निकहत जरीन: जिंदगी की चुनौतियों को 'पंच' मारने वाली बॉक्सर

निकहत जरीन लगातार दो विश्व चैंपियनशिप खिताब, एशियाई खेलों में एक कांस्य और राष्ट्रमंडल खेलों में एक स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं

बॉक्सर निकहत जरीन

जब 13 साल की निकहत जरीन ने पहली बार बॉक्सिंग क्लास में एक लड़के के साथ दांव खेला तो वे चोटिल चेहरे, लाल सूजी नाक और खून से सनी टी-शर्ट लिए घर लौटीं. जरीन रो पड़ीं, उन्हें देखकर उनकी मां भी रोने लगीं क्योंकि वे पहले से ही बेटी की शादी की संभावनाओं को लेकर फिक्रमंद थीं. जरीन ने उनसे कहा, "मम्मी आप टेंशन काहे को ले रही हैं, नाम होगा तो दूल्हों की लाइन लग जाएगी.'' वे दूरदर्शी थीं. जरीन अब मशहूर खिलाड़ी हैं और लगातार दो विश्व चैंपियनशिप खिताब, एशियाई खेलों में एक कांस्य और राष्ट्रमंडल खेलों में एक स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं.

जरीन बॉक्सिंग की दुनिया में कैसे पहुंचीं, यह अपने आप में एक कहानी है. धाविका तो वे थीं ही, उन्होंने नोटिस किया मुक्केबाजी मुकाबलों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले निजामाबाद के कलेक्टर ग्राउंड के मंच पर कोई लड़की नहीं दिखती. उन्होंने अपने वालिद मोहम्मद जमील अहमद से इसकी वजह पूछी. उन्होंने कहा कि समाज लड़कियों को इतना मजबूत नहीं मानता कि वे मुक्केबाजी के दांवपेंच और धां-धूं से निबट सकें. यही शुरुआती प्रेरणा थी जिसकी जरीन को जरूरत थी. ''मेरे वालिद को बताया गया कि अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरी दोनों बड़ी बहनों के लिए भी मुनासिब रिश्ता मिलना मुहाल हो जाएगा.'' लोग बार-बार यही कहते कि ये बॉक्सिंग ''लड़कियों के लिए थोड़े ही है!''

दो साल बाद, 2011 में जब जरीन तुर्की के अंताल्या में जूनियर ऐंड यूथ वर्ल्ड चैंपियनशिप में पोडियम के शीर्ष पर खड़ी थीं, और जैसे ही स्टेडियम में राष्ट्रगान गूंजा, उनके रोंगटे खड़े हो गए और उनकी आंखें भर आईं. 16 वर्षीया जरीन को पता था कि वे मुक्केबाजी के ज‌रिये से इस भावना को बार-बार दोहराना चाहती हैं. वे कहती हैं, ''बॉक्सिंग ने मुझे बहुत कुछ दिया है आजादी और ऐसे दोस्त जो अपने आप में परिवार बन गए.''

जरीन को मालूम है कि उनकी कामयाबी मुस्लिम लड़कियों के लिए मिसाल बन सकती है. वे कहती हैं, ''मैं इस रूढ़ि को तोड़ना चाहती हूं कि मुस्लिम महिलाओं को केवल पर्दे में रहना चाहिए. हम इससे बाहर आ सकते हैं और अपने सपनों को साकार कर सकते हैं.'' 2022 में अपना पहला सीनियर विश्व चैंपियनशिप खिताब जीतने के बाद उनके वालदैन को कई फोन आए, सभी ने यह पूछा कि अपनी बेटी को मुक्केबाजी का प्रशिक्षण कैसे दिलाएं. वे कहती हैं, ''अगर मेरी वजह से किसी लड़की के अपने सपने पूरे हो रहे हैं तो यह मेरे लिए बहुत फख्र की बात है.''

चाहे वह 2020 ओलंपिक का ट्रायल हो जब वे एमसी मैरी कॉम से हार गई थीं या कंधे की चोट से जूझना हो, जरीन ने कई मुश्किलों का सामना किया. वे बताती हैं, "यह आसान नहीं था. मैं हर दिन रोती थी. दोस्तों और परिवार ने मेरी हौसलाअफजाई की.'' जरीन खुद को बेजा शोर-शराबे से बचाने का श्रेय अपने वा‌लिद को देती हैं. ''वे कहते थे, 'बस खेलो, भारत के लिए पदक जीतने के अपने सपने को साकार करो.'' उनके दिमाग में एक पदक है- एक ओलंपिक गोल्ड. जरीन ने इस साल के एशियाड में कांस्य पदक के साथ 2024 पेरिस खेलों के लिए अपना स्थान सुरक्षित किया. पटियाला में राष्ट्रीय शिविर में प्रशिक्षण के दौरान जरीन ने रोशनी के शहर को रोशन करने का संकल्प लिया.

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