विशेषांकः 1979 में 12वीं में थी तो चिपको आंदोलन...

हमारी सबसे बड़ी चुनौती सीएसई के उद्देश्य और गंभीरता को बनाए रखना था—हमें पॉलिसी रिसर्च ग्रुप और थिंक टैंक के गंभीर विश्लेषण को वाजिब ऐक्टिविज्म से जोडऩा था, ताकि जागरूकता पैदा की जा सके

सुनीता नारायण
सुनीता नारायण

पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर देश में सबसे विश्वसनीय और प्रभावी आवाजों में एक, सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की महानिदेशक सुनीता नारायण अपने चार दशक लंबे सफर के बारे में कहती हैं, ''हम कार्यकर्ता हैं लेकिन पारंपरिक अर्थों या राजनैतिक प्रेरणा से प्रभावित नहीं हैं. हमारे आंदोलन के हथियार कागज और कलम हैं.'' कीटनाशकों के कथित इस्तेमाल के खिलाफ शीतल पेय कंपनियों से लोहा लेने, दिल्ली में सीएनजी के पक्ष में आंदोलन और हाल में बड़े ब्रांडों के शहद में मिलावट के खुलासे तक, सीएसई पर्यावरण की सफाई और गुणवत्ता संपन्न उत्पाद पाने के लोगों के अधिकार के पक्ष में जागरूकता फैलाने में सबसे आगे रहा है. वे कहती हैं, ''सीएसई के संस्थापक अनिल अग्रवाल के 2002 में निधन के बाद से हमारी सबसे बड़ी चुनौती सेंटर के उद्देश्य और गंभीरता को बनाए रखना था—हमें पॉलिसी रिसर्च ग्रुप और थिंक टैंक के गंभीर विश्लेषण को वाजिब एक्टिविज्म से जोड़ना था.''

नारायण के लिए यह महज पेशा नहीं है, बल्कि दिल्ली के स्कूली दिनों से उनके जुनून का स्वाभाविक विस्तार है. जब वे बड़ी हो रही थीं, तब वे जो करना चाहती थीं, यानी पर्यावरण को लेकर जन-जागरूकता पर सार्वजनिक चर्चाएं बमुश्किल ही होती थीं. 1979 में, जब वे बारहवीं कक्षा में थीं, तब उन्होंने दिल्ली में गांधी शांति प्रतिष्ठान के एक पर्यावरण कार्यशाला में हिस्सा लिया था.

वहां उनकी मुलाकात कुछ युवाओं से हुई जो पर्यावरण को लेकर उतने ही उत्साही थे, और वहीं उन्होंने वन संरक्षण के लिए चल रहे चिपको आंदोलन के बारे में जाना, जिसकी अगुआई गांधावादी कार्यकर्ता सुंदरलाल बहुगुणा कर रहे थे. 1973 में उत्तराखंड में शुरू हुए इस आंदोलन की गूंज दुनिया भर में कई पर्यावरण आंदोलन में सुनाई दी और आज भी देती है. गांधी शांति प्रतिष्ठान की वह कार्यशाला नारायण के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ.

स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के फौरन बाद वे उस आंदोलन का हिस्सा बन गईं और उन्होंने अपना ग्रेजुएशन पत्राचार पाठ्यक्रम से करने का फैसला कर लिया. इस बीच, उन्हें अहमदाबाद के विक्रम साराभाई सेंटर फॉर डेवलपमेंट इंटरऐक्शन के बारे में जानकारी मिली, जिसकी स्थापना दुनिया के जाने-माने पर्यावरण अध्यापक कार्तिकेय साराभाई ने की थी, और नारायण उनके साथ काम करने वहां पहुंच गईं.  

1981 में अपने एक दोस्त के घर पर उनकी मुलाकात अनिल अग्रवाल से हुई. अग्रवाल पहले से ही ''स्टेट ऑफ इंडियाज एन्वॉयरनमेंट'' रिपोर्ट पर काम कर रहे थे. इसका विचार उनके मन में पेनांग में एक सेमिनार में हिस्सा लेते वक्त आया था, जहां उन्होंने मलेशिया के पर्यावरण की स्थिति पर एक रिपोर्ट पढ़ी थी. वे कहती हैं, ''वे चाहते थे कि सरकार के लिए आम लोगों द्वारा एक रिपोर्ट बनाई जाए और देश के सामने रखी जाए. इसलिए, हम सब एक जुनून के साथ इस परियोजना से जुड़ गए.'' एक साल के बाद रिपोर्ट आई तो उसकी खासी चर्चा हुई और उसने नारायण की उस शानदार यात्रा की नींव रखी, जो आज भी जारी है.

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