नई संस्कृति-नए नायकः गढ़वाली गीतों का नया स्टार
जब बॉलीवुड का कोलावरी डी गाना चलन में आया तो अमित सागर ने इसका गढ़वाली में कवर वर्जन कपलू झंगोर खांदा बड़ी, सबसे भला हम छा पहाड़ी गाना गया. इस गाने को खूब पसंद किया गया.

अमित सागर ने गढ़वाल विश्वविद्यालय से संगीत गायन में एमए किया है. शास्त्रीय संगीत की शिक्षा हासिल करके जब उन्होंने गढ़वाली गीत सुपनियों की माला की रिकार्डिंग की तो यह गीत रिलीज भी नहीं हो सका. अमित में बचपन से ही कैसेट सुनकर और टीवी देखकर गाने की ललक जाग उठी थी और वे तभी से गायन के क्षेत्र में जाने का सपना देखने लगे थे. 2005-06 में सारेगामा फेम राजा हसन के साथ सूफी एल्बम में भी उन्होंने गायन किया जिसके बोल थे क्यों माने ना. इसके बाद अनुराधा पौडवाल के साथ भावांजलि में भी गाया. 2007 में श्रीनगर, गढ़वाल में उन्होंने एक रिकार्डिंग स्टुडियो स्थापित कर गढ़वाली गानों की रिकार्डिंग शुरू की. स्टुडियो को सुर सागर नाम दिया गया, यह इस क्षेत्र में पहला रिकार्डिंग स्टुडियो था.
जब बॉलीवुड का कोलावरी डी गाना चलन में आया तो अमित सागर ने इसका गढ़वाली में कवर वर्जन कपलू झंगोर खांदा बड़ी, सबसे भला हम छा पहाड़ी गाना गया. इस गाने को खूब पसंद किया गया. 2009 में जब यूट्यूब उतना प्रचलित भी नहीं हुआ था, उन दिनों में भी पांच लाख से ज्यादा लोग इस गाने को सुन चुके थे. इसको मिली प्रतिक्रिया के बाद उन्होंने हिंदी गानों का मोह छोड़ दिया और तय किया कि अब वे गढ़वाली गाने ही गाएंगे. इसके बाद कंजूसों पर आधारित एक गढ़वाली लोकगीत चुमढ़ी दिशा को लेकर उन्होंने उसका फ्युजन निकाला. इस गीत को गढ़वाल में काफी पसंद किया गया. इसके बाद दिल्ली की एक संस्था यंग उत्तराखंड ने अमित को दिल्ली बुलाया और उन्होंने वहां इस गाने पर परफॉर्मेंस दी.
गढ़वाली गानों में फ्युजन के प्रयोग को गढ़वाल के लोकप्रिय गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने भी पसंद कर अमित से अपने गीत ताछुमा, ताछुमा धांगुला छडमडान्द, रुमझुमा कौथीग जांद गीत का फ्यूजन तैयार करने को कहा. और जब फ्युजन आया तो श्रोताओं ने इसे खूब पसंद किया. यह फ्युजन क्लासिक मिक्स करके तैयार किया गया था.
अमित की लोक कलाकार के रूप में सभी साजों पर महारत उनको अलग पांत में खड़ा करती है. ढोल दमों हो, मसक बीन या फिर दूसरे साज, सबमें वे हाथ आजमा सकते हैं. इन गढ़वाली गानों की लोकप्रियता ने उन्हें प्रेरणा दी कि वे अब अपना करियर लोकगीतों को ही बना सकते हैं. इसके बाद वे एक के बाद एक गढ़वाली गीतों के फ्युजन सामने लाए. नाच मेरी बीरा, चदरी होते हुए चैता की चत्वाली तक वे एक से बढ़कर एक लोकप्रिय गाने देने लगे. दिवंगत चन्द्र सिंह राही के लिखे और केशव अनुरागी के गाए चैता की चत्वाली गीत को जब उन्होंने फ्युजन में गाया तो वह गीत लोकप्रियता की हदें तोड़ गया. इस गीत का संगीत गुंजन डंगवाल ने तैयार किया था. इसके ऑडियो वर्जन को डेढ़ करोड़ लोगों ने यूट्यूब पर सुना जबकि इसके वीडियो वर्जन को ढाई करोड़ से ज्यादा लोगों ने देखा. मार्च 2017 में आए इस गीत के ऑडियो वर्जन को इतनी जगह शेयर किया गया कि उससे दस करोड़ लोग उसे देख पाए. चैता की चत्वाली के बाद उत्तराखंड का बच्चा बच्चा अमित सागर के नाम से परिचित हो गया. उनके इस जागर गीत चैता की चत्वाली का ऑडियो इसी साल 9 मार्च को रिलीज हुआ था. इस गीत ने फेसबुक, यूट्यूब समेत अन्य सोशल साइट्स पर खूब धूम मनाई. अलग अंदाज के म्युजिक में बना यह गीत लोगों को खूब पसंद आया.
इस गीत के बाद उनकी पास परफॉर्मेंस की मांग भी होने लगी है. अमित का कहना है कि उनको इन सबसे इतना मिल जाता है कि उनका परिवार हंसी-खुशी चले और उनकी टीम में शामिल पचीसेक लोगों के घर भी चल सकें. चैता की चत्वाली गीत की तर्ज पर तो तेलंगाना राज्य के निर्माण गीत को भी बनाया गया है. उसे सुनने के बाद लोगों ने तेलंगाना सरकार को मजबूर किया कि वह अपने राज्य के निर्माण गीत में दिवंगत चन्द्र सिंह राही और दिवंगत केशव अनुरागी समेत गुंजन डंगवाल को भी क्रेडिट दें. इस निर्माण गीत को भी यूट्यूब पर एक करोड़ से ज्यादा लोग सुन चुके हैं. अमित सागर का गीत चैता की चत्वाली यूट्यूब पर इतना प्रचार पाने वाला उतराखंड का पहला लोकगीत बन गया है.
गीत के लोकप्रिय होते ही अमित की बढ़ती डिमांड का असर यह हुआ है कि अमित ने अपने सुर सागर स्टुडियो में रिकार्डिंग और म्युजिकल क्लास बंद कर दी. अब विदेशों में भी उनकी परफॉर्मेंस की मांग होने लगी है. पहले भी उनकी मांग विदेशों में बसे उत्तराखंडी प्रवासियों में थी लेकिन जहाज में जाने में असहज होने के चलते वे इससे इनकार कर देते थे. लेकिन पिछले साल वे सिंगापुर गए, जहां उनको अपार स्नेह मिला और जहाज में उडऩे को लेकर उनका डर भी खत्म हो गया. अमित के मुताबिक, उन्हें उम्मीद नहीं थी कि सिंगापुर में भी उनके इतने प्रशंसक होंगे. वहां काफी तादाद में प्रवासी उत्तराखंडी रहते हैं और वे पूरी तन्मयता से उनकी प्रस्तुति का आनंद ले रहे थे. इस दौरान उन्होंने नाच मेरी बीरा, ता छुमा, है धना, मेरु बाजू रंगा, मुला मुल हंसीलि,चैता की चत्वाली जैसे हिट गीत सुनाए. अब अमित इसके लिए तैयार रहते हैं कि कहीं से बुलावा आने पर वे जरूर जाएंगे.
अमित सागर बॉलीवुड के दिग्गज संगीत निर्देशक और गायक लेज्ली लुइस के साथ भी एक गीत को गढ़वाली में गा रहे हैं. लुइस कहते हैं कि ''उत्तराखंड के संगीत की रिदम ही सबसे अलग है. यह एक ऐसा फोक है, जो हर किसी तक आसानी से पहुंच सकता है. खास तौर पर गढ़वाली संगीत सुनने का मजा ही अलग है.''
संघर्ष
शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेने के बाद शुरू में रिकॉर्ड किए गए उनके कुछ रिलीज भी नहीं हो सके
टर्निंग पॉइंट
बॉलीवुड के कोलावरी डी गाने की तर्ज पर तैयार गढ़वाली वर्जन कपलू झंगोर खांदा बड़ी गाना. 2009 में यूट्यूब इतना चलन में न रहने के बावजूद इसे पांच लाख लोगों ने इसे सुना था. उसी के बाद से उन्होंने हिंदी गानों का मोह छोड़ दिया
उपलब्धि
उनके चैता की चत्वाली गीत का ऑडियो वर्जन डेढ़ करोड़ लोगों ने सुना और वीडियो वर्जन ढाई करोड़ लोगों ने देखा
सफलता के सूत्र
शास्त्रीय संगीत की शिक्षा
लोकप्रियता के कारक
कायदे के तैयार किया गया लोकप्रिय गीतों का फ्युजन
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