विशालकाय, मजबूत और ताकतवर
आजाद भारत के कुल विकास में पुख्ता असर वाली दस सरकारी परियोजनाएं

विशेषांक : भारत की शान
इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं
विनायक चटर्जी, फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर, द इन्फ्राविजन फाउंडेशन
भाखड़ा नांगल/दामोदर वैली कॉर्पोरेशन, पूरा हुआ 1963 में/आधारशिला रखी गई 1948 में
हिमाचल प्रदेश में सतलुज नदी पर भाखड़ा नांगल परियोजना आजादी के बाद नदी घाटियों में स्थापित सबसे पुरानी विकास परियोजना है. इसका निर्माण 1953 में शुरू हुआ और 1963 में करीब 245.28 करोड़ रुपए की लागत से पूरा हुआ. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने बांध को देश को समर्पित करते वक्त ऐसी परियोजनाओं को ''आधुनिक भारत के मंदिर'' कहा. इससे हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में सिंचाई का पानी पहुंचता है और साथ में पनबिजली मिलती है.
दामोदर वैली कॉर्पोरेशन (डीवीसी) का क्षेत्र पश्चिम बंगाल और झारखंड की दामोदर नदी घाटी है. डीवीसी प्रोजेक्ट आजाद भारत में 7 जुलाई, 1948 को पहली बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजना के रूप में अस्तित्व में आया. इसमें केंद्र सरकार और बिहार (बाद में झारखंड) और पश्चिम बंगाल सरकारों की हिस्सेदारी है. परियोजना का उद्देश्य बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, बिजली उत्पादन और साल भर जल परिवहन था. ऐसी परियोजनाएं बड़े पैमाने पर सार्वजनिक निर्माण परियोजनाओं से आर्थिक असर पैदा करने में अग्रणी बनीं.
दामोदर घाटी कॉर्पोरेशन परियोजना, इंदिरा गांधी नहर (पहले राजस्थान नहर) परिकल्पना 1948 में
देश में 650 किमी लंबी इंदिरा गांधी नहर सबसे लंबी है. यह पंजाब में हरिके बैराज से शुरू होती है और पश्चिमी राजस्थान में थार रेगिस्तान में सिंचाई की व्यवस्था पर जाकर खत्म होती है. राजस्थान के बंजर क्षेत्रों को हरा-भरा करने के उद्देश्य से इसकी कल्पना 1948 में की गई. इस नहर से सालाना 29 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई होती है. इसका निर्माण 1952 में शुरू हुआ था और अंतिम हिस्सा 2010 में पूरा हुआ. मुख्य राजस्थान नहर 445 किलोमीटर लंबी है. फिर पंजाब और हरियाणा में 167 किलोमीटर और राजस्थान में 37 किलोमीटर लंबी उप-नहर जुड़ती है. यह राजस्थान के सात जिलों श्रीगंगानगर, चूरू, हनुमानगढ़, बीकानेर, जोधपुर, जैसलमेर और बाड़मेर में पानी पहुंचाती है. इससे सिंचाई परियोजना के बड़े पैमाने पर फायदे जाहिर होते हैं.
मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे, पूरी तरह तैयार 2002 में
मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे (सरकारी नाम यशवंतराव चव्हाण एक्सप्रेसवे) देश का पहला छह-लेन चौड़ा, कंक्रीट का बना टोल एक्सप्रेसवे है. 94.5 किमी लंबे इस एक्सप्रेसवे से पुराने राजमार्ग के मुकाबले यात्रा का समय दो घंटे कम हो गया है. 2002 में पूरी तरह से चालू एक्सप्रेसवे से देश की सड़कों पर गाड़ियों की रफ्तार और सुरक्षा के नए मानक तय हुए. फिलहाल यह देश की सबसे व्यस्त सड़कों में एक है. इस पर रोज करीब 43,000 कारें दौड़ती हैं और इसमें 1,00,000 कारों तक की आवाजाही की सहूलत है. यह पहली चर्चित सड़क परियोजनाओं में एक है, जिसमें 'बनाओ और निजी पूंजी जुटाओ' के सिद्धांत को अमल में लाया गया.
कोंकण रेलवे, पहली ट्रेन 1998 में
इस आधुनिक दौर में देश का कोंकण तट अधिकांश समय रेलवे लिंक से अछूता था. देश के 19 रेलवे जोन में एक, कोंकण रेलवे ने आखिर इस खाई को पाटा. यह 756.25 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक को जोड़ती है. तैयार ट्रैक पर पहली ट्रेन 26 जनवरी, 1998 को चली. यह परियोजना भारतीय रेलवे के इतिहास में सबसे चुनौतीपूर्ण परियोजनाओं में एक थी, और उसके अगुआ ई. श्रीधरन के माथे इसे रिकॉर्ड समय में पूरा करने का सेहरा बंधा. इसमें 2,116 से अधिक पुल (जिनमें पनवलनाडी पुल देश में 2010 तक सबसे ऊंचा था) और 92 सुरंगें हैं. यह एशिया में सदी की सबसे बड़ी रेलवे परियोजना थी.
राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम, शुरुआत 1998 में
राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) 1998 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर की सड़कों का निर्माण करना था, ताकि यातायात सुचारु हो सके. इसमें उन्नत सुरक्षा, बेहतर सतह, ग्रेड विभाजक और अन्य मुख्य विशेषताओं के साथ सड़कों के निर्माण की परिकल्पना की गई थी. राष्ट्रीय राजमार्ग देश की कुल सड़क लंबाई का केवल 2 फीसद हैं, लेकिन उन पर देश के कुल यातायात 40 फीसद भार है. एनएचडीपी पर भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण सात चरणों में काम कर रहा है. यह दुनिया का सबसे बड़ा एकीकृत और प्रबंधित सड़क कार्यक्रम है.
राष्ट्रीय बिजली ग्रिड, पूरा हुआ 2013 में
राष्ट्रीय ग्रिड कई साल में तैयार हुआ बिजली ट्रांसमिशन नेटवर्क है, जो बिजलीघरों और बड़े सबस्टेशन को जोड़ता है, ताकि देश में कहीं भी पैदा हुई बिजली को कहीं भी पहुंचाया जा सके. यह सरकारी पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन के जिम्मे है और उसका रख-रखाव भी वही करता है. इसका संचालन राज्य सरकारों का पावर सिस्टम ऑपरेशन कॉर्पोरेशन करता है. यह 30 जून, 2020 तक 371.054 गीगावाट की बिजली ट्रांसमिशन की क्षमता के साथ दुनिया में सबसे बड़ा बिजली ग्रिड है. ऐसा माना जाता है कि भारत का राष्ट्रीय बिजली ट्रांसमिशन ग्रिड ऐसा एकीकृत बिजली बाजार बनाता है जो यूरोप से बड़ा और अधिक कारगर है.
दिल्ली मेट्रो, पहला कॉरिडोर खुला 2002 में
इसका निर्माण और संचालन दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के जिम्मे है. यह सार्वजनिक परिवहन प्रणाली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दिल्ली और उसके उपनगरों गाजियाबाद, फरीदाबाद, गुड़गांव, नोएडा, बहादुरगढ़ और बल्लभगढ़ के लोगों को आवाजाही की सहूलत प्रदान कर रही है. नेटवर्क में 348.12 किमी की कुल लंबाई के साथ 255 स्टेशनों के लिए 10 अलग-अलग रंगों के नाम वाली लाइनें हैं. यह भारत में अब तक की सबसे बड़ी और व्यस्ततम मेट्रो रेल प्रणाली है, और कोलकाता मेट्रो के बाद दूसरी सबसे पुरानी है. इसमें भूमिगत, ग्रेड और एलिवेटेड स्टेशनों का मिश्रण है. दिल्ली मेट्रो ने कई अन्य शहरों को रास्ता दिखाया. आज भारत में 23 मेट्रो रेल परियोजनाएं हैं.
हवाई अड्डों का निजीकरण, सरकार से मंजूरी 2003 में
दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों के आधुनिकीकरण पर पहली बार 1996 में भारतीय उड्डयन प्राधिकरण (एएआइ) ने विचार किया था. सितंबर 2003 में केंद्र ने एएआइ की 26 फीसद और निजी क्षेत्र की 74 फीसद साझेदारी के साथ साझा उपक्रम को लंबे समय तक पट्टे पर देने की मंजूरी दी. फिलहाल दिल्ली, मुंबई, बेंगलूरू, हैदराबाद और कोच्चि के हवाई अड्डों को सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के तहत चलाया जाता है. 2016-17 के केंद्रीय बजट में हवाई अड्डों के विकास में पीपीपी मोड पर अधिक जोर दिया गया, ताकि लागत में भारी कमी आए और टिकाऊ विकास का मार्ग प्रशस्त हो. 2020 में, आत्मानिर्भर भारत अभियान के तहत, सरकार ने छह और हवाई अड्डों के निजीकरण के लिए एक नीलामी आयोजित की. नीलामी के दूसरे दौर में, सरकार ने 13 हवाई अड्डों का निजीकरण करने का फैसला किया. हाल ही में केंद्र ने राष्ट्रीय मौद्रीकरण पाइपलाइन के तहत अगले पांच वर्षों में 25 हवाई अड्डों के निजीकरण की अपनी योजना का खुलासा किया है.
जोजिला सुरंग, जम्मू-कश्मीर, अखिरी चरण पूरा होगा 2025 में
हिमालय में चुनौतीपूर्ण भौगोलिक परिस्थितियों के मद्देनजर 14.15 किमी लंबी जोजिला सुरंग अपनी तरह की पहली सुरंग परियोजना है. यह 11,578 फुट की ऊंचाई पर सबसे ऊंची सुरंग होगी. यह भारत की सबसे लंबी सड़क सुरंग और एशिया की सबसे लंबी दो दिशाओं वाली सुरंग बनने जा रही है, जो राष्ट्रीय राजमार्ग 1 पर द्रास और करगिल के मार्फत श्रीनगर और लेह को जोड़गी और हर मौसम में चालू रहेगी. इसके निर्माण कार्य का अंतिम चरण सितंबर 2025 में पूरा होने की उम्मीद है, जो नवंबर 2026 की समय सीमा से पहले है. परियोजना की अंतिम सुरंग पूरी हो जाने के बाद, सोनमर्ग से मीनामर्ग तक की 32 किलोमीटर की दूरी चार घंटे के बजाए 40 मिनट से भी कम समय में पूरी हो जाएगी.
सबको बिजली कनेक्शन, शुरुआत 2017 में
सितंबर 2017 में शुरू की गई प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना-सौभाग्य का उद्देश्य ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सभी घरों में बिजली पहुंचाना है. देश में करीब 4 करोड़ घरों में बिजली न होने का अनुमान है. इनमें ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे के लगभग 1 करोड़ परिवार पहले ही दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना की स्वीकृत परियोजनाओं के तहत आते हैं. इस प्रकार, सौभाग्य योजना के तहत 16,320 करोड़ रुपए की लागत से 3 करोड़ घरों तक बिजली पहुंचने की उम्मीद है.