अनजाने नायकः लोरी वाली दादी

पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित कीपू ने लेप्चा कॉटेज और आस-पड़ोस के बच्चों को शिक्षित करने में मदद के लिए एक स्विस कंपनी की मदद से एक स्कूल-सह-छात्रावास का निर्माण किया है. सिक्किम का मानव विकास फाउंडेशन 1997 में शुरू किया गया था.

सब ओर मुस्कान कीपू लेप्चा कॉटेजके बच्चों और स्टाफ के साथ
सब ओर मुस्कान कीपू लेप्चा कॉटेजके बच्चों और स्टाफ के साथ

कीपू.टी. लेप्चा, 79 वर्ष

सामाजिक कार्यकर्ता, लेप्चा कॉटेज

लेप्चा कॉटेज की शुरुआत 1989 में सिक्किम में गंगटोक से कुछ किलोमीटर दूर चैनमरी में कीपू शेरिंग लेप्चा के छह कमरों वाले घर में 20 बच्चों के साथ हुई थी. बाद के वर्षों में संख्या बढ़ती गई. अब कॉटेज में लेप्चा जनजाति के 55 बच्चे रहते हैं. हालांकि इनमें से ज्यादातर बच्चे अनाथ हैं लेकिन कीपू अपने बच्चों के लिए इस शब्द का उपयोग नहीं करने को लेकर विशेष आग्रह रखती हैं. वे दृढ़ता से पूछती हैं, ''आप उन्हें अनाथ कैसे कह सकते हैं जब हम उनके लिए यहां मौजूद हैं?'' और उनके शब्द अक्षरश: सत्य हैं, क्योंकि कीपू उन बच्चों के लिए उनकी ''निकुंग (दादी)'' हैं. दो वर्षीया ली नोर को नींद आ रही है लेकिन वह तब तक नहीं सो सकती जब तक कि निकुंग उसे कहानी न सुनाएं.

नाश्ते का समय होता है, तो बच्चे अपनी प्लेट और चाय के गिलास के साथ निकुंग के पास आएंगे और वे उन्हें खाने से पहले ईश्वर का धन्यवाद करते हुए प्रार्थना की याद दिलाएंगी. बच्चे उनके साथ-साथ प्रार्थना करके कुछ खाएंगे. कॉटेज के बच्चे और यहां रहने वाले दूसरे लोग स्थानीय लेप्चा बोली बोलते हैं, हालांकि वे हिंदी और अंग्रेजी भी सीख रहे हैं. कीपू कहती हैं, ''लुप्त हो रही लेप्चा जनजाति और उनकी संस्कृति तथा परंपराओं को बचाने के लिए उन्हें उनकी अपनी भाषा सीखना आवश्यक है.''

पूर्व नौकरशाह कीपू शुरुआत में अपना पूरा वेतन बच्चों पर खर्च कर देती थीं. वे बताती हैं, ''अब मुझे 40,000 रु. पेंशन मिलती है और कई शुभचिंतक भी हैं, जो बड़ी मदद करते हैं.'' कीपू राज्य या निजी स्रोतों से सहायता लेने के पक्ष में बिल्कुल नहीं हैं. वे कहती हैं, ''हम किसी भी ऐसे व्यक्ति या संस्था की सहायता नहीं चाहते जिसका कोई निहित स्वार्थ हो. हमारी स्वतंत्रता हमारे लिए बहुत कीमती है.'' लेकिन जनजातीय मामलों का केंद्रीय मंत्रालय सहायता को आगे आया है क्योंकि उनका यह कॉटेज गरीब जनजातियों तक पहुंचने और उनके बच्चों को पालने-पोसने के सरकार के एक दृष्टिकोण का हिस्सा है.

कॉटेज में अब एक प्रावधान भी है, जहां लोग 2,000 रु. की मासिक राशि देकर किसी एक बच्चे को गोद ले सकते हैं. पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित कीपू ने लेप्चा कॉटेज और आस-पड़ोस के बच्चों को शिक्षित करने में मदद के लिए एक स्विस कंपनी की मदद से एक स्कूल-सह-छात्रावास का निर्माण किया है. सिक्किम का मानव विकास फाउंडेशन 1997 में शुरू किया गया था. आज इसमें 370 डे स्कॉलर्स और 125 बोर्डर्स (यहां रहने वाले छात्र) हैं, जो ज्यादातर गरीब परिवारों से हैं. शिक्षा और आवास निशुल्क हैं और बेशुमार निश्छल प्रेम बोनस में है. बच्चों को खुश रहने को और क्या चाहिए.

''मैं परिवार पाल रही हूं और इसके लिए मैं किसी के आगे हाथ नहीं फैलाने वाली. आप मदद करना चाहते हैं, अच्छी बात है, पर मदद इसलिए करें क्योंकि आपको फिक्र है''

परिवर्तन का पैमाना

लेप्चा जनजाति, उसकी बोली और रीति-रिवाज दम तोड़ते जा रहे हैं. यहां गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए लेप्चा कॉटेज की प्रतिबद्धता बदलाव में अहम रोल निभा रही है.

***

Read more!