अनजाने नायकः ...सुबह कभी तो आएगी

घरों में काम करने वाली महिला के लेखक बनने की खुद की कहानी को मिसाल बनाकर बेबी हलदर सेक्स वर्कर्स के बच्चों को प्रेरित करती हैं. वे इन बच्चों को माताओं के काम करने की जगह से कहीं दूर हॉस्टल में स्थानांतरित करने में भी मदद करती हैं.

शिक्षा की अलख  सोनागाछी के यौनकर्मियों के बच्चों के बीच बेबी हल्दर
शिक्षा की अलख सोनागाछी के यौनकर्मियों के बच्चों के बीच बेबी हल्दर

बेबी हलदर, 46 वर्ष, लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता,  कोलकाता

अब उनकी कहानी हर कोई जानता है. 13 साल की उम्र में उनकी शादी एक बड़े उम्र के आदमी से कर दी गई, 20 साल की उम्र तक उनके तीन बच्चे हो चुके थे. उन्होंने अंतत: प्रताडऩा से भरी अपनी शादी से बाहर आने का फैसला किया और तीन बच्चों के साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र पहुंचीं. वहां उन्हें मुंशी प्रेमचंद के नाती प्रबोध कुमार श्रीवास्तव के यहां काम मिला. श्रीवास्तव ने उन्हें लाइब्रेरी की साफ-सफाई के दौरान धूल फांकती महाश्वेता देवी और तसलीमा नसरीन की किताबों को अक्सर उलटते-पुलटते देखा.

लेकिन उनके तातुस (पिता के लिए प्रयोग होने वाले पोलिश शब्द जिससे वे श्रीवास्तव को संबोधित करती थीं) ने उन्हें पढऩे के लिए प्रोत्साहित किया. इतना ही नहीं, अपने जीवन की कहानी लिखने के लिए कागज और कलम भी दी. नतीजा रहा कि 2003 में उनकी आत्मकथा आलो-आंधारि का अंग्रेजी अनुवाद ए लाइफ लेस ऑर्डिनरी नाम से प्रकाशित हुआ.

किताब इतनी पसंद की गई कि उसका 14 भाषाओं में अनुवाद हुआ. बेबी हल्दर साहित्य जगत का चर्चित नाम बन गईं. वे बुक टूर पर फ्रांस, जर्मनी और हांगकांग गईं. बाद में उनकी कुछ और किताबें—इशत रूपांतर, घोरे फेरार पथ भी आईं.

2016 में उन लोगों के करीब होने के लिए जिनके बारे में वे लिखती थीं, बेबी कोलकाता चली आईं. यहां वे एनजीओ 'अपने आप विमेंस वर्ल्ड' से जुड़ गईं. वे अब सोनागाछी जैसे क्षेत्रों में यौनकर्मियों के बच्चों को पढ़ाती हैं. बेबी कहती है, ''मैं उन्हें बांग्ला और हिंदी सिखाती हूं. कभी-कभी बच्चों की माएं भी साथ आती हैं.

वे अपनी पीड़ा, अपनी कहानियां सुनाती हैं और अक्सर हमसे सलाह और मार्गदर्शन मांगती हैं. हम उन्हें सशक्त बनाने के तरीकों की तलाश कर रहे हैं.'' ठान लिया जाए तो कुछ भी असंभव नहीं, यह बताने के लिए बेबी की कहानी ही काफी है. वे कहती हैं, ''मैं अपने दो नए उपन्यासों के नाम पर फैसला नहीं कर पाई हूं. ये 2007 से 2009 के बीच विदेशों के बुक टूर और अपने आप विमेंस वर्ल्ड के साथ काम पर हैं.''

''कभी हार न मानें. बुरे हालात को किस्मत न मानें. किस्मत आप खुद बदल सकते हैं''

परिवर्तन का पैमाना

घरों में काम करने वाली महिला के लेखक बनने की खुद की कहानी को मिसाल बनाकर बेबी हलदर सेक्स वर्कर्स के बच्चों को प्रेरित करती हैं. वे इन बच्चों को माताओं के काम करने की जगह से कहीं दूर हॉस्टल में स्थानांतरित करने में भी मदद करती हैं.

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