संध्या देवनाथन: शानदार बैंकिंग करियर से मेटा इंडिया की मुखिया तक कैसा रहा का सफर?

सिटी बैंक और स्टैंडर्ड चार्टर्ड में शानदार बैंकिंग करियर के बाद जनवरी 2016 में वे सिंगापुर में ग्रुप डायरेक्टर, साउथ-ईस्ट एशिया के पद पर मेटा से जुड़ीं

मेटा इंडिया की प्रमुख संध्या देवनाथन
मेटा इंडिया की प्रमुख संध्या देवनाथन

संध्या देवनाथन ने नवंबर 2022 में जब मेटा की भारत प्रमुख का काम संभाला, तो फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप की इस मातृ कंपनी में उथल-पुथल मची थी. यह फेक न्यूज और हेट स्पीच पर लगाम लगाने के लिए ज्यादा कुछ नहीं करने की वजह से नियामकीय चुनौतियों और आलोचना का सामना कर रही थी. कंपनी ने दुनिया भर में 11,000 कर्मचारियों की छंटनी की थी.

एक साल बाद देवनाथन को गर्व है कि उनके ''काम में जुटे मेटा परिवार" ने कितना कुछ हासिल किया है. वे कहती हैं, "सबसे बड़ी सफलता यह रही कि टीम ने उन झटकों को पीछे छोड़ दिया और सोद्देश्य ढंग से आगे बढ़ी, वह उद्देश्य भारत के बारे में बड़ा विजन है."

मेटा ने न केवल भारत में ज्यादा राजस्व जुटाया बल्कि नए कार्यक्रम भी शुरू किए. वे कहती हैं, "हम आधा अरब लोगों को जोड़ने के सौभाग्य को हल्के में नहीं लेते. हम मेटा प्लेटफॉर्म को खासकर महिलाओं और बच्चों के लिए सुरक्षित और गलत जानकारियों से मुक्त रखने के लिए दोगुनी पहल कर रहे हैं."

सिटी बैंक और स्टैंडर्ड चार्टर्ड में शानदार बैंकिंग करियर के बाद जनवरी 2016 में वे सिंगापुर में ग्रुप डायरेक्टर, साउथ-ईस्ट एशिया के पद पर मेटा से जुड़ीं. अगस्त 2016 में उन्हें सिंगापुर में मेटा का पहला कंट्री डायरेक्टर और वियतनाम का बिजनेस हेड बनाया गया.

बैंकर माता-पिता के घर जन्मी देवनाथन की मां तभी गुजर गईं जब वे महज नौ साल की और उनकी छोटी बहन छह साल की थी. परिवार हैदराबाद से विशाखापट्टनम आ गया, जहां दादी और चाची ने दोनों बहनों को पालने में उनके पिता की मदद की. वे कहती हैं, "मेरी जिंदगी को बहुत कुछ इन दो मजबूत महिलाओं ने गढ़ा है."

फिलहाल वे मेटा की ग्लोबल डायवर्सिटी इक्विटी काउंसिल में हैं और गेमिंग में लैंगिक विविधता में सुधार लाने के लिए मेटा की पहल प्ले फॉरवर्ड की ग्लोबल लीड थीं. महिला उद्यमियों की सहायता के लिए बनाए गए रिसोर्स हब बिजनेस के पीछे जिन लोगों का दिमाग था, वे उनमें शामिल थीं.

यूएन वूमेन ऑन प्रोजेक्ट इंस्पायर की मेंटोर होने के नाते 2013 में देवनाथन ने 'वूमेन इन स्टेम' नाम का कार्यक्रम शुरू किया, जिसका मकसद स्टेम कोर्स की पढ़ाई के लिए लड़कियों को बढ़ावा देना था. देवनाथन कहती हैं, "गर्ल्स पायोनियर नाम से अब यह बहुत बड़ा कार्यक्रम बन चुका है. करीब 40,000 लड़कियों का स्कूल में स्टेम से परिचय करवाया जाता है."

रितु गंगराडे अरोड़ा

रितु गंगराडे अरोड़ा, सीईओ और सीआईओ-एशिया पैसिफिक

हैदराबाद में पली-बढ़ीं एशिया पैसिफिक, एलियांज इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट, सिंगापुर की सीईओ और सीआईओ रितु गंगराडे अरोड़ा भाग्यशाली हैं कि उनके माता-पिता ने शिक्षा को सबसे बड़ी संपत्ति माना. वे कहती हैं, "मेरी मां ने मुझमें सपने और महत्वाकांक्षाएं पैदा कीं, मेरे पिता ने उनको आगे बढ़ाया और मेरे पति और पूरे परिवार ने उन्हें पंख देने में मदद की."

कॉलेज के बाद उन्हें कला की दुनिया में पैर रखने की इच्छा हुई और उन्होंने मुंबई में सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला लेने पहुंचीं. लेकिन अंतत: कॉमर्स में चली गईं. जिससे कॉलेज के प्रिंसिपल खुश नहीं थे क्योंकि उन्हें लगा कि उन्होंने इंजीनियरिंग में बेहतर प्रदर्शन किया होता. वे कहती हैं, "अच्छा ही हुआ कि मैं रुचि की ओर बढ़ी और मेरे माता-पिता ने मुझे करने दिया."

रितु ने एलियांज और एचएसबीसी सहित बहुराष्ट्रीय कंपनियों में कई नेतृत्व पदों पर 27 साल से अधिक समय बिताया. एलियांज में, वे भारत, चीन, ताइवान, थाईलैंड, इंडोनेशिया और मलेशिया सहित 12 देशों में निवेश पर नजर रखती हैं, जहां प्रबंधन के तहत लगभग 48 अरब डॉलर की संपत्ति है.

वे दो बच्चों की मां हैं और पति आशीष अरोड़ा एयरटेल के एनएक्स्ट्रा डेटा के सीईओ हैं. वे कहती हैं, "एलियांज में बोर्ड स्तर तक स्त्री-पुरुष सहभागिता के प्रति गहराई से प्रतिबद्धता है.’’ लेकिन, वे बताती हैं कि समय के साथ, लोग स्त्री-पुरुष मुद्दों को भूलने लगते हैं और काम पर ध्यान केंद्रित करने लगते हैं, और जब तक कोई काम करता है, लिंग संबंधी मुद्दा मायने नहीं रखता. सिंगापुर, चीन और म्यूनिख के टाइम जोन के बीच शेड्यूल कठिन हो सकता है, इसलिए रितु को कठोरता से समय प्रबंधन करना पड़ता है. हालांकि, वे कई संस्कृतियों के साथ संवाद को मजेदार मानती हैं.

विभा पडलकर

विभा पडलकर, एमडी और सीईओ, एचडीएफसी लाइफ

बात जब जीवन और करियर से जुड़े फैसले लेने की आई, तो विभा पडलकर ने लीक से हटकर चलने का विकल्प चुना. वे चाहतीं तो मां के नक्शेकदम पर चल सकती थीं, जो पेशे से सिविल सर्वेंट थीं या फिर अपने पिता की तरह इंजीनियर बन सकती थीं. लेकिन, उन्हें अपने एक रिश्तेदार की आलीशान कॉर्पोरेट जीवनशैली ने ज्यादा आकर्षित किया. चेन्नै में जन्मीं विभा ने शुरुआती पढ़ाई इसी शहर से की.

इसके बाद उन्होंने लंदन से सीए का कोर्स किया, जहां उनके पिता भारतीय उच्चायोग में तैनात थे. जब वे 19 साल की थीं, तब उन्हें लंदन में नौकरी मिल गई. यहीं उन्होंने 'विश्व दृष्टि' की अपनी अवधारणा कायम की. भारत लौटने पर विभा ने सबसे पहले कोलगेट पामोलिव के साथ काम किया. इसके बाद वे बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट फर्म डब्ल्यूएनएस ग्लोबल सर्विसेज से जुड़ गईं.

यह लगभग उस समय की बात है, जब कंपनी का स्वामित्व ब्रिटिश एयरवेज से निजी इक्विटी फर्म वारबर्ग पिंकस के पास चला गया था. विभा कहती हैं, "यह उन दिनों एक स्टार्ट-अप के जितना करीब हो सकता था, उतना करीब था."

2018 में कंपनी की सीईओ बनने से पहले, वे कार्यकारी निदेशक और मुख्य वित्तीय अधिकारी रह चुकी थीं. सीईओ के तौर पर विभा ने 2021 में एक्साइड लाइफ इंश्योरेंस के अधिग्रहण में एचडीएफसी लाइफ का नेतृत्व किया. कंपनी ने गुजरात के गिफ्ट सिटी में एक दफ्तर खोला है, जो अप्रवासी भारतीयों (एनआरआइ) को डॉलर-मूल्य वाले उत्पाद बेच रही है. इसकी पेंशन सहायक कंपनी की प्रबंधनाधीन संपत्ति 60,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गई है. विभा करियर में पति और बेटे से मिले समर्थन को बेहद अहम मानती हैं. वे बताती हैं कि उनका बेटा कभी नहीं कहता कि वह उसकी खातिर एक दिन के लिए भी दफ्तर से छुट्टी लें.

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