नीरजा बिरला और शांतिश्री धूलिपुड़ी: शिक्षा के जरिए संवार रही हैं लाखों छात्रों का भविष्य

नीरजा एस. कुमार्स ग्रुप के प्रमुख कासलीवाल व्यवसायी परिवार से ताल्लुक रखती हैं. 2016 में अपनी बड़ी बेटी अनन्या के साथ देर रात हुई बातचीत ने उनके सपनों को पंख फैलाने का मौका दिया

आदित्य बिड़ला एजुकेशन ट्रस्ट (एबीईटी) की संस्थापक और अध्यक्ष नीरजा बिड़ला
आदित्य बिड़ला एजुकेशन ट्रस्ट (एबीईटी) की संस्थापक और अध्यक्ष नीरजा बिड़ला

नीरजा बिरला के मन में काफी समय से यह विचार कौंध रहा था कि कोई ऐसा संगठन शुरू किया जाए, जो खासतौर पर मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे लोगों के लिए मददगार साबित हो. लेकिन वे अपने तीन बच्चों—अनन्या, आर्यमन और अद्वैतेशा—की परवरिश में लंबे समय तक व्यस्त रहीं. उद्योगपति कुमार मंगलम बिरला से उनकी शादी उस वक्त हुई जब वे महज 18 साल की थीं (उनके पति तब 22 वर्ष के थे).

नीरजा एस. कुमार्स ग्रुप के प्रमुख कासलीवाल व्यवसायी परिवार से ताल्लुक रखती हैं. 2016 में अपनी बड़ी बेटी अनन्या के साथ देर रात हुई बातचीत ने उनके सपनों को पंख फैलाने का मौका दिया. उनके शब्दों में, "उसने कहा—बस, बहुत हुआ. अब कर डालो. मैंने कहा—ठीक है." उनका नजरिया साफ था कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों के बीच जागरूकता पैदा करना, समस्या को बढ़ने से रोकना और विश्वस्तरीय सेवाएं प्रदान करना.

इस तरह आदित्य बिरला एजुकेशन ट्रस्ट के हिस्से के तौर पर 'एमपॉवर' का जन्म हुआ. यह केंद्र अब तक 1.9 लाख से ज्यादा सत्र आयोजित कर चुका है, जिसमें 15,453 मरीजों ने अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिए पेशेवरों की मदद ली. 'एमपॉवर' की क्लिनिकल पहल से कम-से-कम 61,800 लोगों का जीवन बदला है. केंद्र ने स्कूलों, कॉलेजों और कंपनियों में 7,800 से ज्यादा कार्यशालाएं भी आयोजित की हैं, जिससे 2.63 लाख लोगों को लाभ पहुंचा. ट्रस्ट शिक्षा के क्षेत्र में भी अपने कदम बढ़ा रहा है. खासकर विशेष जरूरत वाले बच्चों (स्पेशल एबिलिटीज) के लिए दो स्कूल चलाता है. 

शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित

शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित, वाइस-चांसलर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने फरवरी 2022 में इसके वाइस-चांसलर का पदभार संभाला. तब उनके पूर्ववर्ती एम. जगदीश कुमार वाम राजनीति के इस गढ़ का चरित्र बदलने की उनकी कोशिशों से संस्थान अस्त-व्यस्त हो गया था. वे जा चुके थे और कभी बौद्धिक बहस के लिए मशहूर इस कैंपस में हिंसा ने जगह बना ली थी. दक्षिणपंथी विमर्श के लिए शांतिश्री की तरफदारी से पैदा हंगामा तो नहीं रुका लेकिन वह जेएनयू की पहली महिला वाइस-चांसलर होने की उनकी उपलब्धि को ढक नहीं पाया.

रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में 1962 में लेखक—पत्रकार से सिविल सेवक बने डॉ. धूलिपुड़ी अंजनेयुलु और तमिल तथा तेलुगू की प्रोफेसर मुलामूदी आदिलक्ष्मी के घर जन्मी शांतिश्री का कहना है कि उनके माता-पिता अपने वक्त के लिहाज से काफी उदार थे और उन्होंने खुद अंतरजातीय विवाह किया था. वे बताती हैं, "मेरी मां ब्राह्मण थीं और पिता आर्थिक रूप से पिछड़ी जाति से थे."

शांतिश्री ने जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस से एमफिल और पीएचडी की है. वे पुणे में सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर थीं, जब उन्हें जेएनयू का वीसी बनाया गया. दो साल हो चुके हैं और कैंपस में अमन-चैन वापस लाने को वे बड़ी उपलब्धि मानती हैं.

शाहीन मिस्त्री
 

शाहीन मिस्त्री, फाउंडर, टीच फॉर इंडिया और आकांक्षा फाउंडेशन

अगर आप पांच अलग-अलग देशों में पले-बढ़े हों तो जाहिर है कि दुनिया को देखने-समझने का आपका नजरिया काफी व्यापक होगा. शाहीन मिस्त्री जब कॉलेज की गर्मी की छुट्टियों के दौरान भारत आईं और एक वालंटियर के तौर पर मुंबई की झुग्गियों में काम करने पहुंचीं तो उन्हें इस बात ने काफी परेशान कर दिया कि उनके और अन्य लाखों बच्चों के जीवन के बीच कितना अंतर था.

उन बच्चों के पास उनकी तरह साधन नहीं हैं. उन्होंने पाया कि यह असमानता इतनी गहरी है कि किसी तरह के बदलाव के लिए बुनियादी स्तर पर शुरुआत करनी होगी. और मिस्त्री ने यही किया. मुंबई के कोलाबा में 1989 में उन्होंने 15 बच्चों और किराए पर लिए गए एक परिसर के साथ कम आय वाले परिवारों के बच्चों के लिए कक्षाएं चलानी शुरू कीं और इसी के साथ आकांक्षा फाउंडेशन की नींव पड़ी. यह 34 साल पहले की बात है. आज, यह फाउंडेशन मुंबई, पुणे और नागपुर में 26 आकांक्षा स्कूल चलाता है, और 14,000 से अधिक छात्रों के जीवन को बदल चुका है.

उसके 20 साल बाद 2009 में उन्होंने ग्लोबल टीच फॉर ऑल नेटवर्क के भारतीय चैप्टर, टीच फॉर इंडिया की शुरुआत की. पहले समूह में 87 'फेलो' थे जो दो साल तक कम आय वाले स्कूलों में बतौर शिक्षक काम कर चुके थे. फिर, यह प्रोजेक्ट तेजी से आगे बढ़ा है और आठ शहरों में करीब 1,000 फेलो और 250 लोगों के स्टाफ के जरिए 34,000 से ज्यादा बच्चों को लाभान्वित किया. टीएफआइ से शिक्षित लोगों की संख्या 4,200 से अधिक हो चुकी है और इसने प्रत्यक्ष रूप से दस लाख और परोक्ष रूप से 5 करोड़ बच्चों के जीवन को सुधारा है.

बच्चों से बेहद लगाव रखने वाली मिस्त्री के लिए महात्मा गांधी के ये शब्द अनमोल हैं, "निस्वार्थ प्रेम की भाषा सिर्फ बच्चों से सीखी जा सकती है." वे कहती हैं, "बच्चों के साथ काम करते हुए 30 वर्ष से ज्यादा बिताने के बाद मैं पूरी दृढ़ता से कह सकती हूं कि हमारे बच्चों में असीमित क्षमताएं हैं, बस उन्हें सही राह दिखाने की जरूरत है. हर बच्चे को उत्कृष्ट शिक्षा दिलाने का लक्ष्य चुनौतीपूर्ण है. पर यह उम्मीदों से भरा भी है, और इसे संभव भी किया जा सकता है क्योंकि हमारे बच्चे दुनिया को इसी तरह देखते हैं."

—शैली आनंद

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