विमल शुक्ल ने कैसे तय किया जड़ी बूटियों की दुकान से 'मेघदूत' की फैक्ट्री तक का सफर

लखनऊ के मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान के एमडी विमल शुक्ल ने आयुर्वेद दवाओं में नए प्रयोग करके उन्हें देश विदेश में पहचान दिलाई. कोविड काल में एथेनॉल से सैनिटाइजर बनाने की शुरुआत करने वाली पहली संस्था थी

अपनी फैक्ट्री में विमल शुक्ल

लखनऊ से करीब 20 किलोमीटर उत्तर में मौजूद बख्शी का तालाब इलाके के नवींकोट नंदना गांव पहुंचते हुए परंपरागत खेती के मायने कुछ बदले हुए दिखाई देते हैं. यहां के खेतों की पहचान गेहूं-धान की फसलें न होकर आंवला, हर्र, समेत कई जड़ी बूटियां बन चुकी हैं. इन जड़ी बूटियों का अंतिम गंतव्य नवींकोट नंदना गांव में ही मौजूद दो लाख वर्ग मीटर में मौजूद "मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान" की फैक्ट्री है. यहां एक छत के नीचे आयुर्वेदिक पाउडर आसव, चूरन-चटनी, टैबलेट और अर्क निकालने के लिए हाइटेक मशीनों की पूरी शृंखला मौजूद है. यहां एक रिसर्च यूनिट भी है. प्रदेश में हर्बल उत्पादों से जुड़ी यूपी की किसी भी कंपनी के पास इतनी बड़ी फैक्ट्री नहीं है. इस फैक्ट्री ने 250 से अधिक ग्रामीणों को रोजगार से जोड़ा है जिसमें 40 फीसद से अधिक महिलाएं हैं. इस तरह हर्बल उत्पादों के साथ सामाजिक सरोकारों को भी एक दिशा दी गई है.  

मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान के प्रबंध निदेशक विमल शुक्ल रोज सुबह आठ बजे फैक्ट्री पहुंचकर नई आयुर्वेद दवाओं के शोध में जुट जाते हैं. जड़ी बूटियों से लगाव विमल को अपने पिता और बाबा से संस्कार में मिला है. उनके बाबा जटाशंकर सांस्कृत्यायन आजादी से पहले हरदोई के शाहाबाद इलाके में रहते थे. वे उस वक्त के प्रसिद्ध कवि के साथ वैद्य भी थे. वर्ष 1944 में जटाशंकर परिवार के साथ लखनऊ के सीतापुर रोड स्थित पीली कोठी इलाके में रहने लगे. लखनऊ आकर जटाशंकर ने अपने पुत्र विजय शंकर शुक्ला के साथ मिलकर 'त्रिफला प्रयोगशाला' नाम से एक फर्म बनाई. आसपास के इलाकों में आसानी से उपलब्ध आंवला, हर्र, नीम जैसी जड़ी-बूटियों को एकत्र कर उनका पाउडर तैयार किया. जटाशंकर जहां भी काव्यपाठ के लिए जाते वहां पुत्र विजय आयुर्वेदिक दवाओं का काउंटर भी लगाते. इस तरह काव्य पाठ के साथ आयुर्वेद का प्रचार प्रसार भी चल निकला. थोड़ी आमदनी हुई तो जटाशंकर ने लखनऊ में निशात सिनेमाहाल के सामने आयुर्वेद दवाओं की एक दुकान शुरू की. विमल शुक्ला तब केवल 15 साल के ही थे जब 1975 में इनके बाबा जटाशंकर की मृत्यु हो गई. बाबा और पिता विजय शंकर के साथ रहकर विमल ने भी आयुर्वेद जड़ी-बूटियों की बारीक से बारीक जानकारी हासिल की थी. कैसरबाग के बाबा बनारसी दास कॉलेज से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के साथ 1978 में विमल अपने पिता के कामकाज में हाथ बंटाने लगे. इस दौरान उन्होंने पढ़ाई भी जारी रखी. नेशनल कॉलेज, लखनऊ से ग्रेजुएशन करने के बाद आगे की पढ़ाई में मन नहीं लगा और विमल पूरी तरह अपने पिता के साथ काम में लग गए. 

विजय शंकर ने बेटे विमल के साथ मिलकर 1985 में मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान नाम से एक संस्था का गठन किया. अलीगंज के पुरनिया इलाके में पल्पलाइजर और कुछ मशीनें लगाकर पहली छोटी सी फैक्ट्री स्थापित की. इसमें महज छह-सात कर्मचारियों के साथ आयुर्वेद दवाओं का निर्माण शुरू किया. विमल बताते हैं, "सबसे पहले त्रिफलाप्राश और च्वयनप्राश का निर्माण शुरू किया गया. इस वक्त लोगों में बालों से जुड़ी समस्याएं भी पैदा हो रही थीं. इसके लिए वैद्यों से गहन जानकारी हासिल कर मेघदूत सतरीठा पाउडर हर्बल शैंपू लॉन्च किया गया." इस तरह उत्तर भारत में पहली बार पाउडर शैंपू बाजार में आया. 

दवाओं की मांग बढ़ी तो छोटी फैक्ट्री में इसे पूरा कर पाना संभव नहीं था. पांच साल बाद 1990 में लखनऊ के बक्शी का तलाब इलाके के नवींकोट नंदना गांव की हाइटेक फैक्टी अस्तित्व में आई. अब तक विमल आयुर्वेद दवाओं के निर्माण की बारीकियों से परिचित हो गए थे. विमल ने बाजार में मौजूद मेघदूत के उत्पादों के बारे में एक फीडबैक लिया, सतरीठा पाउडर शैंपू को लिक्विड शैंपू में तब्दील करने की राय दी. इसी फीडबैक के आधार पर मेघदूत का सतरीठा लिक्विड शैंपू लॉन्च किया गया. इसके अलावा, 1990 में डायबिटीज नियंत्रण के लिए 'मधुशून्य' पाउडर बाजार में आया. इस बारे में विमल कहते हैं, "यह डायबिटीज की रोकथाम के लिए पहली पेटेंट आयुर्वेदिक औषधि थी."

इस तरह के इनोवेशन करने में मेघदूत हमेशा आगे रही. उसने आयुर्वेद की दवाओं को टैबलेट में लाकर उनका सेवन आसान बनाया. 1998 में बाजार में कई मल्टीनेशनल कंपनियों के पारदर्शी साबुन बाजार में आए थे. इनसे ही विमल को आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से युक्त हर्बल पारदर्शी साबुन लॉन्च करने की प्रेरणा मिली, जिसकी आज अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी मांग है. कोविड-19 के दौरान मेघदूत ने चीनी मिलों से एथेनॉल लेकर सैनिटाइजर बनाया. इसी दौरान लखनऊ के केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) ने कोविड नियंत्रण की एक आयुर्वेद दवा का 'सिममेघ' तैयार की थी. इसे बनाने और बाजार में लॉन्च करने की जिम्मेदारी 2021 में मेघदूत को मिली. मेघदूत और सीमैप के संयुक्त प्रयास से 'सिममेघ' नाम से दवा बाजार में उतारी. 

कामकाज के इसी अंदाज ने 1 लाख रुपए नेटवर्थ से शुरू हुई कंपनी को आज 100 करोड़ रुपए से अधि‍क नेटवर्थ वाली कंपनी बना दिया है. अनुसंधान और विकास का यह सिलसिला अब भी जारी है.

बढ़ती साख उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह 1997 में मेघदूत की फैक्ट्री को देखने आए थे, साथ में विमल शुक्ला

 

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