भारती खेर: मिट्टी की मूर्तियों में जान डालने वाली शिल्पकार, 1.24 करोड़ रु. में बिक चुकी है कलाकृति
भारती खेर को 2003 में संस्कृति पुरस्कार, 2007 में वाइएफएलओ वुमन अचीवर ऑफ द इयर पुरस्कार और 2010 में आर्केन कला पुरस्कार मिल चुका है

भारती खेर की कलाकृति का 2010 में ही सॉद्बीज (फाइन आर्ट्स ब्रोकर कंपनी) पर 1.24 करोड़ रु. में बिकना उनके लिए कोई नई बात नहीं थी. इस कलाकार का काम जमीनी हकीकतों से संवाद जैसा है क्योंकि उसमें जादुई यथार्थवाद के चश्मे से रोजमर्रा की वास्तविकताएं खुलती हैं.
खेर का कहना है कि व्यावसायिक सफलता महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे उनकी स्टूडियो टीम को रोजगार मिलता है. वे कहती हैं, "महिलाओं के लिए आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना ही सब कुछ है. मैं छोटी थी तो मेरी मां ने यही सिखाया था, इसलिए मेरा अपना स्टूडियो होना बड़ी बात है."
कलाकार सुबोध गुप्ता से विवाहित खेर अन्वेषक की तरह वस्तु और व्यक्ति के संबंधों की नई परिभाषा गढ़ती हैं. इसके केंद्र में आत्म-अभिव्यक्ति है, और मानव तथा पशु शरीर, जगहों और वस्तुओं के साथ संबंधों के बारीक ब्यौरे हैं.
खेर का काम पेंटिंग, मूर्तिशिल्प, इंस्टॉलेशन जैसी कई विधाओं में है, मगर उनका स्थायी जुनून 'बिंदी' रही है. खेर कहती हैं, "बिंदी मयूर विहार के एक बाजार में मुझे मिली और ऐसे गले पड़ी कि आधी जिंदगी तक मुझे अपने आकर्षण में बांधे रही. मैं शरीर, चिन्ह, भूगोल और भाषा के इर्द-गिर्द कई सारे रिश्ते और संरचनाएं जोड़ने में सक्षम हुई. बिंदी जीवन के चक्र का रूपक है."
ब्रिटेन में जन्मीं और पली-बढ़ीं खेर के काम में अंतर-सांस्कृतिक तत्व स्वाभाविक रूप से दिखते हैं. वे बताती हैं, "परिवर्तन हर चीज में अंतर्निहित है: शरीर से लेकर जलवायु तक, वजूद से लेकर राजनीति तक. कला चिंतनशील विधा है, कभी स्थाई नहीं होती. इसीलिए अगर आप इसे पकड़ना भी चाहें तो नहीं पकड़ सकते." नए कलाकारों के लिए उनकी सलाह में यही झलकता है, "अपने फोन बंद करो और वास्तविक दुनिया को देखो. अपनी भाषा बनाने में समय लगाओ: कहने का आशय यह है कि आप अभी नहीं जानते, आप क्या और कौन हैं..."
जीवन और संस्कृतियों की परिवर्तनशीलता के बारे में खेर के दृष्टिकोण की व्यापक सराहना हुई है. उन्हें 2003 में संस्कृति पुरस्कार, 2007 में वाइएफएलओ वुमन अचीवर ऑफ द इयर पुरस्कार और 2010 में आर्केन कला पुरस्कार मिला. 2015 में उन्हें द नाइट ऑफ द ऑर्डर ऑफ आर्ट्स ऐंड लेटर्स का सम्मान दिया गया.
मनीषा भसीन, 57 वर्ष
जरूरी नहीं कि स्वादिष्ट व्यंजन बनाना जटिल हो. शेफ मनीषा भसीन कहती हैं, "सिर्फ एक या दो अच्छी सामग्री किसी व्यंजन में जान डाल सकती है." वे करीब तीन दशक से स्थानीय भोजन की वकालत कर रही हैं. भसीन ने हरी सब्जियों की पाक शैली और स्थानीय सामग्रियों के बारे में जाना और उन्हें अपनी रसोई में तब आजमाया, जब अधिकांश शेफ विदेशी भोजन ला रहे थे.
वे बताती हैं कि '90 के दशक के उत्तरार्ध में जब वे दिल्ली में आईटीसी मौर्य के वेस्टव्यू में रसोई की प्रभारी थीं, तो मेन्यू छपे हुए लेमिनेटेड शीट पर नहीं, बल्कि ब्लैकबोर्ड पर लिखा होता था. वे कहती हैं, "मैंने पश्चिमी व्यंजन शेफ के रूप में शुरुआत की और पिछले कुछ वर्षों में आइटीसी होटलों के लिए कई ब्रांड लॉन्च किए, जिनमें पैनएशियन, वेस्टव्यू, ओटिमो, देहलनवी और कई अन्य ब्रांड शामिल हैं."
उनकी टीम इस साल दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन में पेश किए गए विविध व्यंजनों की प्रभारी थी. वे कहती हैं, "मोटा अनाज आज सुर्खियों में है, लेकिन हम इसे वर्षों से अपने मेन्यू में शामिल कर रहे हैं और लोगों ने इसे हमेशा ही पसंद किया है." आइटीसी होटलों में स्थानीय सामग्रियों और पारंपरिक व्यंजनों को लोकप्रिय बनाने के लिए 'माइटी मिलेट' जैसी कई पहल शुरू की गई हैं. स्थानीय किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए आइटीसी रसोई 100 किमी के दायरे से कृषि उपज खरीदती है.
युवा शेफ को उनकी सलाह है, "व्यंजन, उसके दर्शन को समझें और महारत हासिल करें. सभी व्यंजनों का मूल विज्ञान एक ही है, अंतर केवल सामग्री का है."
आभा नारायण लाम्बा, 53 वर्ष
मशहूर संरक्षण वास्तुकार के रूप में आभा नारायण लाम्बा की यात्राएं भारत की विरासत के नक्शे का विस्तार करती हैं. महाराष्ट्र में अजंता और बिहार में बोधगया के बौद्ध स्थलों से लेकर, तमिलनाडु में कांचीपुरम और राजस्थान के शेखावाटी में क्षेत्रीय संरक्षण से लेकर कार्बुजिए के चंडीगढ़ में 20वीं सदी की आधुनिक विरासत तक—उनके अद्वितीय दृष्टिकोण की छाप को हम देश के स्वर्णिम अतीत के इन प्रतिष्ठित प्रतीकों पर देख सकते हैं. उनका जन्म एक लेखिका मां और एक नौकरशाह पिता के यहां हुआ था. वे कहती हैं, "मैंने जान-बूझकर स्त्री होने से जुड़ी सभी रूढ़ियों को नकार दिया."
उन्होंने 1998 में आभा नारायण लाम्बा एसोसिएट्स की स्थापना की. यह वास्तुशिल्प संरक्षण, भवन पुनर्निर्माण और रेट्रोफिट, संग्रहालय डिजाइन, ऐतिहासिक इंटीरियर, शहरी और क्षेत्रीय स्तर के संरक्षण प्रबंधन योजनाओं की तैयारी, संरक्षण मूल्यांकन अध्ययन, शहरी साइनेज और स्ट्रीट फर्नीचर में माहिर है. इसे संरक्षण परियोजनाओं के लिए नौ यूनेस्को एशिया प्रशांत पुरस्कार मिले हैं.
संस्कृति पुरस्कार, आइजनहावर फेलोशिप, एटिंघम ट्रस्ट फेलोशिप और चार्ल्स वालेस फेलोशिप सहित कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित लाम्बा कहती हैं, "हमारी संरक्षण की कोशिश दक्षिण एशिया में सबसे बड़ी है."
वे आईसीसीआरओएम, यूएनआईटीएआर, विश्व स्मारक कोष, वैश्विक विरासत कोष और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण सहित कई संगठनों की सलाहकार रही हैं, और उन्होंने दिल्ली और मुंबई दोनों की विरासत समितियों में काम किया है. वे कहती हैं, "मेरे पास काम और फुरसत के बीच संतुलन की गुंजाइश कम है, लेकिन मैं खुश हूं."
—ऋद्धि काले