जल विशेषांकः पवित्र गंगा की अवरुद्घ जल धारा

गंगा की सफाई की कोशिशें पहले भी कई बार हुई हैं. लेकिन कभी भी इस तरह मिशन का स्वरूप उसे नहीं मिला, और अब प्रधानमंत्री खुद इसकी निगरानी कर रहे हैं.

मौन प्रार्थना नरेंद्र मोदी मई 2014 में वाराणसी से अपना नामांकन पर्चा दाखिल करने के पहले गंगा की शरण में
मौन प्रार्थना नरेंद्र मोदी मई 2014 में वाराणसी से अपना नामांकन पर्चा दाखिल करने के पहले गंगा की शरण में

जल विशेषांकः नमामि गंगे

भारत में कोई भी दूसरी नदी मन में अगाध श्रद्धा नहीं पैदा कर पाती या उतनी ज्यादा धार्मिक भावनाओं और पर्व-त्योहारों के केंद्र नहीं है जितनी पराक्रमी गंगा. यह नदी अपना 2,525 किमी का सफर गंगोत्री के मुहाने से शुरू करती है और पश्चिम बंगाल में गंगासागर में जा गिरती है.

इस सफर में यह देश के 26 फीसद भूभाग से गुजरती है और 8.6 लाख वर्ग किलोमीटर के विशाल भूभाग पर अपनी धार डालती है. यह पांच राज्यों से होकर बहती है और इसके बेसिन में छह दूसरे राज्य आते हैं. गंगा और उसकी सहायक नदियां देश के जल संसाधनों में 28 फीसद बड़ा योगदान देती हैं. देश में 43 फीसद या 50 करोड़ लोग इस पर निर्भर हैं और गंगा की उपजाऊ भूमि खाद्यान्न का कटोरा मानी जाती है.

नदी के मुख्य किनारों पर 97 बड़े शहरी केंद्र और 4,457 गांव बसे हैं और यही परेशानी की जड़ हैं. दशकों के दौरान इन गांव-शहरों ने अपना गंदा पानी और उद्योगों से निकला सारा मैल अंधाधुंध ढंग से नदी में प्रवाहित किया है. नतीजतन इसका पानी अत्यंत प्रदूषित हो गया और कई पट्टियों में तो जलीय जीवन को ही लील गया.

जब भी स्वच्छ गंगा शब्द हमारी तरफ उछाला जाता है, मन में खीझ और चिढ़ पैदा होती है. इस बेहद प्रदूषित नदी को साफ-सुथरा करने की पहली कोशिश 1986 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शुरू की थी. लेकिन जो वादा किया गया था और जो वाकई किया जा रहा था, उसमें भारी फर्क सामने आया. विभिन्न चरणों वाले इस मिशन को संभालने वाले अधिकारियों ने कहा कि मुख्य खोट यह था कि इसे आधे-अधूरे मन से और टुकड़ों में अंजाम दिया गया.

एक नदी का ओर-छोर

केंद्र, राज्यों और स्थानीय निकायों के बीच कोई तालमेल नहीं था. 1985 और 2015 के बीच महज 4,000 करोड़ रुपए खर्च किए गए और वे भी मुख्य रूप से गंदे पानी के लिए जलशोधन संयंत्रों की स्थापना पर खर्च किए गए. परियोजना के अमल में देरी ढर्रा बन गई. इसके अलावा बेसिन स्तर के मसलों को लेकर स्पष्टता का अभाव और टेक्नोलॉजी के नाकाफी हस्तक्षेप तो थे ही. 

जब 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आए, तो उन्होंने नजरिए और तरीके में आमूलचूल बदलाव कर दिया. हिंदू इस नदी की पूजा करते हैं, लिहाजा गंगा की साफ-सफाई भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के चुनावी वादों में शामिल थी. मोदी ने यह पक्का किया कि यह कार्यक्रम पिछली कोशिशों से ज्यादा कामयाब हो. नमामि गंगे कार्यक्रम (एनजीपी) का ऐलान करते हुए उन्होंने इसकी देख-रेख करने वाले प्राधिकरण के तौर पर राष्ट्रीय गंगा परिषद का गठन किया, जिसके प्रमुख वे स्वयं बने. क्रियान्वयन एजेंसी के तौर पर राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) बनाया गया.

मोदी सरकार ने अधिसूचना जारी की कि एनएमसीजी को प्राधिकरण माना जाएगा और उसे पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 198 6 के तहत संवैधानिक अधिकार हासिल होंगे. इस तरह इसे अफसरशाही से स्वायत्त और संबंधित राज्य सरकारों के साथ तालमेल बिठाकर मिशन के कामों को पूरा करने के लिए नियामक शक्तियां दे दी गईं. फिर प्रधानमंत्री ने पांच साल के लिए 20,000 करोड़ रुपए की मंजूरी दी, जो बीते 35 साल में प्रतिबद्ध धनराशि से पांच गुना थी. उन्होंने प्रमुख परियोजनाओं में सौ फीसद केंद्र का धन लगाना पक्का किया, ताकि राज्य धन देने की अपनी अनिच्छा से उबर सकें. 

एनएमसीजी ने समग्र ढंग से काम को अंजाम देना शुरू किया. उसने अपने मिशन को चार बड़े हिस्सों में बांटा—निर्मल गंगा (प्रदूषण की साफ-सफाई), अविरल गंगा (पारिस्थितिकी और प्रवाह पक्का करना), जन गंगा (सफाई की कोशिशों में जन भागीदारी) और ज्ञान गंगा (नदी के प्रबंधन और नीतियों पर अनुसंधान को बढ़ावा देना). अतीत की कोशिशों के उलट इस बार जोर नदी के किनारे बसे कुछेक शहरों की बजाए नदी के समूचे मूल रूप का कायाकल्प करना था.

नदी बेसिन की जलीय और तटीय जैवविविधता में नई जान फूंकने और उनका संरक्षण करने पर भी जोर दिया गया. जिस एक और बात से बहुत मदद मिली, वह यह थी कि विभिन्न परियोजनाओं को मंजूरी मिलने से पहले ही सात आइआइएम (भारतीय प्रबंधन संस्थानों) ने नदी बेसिन के प्रबंधन की विस्तृत योजना तैयार की और बहुत सारा मैदानी काम भी पूरा किया, जिसमें नदी के किनारे बसे बड़े शहरी और ग्रामीण केंद्रों से छोड़े जाने वाले गंदे पानी की मात्रा का अनुमान लगाना भी शामिल था. यह सब इसलिए किया गया ताकि योजनाओं पर अमल वैज्ञानिक तरीके से और समयबद्ध आधार पर करना पक्का किया जा सके.

एनएमसीजी के डायरेक्टर जनरल राजीव रंजन मिश्र कहते हैं कि पहले सामने आ चुकी समस्याओं से उबरने के लिए कई बड़े नीतिगत निर्णय लिए गए. इनमें सीवरेज इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए हाइब्रिड एन्यूइटी मॉडल (एचएएम) भी शामिल था. इसमें परिचालन और रख-रखाव को परियोजनाओं का अभिन्न अंग बना दिया गया, जिससे सार्वजनिक-निजी भागीदारी की गुंजाइश पैदा हो गई, ठीक उसी तरह जैसे राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं में किया जा रहा है. सरकार पूंजीगत खर्चों की 40 फीसद रकम अग्रिम अदा करेगी और बाकी 60 फीसद धनराशि वार्षिक तौर पर दी जाएगी.

यह आमूलचूल बदलाव था और इसके साथ ऐसा ही एक नियम यह बना दिया गया कि प्रत्येक शहर के लिए एक ही ऑपरेटर होगा जिसे परियोजना दी जाएगी और जो उसके निर्माण के साथ-साथ 15 साल तक रख-रखाव का भी जिम्मेदार होगा. मिश्र कहते हैं, ''इससे जल-मल प्रबंधन और जवाबदेही में भी सुधार आया, क्योंकि एजेंसी को लंबे वक्त तक काम करना है.’’

एनएमसीजी ने उद्योगों के मलबे को शोधित करने पर भी ध्यान दिया. स्थानीय अधिकारियों के अलावा प्राधिकरण भी सालाना निरीक्षण करता है. इसकी वजह से नाटकीय सुधार आया और अगले पन्नों पर प्रकाशित विभिन्न केस स्टडी से पता चलता है, नदी के कई इलाके फिर से तरोताजा हो चुके हैं.

यह पक्का किया गया कि पनबिजली परियोजनाओं के बांध से समय पर पानी छोड़ा जाए ताकि नदी के बहाव में कोई बाधा न आए. देखभाल सिर्फ नदी की ही नहीं, बल्कि उसकी घाटी के रख-रखाव की भी की गई है ताकि इलाके के भूमिगत जल स्तर में सुधार आए और जैवविविधता फलने-फूलने लगे. 

बड़ी तादाद में डॉल्फिन की वापसी अच्छा संकेत है. नदी के किनारे रिवरफ्रंट मार्ग और वीथिकाओं का विकास किया जा रहा है ताकि स्थानीय लोग घूमने और दूसरे मनोरंजन के लिए वहां आ सकें. मिश्र कहते हैं, ''हमने मिशन को आक्रामक ढंग से आगे बढ़ाया है और इसके नतीजे भी दिखाई दे रहे हैं.’

 एनएमसीजी ने 29,578 करोड़ रुपए की लागत से कुल 335 परियोजनाओं को मंजूरी दी है, जिनमें 142 पूरी हो चुकी हैं. चार्ट से पता चलता है कि कितना कुछ किया गया है, वहीं मिश्र स्वीकार करते हैं कि अभी बहुत कुछ करना बाकी है. अलबत्ता अहम बात है समय पर काम पूरा करने की लगन और जोशो-खरोश.

‘‘हमने काम पर पूरा फोकस किया और आक्रामक ढंग से मिशन को अंजाम देना शुरू किया. अब इसके नतीजे दिखने लगे हैं’’ 
राजीव रंजन मिश्र, महानिदेशक, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन

बड़ी तस्वीर
समस्या गंगा के किनारे बसे 97 प्रमुख शहर और 4,457 गांवों का जल-मल और उद्योगों के मलबे ने उसे दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में एक बना दिया 
समाधान भाजपा सरकार ने पांच साल के लिए 20,000 करोड़ रुपए के बजट से राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन का गठन किया. फोकस समूचे मूल रूप का कायाकल्प करना होगा, न कि सिर्फ किनारे बसे शहरों पर

एक नदी का ओर-छोर
2,525 किमी
लंबाई है गंगा नदी की, उत्तराखंड में गंगोत्री से लेकर पश्चिम बंगाल में गंगासागर तक
28 %

भारत के जल संसाधन में योगदान है गंगा और उसकी सहायक नदियों का
11
राज्य हैं नदी बेसिन में, मुख्य नदी पांच राज्यों से बहती है
97
शहर और 4,457 गांव आबाद हैं मुख्य नदी के किनारे

333
परियोजनाएं स्वीकृत हैं गंगा की सफाई के लिए

29,751
करोड़ रुपए खर्च किए गए अब तक नमामि गंगे परियोजना पर

मॉडल प्रोजेक्ट 
दिल्ली के अपने दफ्तर में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्र

142
परियोजनाएं राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की पूरी हो गईं, कुल 333 परियोजनाएं मंजूर की गई हैं

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