में दूसरे दिन एक संविधान पीठ ने 2016 में नोटबंदी लागू करने के केंद्र के फैसले की वैधता को बरकरार रखते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया. आज, विभिन्न संविधान पीठ राजनैतिक लिहाज से संवेदनशील मामलों की सुनवाई कर रही हैं, जैसे अहम कानून पारित कराने के लिए केंद्र की तरफ से धन विधेयक का तरीका अपनाया जाना और चुनावी बॉन्ड का मुद्दा.

केंद्र के असहज होने की आशंकाओं के बीच जस्टिस चंद्रचूड़ ने अक्सर एकला चलो वाला रुख अख्तियार किया. कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच परस्पर प्रतिद्वंद्विता की एक बानगी वर्ष 2023 के शुरू में तब सामने आई, जब उपराष्ट्रपति और राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि संसद लोकतंत्र का 'नॉर्थ स्टार’ (दिशा बताने वाला) है. इसे एक सेमिनार में चंद्रचूड़ की तरफ से दिए उस बयान की प्रतिक्रिया के तौर पर देखा गया, जिसमें उन्होंने कहा था कि संविधान का बुनियादी ढांचा सिद्धांत 'नॉर्थ स्टार’ है जो व्याख्याकारों और कार्यवयनकर्ताओं को दिशा प्रदान करता है.

सियासी तबके के साथ सबसे बड़ी बहस तो न्यायाधीशों की नियुक्तियों से जुड़ी रही है. जनवरी में जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कानून मंत्रालय की आपत्तियों को खारिज कर वकील सौरभ कृपाल को दिल्ली हाइकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त करने का प्रस्ताव दोहराया. इस मामले में कार्यपालिका की बेचैनी का बड़ा कारण कृपाल का यौन रुझान था, जो उनकी मुखरता से सार्वजनिक हो चुका था.

रिजीजू—जिन्हें मई में कानून मंत्री पद से हटा दिया गया—ने जहां उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों पर कॉलेजियम की सर्वोच्चता के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था, वहीं सीजेआई और उनके साथी न्यायाधीशों ने केंद्र पर कॉलेजियम की सिफारिशों को लेकर चयनात्मक और धीमी प्रतिक्रिया अपनाने का आरोप मढ़ा. इस सारी खींचतान के बीच सीजेआई ने कॉलेजियम के कामकाज में और अधिक पारदर्शिता लाने की वकालत की.

संस्थागत टकराव हाल ही में एक बार फिर सामने आया, जब मास्टर ऑफ रोस्टर के तौर पर जस्टिस चंद्रचूड़ की शक्तियों को लेकर सवाल उठे. 5 दिसंबर को न्यायाधीशों की नियुक्ति में देरी से संबंधित मामले को जस्टिस कौल की सहमति के बिना ही उनकी सुनवाई सूची से हटा देने को लेकर संदेह जताया गया कि ऐसा कहीं केंद्र के प्रभाव में आकर तो नहीं किया गया. इससे पहले, हर सुनवाई के दौरान जस्टिस कौल ने सरकार को कड़े लहजे में चेताया था.

वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने 6 दिसंबर को सीजेआई को पत्र लिखकर बताया कि कुछ मामले संबंधित पीठों से हटाकर दूसरी पीठों के पास भेज दिए गए हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ ने इसमें किसी तरह के दखल की बात को खारिज किया लेकिन मीडिया रिपोर्ट में रेखांकित किया गया कि कैसे नियमों को ताक पर रखकर पिछले चार माह के दौरान राजनैतिक रूप से संवेदनशील आठ मामलों को एक खास जज की अदालत में ट्रांसफर किया गया है.

कई विपक्षी नेताओं का मानना है कि प्रमुख संस्थागत और राजनैतिक मुद्दों पर केंद्र से टकराव के मामले में जस्टिस चंद्रचूड़ का रुख थोड़ा परंपरागत रहा है. कांग्रेस के एक राज्यसभा सांसद कहते हैं, "व्यक्तिगत स्वतंत्रता कायम रखने के मामले में वे पूरी तत्परता दिखाते हैं लेकिन सरकार के साथ सीधे टकराव से बचना चाहते हैं."

यहां तक कि अनुच्छेद 370 रद्द करने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर को पूरी तरह 'कानून सम्मत न करार' देते हुए विधि विशेषज्ञों ने कड़े शब्दों में इसकी आलोचना भी की. लेकिन सीजेआई का रुख यही रहा कि भले ही कानून को जनता की भलाई के लिए इस्तेमाल करना, उन्हें विरासत में मिला है लेकिन न्यायिक आचरण हमेशा जन अपेक्षाओं के आधार पर तय नहीं किया जा सकता. क्योंकि अदालती फैसलों के नतीजे दूरगामी होते हैं. 

 

जस्टिस डी. वाई.  चंद्रचूड़

ऐतिहासिक फैसले

सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई के नेतृत्व वाली पीठों के कुछ फैसले इस साल लगातार सुर्खियों में छाए रहे:

● 2 मार्च 2023

सुप्रीम कोर्ट ने सेबी से हिंडनबर्ग रिसर्च की तरफ से शेयर बाजार के नियम तोड़ने को लेकर अदाणी समूह के खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों की जांच करने को कहा. साथ ही सेबी के कामकाज की निगरानी के लिए एक विशेषज्ञ समिति का भी गठन किया

● 11 मई, 2023

राष्ट्रीय राजधानी में भारतीय प्रशासनिक सेवा सहित सभी सेवाओं पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण होगा. केवल भूमि, पुलिस और कानून-व्यवस्था इसके दायरे से बाहर होंगे

● 11 मई, 2023

शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट के 34 विधायकों के अनुरोध पर फ्लोर टेस्ट कराने का महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का निर्णय गलत था. हालांकि, पीठ ने यथास्थिति बहाल करने से इनकार कर दिया क्योंकि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना किए बिना ही पद से इस्तीफा दे दिया था

● 20 जुलाई, 2023

सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में दो महिलाओं के यौन उत्पीड़न वाले एक वायरल वीडियो पर स्वत: संज्ञान लिया, और पीड़ितों की मुश्किलों के बारे में पता लगाने के लिए समिति का गठन किया

● 1 सितंबर, 2023

शून्य/अमान्य विवाह से जन्मे बच्चे संयुक्त हिंदू परिवारों में अपने माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकते हैं

● 17 अक्तूबर, 2023

सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने तीन न्यायाधीशों की बहुमत राय से समलैंगिक जोड़ों के विवाह करने या बच्चे गोद लेने के अधिकार को मान्यता देने से इनकार कर दिया. जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस एस.के. कौल की राय भिन्न रही

● 11 दिसंबर, 2023

अनुच्छेद 370 निरस्त करने के फैसले पर मुहर लगाई लेकिन साथ ही निर्देश दिया कि 'जितनी जल्दी संभव हो', जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किया जाए

कैसे घटेगा मुकदमों का बोझ:

बीते एक साल में प्रधान न्यायाधीश ने इंटीग्रेटेड केस मैनेजमेंट सिस्टम को अपग्रेड करने के साथ सुप्रीम कोर्ट में लंबित मुकदमों का बोझ घटाने के लिए कुछ और कदम भी उठाए हैं

● मंगलवार, बुधवार, गुरुवार को सत्यापित मामले अगले सोमवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होते हैं. शुक्रवार, शनिवार और सोमवार को स्वीकृत मामले अगले शुक्रवार के लिए सूचीबद्ध किए जाते हैं

● सोमवार और शुक्रवार को केवल विविध (मिसलेनियस), नए और नोटिस जारी होने के बाद वाले मामले सुने जाते हैं. हर दिन हर कोर्ट को जमानत और केस ट्रांसफर से जुड़ी 10-10 याचिकाओं पर सुनवाई करनी होती है   

● आपराधिक मामलों और मोटर वाहन दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण, भूमि अधिग्रहण, मध्यस्थता, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों से संबंधित मामलों के निबटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट में विशेष पीठ बनाई गई हैं

● बड़ी संख्या में ऐसे मामले, जिसमें कोई खामी पाई गई थी, लेकिन 90 दिन बीत जाने के बावजूद अधिवक्ताओं की तरफ से दोबारा दाखिल नहीं किए गए हों, उन्हें सूचीबद्ध करके लंबित मामलों से बाहर करने के लिए चैंबर जज के सामने रखा जाता है 

● मामलों के सत्यापन का लक्ष्य मौजूदा प्रति दिन करीब 150 मामले से बढ़ाकर 250 मामले प्रति दिन कर दिया गया है

● अधिवक्ताओं ने जिन मामलों में सॉफ्ट कॉपी दाखिल नहीं की है, उन्हें अब कोर्ट में ही स्कैन कराकर पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा. इसके लिए वकील से स्कैन कॉपी मिलने की प्रतीक्षा नहीं की जाएगी

सुधारवादी कदम:

● सीजेआई ने तमाम रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण, एआई के जरिये मामलों का ट्रांसक्रिप्शन, त्वरित सेवाओं के लिए ऑनलाइन सेंटर, फैसलों का एक इलेक्ट्रॉनिक डेटाबेस तैयार कराने के अलावा सुप्रीम कोर्ट के मामलों को नेशनल जूडीशियल डेटा ग्रिड में शामिल करने जैसी कई पहल कीं 

● 27 सितंबर से सुप्रीम कोर्ट की सभी संवैधानिक पीठ की सुनवाई की लाइव-स्ट्रीमिंग हो रही है 

● हाइकोर्ट के न्यायाधीशों को सुप्रीम कोर्ट लाने के लिए कॉलेजियम किन मानदंडों पर विचार करेगा, इसका पूरा सेट तैयार किया गया

● लैंगिक संवेदनशीलता को लेकर सीजेआई ने एक हैंडबुक लॉन्च की, ताकि न्यायिक विमर्श से रूढ़िवादी सोच को बाहर किया जा सके, सुप्रीम कोर्ट परिसर में एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय की सहजता के लिए यूनिवर्सल रेस्ट रूम बनाए गए 

● सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार किसी बधिर वकील के लिए सांकेतिक भाषा में बात करने वाला दुभाषिया नियुक्त किया

Read more!