विशेषांकः कामयाबी की ड्रेस

भानु अथैया ने कॉस्ट्यूम डिजाइन की कला के जरिए दुनिया, किरदार और जादुई सिनेमाई पल रचे हैं.

भानु अथैया
भानु अथैया

75वां स्वतंत्रता दिवस विशेषांक-पथप्रवर्तक / सिनेमा

भानु अथैया  (1929-2020)

सव्यसाची मुखर्जी

उन्होंने चौदहवीं का चांद (1960) में वहीदा रहमान को लखनऊ के नवाबी विरासत की पृष्ठभूमि में दिव्य सौंदर्य की दृष्टि दी, तीसरी मंजिल (1966) में उन्होंने हेलन के लिए आइकॉनिक फ्लेमेंको-प्रेरित कैबरे कॉस्टूयम तैयार किया था.

सत्यम शिवम सुंदरम (1978) में उनके पास एकांतप्रिय गंवई लड़की और अप्सरा जैसी फंतासी शख्सियत के बीच चहलकदमी करने वाली जीनत अमान थी, और बिला शक, सर रिचर्ड एटनबरो की गांधी (1982) की ऑस्कर विजेता महान कृति में उन्होंने पूरी आधी सदी को समेटा और केंद्रीय चरित्र तथा असंख्य एक्स्ट्रा को विभिन्न टाइम जोन और भारतीय इतिहास के सबसे अहम दौर के लिहाज से कपड़े पहनाए.

संसार, किरदार और कुछ बेहतरीन जादुई सिनेमाई पल कॉस्ट्यूम डिजाइन की कला के जरिए गढऩे में भानु अथैया असाधारण रूप से प्रतिभावान थीं.

जब वे 1953 में बॉक्वबे में प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप में प्रदर्शनी लगाने वाली एकमात्र महिला कलाकार थीं, से लेकर यह समझने में कि उन्हें नियमित आय की जरूरत है और इव्स वीकली जैसी पत्रिका में इलस्ट्रेटर बनने तक, और फिर अपना फैशन बूटीक खोलने से लेकर आखिर में अपनी असली मंजिल पाने तक, जब हिंदी सिनेमा ने उन्हें खोज लिया.

अथैया एक कलाकार और विचारक दोनों थीं, उन्होंने जो रचा उससे प्रेरित भी करती रहीं. उन्होंने पहली ही फिल्म से धमाका कर दिया, गुरु दत्त की 1956 में आई सीआइडी. प्रामाणिकता की खोज में उन्हें एक असाधारण विरासत छोड़ी. यह एक सबक है जिसे समझने में रचनात्मक लोगों को दशकों लग जाते हैं.

फैशन डिजाइनर का काम कॉस्ट्यूम डिजाइनर से अलहदा होता है, पर अथैया ने मुझे सिखाया कि कैसे मकसद को लेकर खरा रहा जा सकता है, आप कैसे सीखते हैं, आप जो किस्सागोई कर रहे हैं उसे दर्शकों को सटीक तरीके से सुनाकर कैसे मंत्रमुग्ध कर देते हैं. ठ्ठ

सव्यसाची मुखर्जी अग्रणी फैशन डिजाइनर और कॉस्ट्यूम डिजाइनर हैं.

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